Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:10 PM,
#80
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
जैसे ही वो अंदर गया कामया का शरीर आकड़ गया और थोड़ा सा पीछे की ओर हुई ताकि अपने योनि में घुसे हुए लिंग को थोड़ा सा अड्जस्ट कर सके पीछे होते देखकर भीमा चाचा ने उसे अपनी बाहों में भर कर उसे सहारा दिया और धीरे-धीरे उसके गालों को चूमते हुए
भीमा- आज क्या हुआ है बहू हाँ…
और उसकी चूचियां पहले धीरे फिर अपनी ताकत को बढ़ाते हुए उन्हें मसलने लगा था लाखा काका तो नीचे पड़े हुए कामया की कमर को संभाले हुए उसे ठीक से अड्जस्ट ही करते जा रहे थे और कामया तो जैसे अपने अंदर उनके लिंग को पाकर जैसे पागल ही हो गई थी वो बिना कुछ सोचे अपने आपको उचका कर उनके लिंग को अपने अंदर तक उतारती जा रही थी

उसके अग्रसर होने के तरीके से कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि कामया कितनी उत्तेजित है
कामया के मुख से निकलती हुई हर सिसकारी में बस इतना जरूर होता था
कामया- और जोर्र से काका उूुउउम्म्म्मम और जोर से जल्दी-जल्दी करूऊऊऊ उूुउउम्म्म्म
और अपने होंठों से पीछे बैठे हुए भीमा चाचा के होंठों पर चिपक गई थी उसकी एक हथेली तो नीचे पड़े हुए काका के सीने या पेट पर थी पर एक हाथ तो पीछे बैठे भीमा चाचा की गर्दन पर था और वो लगा तार उन्हें खींचते हुए अपने सामने या फिर अपने होंठों पर लाने की कोशिश में लगी हुई थी लाखा काका का लिंग उसके योनि पर लगातार नीचे से हमलाकर रहा था और दोनों हथेलियो को जोड़ कर वो कामया को सीधा बिठाने की कोशिश भी कर रहा था पर कामया तो जैसे पागलो की तरह कर रही थी आज वो उछलती हुई कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ हो जाती थी पर लाखा काका अपने काम में लगे रहे

भीमा भी कामया को ही संभालने में लगा हुआ था और उसकी चुचियों को और उसके होंठों को एक साथ ही मर्दन किए हुए था और अपने लिंग को भी जब भी तोड़ा सा आगे करता तो कामया के नितंबों की दरार में फँसाने में कामयाब भी हो जाता था वो अपने आप भी बड़ा ही उत्तेजित पा रहा था और शायद इंतजार में ही था कि कब उसका नंबर आएगा पर जब नहीं रहा गया तो वो कामया की हथेली को खींचते हुए अपने लिंग पर ले आया और फिर से उसकी चुचियों पर आक्रमण कर दिया वो अपने शरीर का पूरा जोर लगा दे रहा था उसकी चूचियां निचोड़ने में पर कामया के मुख से एक बार भी उउफ्फ तक नहीं निकला बल्कि हमेशा की तरह ही उसने अपने सीने को और आगे की ओर कर के उसे पूरा समर्थन दिया उसकी नरम हथेली में जैसे ही भीमा चाचा का लिंग आया वो उसे भी बहुत ही बेरहमी से अपने उंगलियों के बीच में करती हुई धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगी थी कामया का शरीर अब शायद ज्यादा देर का मेहमान नहीं था क्योंकी उसके मुख से अब सिसकारी की जगह, सिर्फ़ चीख ही निकल रही थी और हर एक धक्के में वो ऊपर की बजाए अपने को और नीचे की ओर करती जा रही थी लाखा की भी हालत खराब थी और कभी भी वो अपने आपको शिखर पर पहुँचने से नहीं रोक पाएगा

आज तो कमाल ही कर दिया था बहू ने एक बार भी उन्हें मौका नहीं दिया और नहीं कोई लज्जा या झिझक मजा आ गया था पर एक डर भी बैठ गया था पर अभी तो मजे का वक़्त था और वो ले रहा था
आखें खोलकर जब वो अपने ऊपर की बाहू को देखता था वो सोच भी नहीं पाता था कि यह वही बहू है जिसके लिए वो कभी तरसता था या उसकी एक झलक पाने को अपनी चोर नजर उठा ही लेता था आज वो उसके ऊपर अपनी जनम के समय की तरह बिल्कुल नंगी उसके लिंग की सवारी कर रही थी और सिर्फ़ कर ही नहीं रही थी बल्कि हर एक झटके के साथ उसे एक परम आनंद के सागर की ओर धकेलते जा रही थी वो अपनी कल्पना से भी ज्यादा सुंदर और अप्सरा से भी ज्यादा कोमल और चंद्रमा से भी ज्यादा उज्ज्वल अपनी बहू को देखते हुए अपने शिखर पर पहुँच ही गया और एक ही झटके में अपनी कमर को उँचा और उँचा उठाता चला गया पर कामया के दम के आगे वो और ज्यादा नहीं उठा सका और एक लंबी सी अया के साथ हीठंडा हो गया


कामया की ओर देखता पर वो तो जैसे शेरनी की तरह ही उसे देख रही थी दो बार झड़ने के बाद भी वो इतनी कामुक थी कि वो अभी तक शांत नहीं हुई थी लेकिन लाखा काका को छोड़ने को भी तैयार नहीं थी वो अब भी उसके लिंग को अपनी योनि में लिए हुए अपनी योनि से दबाए जा रही थी और एक अजीब सी निगाहो से लाखा काका की ओर देखती रही पर उसके पास दूसरा आल्टर्नेटिव था भीमा चाचा जो की तैयार था पीछे वो एक ही झटके से घूम गई थी और बिना किसी चेतावनी के ही भीमा चाचा से लिपट गई थी अपनी बाँहे उनके गले पर रखती हुई और अपने होंठों के पास खींचती हुई वो उसपर सवार होती पर भीमा ने उसे नीचे पटक दिया और ऊपर सवार हो गया था और जब तक वो आगे बढ़ता कामया की उंगलियां उसके लिंग को खींचते हुए अपनी योनि के द्वार पर रखने लगी थी

भीमा तो तैयार ही था पर जैसे ही उसने अपने लिंग को धक्का दिया कामया के मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली और वो उचक कर भीमा चाचा के शरीर को नीचे की ओर खींचने लगी भीमा चाचा भी धम्म से उसके शरीर पर गिर पड़े और जरदार धक्कों के साथ अपनी बहू को रौंदने लगे पर एक बात साफ थी आज का खेल कामया के हाथों में था आज वो उनके खेलने की चीज नहीं थी आज वो दोनों उसके खेलने की चीज थे और वो पूरे तरीके से इस खेल में शामिल थी और हर तरीके से वो इस खेल का पूरा आनंद ले रही थी आज का खेल उसे भी अच्छा लग रहा था और वो अपने को शिखर को जल्दी से पा लेना चाहती थी वो भीमा चाचा को खींचते हुए अपने शरीर के हर कोने तक का स्पर्श पाना चाहती थी उसके मुख से आवाजो का गुबार निकलता जा रहा था

कामया- करूऊ चाचा जोर-जोर से करो बस थोड़ी देर और करूऊऊ

और अपने बातों के साथ ही अपनी कमर को उचका कर भीमा चाचा की हर चोट का जबाब देती जा रही थी पर कब तक आधूरा छोड़ा हुआ लाखा काका का काम भीमा चाचा ने आखिर में शिखर तक पहुँचा ही दिया एक लंबी सी आहह निकली कामया के मुख से और भीमा चाचा के होंठों को ढूँढ़ कर अपने होंठों के सुपुर्द कर लिया था कामया ने और निढाल सी पड़ी रही भीमा चाचा के नीचे भीमा भी अपने आखिरी स्टेज पर ही था कामया की योनि के कसाव के आगे और चोट के बाद वो भी अपने लिंग पर हुए आक्रमण से बच नहीं पाया था और वो भी थक कर बहू के ऊपर निढाल सा पसर गया

कामया की हथेलिया भीमा चाचा के बालों पर से घूमते हुए धीरे से उनकी पीठ तक आई और दोनों बाहों को एक हल्का सा धकेला और हान्फते हुए वही पड़ी रही कमरे मे दूधिया नाइट बल्ब की रोशनी को निहारती हुई एक बार अपनी स्थिति का जायजा लिया वो संतुष्ट थी पर थकि हुई थी नजर घुमाने की, हिम्मत नहीं हुई पर पास लेटे हुए भीमा चाचा की जांघे अब भी उसे टच हो रही थी कामया नेभी थोड़ा सा घूमकर देखा पास में भीमा चाचा पड़े हुए थे और लाखा काका भी थोड़ी दूर थे लूँगी ऊपर से कमर पर डाले हुए लंबी-लंबी साने लेते हुए दूसरी ओर मुँह घुमाए हुए थे कामया थोड़ा सा जोर लगाकर उठी और पाया कि वो फ्रेश है और बिल्कुल फ्रेश थी कोई थकावट नहीं थी हाँ थोड़ी सी थी पर यह तो होना ही चाहिए इतने लंबे सफर पर जो गई थी

वो मुस्कुराती हुई उठी और एक नजर कमरे पर पड़ी हुई चीजो पर डाली जो वो ढूँढ़ रही थी वो उसे नहीं दिखी उसका गाउन और पैंटी कोई बात नहीं वो थोड़ा सा लड़खड़ाती हुई कमरे से बाहर की ओर चालदी और दरवाजे पर जाकर एक नजर वापस कमरे पर डाली भीमा और लाखा अब भी लेटे हुए लंबी-लंबी साँसे ले रहे थे

वो पलटी और सीडीयाँ उतरते हुए वैसे ही नंगी उतरने लगी थी सीढ़ियो में उसे अपना गाउन मिल गया पैरों से उठाकर वो मदमस्त चाल से अपने कमरे की ओर चली जा रही थी

समझ सकते है आप क्या दृश्य होगा वो एक स्वप्न सुंदरी अपने शरीर की आग को ठंडा करके बिना कपड़ों के सीढ़िया उतर रही हो तो उूुुुुुुउउफफफफफफफफ्फ़
क्या सीन है यार,

संभालती हुई उसने धीरे से अपने कमरे का दरवाजा खोला और बिना पीछे पलटे ही पीछे से धक्का लगाकर बंद कर दिया और पलटकर लॉक लगा दिया और बाथरूम की ओर चल दी जाते जाते अपने गाउनको बेड की ओर उच्छाल दिया और फ्रेश होने चली गई थी जब वो निकली तो एकदम फ्रेश थी और धम्म से बेड पर गिर पड़ी और सो गई थी जल्दी बहुत जल्दी सुबह कब हुई पता ही नहीं चला हाँ… सुबह चाय के समय ही उठ गई थी और पापाजी के ही चाय पिया था नीचे जाकर
पापाजी- आज क्या ऋषि आएगा तुम्हें लेने
कामया- जी कहा तो था पता नहीं
पापाजी- हाँ… तो में चला जाऊ खाना खाके तुम फिर आराम से निकलना क्यों
कामया- जी ठीक है
पापाजी- कि रुकु जब तक नहीं आता
कामया- जी क्या बताऊ कल तो बोला था कि आएगा
पापाजी- फोन कर लो एक बार
कामया- जी नंबर नहीं है उसका
पापाजी- धत्त क्या लड़की हो तुम नंबर तो रखना चाहिए ना अब वो तुम्हारे साथ ही रहेगा धरम पाल जी ने कहा है थोड़ा सा बच्चे जैसा है और कोई दोस्त भी नहीं है उसका

कामया- जी पर मेरे साथ क्यों

पापाजी (थोड़ा हँसते हुए)- देखा तो है तुमने उसे ही ही ही

कामया को भी हँसी आ गई थी कोई बात नहीं रहने दो उसे पर नंबर तो है नहीं कैसे पता चलेगा
देखा जाएगा
कामया- जी अगर नहीं आया तो में फोन कर दूँगी आपको आप गाड़ी भेज देना
पापाजी- हाँ… ठीक है
और दोनों चाय पीकर तैयारी में लग गये ठीक खाने के बाद काम्पोन्ड में एक गाड़ी रुकने की आवाज आई थी भीमा अंदर से दौड़ता हुआ बाहर की ओर गया और बताया कि धरंपाल जी का लड़का है
दोनों खुश थे चलो आ गया था
पापाजी- उसे बुला लाओ यहां
भीमा- जी
और थोड़ी देर में ही ऋषि उसके साथ अंदर आया था
आते ही पापाजी को प्रणाम किया था और कामया की ओर देखता हुआ नमस्ते भी किया था छोटा था पर संस्कार थे उसमें
पापाजी- कैसे हो ऋषि
ऋषि- जी अच्छा हूँ
पापाजी- बड़े हो गये हो तुम्हे बहुत छोटा देखा था मैंने तुम्हें आओ खाना खा लो
ऋषि- जी नहीं खाके आया हूँ
पापाजी- अरे थोड़ा सा डेजर्ट है लेलो
ऋषि- जी
और बड़े की बातों का आदर करते हुए कामया के साइड में खाली चेयर में बैठ गया और एक बार उसे देखकर मुस्कुरा दिया बहुत ही सुंदर लगा रहा था ऋषि आज महरून कलर की काटन शर्ट पहने था और उससे मचिंग करता हुआ खाकी कलर का पैंट ब्लैक शूस मस्त लग रहा था बिल्कुल शाइट था वो सफेद दाँतों के साथ लाल लाल होंठ जैसे लिपस्टिक लगाई हो बिल्कुल स्किनी सा था वो पर आदर सत्कार और संस्कार थे उसमें नजर झुका कर बैठ गया था पापाजी के कहने पर और बड़े ही शर्मीले तरीके से थोड़ा सा लेकर खाने लगा था बड़ी मुश्किल से खा पा रहा था

पापाजी- ऋषि अब से क्या तुम लेने आओगे कामया को

ऋषि- जी जैसा आप कहे
पापाजी- नहीं नहीं वो तो इसलिए कि कामया ने बताया था कि तुम लेने आओगे इसलिए पूछा नहीं तो हम तो जाते ही है कॉंप्लेक्स का काम देखने

ऋषि- जी आ जाऊँगा यही से तो क्रॉस होता हूँ अलग रोड नहीं है इसलिए कोई दिक्कत नहीं है

पापाजी- ठीक है तुम आ जाया करो हाँ कोई काम रहेगा तो पहले बता देना ठीक है और तुम्हारा नंबर दे दो
ऋषि - जी और खाने के बाद उसने अपना नंबर पापाजी को दे दिया था और कामया को भी
कामया- तुम बैठो में आती हूँ तैयार होकर
पापाजी के जाने के बाद ही कामया ने ऋषि से कोई बात की थी पर ऋषि टपक से बोला
ऋषि- तैयार तो है आप
कामया- अरे बस आती हूँ तुम रूको
ऋषि- जी झेप-ता हुआ खड़ा रह गया था
कामया पलटकर अपने कमरे की ओर चली गई थी सीढ़िया चढ़ते हुए ऋषि की बातों पर हँसी आ रही थी कि कैसे पापाजी के हट-ते ही टपक से बोल उठा था वो शरारती है और हो भी क्यों नहीं अभी उम्र ही कितनी होगी उसकी 22 या 23 साल
उसने कमरे में पहुँचकर जल्दी से अपने कपड़ों को एक बार देखा और मेकप को सबकुछ ठीक था पलटकर चलती पर कुछ रुक सी गई थी वो एक बार खड़ी हुई कुछ देर तक पता नहीं क्या सोचती रही पर एक झटके से बाहर की ओर निकल गई थी

नीचे पापाजी तो चले चले गये पर ऋषि उसके इंतेजार में बैठा हुआ था ड्राइंग रूम में उसके आते ही वो खड़ा हुआ और एक बार मुस्कुराते हुए कामया की ओर देखा और उसके साथ ही बाहर की ओर चल दिया
गाड़ी में ड्राइविंग सीट के पास ही बैठी थी कामया ऋषि ड्राइविंग कर रहा था
ऋषि- कॉंप्लेक्स ही चले ना भाभी
कामया- हाँ… और नहीं तो कहाँ
ऋषि- नहीं ऐसे ही पूछा
कामया- हाँ… थोड़ा सा गुस्से से ऋषि की और देखा
कामया- मतलब
ऋषि झेपता हुआ कुछ नहीं कह पाया था पर ड्राइव ठीक ही कर रहा था बड़ी ही सफाई से ट्रफिक के बीच से जैसे बहुत दिनों से गाड़ी चला रहा हो
कामया- अच्छी गाड़ी चला लेते हो तुम तो
ऋषि- जी असल में बहुत दिनों से चला रहा हूँ ना 11 क्लास में ही चलाना आ गया था मुझे तो दीदी के साथ जाता था सीखने को दीदी से ही सिखाया है बिल्कुल चहकता हुआ सा उसके मुख से निकलता वो गुस्से को भूल गया था
कामया- हाँ… मुझे तो नहीं आती सीखने की कोशिश की थी पर सिख नहीं पाई
तपाक से ऋषि के मुख से निकाला
ऋषि- अरे में हूँ ना में सीखा दूँगा दो दिन में ही
कामया को उसके बोलने के तरीके पर हस्सी आ गई थी बिल्कुल चहकते हुए वो बोला था
कामया- ठीक है तुम सिखा देना और देखकर चलाओ नहीं तो टक्कर हो जाएगी

ऋषि मुस्कुराते हुए गाड़ी चलाता हुआ धीरे-धीरे कॉंप्लेक्स के अंदर तक ले आया था और आफिस बिल्डिंग के सामने खड़ी करके खुद बाहर निकला और दौड़ता हुआ साइड की ओर बढ़ा ही था कि कामया दरवाजा खोलकर बाहर आ गई थी
ऋषि की ओर मुस्कुराते हुए
कामया- क्या कर रहे थे में दरवाजा नहीं खोल सकती क्या

ऋषि- ही ही ही नहीं नहीं वो बात नहीं है में तो बस ऐसे ही पहली बार आपको ले के आया हूँ ना इसलिए

कामया- तुम ड्राइवर नहीं हो ठीक है

ऋषि धीरे-धीरे उसके साथ होकर चलता हुआ उसके केबिन की ओर बढ़ता जा रहा था
ऋषि- ठीक है
कामया को उसका साथ अच्छा लग रहा था भोला भाला सा था और शायद इतनी इज़्ज़त उसे कभी नहीं मिली थी जो उसे मिल रही थी घर में छोटा था और कुछ लजाया सा था इसलिए भी हो सकता था पर अच्छा था

कामया अपने आफिस में घुसते ही अपने टेबल पर आ गई थी और वहां रखे हुए बहुत से बिल और वाउचर्स को ठीक से देखने लगी थी ऋषि भी उसके सामने वाली सीट पर बैठा हुआ था और बड़े गौर से कामया की हर हरकतों को देख रहा था कामया भी कभी-कभी उसे ही देख लेती थी और एक बार नज़रें चार होने से ऋषि बस मुस्कुरा देता था और कामया उसे और समर्थन भी देती थी

बहुत देर तक जब कामया उन कागजों में ही उलझी हुई थी तो ऋषि से नहीं रहा गया
ऋषि - भाभी कितना काम कर रही हो
बड़े ही नाटकीय और लड़कपन सी आवाज निकालते हुए उसने भाभी को कहा था कामया की हँसी फूट पड़ी थी उसके इस अंदाज से
कामया- तो यहां काम ही करने आए है

ऋषि- अरे यार यह तो बहुत बोरिंग काम है क्या खाली साइन कर रही हो आप कब से

कामया- हाँ… यह सब खर्चे है जो कि किए हुए है और होंगे भी वोही तो देखना है तुमको हम को
ऋषि- अरे यार में तो बोर होने लगा हूँ अभी से चलिए ना बाहर घूमते है
कामया- क्या
ऋषि- तो क्या कितनी देर से आप तो काम कर रही है और में बैठा हुआ हूँ
बड़े ही नाटकीय तरीके से अपने हाथों को घुमाकर और अपनी बड़ी-बड़ी आखों को मटकाकर उसने बड़े ही उत्तावलेपन से कहा कामया उसकी ओर बड़े ही प्यार से और एक अजीब सी नजर से देखने लगी थी सच में बिल्कुल लड़कियों जैसा ही था बातें करते समय उसकी आखें और होंठों को बड़े ही तरीके से नचाता था ऋषि और साथ-साथ में अपनी हथेलियो को भी गर्दन को भी कुछ अजीब तरीके से

हँसती हुई कामया का ध्यान फिर से अपने काम में लगा लिया था और ऋषि की बातों को भी सुनते हुए उसकी ओर देखती भी जा रही थी
ऋषि- भाभी प्लीज ना ऐसे काम से तो अच्छा है कि में घर पर ही रहूं क्या काम है यह बस बैठे रहो और साइन करो कुछ मजा ही नहीं

कामया- ही ही ही क्या मजाकरना है तुम्हें हाँ…

ऋषि अपनी हथेलियो को थोड़ा सा मटकाता हुआ अपनी ठोडी के नीचे रखता हुआ कामया की ओर अपनी बड़ी-बड़ी आखों से देखता रहा और बोला
ऋषि- यहां से चलिए ना भाभी कितनी बोरिंग जगह है यह

कामया- हाँ हाँ… चलते है अभी तो शोरुम जाना है जरा सा और बचा है फिर चलते है ठीक है अभी उनकी बातें खतम भी नहीं हुई थी कि डोर पर एक थपकी ने उनका ध्यान खींच लिया वो दोनों ही दरवाजे की ओर देखने लगे थे

पीओन अंदर घुसा और वही खड़े होकर बोला
पीओन- जी मेडम वो भोला आया है
कामया के मुख से आनयास ही निकला
कामया- क्यों
पीओन- जी कह रहा है कि मेमसाहब से मिलना है
वो कुछ और कहता कि भोला पीछे से अंदर घुस आया और दरवाजे को और पीओन को पास करते हुए टेबल तक आ गया
पीओन वापस चला गया पर कामया की नजर भोला की ओर नहीं देख पाई थी वो ऋषि की ओर देख रही थी और भोला के बोलने की राह देख रही थी ऋषि भी भोला को देखकर दूसरी तरफ देखने लगा था

इतने में भोला की आवाज आई
भोला- जी मेमसाहब वो दरखास्त देनी थी
उसके हाथों में एक कागज था और वो अब भी उसमें कुछ लिख रहा था और धीरे से एक बार कामया की ओर देखता हुआ कामया की ओर कागज को सरका दिया

कामया ने एक बार उसकागज को देखा फोल्डेड था पर उसकी मोटी-मोटी उंगलियों के नीचे से उसकागज को देखते ही नहीं जान पाई थी कि कैसी दरखास्त थी वो

भोला- जी सोच रहा था कि कल से ड्यूटी जाय्न कर लूँ खोली में पड़ा पड़ा थक गया हूँ और ड्यूटी जाय्न कर लूँगा तो आते जाते लोगों को देखूँगा तो मन लगा रहेगा और एक आवाज उसके पास से निकली जो कि किसी क्लिप के चटकने से हुई हो

कामया का ध्यान उसकी हथेलियो की ओर गया वो चौक गई थी उसकी एक उंगलियों में उसका ही वो क्लुचेयर था जिसे की वो एक हाथों से दबाता हुआ अपनी एक उंगली में लगाता था और खींचकर निकालता था कामया सहम गई थी और अपने हाथों को बढ़ा कर उसकागज को अपनी ओर खींचा और एक नजर ऋषि की ओर भी डाली जो कि अब भी अपनी ठोडी में कलाईयों को रखकर दूसरी ओर ही देख रहा था

बड़े ही संभालते हुए कामया ने उसकागज जो अपनी ओर खिछा था और खोलकर उस दरखास्त को पढ़ने लगी कि भोला की आवाज आई
भोला- साइन कर दो मेमसाहब अकाउंट्स में दे दूँगा नहीं तो तनख़्वाह बनते समय पैसा काट जाएगा
और फिर से वही क्लिप चटकने की आवाज गूँज उठी कामया भी थोड़ा सा संभली और उस पेपर को साइन करने के लिए अपना पेन उठाया पर वो सन्न रह गई उसको पढ़ कर लिखा था

आपको फूल कैसे लगे बताया नहीं बड़ी याद आ रही थी आपके जाने के बाद से ही इसलिए भेज दिए थे

और नीचे थोड़ा सा टेडी मेडी लाइन में भी कुछ लिखा था आप साड़ी में ज्यादा सुंदर दिखती है कसम से

कामया का पूरा शरीर एक अजीब सी सिहरन से भर उठा था सिर से लेकर पाँव तक सन्न हो गया था वो उस सिहरन को रोकने की जी जान कोशिश करती जा रही थी पर उसके हाथों की कपकपि को देखकर कोई भी कह सकता था कि उसका क्या हाल था पर भोला चालाक था आगे झुक कर उसने उसकागज को अपनी हथेलियो में वापस ले लिया और थोड़ा सा पीछे होकर कहा
भोला- जी में कल से काम पर आ जाउन्गा मेमसाहब और बाहर चला गया

कामया की सांसें अब भी तेज ही चल रही थी टांगों की भी अजीब हालत थी काप गई थी वो बैठी नहीं रहती तो पक्का था कि गिर ही जाती वो कुछ कहती पर ऋषि की आवाज उसे सुनाई दी
ऋषि- भाभी यह भैया का ड्राइवर है ना
कामया- हाँ…
ऋषि आपकी तबीयत तो ठीक है भाभी
कामया- हाँ… क्यों
ऋषि नहीं वो आप हाफ रही थी ना इसलिए
कामया- नहीं ठीक है तुम इसे कैसे जानते हो
ऋषि- भोला को एक दिन ना वो भैया के साथ हमारे घर में आया था
कामया- क्यों
ऋषि- वो पापा से मिलने तब देखा था बड़ा ही गुंडा टाइप का है ना यह
कामया- क्यों तुम्हें क्यों लगा
कामया को ऋषि का भोला को गुंडा कहना अच्छा नहीं लगा जो भी हो पर गुंडा नहीं है
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RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू - by sexstories - 06-10-2017, 03:10 PM

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