RE: Chudai Kahani मैं और मौसा मौसी
मैं और मौसा मौसी--4
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मौसाजी ने मौसी की गांड को मुंह लगा दिया. हम सब अब उछल उछल कर घचाघच चुदाई करने लगे. मैं धक्के लगाता हुआ बोला "वाह मौसाजी .... इतनी मस्त गांड बहुत दिनों में नहीं मारी .... आप तो छुपे रुस्तम निकले ..... अब तो रोज मारूंगा कम से कम एक बार ..... नहीं तो मन नहीं भरेगा"
"अर तू जितनी चाहे उतनी मार .... तुझे जब चाहिये मैं दूंगा अपनी .... और अगर तू शौकीन है इस बात का ... तो बहुत मजा आयेगा तुझे हमारे यहां.... बस देखता जा .... मां कसम क्या गांड मारता है तू, मजा आ गया.... अब और मार ... जोर से मार .... घंटा भर चोद मेरी गांड ...." मौसाजी हांफ़ते हुए बोले.
"नहीं मौसाजी ... मैं नहीं मार पाऊंगा ... इतनी देर.... याने इतनी प्यारी गांड है आपकी .... मैं तो झड़ने वाला ...... ओह ... आह ...आह" कहता हुआ मैं जल्दी ही झड़ गया. मौसाजी झड़े नहीं थे, वे हचक हचक कर चोदते रहे. लीना दो बार झड़ गयी थी. बोली "मौसाजी, अब रुको, लंड बाहर निकालो"
"क्यों मेरी जान, मजा नहीं आया, मुझे ठीक से चोदने तो दे, बड़ा मजा आ रहा है"
"अरे अनिल ने इतनी ठुकाई की आपकी, उसको तो थोड़ा इनाम दो, अपना लंड चुसवा दो उसको, आप की गांड का स्वाद तो ले चुका है, अब आपकी मलाई खिला दो" लीना बोली.
मौसाजी झट से उठे और मेरा सिर अपनी गोद में लेकर अपना लंड मेरे मुंह में डालने लगे. लीना उठ कर उनके पीछे आयी और बोली "जरा लेटो मौसाजी, ठीक से चुसवाओ अनिल को, और अपनी गांड मेरी ओर करो"
"तू क्या करेगी रे उसका? खेलेगी" मौसाजी ने पूछा और फ़िर मेरे मुंह में लंड डाल दिया. लंड तन कर खड़ा था और रसीले गन्ने जैसा लग रहा था. मैं चूसने लगा.
"नहीं मौसाजी, चूसूंगी, आप जैसी गांड तो औरतों को भी नसीब नहीं होती. अब जरा अपने चूतड खोल कर रखो और मुझे जीभ डालने दो." लीना उनके पीछे लेटते हुए बोली.
मैंने मौसाजी की कमर पकड़कर लंड पूरा मुंह में ले लिया और चूसने लगा. मौसाजी धीरे धीरे कमर हिला हिला कर मेरे मुंह को चोदने लगे. जब लीना ने डांट लगायी तो हिलना बंद करके उन्होंने अपने चूतड़ पकड़कर फ़ैलाये और बोले "लो चूस लो बहू, तेरे को भी माल चखा दूं, वैसे माल भी मस्त होगा, तेरे मर्द का ही है"
लीना मुंह लगा कर मौसाजी की गांड चूसने लगी. मैं भी सोचने लगा कि कुछ बात तो है मौसाजी की गांड में जो औरतें भी चाटने को मचल उठती हैं. आज राधा भी कितना मन लगाकर चूस रही थी. तब तक मौसी भी मैदान में आ गयीं और झट से लीना की बुर से मुंह लगा दिया. मैं सरक कर किसी तरह मौसी की बुर तक पहुंच गया और उन्होंने टांगें उठाकर मेरा सिर अपनी जांघों में दबा लिया.
आखिर फ़िर से एक बार झड़कर और एक दूसरे के गुप्तांगों से रस पीकर हम लोग लुढ़क गये. नींद लगते लगते मौसी बोलीं "बड़े प्यारे बच्चे हैं ... सुना तुमने ... कल जरा ठीक से व्यवस्था करो बहू के लिये ... मेरे यहां से प्यासी वापस न जाये ... मैं अनिल को देख लूंगी राधा के साथ ... समझे ?"
"हां भाग्यवान, समझ गया ... अब सोने दे ... कल सब ठीक कर दूंगा" मौसाजी बोले और खर्राटे भरने लगे.
दूसरे दिन सब देरी से उठे. मैं तो बारा बजे उठा. नहाया धोया. राधा ने खाना तैयार रखा था. हमसब ने खाया. रघू और रज्जू भी आये थे, खाना खाकर बाहर बैठे थे.
मौसी बोलीं. "चलो अब, आज खेत वाले घर में चलते हैं. आज बहू को ये लोग खेत घुमायेंगे"
"ये लोग याने कौन मौसी?" मैंने पूछा.
मौसी मेरी ओर देखकर बोलीं. "तेरे मौसाजी, रज्जू और रघू. ये अकेले जाने वाले थे, मैंने रोक दिया. मैंने कहा कि राधा और मैं भी चलेंगे, तेरे साथ पीछे पीछे"
"तो मौसी मैं तैयार होकर आती हूं" लीना बोली और अंदर चलने लगी.
"अरे रुक, ऐसे ही ठीक है, खेत में कौन देखता है तुझे" मौसी बोलती रह गयीं पर लीना कमरे में चली गयी. मैं भी पीछे पीछे हो लिया. लीना कपड़े बदल रही थी. उसके काली वाली लेस की ब्रा और पैंटी पहनी और फ़िर एकदम तंग स्लीवलेस ब्लाउज़ और साड़ी. क्या चुदैल लग रही थी. मुझे आंख मार कर हंस दी. ’आज दिखाती हूं इन तीनों को, सुनो, कुछ भी हो जाये, तुम बीच में न पड़ना"
"अरे रानी, तेरा ये रूप देखेंगे तो तीनों तुझे रेप कर डालेंगे" मैंने उसकी चूंची दबा कर कहा.
"यही तो मैं चाहती हूं, आज रेप कराने का, जम के चुदने का मूड है, तुम फ़िकर मत करो, इनको तो मैं ऐसे निचोड़ूंगी कि चल भी नहीं पायेंगे" लीना बोली. आइने में देख कर उसने बाल ठीक किये और ऊंची ऐड़ी के सैंडल पहन लिये. बाहर आकर बोली "चलो मौसी"
"अरे तू खेत में जा रही है या सिनेमा देखने? खेत में क्या चल पायेगी ये सैंडल पहनकर" मौसी बोली.
"मैं तो शिकार पे जा रही हूं मौसी, तीन तीन खरगोश मारने हैं, और ये सैंडल वाली चाल से ही तो खरगोश खुद आयेंगे अपना शिकार करवाने" और मौसी से लिपट कर हंसने लगी.
मौसी बोली "क्या बदमाश छोकरी है, अनिल, बहुत चुदैल और छिनाल है तेरी बहू" और लीना को प्यार से चूम लिया.
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