Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:33 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
गुरुजी- देखो सखी वो लोगो का नियन्त्रण कुछ नहीं है अपने शरीर पर कैसे एक के बाद एक ढेर होते जा रहे है उनके शरीर में इतनी भी ताकत नहीं बची है कि दोबारा कुछ कर सके क्या तुम इन जैसी बनना चाहती हो नहीं सखी में तुम्हें यहां इसलिए नहीं लाया हूँ में चाहता हूँ कि तुम इस खेल में इतना निपुण हो जाओ कि हर मर्द हर औरत तुम्हें पाने की इच्छा रखे पर तुम अपनी मर्ज़ी की मालिक रहो इनकी मर्ज़ी की नहीं हाँ… सही सुना तुमने में चाहता हूँ कि तुम अपनी मर्ज़ी की मालिक रहो अपने शरीर को इतना अच्छा बनाओ कि मर्द देखकर ही तुम्हें पाने की इच्छा करे तुम्हारे हाथ लगाने भर से ही वो झड़ जाए तुम्हें देखकर ही वो झड़ जाए नाकि तुम उनको देखकर उत्तेजित होओ तुममे वो बात है में जानता हूँ पर तुम्हें बहुत कुछ सीखना है सखी बोलो मेरा साथ दोगी ना … … 

और गुरु जी ने उसकी चुचियों को धीरे से दबाकर उसके कंधों को पकड़कर अपनी और मोड़ लिया था कामया उत्तेजना के शिखर पर थी उसे एक मर्द की जरूरत थी और अभी अभी जो वो देख रही थी और गुरु जी के हाथों के स्पर्श ने जो उसके साथ किया था वो एक अलग सा अनुभव था उत्तेजना में उसके गले से आवाज नहीं निकल रही थी गला सूखा हुआ था और एकटक गुरुजी की ओर देखती हुई कामया अपने गालों पर गुरु जी के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही सिर्फ़ आखें बंद किए हुए सिर को हिलाकर अपना समर्थन भर दे पाई थी 

गुरु जी- ठीक है सखी आज से तुम हमेशा मेरे साथ ही रहोगी तुम्हें जो चाहिए मुझे बताना कोई झिझक नहीं करना में तुम्हारा हूँ इस संसार का हूँ पर पहले तुम्हारा फिर बाद में किसी और का ठीक है 
और कहते हुए अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ लिया था 

कामया अभी आतूरता में थी ही झट से गुरूरजी के होंठों को अपने होंठों के सुपुर्द करके उसके बाहों में झूल गई थी 

कामया कोशिश में थी कि जितना हो सके गुरुजी से सट कर खड़ी हो जाए उसका रोम रोम जल रहा था दीवाल के दूसरे तरफ जो खेल चल रहा था वो एक अनौखा खेल था अपनी जिंदगी में उसने इस तरह का खेल नहीं देखा था उसका शरीर उस खेल में इन्वॉल्व होने को दिल कर रहा था उसे एक साथ अपने जीवन में आए हर मर्द के बारे में याद दिला रहा था 

यादे कुछ ना करे पर शरीर और मन को झंझोर कर रख देती है कामया का भी यही हाल था हर वो पल जो उसने भीमा लाखा और भोला के साथ बिताए थे एक-एक पल उसे याद आते जा रहे थे और गुरुजी के साथ चिपकते हुए वो सिर्फ़ एक ही इच्छा रखती थी कि गुरुजी उसके साथ भी वही खेल खेले पर गुरुजी का अंदाज कुछ अलग था अब भी कोई जल्दी बाजी नहीं थी और ना ही मर्दाना भाव ही था उनमें सिर्फ़ हल्के हाथों से उसे सिर्फ़ सहारा दिए हुए थे 

कामया- गुरुजी प्लीज कुछ कीजिए ना बहुत पागलपन सा लग रहा है 

गुरुजी- नहीं सखी तुम सिर्फ़ इस खेल के लिए नहीं हो तुम्हें बहुत कुछ सीखना है यहां बैठो 
और कहते हुए कामया को साथ लिए हुए वहां रखे हुए आसन पर बैठ गये थे कामया उनसे चिपक कर बैठ गई थी उसका हाथ गुरुजी के सीने पर घूम रहे थे और रह रहकर उसका हाथ जान भुज कर उसके लिंग तक पहुँचा रही थी कामया बहुत उत्तेजित थी और गुरुजी सिर्फ़ उसे सहारा दिए हुए सामने दीवाल की ओर देख रहे थे कामया एकटक गुरुजी की ओर देखती रही और अपने काम के अंजाम के इंतजार में थी कि गुरुजी बोले

गुरु जी- देख रही हो इन महिलाओं और मर्दो को सिर्फ़ एक बार या दो बार में ही कितना थक गये है शायद अब उठाकर इन्हें मार भी डालो तो पता नहीं चलेगा और नहीं कुछ सख्ती बाजी है कि कुछ कर भी सके पर हमारी शिष्या और शिष्यों को देखो कितने जोरदार तरीके से अब भी इस खेल का पूरा आनंद ले रहे है है ना 

कामया की नजर एक बार फिर दीवाल की ओर उठी थी वहां का खेल अब अलग था जितने भी मर्द और औरत बाहर के थे सब नीचे पड़े हुए थकान से चूर थे और गहरी सांसें भरते हुए अपने आपको व्यवस्थित कर रहे थे पर रूपसा मंदिरा और चार मर्द जो कमरे में आए थे वो अब भी खड़े हुए थे और उन लोगों की ओर देखते हुए उस कमरे में घूम रहे थे मर्द सिर्फ़ औरतों को छूकर देख रहे थे और रूपसा और मंदिरा मर्दो को छूकर देख रही थी पर कोई भी हिलने की हालत में नहीं था 

पर फिर भी कुछ लोगों में इतनी हिम्मत तो थी कि पास आने वालों का मुस्कुरा कर स्वागत तो कर ही रहे थे महिलाओं से ज्यादा थके हुए मर्द थे ना कोई हिल रहा था और नहीं कोई मुस्कुरा रहा था महिलाए तो चलो थोड़ा बहुत मुस्कुरा कर एक बार उनको देख भी लेती थी इतने में कामया ने देखा कि एक औरत शायद कोई 30 35 साल की होगी बहुत सुंदर शरीर नहीं था पर थी साँचे में ढली हुई मास ज्यादा था हर कही ऊपर के साथ उसका शरीर भी कुछ वैसा ही हो गया होगा उठकर उन चार मर्दो में से एक को अपनी ओर खींचा था उस मर्द ने भी बिना कोई आपत्ति के धीरे 
से उस महिला को अपनी बाहों में भर लिया था और उसके साथ सेक्स के खेल में लिप्त होता चला गया था धीरे-धीरे उन चारो मर्दो में से बचे हुए तीन मर्दो ने भी उसे घेर लिया था हर किसी के हाथ उसके शरीर पर घूमते चले गये थे हर एक मर्द उस महिला के अंगो को तराष्ते हुए फिर हल्के से उन्हें दबाते हुए अपने होंठों के सुपुर्द करते जा रहे थे वो महिला उन चारो मर्दो के बीच में घिरी हुई अपने आपको किसी सेक्स की देवी से कम नहीं समझ रही थी बहुत ही मजे से हर एक को सहलाती हुई उनका साथ दे रही थी हर चुंबन का और हर एक को उनके मसलने का और हर एक को उनके आकर्षण का जबाब देती जा रही थी उसके मुख से सिसकारी निकलती रही और वो चारो उससे रौंद-ते रहे 


कामया बैठी हुई हर एक हरकत को देखती जा रही थी और पास बैठे हुए गुरुजी को सहलाते हुए उनसे सटी जा रही थी गुरु जी सिर्फ़ उसके पीठ को सहलाते हुए उसे उत्तेजित करते हुए उसे अपने से सटा कर कुछ कहते जा रहे थे 

गुरुजी- देखो इस महिला को अपनी प्यास बुझाने को कितनी आतुर है घर में इसका पति उसे वो नहीं दे पाता है पर यहां सबकुछ उसे मिल रहा है यहां ऐसे लोगों को भीड़ है सखी उन्हें यह सब चाहिए जो उन्हें बाहर के समाज में नहीं मिलता यहां हर कोई कुछ ना कुछ माँगने आता है और में उनकी इच्छा और अभिलाषा को पूरा करता हूँ तुम्हें भी यही करना होगा अपने हर शिष्यो की मदद करनी होगी 

कामया- … >>>

गुरु जी- हाँ… हर शिष्य की चाहे वो कोई भी हो तुम्हें पता है विद्या भी यहां आई थी ईश्वार भी सभी यहां आए है धरम पाल भी उसकी पत्नी भी और उसकी बेटियाँ भी 
कामया … … 
तोड़ा सा चौंकी थी कामया 

गुरु जी- चौको मत सखी तभी तो मुझे इतना मानते है मुझे भी नहीं पता कि तुम्हारा पति किसका बेटा है तुम्हारे ससुर का कि इनमे से कोई पर में नहीं हूँ या पता नहीं शायद में भी हूँ पर इससे क्या फरक पड़ता है में तो इस पूरे आश्रम का मलिक हूँ तुम्हारे और इस आश्रम में रहने वाले हर एक पर मेरा हक है तुम पर तो ज्यादा ही देख रही हो उस महिला के साथ यह सब क्या कर रहे है 

और दीवाल की ओर अपनी उंगलियों को उठा दिया था कामया जो कि उस बात पर थोड़ा सा ठिठक गई थी और अपने आपको भूलकर उस बात पर ध्यान देदिया था पर जब उसकी नजर दीवाल पर गई थी तो वो चौंक गई थी उन चारो ने उस महिला को इस तरह से घेर लिया था कि वो कुछ भी नहीं कर सख्ती थी कर सख्ती थी … 
नहीं कहना चाहिए कि बड़े मजे ले रही थी वो एक ने उसकी योनि के अंदर अपने लिंग को उतार दिया था और वो नीचे लेटा हुआ था पीछे से दूसरे ने उसके गुदा द्वार पर अपने लिंग को घुसा दिया था और बाकी के बचे हुए दोनों अपने लिंग को उसके हाथों में पकड़ा कर बारी बारी से उसके मुख के अंदर अपने लिंग को करते जा रहे थे ये देखकर कामया की आखें फटी की फटी रह गई थी पर गुरु जी उसी तरह से शांत बैठे हुए उसकी पीठ को सहलाते हुए उसे बड़े प्यार से समझा रहे थे 

गुरु जी- देखा तुमने उस औरत को कोई दिक्कत नहीं हो रही है बल्कि उसे मजा आ रहा है देखो उसके चेहरे को देखो कितना सुख मिल रहा है उसे 

कामया ने देखा था हाँ… सही है उसके चेहरे को देखकर कोई भी कह सकता था कि उसे जो चाहिए था उसे मिल रहा था वो बड़े मजे से उनके लिंग को चूसती जा रही थी अपनी योनि को और गुदाद्वार के अंदर तक हर एक धक्के को बर्दास्त भी करती जा रही थी और अपने अंदर के उफ्फान को शांत करती जा रही थी वो चारों पुरुष मिलकर एक के बाद एक अपनी पोजीशन भी चेंज करते जा रहे थे और वो औरत भी उसका साथ दे रही थी उसको देखकर ही लगता था कि आज जो सुख वो भोग रही थी वो उसे अच्छे से और बड़े ही तरीके से भोग कर जाना चाहती है 

उसे भी कोई जल्दी नहीं है हर किसी को वो अपने अंदर तक समा लेना चाहती है कामया देख रही थी पर अपने हाथों पर काबू नहीं रख पा रही थी और पास बैठे गुरु जी के सीने को अपने हाथों से रगड़ती हुई उनसे सट कर बैठी थी गुरु जी भी उसे अपने से सटा कर धीरे-धीरे उसके चुचों की ओर अपने हाथ ले जा रहे थे कामया ने जैसे ही देखा कि गुरुजी उसके चुचों की ओर अपनी हाथ ले जा रहे थे उसने खुद ही अपने कंधों से अपने ड्रेस को उतार दिया और गुरुजी को एक खुला निमंत्रण दे डाला 

गुरु जी हँसते हुए कामया की ओर देखे और धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों के अंदर लेकर धीरे-धीरे चुबलने लगे थे 
कामया की आखें बंद हो रही थी वो सेक्स के सागर में डूबने लगी थी और देखते ही देखते वो खुद गुरुजी की गोद में बैठने लगी थी गुरु जी ने भी कोई आपत्ति नहीं की और अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़े हुए धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों से दबाए हुए उसके गोल गोल चुचों को बहुत ही धीरे-धीरे मसलने लगे थे गुरु जी बिल्कुल उत्तावाले नहीं थे उतावली तो कामया थी चाह कर भी वो अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पा रही थी आधी गुरु जी की गोद में और आधी लेटी हुई कामया अपने होंठों को उठाकर गुरुजी को न्योता दे रही थी गुरुजी भी धीरे से अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ कर फिर से उसके होंठों को चुबलने लगे थे कामया आखें बंद किए हुए गुरुजी के हाथों का आनंद लेती हुई अपनी जीब को धीरे से गुरुजी की जीब से मिलाने की कोशिश में लगी थी 


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