Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:32 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
बैठ ते ही उसका ड्रेस सरक कर उसकी जांघों तक आ गया था शरम और हया के मारे कामया की नजर झुक गई थी वापस खड़े होकर उसने अपने ड्रेस को खींचकर नीचे किया था और फिर बैठी थी वो पर कहाँ वो ड्रेस था ही उतना और बैठते ही वो सरक कर जाँघो तक वापस पहुँच गया था हाथों से खींचती हुई कामया अपनी जाँघो को जोड़ कर नजर झुकाए हुए बैठी रही कि गुरु जी की आवाज उसके कानों से टकराई 

गुरु जी- कैसी हो सखी 

कामया- जी 

गुरु जी - हाँ… कैसा लग रहा है तुम्हें यहां कोई दिक्कत 

कामया (अब भी उसका ध्यान अपने ड्रेस को नीचे करने में ही था )- जी अच्छा (और ना में अपना सिर हिला दिया था)

गुरु जी- कामेश और ईश्वर ने तो अपना पूरा समये अश्राम के काम में झोक दिया है बहुत मेहनत कर रहे है घर पर कामेश नहीं मिला होगा तुम्हें 

कामया- जी 

गुरु जी- हाँ… में चाहता था कि यहां रहे जब तुम घर जाओ तो पर वो पहले काम फिर आराम वाला लड़का है चलो ठीक है 

कामया- … 

गुरु जी - विद्या कैसी है 

कामया- जी अच्छी 

गुरु जी - और तुम 

कामया- जी 

गुरु जी- यहां का महाल ठीक है तुम्हारे लिए कि कुछ चेंज करना है 

कामया- जी ठीक है 

गुरु जी- हाँ… अच्छा काया कल्प तो चलता रहेगा तुम्हारा पर अब से दीक्षा भी शुरू करनी है तुम्हारी बोलो तैयार हो ना 

कामया- जी 

गुरु जी - इस दीक्षा में मैं तुम्हें बहुत सी बातें बताउन्गा और चाहूँगा कि तुम पूरी तरह से और बहुत ही अच्छे ढंग से इस दीक्षा को लो अभी से कुछ पाठ शुरू करता हूँ 

एक बात मेरी हमेशा याद रखना सखी इस जीवन में अपने तन, मन और धन के पीछे कभी नहीं भागना जब भी तुम इनके पीछे भगोगी वो तुमसे दूर जाते जाएँगे और जितना तुम इन्हें इज़्ज़त कम दोगि वो उतना ही तुम्हारे पीछे भागेंगे 

इस देश में जिस चीज का तुम तिरस्कार करोगी वो तुम्हारी उतना ही इज़्ज़त करेगी मेरी बात ध्यान से सुनना तुम एक नारी हो इस जगत की रचना नारी से ही हुई है पुरुष एक जानवर है चाहो तो उसे पाल पॉश कर अपने हाथों का खिलोना बना लो या डर के मारे उसके पीछे पीछे घूमती रहो 


ईश्वर की यह दो रचना बहूत अद्भुत है एक दूसरे के पूरक है और समझ के बनाए हुए मर्यादा में रहने को मजबूर है पर इस जिंदगी के सिवा भी बहुत कुछ है जो तुम्हें जानना है इस संसार को तुम्हें एक नया रास्ता भी दिखाना है बहुत देर तक गुरु जी कामया को जीवन के बहुत से ज्ञान देते रहे और कामया अपने आपको संभालती हुई अपने कपड़ों को खींचती हुई चुपचाप बैठी उन बातों को सुनती रही वो थोड़ा सा सचेत थी कि अब गुरु जी क्या कहते है या क्या आदेश देते है पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि थोड़ी देर बाद ही उन्होंने उसे जाने को भी कह दिया 


गुरु जी ने अपनी टांगों को नीचे किया और उन महिलाओं की ओर कुछ इशारा किया उन महिलाओं ने आगे बढ़ कर गुरु जी की धोती को खोलनी शुरू कर दी कामया सन्न रह गई थी उनके तरीके भी अजीब थे बड़े ही जतन से और ध्यान से गुरु जी के पेट और सीने को चूमते हुए वो दोनों अपने काम में लगी हुई थी और गुरु जी भी अपने हाथों से बड़े ही आराम से उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कभी एक ओर देखते थे तो कभी दूसरी ओर जब उनका वस्त्र खुला तो कामया की नजर उनके लिंग पर अटक गई थी अच्छा कसा मोटा ताजा लग रहा था पर बालों के गुच्छे से ढँका हुआ था इसलिए दूर से उसके आकार का पता नहीं चला था पर था मस्त सा अपने अंदर की हवस की आग को दबाते हुए कामया ने अपनी साँसों को नियंत्रण में रखते हुए एक नजर गुरु जी की ओर देखा तो पाया की गुरु जी उसकी ओर ही देख रहे थे 


अचानक ही उसकी आखें शरम से झुक गई थी पर गुरु जी की एक मनमोहने वाली मुश्कान उसकी आखों से उसके दिल में समा गई थी थोड़ा सा झिझक हटी थी उसके अंदर से एक डर जो कि उसके अंदर था वो हटा था पर फिर भी हिम्मत नहीं हुई थी उनसे आखें मिलाने की पर हाँ… नजर उन दोनों महिलाओं की ओर ही थी उसकी दोनों बड़े ही आराम से प्यार से गुरु जी के लिंग को अपने हाथों में लिए हुए धीरे-धीरे मसल रही थी अपने गालों में रगड़ रही थी और बीच बीच में अपनी जीब से थोड़ा सा चाट कर गुरु जी की ओर देखती भी जा रही थी पर उनका लिंग वैसा ही सिथिल सा उसके हाथों का खिलोना बना हुआ था थोड़ी देर बाद कामया को गुरु जी की आवाज फिर से सुनाई दी 

गुरु जी- इधर आओ सखी घबराओ नहीं 

कामया डरती हुई शरमाई हुई और थोड़ा सा झिझकति हुई धीरे-धीरे कदमो से चलती हुई गुरु जी पास जाकर खड़ी हो गई थी एकटक जमीन की ओर देखती हुई कामया जैसे ही गुरु जी के सामने खड़ी हुई उन दोनों महिलाओं ने और गुरु जी ने उसका हाथ पकड़कर ठीक अपने सामने और करीब खड़ा कर लिया था उन दोनों महिलाओं के हाथ कामया की जाँघो को सहलाने लगे थे उसके कपड़ों के अंदर से धीरे-धीरे उसकी योनि तक कामया की सांसें तो पहले से ही फूल चुकी थी गुरु जी के पास आने से और उन महिलाओं के हाथ लगाने से उसका शरीर उसके आपे से बाहर होता चला गया था सांसों की गति भी बढ़ गई थी और उत्तेजना अपने परम शिखर तक पहुँच चुकी थी गुरु जी का देखने का ढंग इतना उत्तेजग था कि कामया और आगे होकर उनसे सट कर खड़ी हो गई थी वो चाहती थी कि गुरु जी उसे हाथ लगाए और उसे छेड़े पर गुरु जी तो बस एकटक उसकी ओर देखते जा रहे थे उनका हाथ अब धीरे से उठकर कामया के सीने पर आके टिक गया था 

कामया- आआआआआह्ह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्शह करती हुई थोड़ा सा और आगे की ओर हो गई थी कामया की हालत देखकर नीचे बैठी महिलाए थोड़ा सा मुस्कुराइ थी उनके हाथों में अब भी गुरु जी का लिंग था और अपने होंठों से वो लगातार उसे चाट रही थी पर गुरु जी का लिंग वैसे ही ढीला ढाला सा पड़ा हुआ था गुरु जी के हाथ धीरे-धीरे कामया की चुचियों को दबाते हुए ऊपर की ओर उठ रहे थे और जब वो उसके कंधे के पास जाकर रुक गये तो कामया ने एक नजर गुरुजी पर डाली जैसे कह रही हो कि हाँ… उतार दो अब यह कपड़ा मेरे शरीर पर चुभ रहा है गुरु जी की उंगलियां धीरे से कामया के कंधे पर से उस कपड़े को नीचे की ओर सरका कर धीरे से अपने हाथों के सहारे नीचे की ओर कर दिया था उनका हाथ कामया की नंगी चुचियों को छूते हुए उसकी कमर तक आ गई थी कामया की तेज सांसें पूरे कमरे में गूँज रही थी नियंत्रण नहीं था उसका उसके ऊपर ना चाहते हुए भी सिसकारी के साथ-साथ एक तड़पती हुई सी आह भी उसके होंठों से निकल ही गई थी उन महिलाओं की उंगलियां धीरे-धीरे उसकी योनि को सहला रही थी कामया की जांघे अपने आप ही खुल गई थी ताकि उन महिलाओं को अपनी योनि तक पहुँचा सके वो आखें बंद किए माथे को ऊपर किए हुए जोर-जोर से सांसें ले रही थी और अपने शरीर पर हो रहे एक के बाद एक आक्रमण को किसी तरह से झेल रही थी कामया अपने में ही गुम थी कि उसकी कमर से वो गोल्डन कमरबंध खुलकर नीचे गिर गया था और गुरु जी के हाथों के साथ-साथ उसके शरीर का वो कपड़ा भी अलग हो गया था किसी मूरत की भाँति खड़ी हुई कामया साँसों को नियंत्रण करने में लगी थी पर गुरु जी के कोमल हाथों को नजर अंदाज नहीं कर पा रही थी गुरु जी की उंगलियां धीरे-धीरे उसके तन को सहलाती हुई उसकी योनि तक पहुँच चुकी थी और उन महिलाओं की उंगलियों के साथ ही उसकी योनि को छेड़-ते जा रहे थे कामया अपनी तेज सांसों को संभालती हुई किसी तरह से खड़ी थी कि गुरु जी आवाज उसके कानों में टकराई थी 

गुरु जी- देखो सखी क्या हालत है तुम्हारी अपने तन पर जरा भी नियंत्रण नहीं है तुम्हारा मुझे देखो कुछ हुआ मुझे इतनी सुंदर और बेदाग स्त्रियों के होते हुए भी में कितना नार्मल हूँ पता है क्यों क्योंकी मेरा मन नहीं है और जब तक मन नहीं होता तब तक सब बेकार है अपने तन को अपने मन से जोड़ो सखी और फिर देखो क्या होता है तुम्हारा मन तो नहीं है यह सब करने का पर तुम्हारा तन तुम्हारा साथ नहीं दे रहा है तुम अपने तन से हार गई हो जब तक तुम अपने तन को अपने मन से नहीं जोड़ोगी तब तक तुम ऐश्वर्य की प्राप्ति नहीं कर पाओगी आओ तुम देखो अगर मेरा मन नहीं है तो तुम मेरा क्या कर सकती हो 

और कहते हुए गुरु जी ने कामया की कमर को पकड़कर नीचे बिताने लगे थे कामया भी तड़पती हुई सी उनके घुटनों के बीच में बैठ गई थी दोनों महिलाए खड़ी होकर कामया को लगा तार सहलाती जा रही थी 

गुरु जी ने अपने हाथों से अपने लिंग को उठाकर कामया के चहरे के सामने एक बार हिलाकर दिखाया जैसे कह रहे हो कर लो जो करना है कामया की नजर गुरु जी के लिंग पर रुक गई थी होंठ खुले थे पर जल्दी ही बंद हो गये थे हाथों ने आगे बढ़ने की कोशिश की और नहीं बढ़े 
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