Chudai Kahani मैं और मौसा मौसी
06-18-2017, 11:18 AM,
#1
Chudai Kahani मैं और मौसा मौसी
मैं और मौसा मौसी 
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रजत चाचा और गीता चाची को अमेरिका गये दो महने भी नहीं हुए थे और लीना की चूत कुलबुलाने लगी. क्या चुदैल तबियत पाई है मेरी रानी ने, इसीलिये तो उसपर मैं मरता हूं.

"क्यों वो दीपक मौसाजी के बारे में बोल रही थीं ना गीता चाची! चलना नहीं है क्या उनके यहां?"

"हां जान, जब कहो चलते हैं. वैसे तुमको बताने ही वाला था, आभा मौसी का सुबह ही फोन आया था, तुम नहा रही थीं तब कि अनिल बेटे, गांव आओ बहू को लेकर, हमने तो उसको देखा भी नहीं."

लीना मुस्करा कर बोली "तब तो और देर मत करो, इसको कहते हैं संजोग, यहां हम उनकी बात कर रहे थे और उन्होंने बुलावा भेज दिया. कहीं गीता चाची ने तो उनको नहीं बताया यहां हमने क्या गुल खिलाये उनके साथ"

"क्या पता. वैसे डार्लिंग, गीता चाची ने भी बस संकेत ही दिया था कि मौसा मौसी के यहां हो आओ, उसका मतलब यह नहीं है कि वहां भी वैसी ही रास लीला करने मिलेगी जैसी हमने रजत चाचा और गीता चाची के साथ की. और सच में आभा मौसी को लगा होगा कि हम उनके यहां गांव आयें"

"जो भी हो, बस चलो. वहां देखेंगे क्या होता है" लीना मुझे आंख मार कर बोली.

मैं समझ गया, वहां कुछ हो न हो, लीना अपनी पूरी कोशिश करेगी ये मुझे मालूम था. "ठीक है रानी, अगले ही महने चलते हैं. मैं रिज़र्वेशन का देखता हूं"

दीपक मौसाजी के यहां जाने के पहले वाले दिन मैंने लीना को उनके बारे में बताया. हमारा उनका दूर का रिश्ता है. उनकी पत्नी आभा मौसी, मेरी मां के ही गांव की थीं. मेरी मां से उनकी उमर दो तीन साल बड़ी थी. याने अब सैंतालीस अड़तालीस के आसपास होगी.

"पर दीपक मौसाजी तो चालीस के नीचे ही हैं, शायद छत्तीस सैंतीस साल के. फ़िर ये क्या चक्कर है? उनकी पत्नी उनसे दस साल बड़ी है?" लीना ने पूछा.

"असल में दीपक मौसाजी के बड़े भाई से आभा मौसी की शादी हुई थी. वे जवानी में ही गुजर गये. गांव में रिवाज है कि ऐसे में कभी देवर के साथ शादी कर देते हैं. सो आभा मौसी की शादी अपने देवर से कर दी गयी. बड़ी मजेदार बात है, जब शादी हुई तो मौसी थीं तीस की और दीपक मौसाजी बीस के नीचे ही थे. दीपक मौसाजी अपनी भाभी पर बड़े फ़िदा थे, जबकि वो बड़ी तेज तर्रार थीं, सुना है कि उनसे जब अपनी भाभी से शादी के लिये पूछा गया तो उन्होंने तुरंत हां कर दी. लोग कहते हैं कि उनका पहले से ही लफ़ड़ा चलता था, वैसे गांव में ये अक्सर होता है. खैर शादी कर ली तो अच्छा हुआ. लफ़ड़े नहीं हुए आगे. वैसे दीपक मौसाजी बड़े फ़िदा हैं आभा मौसी पर, बिना उनसे पूछे कोई काम नहीं करते, एकदम जोरू के गुलाम हैं"

"होना भी चाहिये." लीना तुनक कर बोली "अगर जोरू स्वर्ग की सैर कराती हो तो गुलाम ही बन कर रहना चाहिये उसका"

"जैसा मैं हूं रानी" मैं मुस्करा कर बोला.

लीना ने पलक झपका कर कहा "वैसे बड़ी तेज लगती हैं आभा मौसी. अब तो उमर के साथ और तीखी हो गयी होंगी. अगर दीपक मौसाजी को इतना काबू में रखती हैं तो फ़िर वहां क्या मजा आयेगा! दीपक मौसाजी को फंसाने का कोई चांस नहीं मिलेगा मुझे" लीना जरा नाराज सा हो कर बोली.

"डार्लिंग, चाहो तो कैंसल कर देते हैं. उनके बारे में मुझे ज्यादा मालूम नहीं है" मैंने कहा.

लीना एक मिनिट सोचती रही फ़िर बोली "नहीं कैंसल मत करो, गीता मौसी झूट नहीं बोलेंगी. मुझे आंख मारी थी उन्होंने जब ये कहा था कि दीपक मौसाजी के यहां हो आओ. जरूर मजा आयेगा वहां"

हम ट्रेन से दीपक मौसाजी के गांव पहुंचे. वे खुद स्टेशन पर हमें लेने आये. दीपक मौसाजी मझले कद के छरहरे बदन के थे पर बदन कसा हुआ था. कुरता पजामा पहने थे. काफ़ी गोरे चिट्टे हैंडसम आदमी थे. उनके साथ में दो नौकर भी थे, रघू और रज्जू. उन्होंने सामान उठाया. दोनों एकदम जवान थे, करीब करीब छोकरे ही थे, बीस इक्कीस के रहे होंगे. रघू छरहरे बदन का चिकना सा नौजवान था. रज्जू थोड़ा पहलवान किस्म का ऊंचा पूरा गबरू जवान था.

उन सब को देखकर लीना का मूड ठीक हो गया. मेरी ओर देखकर आंख मारी. मैं समझ गया कि मौसाजी, रघू और रज्जू को देखकर उसकी बुर गीली होने लगी होगी. क्या चुदैल है मेरी लीना! अच्छे मर्दों को देखकर ही उसकी चूत कुलबुलाने लगती है.

हम घर पहुंचे तो आभा मौसी दरवाजे पर खड़ी थीं. साथ में बीस एक साल उम्र की एक नौकरानी भी थी. मौसी ने हमारा स्वागत किया. "आ बहू, बहुत अच्छा किया कि तुम लोग आ गये. मैं तो कब से कह रही थी तेरे मौसाजी से कि शादी में नहीं गये तो कम से कम अनिल और बहू को घर तो बुलाओ. मैंने गीता से भी कहा था जब तीन चार महने पहले मिली थी."

"अच्छा, गीता मौसी आयी थी क्या यहां?" मैंने पूछा.

"हां, वैसे वो कई बार आती है, इस बार भी अकेली ही आई थी. हफ़्ते भर रही. तब तेरे मौसाजी रज्जू के साथ बाहर गये थे, शहर में. राधा और रघू यहीं थे. ये है राधा, रघू की घरवाली. रज्जू की बहन है. रघू और रज्जू खेती का काम देखते हैं, राधा बिटिया घर का काम संभालती है" मैं मौसी की ओर देख रहा था. उमर हो चली थी फ़िर भी मौसी अच्छे खाये पिये बदन की थीं. सफ़ेद बालों की एक दो लटें दिखने लगी थीं. पूरी साड़ी बदन में लपेटी थी और आधा घूंघट भी लिया हुआ था इसलिये उनके बदन का अंदाजा लगाना मुश्किल था. वैसे कलाइयां एकदम गोरी चिकनी थीं.
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