Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:26 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
बहुत दिन हो गये थे बिना मर्द के स्पर्श के और तो और अश्राम में भी उसे सिर्फ़ उत्तेजित कर छोड़ दिया गया था सिर्फ़ और सिर्फ़ महिलाओं ने ही उसकी उत्तेजना को शांत किया था एक शादीशुदा औरत को उत्तेजित करके महिलाए शांत करे ठीक है पर यह तो सिर्फ़ दिखावा है ना की फूल सटिस्फॅक्षन सिर्फ़ और सिर्फ़ दिखावा 

नहीं आज नहीं आज कामेश नहीं है वो आज अपने को कैसे रोके पुराने दिन खाते खाते उसे याद आने लगे थे कैसे भीमा ने उसकी पहले मालिश किया था और फिर कैसे वो खुद भीमा के पास गई थी और कैसे वो रात को भीमा और लाखा के पास गई थी किचेन से लेकर हर बात उसे याद आने लगी थी खाते खाते कामया इतना उत्तेजित हो चुकी थी कि उसे खाते नहीं बना और पता नहीं क्यों यह खाना भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था किसी तरह मम्मी जी का मन रखने के लिए उनका साथ देती रही थी 


किसी तरह खाना खतम होते ही कामया उठकर वाशबेसिन में हाथ धो कर जल्दी से अपने कमरे में पहुँच गई थी और चेंज करने लगी थी वो पेय जो की मनसा ने उसे दिया था उसे पीना जरूर था वो एक आयुर्वेदिक पेय था वो पता नहीं क्या था पर एक नई शक्ति और स्फूर्ति उसके शरीर में जरूर आ जाती थी उसे पीने से सो हाथ मुँह धोकर उसने पहले वो पेय पिया और फिर ड्रेस उतार कर वही एक छोटा सा कपड़ा जो की उसके बैग में था उसे कंधे में डालकर पहन लिया था जोकि घुटनों के ऊपर तक आता था वो कमर में एक मोटी सी गोलडेन कलर का रस्सी से कस्स कर बाँधना था उसे बाँध कर उसने अपने आपको मिर्रर में देखा था गजब जाँघो से लेकर टांगों तक का चमचमाता हुआ एक एक अंग साफ छलक रहा था चुचे बिना ब्रा के भी तने हुए थे आखें मदमस्त और गहरी थी होंठों पर लालिमा बिना लिपीसटिक के ही दिख रही थी बाल जुड़े की शेप में बँधे थे पर कही कही से लंबे से निकले हुए थे कंधा भी खाली था सिर्फ़ वो कपड़े से जितना ढका हुआ था बस उतना ही साइड से उसका शरीर कमर तक साफ-साफ दिख रहा था देखते देखते वो अपने शरीर की रचना में ही खो गई थी कितनी सुंदर और कामुक लग रही थी किसी अप्सरा के जैसी कोई भी सन्यासी और देव पुरुष तक उसके इस शरीर का दीवाना हो सकता था सच में किसी ने सच ही कहा है औरत के पास जो एक हथियार है वो है उसका शरीर आज तक इतिहास गवाह है की इस शरीर के लिए कितनी ही लड़ाइया हुई है और कितने ही कत्ल हुए है आज एक वैसा ही शरीर फिर से इस संसार पर राज्य करने के लिए तैयार हो रहा था 


कामया सोचते सोचते अपने आप में इतना खो गई थी कि उसे टाइम का ध्यान ही नहीं रहा था फिर अचानक ही उसने घड़ी की ओर नजर उठाई तो देखा करीब एक घंटा हो चुका था पता नहीं भीमा कहाँ होगा क्या करू देखूँ क्या उसके कमरे में नहीं नहीं वो खुद आ जाएगा उसे भी तो इच्छा होगी कैसे देख रहा था नजर चुरा कर पर वो तो रुक नहीं पा रही है एक बार धीरे से कामया ने अपनी जाँघो को देखते हुए अपने आपको सहलाया था एक सिसकारी उसके मुख में दब कर रह गई थी नहीं वो नहीं रुक सकती उसे कोई मर्द तो चाहिए ही चाहे वो भीमा ही हो वो जल्दी से अपने कमरे से बाहर की ओर भागी और डोर खोलकर एक बार बाहर की ओर देखा कोई नहीं था सबकुछ शांत था धीरे से उसने नजर ऊपर की ओर जाती हुई सीढ़ियो पर ले गई थी वहां भी शांति थी 

वो बाहर निकलकर सीढ़िया चढ़ने लगी थी भीमा चाचा के कमरे में वो पहले भी आई थी आज उसे कोई दिक्कत नहीं थी घर में कोई नहीं था और उसे जो चाहिए था वो भीमा के पास था और खूब था वो भी एक भूका शेर था जो कि उसकी कल्पना में शायद इतने दिनों तक भूका ही था तभी तो वो इस तरह से चोर नज़रों से मम्मी जी के सामने नहीं हिम्मत करता हाँ… वो भी भूका है पर वो तो कमरे में नहीं है कहाँ है शायद नीचे होगा क्या करे वही वेट करे नहीं नहीं ऐसा नहीं वो जल्दी से अपने कमरे की ओर जाने लगी थी पर थोड़ी दूर जाकर वो रुक गई थी क्या कर रहा है भीमा नीचे अभी तक क्या उसे जल्दी नहीं है चोर नजर से तो ऐसे देख रहा था कि वही निचोड़ कर रख देगा और अभी देखो तो किचेन में ही लगा हुआ है कामया से नहीं रहा गया और वो धीरे-धीरे नीचे की ओर चल दी किचेन में लाइट जल रही थी भीमा वही होगा डाइनिंग स्पेस में आते ही उसे भीमा की पीठ उसकी ओर दिखी थी 


वो प्लॅटफार्म की सफाई कर रहा था उसका ध्यान बिल्कुल भी पीछे की ओर नहीं था पर अचानक ही पीछे की पदचाप से वो पलटा था कामया स्वर्ग से उतरी हुई एक अप्सरा परी सुंदरी और ना जाने क्या-क्या एक साथ उसके दिमाग में चल पड़ा था जाँघो तक एकदम खाली वो सुंदरी उसके लिए ही यहां आई थी 

कामया- क्या आज ही सारा काम खतम करना है 

एक उत्तेजित और हुकुम देने वाली आवाज किचेन ने गूँज उठी थी भीमा की नजर एक बार कामया के चहरे पर गई थी कितना रुआब था उसके चहरे पर कितनी निडर हो गई थी वो पहले तो आवाज ही नहीं निकलती थी सिर्फ़ हाँ हूँ और उऊफ और आह के सिवा कुछ नहीं 

कामया- लाखा कहाँ है … 

भीमा (हलकता हुआ)- जी वो मदिर वाले घर पर चला गया है 

बड़े ही डरे हुए और धीमी आवाज में उसने कहा था 

कामया- पानी दो 
एक कड़क आवाज में आर्डर था 

भीमा डरा हुआ सा जल्दी से ग्लास लिए हुए फ़्रीज खोलकर पानी का ग्लास लिए हुए कामया के पास पहुँचा था कामया तब तक किचेन के अंदर आ गई थी और बीच में पड़े हुए टेबल पर कूल्हे टिकाकर खड़ी थी गोरी गोरी टाँगें एकदम साफ चमक रही थी भीमा नजर झुकाए पानी का ग्लास उसकी ओर बढ़ाकर अपनी नजर उठाने की कोशिश करता पर कामया की दाईं टाँग को उठकर उसकी टांगों के बीच में आता देख रहा था वो थोड़ा दूर खड़ी थी पर उसकी टाँगें उसके पास पहुँच रही थी कामया ने एक हाथ से उसके हाथो से ग्लास ले लिया था और अपनी टाँग को उठा कर उसकी जाँघो के बीच में फँसा लिया था और उसके नितंबों तक पहुँचा कर उसे अपने पैरों से अपने पास खींच रही थी 

भीमा निस्तब्द सा आगे की और हो गया था उसकी हथेलियाँ कामया की जाँघो को छू रही थी गोरी और कोमल जांघे कितनी सुंदर है उउफ्फ… हाथ में आई यह छुई मुई सी औरत कितनी कोमल और नाजुक है उसके दोनों हाथ कामया की उस जाँघ पर एक बार घूम गई थी और उसके चिकने पन के एहसास को अपने दिल में संजोने की कोशिश भी कर रहा था 


भीमा की हालत खराब थी कामया की टाँगें उसके लिंग से टकरा रही थी जो की उसके जाँघो के बीच में थी पर वो तो जैसे एक पत्थर की मूरत की तरह एकटक उसकी ओर ही देखे जा रही थी कामया से नजर तक मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी कामया की कड़कती हुई आवाज उसके कानों में गूँज उठी थी 

कामया- खोलो इसे और याद रहे आज के बाद तुम हर काम सिर्फ़ मेरे लिए करोगे जब में इस घर में रहूं तो ठीक है 

भीमा- जी 
और वो अपने हाथों को आगे बढ़ा कर कामया की कमर में बँधे उस रोप को खोलने लगा था कामया की टाँगें अब नीचे हो गई थी और एक हथेली भीमा के लिंग को टटोलने लगी थी उसके धोती के ऊपर से ही उसकी नाजुक सी उंगलियां भीमा के लिंग को कस्स कर पकड़ती और फिर ढीला छोड़ देती थी भीमा अपनेआपको संभालता और करता क्या डरा हुआ सा भीमा उस परी का दीवाना तो था पर आज जो कुछ वो देख रहा था और झेल रहा था उससे यह तो साफ था की आज वो इस नारी को शांत कर नहीं पाएगा उसका शरीर कब तक उसका साथ देगा उसे नहीं पता पर कोशिश जरूर करेगा यह सोचते हुए जब तक वो कामया की कमर से वो रोप खोलकर अलग करता तक तक तो कामया ने उसके लिंग पर पूरा काबू पा लिया था धोती के ऊपर से ही उसे अपनी पतली पतली उंगलियों से कस्स कर पकड़ी हुई अपने एक हाथ से अपने सामने से उस कपड़े को हटा दिया था 

कामया- उतारो इसे 
और भीमा ने धीरे से कामया के ऊपर से वो कपड़ा हटा दिया था एक स्वप्नसुंदरी उसके सामने खड़ी थी गोरा रंग जैसे दूध में थोड़ा सा लाल रंग मिला दिया हो वैसा रंग था, उसके पर सिर पर बालों के सिवा कही कोई बाल नहीं थे एकदम साफ और चमक दार थी वो अपने आपको नहीं रोक पाया था और कामया की ओर देखते हुए उसके पैर पर अपने हाथ टिकाकर सहलाने लगा था पर एक डर था उसके दिल में कही मालकिन ना आ जाए या कोई देख ना ले किचेन में थे वो लोग बाहर से भी नजर नहीं पड़ जाए पर कामया को कोई फरक ही नहीं पड़ रहा था हिम्मत जुटा कर भीमा बोल ही उठा 
भीमा- बहू रानी अंदर चलते है 

पर बीच में ही कामया ने उसकी बातें काट दी थी 
कामया- पहले यहां करो फिर अंदर जाएँगे जल्दी करो और खोलो इसे क्या फालतू की चीज को बाँधे खड़े हो 

भीमा कुछ कहता इससे पहले ही कामया ने एक झटके से उसकी कमर से उसकी धोती खींचली थी बड़े से अंडर वेयर में फसी हुई उसकी धोती लटक गई थी और कामया का हाथ फिर से उसके लिंग को कस्स कर पकड़ लिया था और एक हल्की सी आवाज में भीमा के होंठों के पास आते हुए बोली 
कामया- खोलो जल्दी से नहीं तो तोड़ दूँगी 
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