Chuto ka Samundar - चूतो का समुंदर
06-06-2017, 10:30 AM,
RE: चूतो का समुंदर
यहाँ होटल डेलिट के रूम नो.202 मे कामिनी अपनी कहानी सुना कर बोली...

कामिनी- तो ये बात है....और इसी लिए मैं मल्होत्रा फॅमिली को ख़त्म करना चाहती हूँ....

उन- ह्म्म...आपकी बात से ये तो पता चल गया कि आपकी फॅमिली के साथ ग़लत हुआ है...पर इसमे उस मासूम अंकित की क्या ग़लती....उसने तो कुछ नही किया....

कामिनी- नही किया तो क्या....गेंहू के साथ घुन तो पिसता ही है....और वैसे भी मेरा मक़सद सिर्फ़ उसकी फॅमिली ख़त्म करना ही नही...बल्कि उस की प्रॉपर्टी भी है...

उन- मतलब...??

कामिनी- मेरा बदला तो मूल होगा...और प्रॉपर्टी होगी उसका ब्याज...

उन- तो तुम अभी क्यो नही मार देती उन्हे...

कामिनी- मार देगे...पहले मिल तो जाएँ...

उन- तो उन्हे ढूढ़ रही हो...???

कामिनी- हाँ...

उन- ओके..तो जब तक उसकी फॅमिली नही मिलती तब तक क्या करोगी....

कामिनी- जब तक सिर्फ़ इंतज़ार...और अब मैं चलती हूँ...आज रात अंकित को मज़े जो कराना है....

उन- ओके...मज़े करो...मेरे टच मे रहना....और कभी हमें भी मज़े...हाहाहा..

कामिनी जाने लगी फिर गेट पर पहुच कर रुक गई...

कामिनी- ह्म्म..ज़रूर...वैसे आपका नाम क्या है...

अननोन- नाचीज़ को अकबर कहते है....

कामिनी- ओके अकबर जी...जल्दी मिलेगे...गुड'नाइट

अकबर- गुड'नाइट

कामिनी के रूम से निकलते ही अकबर ने किसी को कॉल किया...

(कॉल पर)

अकबर- वो निकल गई है...रेडी हो ना...

सामने- जी बॉस

अकबर- पर याद से जितना बोला उतना ही करना....उससे ज़्यादा नही...

सामने- जी बॉस...उतना ही होगा...

अकबर- ओके..काम हो जाए तो मुझे बता देना...

फिर अकबर ने कॉल कट की और एक पेग बना कर पीने लगा....

यहाँ कामिनी हॉतले से निकल कर कार ड्राइव करते हुए अपने घर जा रही थी....

रास्ते मे जहाँ रोड सुनसान थी ...वहाँ उसने किसी को देखा और उसकी आँखे बड़ी हो गई और उसकी नज़र वही पर अटक गई....

कामिनी ये भूल गई कि वो कार ड्राइव कर रही है...और आगे देखने की जगह वो साइड मे नज़रे गढ़ाए देखे जा रही थी...

थोड़ी देर मे एक आवाज़ आई......
न्न्ी दनणन्नाआआहहिईीईईईईईई............


............
मैं रात मे थोड़ा लेट हो गया था संजू के घर आते -आते......और संजू के घर मे सभी इस बात से परेशान थे...जिसमे आंटी सबसे ज़्यादा परेशान थी...

जैसे ही मैने संजू के गेट पर कार रोकी...तो रजनी आंटी लगभग भागते हुए बाहर आ गई...और जैसे ही मैं कार से निकला तो आंटी मुझे थप्पड़ मार दिया....

आंटी(चिल्ला कर)- कहाँ था तू...???

मैं(गाल पर हाथ रखे हुए)- वो...मैं...एक फ्रेंड...हाँ...एक फ्रेंड के घर पर था...

आंटी- तो बता कर नही जा सकता...कम से कम कॉल ही कर देता...और तू कॉल क्यो नही ले रहा था .. 

मैं- कॉल...कब...एक मिनट...

मैने तुरंत मोबाइल निकाल के देखा ..उसमे कई मिस्कल्ल पड़े थे....तब मुझे याद आया कि ये तो मैने ही साइलेंट कर दिया था...और नॉर्मल करना भूल गया .....

आंटी- अब बोलता क्यो नही....

मैने आंटी की आँखो मे देखा तो वो रो रही थी...और गुस्सा भी किए जा रही थी....

मैं- सॉरी आंटी...फ़ोन साइलेंट था...सॉरी...

आंटी- क्या सॉरी...मेरी तो जान निकल रही थी...मुझे लगा कि तुझे कुछ...

और आंटी ने मुझे गले लगा कर रोना शुरू कर दिया....

मैं हैरान था आंटी का प्यार देख कर...पर उस टाइम मुझे भी आंटी के प्यार ने मजबूर कर दिया और मेरी आँखे नम हो गई...

मैं- सॉरी आंटी...आप क्यो रो रही है...ग़लती मेरी है...

आंटी- तुझे कुछ हो जाता तो मैं अपने आप को कभी नाफ़ नही कर पाती....ऐसा मत किया कर बेटा....

मैं- सॉरी आंटी...आगे से ऐसा नही होगा...

हम दोनो आँखो मे आसू भरे गले मिल रहे थे...और तब तक घर के सारे लोग भी गेट पर आ चुके थे...

सब लोग हमारा प्यार देख कर भावुक से हो गये थे...कुछ तो रो रहे थे जिनमे अनु,रक्षा और पूनम थी....

पर कुछ को शायद ये नाटक लग रहा था...

संजू भी जल्दी से मेरे पास आ गया और तब तक मैं आंटी से अलग हो गया...

संजू ने आते ही मुझे कंधे पर मारा और बोला...

संजू- साले...कहाँ था तू...तेरी वजह से यहाँ सबकी जान अटक गई थी...फ़ोन भी नही उठाता...रुक बताता हूँ तुझे...

संजू मुझे मारने आगे बढ़ा तो मैं आंटी को साइड कर के उनके पीछे हो गया...

संजू- निकल साले...सामने आ...

मैं- मेरी बात तो सुन...रुक जा...

आंटी- अब बस भी करो...संजू रुक जाओ...खबरदार जो मेरे बेटे को हाथ लगाया...

संजू- हाँ..ये आपका बेटा ..और मैं कौन...???

आंटी- अरे तुम दोनो मेरे बेटे हो...अब लड़ना बंद करो..चलो खाना खाते है...सब भूखे होंगे...



संजू- ओके..चल तुझे तो बाद मे देखता हूँ...

मैं- ..अभी चल...खाना खाते है...मैं कार लॉक कर के आता हूँ....

सब अंदर चले गये पर आंटी वही रुकी रही...जब मैं कार लॉक कर के पलटा तो आंटी ने मेरी आँखो मे देखते हुए कहा...

आंटी- इन आँखो मे आँसू अच्छे नही लगते...मैने हमेशा इन आँखो मे ख़ुसी ही देखी है...

मैं- अच्छा...कब्से...

आंटी- जब तू पैदा भी नही हुआ था तब से...

मैं- वो कैसे...

आंटी- तेरी आँखे तेरी माँ जैसी है बेटा...उसकी आँखो मे भी मैं आँसू नही देख पाती थी...

मैं- आप मेरी माँ को जानती थी..

आंटी(सकपका कर)- वो..मैं..हाँ..तेरे पैदा होने के पहले हम सहेली बन गई थी...शायद किसी फंक्षन मे किसी कॉंमान फ्रेंड ने मिलवाया था....अब चल खाना खा ले...फिर बात करेंगे ...

और आंटी आगे निकल गई....मैं भी पीछे-2 आ गया...और नीचे ही हाथ-मुँह धो कर खाना खाने बैठ गया....
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RE: चूतो का समुंदर - by sexstories - 06-06-2017, 10:30 AM

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