RE: Sex amukta मस्तानी ताई
में खुश था के मा के प्रति ग़लत विचार अब मेरे मॅन में नही आरहे थे, रात में अचानक मेरी नींद खुल गयी, मेने देखा मा मेरे पास ही सोई है, मा ने सारी निकाल दी थी और वो सिर्फ़ पेटिकोट ओर ब्लाउस में सो रही थी, और उनका पेटिकोट घुटनो तक आगेया था, में उठा और बाथरूम चले गया, मेरे दिमाग़ में मा को लेके फिर से कामुक विचार आने लगे थे, मेने बोहत कोशिश की पर अपने आप को उनके बारे में सोचने से रोक नही पाया, में फिर से अपने बिस्तर पे आया और सोने का प्रयास करने लगा, पर में अपने मंन पे काबू ना पा सका, फिर मेने मा को छुने का सोचा, मेने अपने काँपते हुए हाथ मा के हाथ पे रखे, मुझे बोहत डर भी लग रहा था और यह सब करने में एक मज़ा भी आरहा था, मा मेरी तरफ पीठ कर के सो रही थी, मा के कोई हरकत ना दिखाने पे मेने मा के हाथ पे अपने हाथ हल्के से घुमाने लगा, ओह्ह कितना मज़ा आरहा था, मेरा लंड पॅंट में टाइट हुआ जा रहा था, फिर मेने अपना हाथ उनके हाथ से हटाके उनकी पीठ पे रख दिया, उनकी पीठ का स्पर्श बड़ा ही सुखदायी था, में अपना हाथ उनकी पीठ पे घुमा रहा था, और उनकी कमर पे भी घुमा रहा था, मेरे अंडर का शैतान सिर्फ़ अपनी वासना की भूक मिटाना जानता था, अब मुझे इस बात की भी परवाह नही थी के वो भूक में अपनी मा को च्छू के बुझा रहा हूँ, मेने धीरे धीरे अपने आप को उनसे सटा दिया, अब मा की गांद मेरे लंड से हल्का हल्का टच हो रही थी, और मेरा हाथ उनकी कोमल पीठ के स्परश का आनंद ले रहा था, मा ने कोई भी हरकत नही की और मेने अपने लंड को मा की गांद से थोड़ा और सटा दिया, अब उनके चूतड़ की गर्मी मुझे अपने लंड पे महसूस हो रही थी, और मेरा लंड उनकी गांद की दरार में फँस रहा था, अब मेने अपना हाथ उनकी कमर और चूतड़ के एरिया पे रख दिया और उनके चूतड़ को हल्के हल्के सहलाने लगा, और साथ साथ कोई हरकत ना होने पे उनकी गांद में अपना लंड भी दबाए जा रहा था, में धीरे धीरे अपना हाथ उनकी झंघों पे घुमाने लगा, मा कोई भी हरकत नही कर रही थी, तो मेने उनका पेटिकोट उपर उठाना शुरू कर दिया, ओह दोस्तों मुझे इतना मज़ा कभी नही आया, मेरा लंड मा की मोटी मुन्सल गांद में फँसा हुआ, मेरे हाथ उनकी झंघों को फील कर रहे थे, और में अपने आप को सातवे आसमान पे पा रहा था, मेने धीरे धीरे मा का पेटिकोट कमर तक उठा दिया था, ऑश कितना मज़ा आरहा था उनकी चिकनी झंघों पे हाथ घुमाने में, मा बिल्कुल नही हिल रही थी और ना ही कोई रिक्षन दे रहे ही, और में इस बात का पूरा फयडा उठा रहा था, मेने धीरे धीरे हाथ मा की पॅंटी तक पोह्चा दिया, और जैसे ही मेरा हाथ उनकी पॅंटी से टच हुआ मेरे शरीर में जैसे बिजली सी दौड़ गयी और मेरा शायद प्रेकुं च्छुत गया, मुझे अपनी पंत में गीला पं महसूस हो रहा था, मेने अपने आप को मया से और चिपका लिया अब मेरे पेट का हिस्सा और मा की पीठ जुड़ चुकी थी, मा की चूत का स्पर्श पॅंटी के उपर से बड़ा मजेदार थी, मा की चूत फूली हुई थी और मोटी थी, में हल्के हल्के मा की चूत भी दबा रहा था, ओह क्या बताउ दोस्तों कितना मज़ा आरहा था, मेने मा की चूत को पॅंटी हटा के महसूस करने का सोचा तभी मा ने करवट बदली, मेरी तो साँसे रुक गयी और में सोने का नाटक करने लगा और मुझे पता ही नही चला के मुझे कब डर के मारे नींद आगाई, सुबेह जब उठा तो देखा मा नही थी, में फॉरन फ्रेश हुआ और नीचे आगेया, मा और ताइजी और दीदी बैठ के बात कर रहे थे, मुझे देख के मा ने कहा उठ गया बेटा, उन्होने दीदी से कहा, सुजाता बेटा इसके लिए चाइ नाश्ता ले आओ, दीदी वहाँ से किचन में चली गयी, और अब में मा और ताइजी बैठे थे, मा के व्यवहार में कोई फरक ना देख के मेरी जान में जान आई, फिर मेरी नज़र ताइजी पे पड़ी, वो उस वक़्त पाँव मोड बैठी हुई थी और उनकी सारी घुटनो तक उँची हो चुकी थी, उनकी गोरी टांगे देख के मुझे उन्हे चोदने का मॅन कर रहा था, उन्होने मुझे उनकी टाँगो की ओर देखते हुए देख लिया था, उन्होने मुझे एक नॉटी स्माइल दी और अपनी टाँग ढकने के बजाय थोड़ी और खोल दी अब ताइजी की जाँघ का नज़ारा सॉफ था, मेरा लंड पॅंट में खड़ा हो रहा था, ताइजी इस स्तिति का भरपूर फयडा उठा रही थी और मुझे और ललचा रही थी, इतने में दीदी चाइ लेके आ गयी, जैसे ही वो मुझे चाइ दे रही थी, और में चाइ का कप उनके हाथ से लेने के लिए जैसे ही अपना सर उठाया में देखता ही रह गया, दीदी के झुकने की वजह से उनकी चुचियाँ सॉफ दिख रही थी, उन्होने काले रंग की ब्रा पहनी थी और उनकी चुचियाँ बड़ी बड़ी थी, में सोच रहा था, के मेरा यहाँ आना ही ग़लत हो गया, क्यूंकी पहले ताइजी फिर मा फिर पार्वती और अब दीदी को भी में वासना भरी नज़र से देखने लगा था, और में अपने आप को चाइ पीते पीते कोस रहा था, तभी ताइजी ने कहा चल बेटा चाइ पी ली हो तो ज़रा खेतों में चक्कर लगा के आजाएँ, मेने कहा ठीक है, इतने में मा ने भी कहा के में भी आती हूँ, ताइजी के चेहरे पे तो मायूसी आगाई और मेरे भी, खैर हम तीनो खेतों की ओर चल दिए,
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