Chuto ka Samundar - चूतो का समुंदर
06-06-2017, 10:35 AM,
RE: चूतो का समुंदर
वो इंसान मुझे देख कर भावुक सा हो गया था...और बस मुझे देखे जा रहा था...साथ मे उसकी आँखो मे खुशी के आँसू निकल रहे थे...

मैं- क्या हुआ बाबा...रो क्यो रहे हो...कौन हो आप...???

बाबा- ये तो खुशी के आँसू है बेटा...तुझे देख कर आँखो से छलक आए...

मैं- बाबा..आप है कौन...??

बाबा(आँसू पोंछ कर)- मेरा नाम बहादुर है बेटा..और आज से कई साल पहले मैं तुम्हते दादाजी का नौकर था...

अपने दादाजी का नाम सुनते ही मेरी आँखो मे खुशी तैर गई...

मैं- क्या..आप जानते हो मेरे दादाजी को...वो कहाँ है...कैसे है...और..और...मेरे बाकी के घरवाले...कहाँ है वो सब...??

बहादुर- वो मुझे नही पता मालिक...उन्होने मुझे काफ़ी सालो पहले अपने से दूर कर दिया था..तब आप भी पैदा नही हुए थे....हम आपके पापा के साथ गाओं छोड़ कर आ गये थे...

मैं- पर मैने तो आपको कभी डॅड के साथ नही देखा .....

बहादुर- गाओं से निकलते ही उन्होने मुझे अपने से दूर कर दिया था...और मैं अपने परिवार के साथ एक नये गाओं मे बस गया था...

मैं- पर दूर क्यो किया था...??

बहादुर- क्योकि तुम्हारे पापा अपने साथ कोई भी पुरानी याद नही रखना चाहते थे...

मैं- ओह...तो आप अब किस लिए आए है...

बहादुर- बताता हूँ बेटा...कुछ दिन पहले मेरे पास एक आदमी आया और उसने तुम्हारे दादाजी का संदेश दिया.. 

मैं- दादाजी को आपका पता था कि आप कहाँ रहते है...???

बहादुर- नही...शायद पता लगा लिया होगा...

मैं- ह्म्म..तो आपको पता चल गया कि दादाजी कहाँ है...??

बहादुर- नही बेटा...उसने ये नही बताया...बोला कि पूछ के बताउन्गा....

मैं- ह्म्म..तो संदेश क्या था...

बहादुर- संदेश ये था कि आख़िरी बार आपके दादाजी अपने बेटे यानी कि आपके पापा से मिलना चाहते है....

मैं- आख़िरी बार मतलब..दादाजी को क्या हुआ...???

बहादुर- हुआ तो कुछ नही बेटा...पर उमर हो गई है...इसलिए अपने बेटे से मिलना चाहते है...

मैं- तो दादाजी को ये पता नही कि हम यहा रहते है...

बहादुर- नही...मुझे भी मालूम नही था...इसलिए मे सहर-सहर घूम रहा था...और यहाँ किसी ने उनके बारे मे बता दिया...

मैं- ह्म्म....आपको मैं उनसे मिला दूगा...पर पहले मुझे ये बताओ कि दादा जी कहाँ है...उस आदमी ने आपको बताया कि नही...

बहादुर- वो बताता..उससे पहले उसकी आक्सिडेंट मे मौत हो गई...

मैं- ठीक है...आप आराम करे...मैं आपको अपने डॅड से मिलवाउन्गा...पर उन्हे ये मत कहना कि मैं आपसे मिल चुका हूँ...

बहादुर- जी मालिक..

मैं- आप मुझे मालिक मत बोलो...बेटा ही बोलो...

बहादुर- जैसा कहो बेटा...

मैं(अपने आदमी से)- जब तक डॅड नही आते..तुम इनका पूरा ख़याल रखना ओके...

स- ओके

मैं- सुनो बाबा...

बहादुर- हाँ बेटा...

मैं- आपने मुझे कभी देखा नही तो कैसे मान लिया कि मैं आकाश का बेटा हूँ...

बहादुर(मुस्कुरा कर)- बेटा तुम अपने पापा की तरह ही दिखते हो इसलिए पहचान गया...और तुम्हारी आँखे...

मैं- मेरी आँखे....मतलब..??

बहादुर- तुम्हारी आँखे तुम्हारी माँ के जैसी है...

बहादुर मेरे आदमी के साथ अंदर चला गया और मैं बहादुर की बातें से सोच मे पड़ गया कि अब ये क्या पहेली है...

फिर मैने डिसाइड किया कि डॅड के आते ही इसे उनसे मिलवाउन्गा..फिर आगे पता करूगा...उम्मीद है बहादुर से बहुत कुछ पता चलेगा...जिससे मैं अपनी फॅमिली के करीब पहुच सकुगा.....
बहादुर के अंदर जाने के बाद मेरे दिमाग़ मे एक नई सोच पैदा हो गई...कई सवाल मेरे सामने आ गये....

मैं(मन मे)- ये बहादुर मेरी फॅमिली के बारे मे जानता है तो उस वजह को भी जानता होगा जिसकी वजह से मेरे डॅड अपनी फॅमिली से दूर हुए है....

इसने खुद बोला था कि मेरे दाद अपनी पुरानी यादों को भूल जाना चाहते थे..इसलिए उन्होने बहादुर को भी दूर भेज दिया था...क्या वजह होगी इसकी...???

मेरे डॅड मेरी फॅमिली से दूर क्यो हुए...ऐसा क्या हुआ होगा...???

डॅड ने आज तक मुझे अपनी फॅमिली के बारे मे कुछ नही कहा....पर क्यो..???

सयद बहादुर सब जानता होगा...पर क्या वो मुझे बतायगा...?? पूछता हूँ....

मैं अंदर बहादुर के पास पहुच गया...

मैं- बाबा...एक बात बताओगे...

बहादुर- हाँ बेटा...पूछो...

मैं- ऐसा क्या हुआ था कि मेरे डॅड को अपना परिवार छोड़ना पड़ा...और तो और वो उन्हे याद भी नही रखना चाहते....???

बहादुर- बेटा...वो...ये सब बताने का मुझे हक़ भी नही और मैं मजबूर भी हूँ...मैं कुछ नही बोल सकता इस बारे मे...

मैं- पर क्यों...??

बहादुर- मैने मेरे बच्चो की कसम खाई थी कि मैं मर जाउन्गा पर इस बारे मे किसी को कुछ नही कहुगा...

मैं- पर मुझे जानना है..कि मेरी फॅमिली कहाँ है...और आज मैं अकेला , उन सब से दूर क्यो हूँ...???

बहादुर(रोते हुए)- माफ़ करना बेटा पर मैं मजबूर हूँ...मैं कुछ नही बता सकता ...

मैं- ओके ..आप रोओ मत...आप रेस्ट करो...मैं खुद पता कर लूँगा...और मैं जानता हूँ कि मुझे कौन बता सकता है...

फिर मैं बाहर निकल आया...बाहर आते ही मुझे मेरा आदमी मिल गया...वो मेरा ही वेट कर रहा था...

स- अरे अंकित...इस सब मे याद ही नही रहा कि आप कुछ बताने वाले थे...क्या बात थी...

मैं- बात तो कुछ खास है और अजीब भी...???

स- ऐसा क्या पता चला...???

मैं- बताता हूँ पहले ड्रिंक पिलाओ...इस बाबा से मिलकर सिर घूम गया....

उसने जल्दी से दूसरे आदमी से कह कर हमारे लिए ड्रिंक मगवाए...

हम ने ड्रिंक लिया और बातें शुरू हुई...

स- अब बताओ..क्या पता चला..???

मैं- बात कुछ ऐसी है कि अब मेरे दुश्मन कुछ दिन तक रेस्ट करने वाले है...

स- मतलब...

मैं- मतलब ये कि अभी कुछ महीनो तक वो मेरे खिलाफ कुछ ऐक्शन नही लेगे...

स- पर ऐसा क्यो...कुछ बात तो होगी...

मैं- वो तो पता नही...बस ये पता चला कि उन सब का बॉस किसी खास टाइम का वेट कर रहा है....

स- पर क्या...ऐसा क्या चाहता है वो...जिसके लिए वेट करना पड़ रहा है...

मैं- बस यही बात तो मुझे परेसान कर रही है कि जिसने मेरे और मेरी फॅमिली के खिलाफ इतने लोगो को एक साथ खड़ा कर दिया...उसने अचानक सब बंद करने का फ़ैसला कर लिया...

स- शायद ये सब इसलिए हुआ हो कि पहले दीपा और फिर कामिनी ..दोनो के साथ आक्सिडेंट हुआ है...

मैं- मुझे नही लगता कि उसे किसी के जाने से फ़र्क पड़ेगा...इसके पीछे कुछ और ही बात है...

स- तब तो हमे पता लगाना होगा...

मैं- हाँ...और अब टाइम भी है...सब चुप रहने वाले है तो हम अपना काम आराम से कर सकते है...तुम उससे भी पूछ लो...शायद कुछ पता हो उसे...ओके

स- हाँ..पर अब तुम क्या करोगे...??

मैं- सबसे पहले मुझे अपनी फॅमिली के बारे मे पता करना है...डॅड के आते ही बहादुर को उनके पास भेजुगा...फिर देखता हूँ कुछ पता चलता है कि नही...

स- ओके..तो अब मैं भी अपने काम पर ध्यान देता हूँ...अपने आदमियों को भेजता हूँ...कुछ पता चला तो अच्छा...

मैं- ह्म्म..एक पेग और हो जाए...??

स- नही यार...तुम पियो...मुझे जॉब भी देखनी है अपनी...हाहाहा...

मैं- हाँ सही है...तुम निकलो...मैं भी निकलता हूँ...

फिर मैने एक पेग लिया और हम दोनो अपने-2 रास्ते निकल आए...

मैं कार चलाते हुए भी बहादुर की बातों के बारे मे सोच रहा था...यही सब सोचते हुए मैं अपने घर पहुच गया...

घर पहुचते ही मुझे देख कर सब खुश हो गये...खास कर पारूल...

पारूल आकर मेरे गले लग गई...और मैने भी प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा...

मैं- कैसी ही मेरी गुड़िया...??

पारूल- बहुत अच्छी भैया..

मैं- कोई परेसानि तो नही ना...??

पारूल- नही भैया...यहाँ सब मेरा बहुत ख्याल रखते है...सविता आंटी, रेखा दीदी, रश्मि दीदी ...सब और हाँ सोनू भैया मुझे पढ़ने को किताबे देते है...

मैं- अरे वाह...सोनू तो समझदार हो गया ...अच्छा ये बता कि सोनू है कहाँ...

पारूल- वो हमारे लिए पाब भाजी लेने गये है...

मैं- ओह हो..पाब भाजी खाई जा रही है...

पातुल- हम ने तो बहुत कुछ खाया...कल पिज़्ज़ा भी खाया था...

मैं- ओह..अच्छा..कैसा लगा...

पारूल- बहुत अच्छा भैया...

मैं- और बता यहाँ आ कर क्या किया...क्या पसंद आया...??

पारूल एक्शिटेड होकर सब बताने लगी...उसने क्या खाया, उसके कपड़े...घर का महॉल..और मैं उसे प्यार से देख रहा था...
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