RE: Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
मुझे मायके आए अब बहुत दिन हो गये थे. मायके में मेरे और मेरे छ्होटे भाई विकी के बीच जो कुच्छ हुआ वो तो आप पढ़ ही चुके हैं. अब पति के घर वापस जाने का वक़्त भी आ गया था. विकी कुच्छ दिनों के लिए अपने कॉलेज की फुटबॉल टीम के साथ मॅच खेलने भोपाल गया हुआ था. पापा भी अगले दिन 15 दिनों के लिए टूर पे जाने वाले थे. उस रात मैं मम्मी को दूध देने उनके कमरे जा रही थी की मैने देखा मम्मी के कमरे की लाइट तो बंद थी. मुझे लगा कि मम्मी पापा सो गये होंगे. लेकिन जब मैं उनके दरवाज़े के पास पहुँची तो मुझे अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ें सॉफ सुनाई दे रही थी. मेरे दिमाग़ में बचपन की वो यादें ताज़ा हो गयी जब मैने और मेरी सहेली नीलम ने पापा, मम्मी की चुदाई कई बार देखी थी. मेरे मन में ये जानने की उत्सुकता जागी कि क्या पापा मम्मी अब भी उसी तरह चुदाई करते हैं. मैं चुप चाप उनके कमरे की खिड़की के पास खड़ी हो गयी. बाथरूम की लाइट ऑन थी ओर कमरे में हल्का सा उजाला था. मम्मी पेटिकोट ओर ब्लाउस में पैट के बल लेती हुई थी. पापा सिर्फ़ लूँगी में खड़े हुए थे. अचानक पापा ने मम्मी से पूचछा,
“कविता ! कंचन कहाँ है ?”
मैं बुरी तरह चोंक गयी. ये अचानक पापा को मेरी याद कहाँ से आ गयी.
“अपने कमरे में होगी. वापस पति के घर जाने की तायारी कर रही है. आप क्यों पूछ रहें हैं ?”
“वैसे ही पूछा.”
“इस वक़्त कंचन की याद कैसे आ गयी ?”
“एक बार मुझे ऐसा लगा जैसे तुम नहीं कंचन लेटी हुई है.”
“ओ ! तो अब आप अपनी बीवी को भी नहीं पहचानते ?”
“नहीं मेरी जान ऐसी बात नहीं है. इस हल्की सी रोशनी में पीछे से तुम बिल्कुल कंचन की तरह लग रही हो.” मेरा दिल अब ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. मैं कान लगा के सुनने लगी.
“अच्छा जी ! 25 साल से आप अपनी बीवी के पिच्छवाड़े को सिर्फ़ देख ही नहीं बल्कि ना जाने कितनी बार चोद भी चुके हैं, फिर भी आपने हमे पीछे से कंचन समझ लिया. हमें तो दाल में कुच्छ काला लगता है.”
“कैसी बातें करती हो कविता ? दाल में क्या काला होगा?”
“हमे तो पूरी दाल ही काली लग रही है. सच सच बताइए कंचन आपको अच्छी लगती है?”
“अच्छी क्यों नहीं लगेगी ? आख़िर हमारी बेटी जो है.”
“बेटी की तरह नहीं. एक औरत की तरह नहीं अच्छी लगती है ?”
“तुम पागल तो नहीं हो गयी हो?” पापा मम्मी का पेटिकोट चूतरो के ऊपर खिसकाने की कोशिश करते हुए बोले.
“छोड़िए भी हमे. जैसे हमे कुच्छ मालूम ही नहीं. जब तक आप सच नहीं बोलेंगे, तब तक हमे आपके साथ कुच्छ नहीं करना.” मम्मी बनावटी गुस्से से उनका हाथ अपने चूतरो से हटाती हुई बोली. पापा बुरी तरह वासना की आग में जल रहे थे. आज नहीं चोद सके तो 15 दिन तक ब्रह्मचारी बन के रहना पड़ेगा.
“इतना गुस्सा ना करो मेरी जान.”
“तो फिर सच सच बता दीजिए. हम जानते हैं आपकी ग़लती नहीं है. हमारी बेटी जवान हो गयी है. और शादी के बाद से तो उसका जिस्म भी भर गया है. किसी भी मरद की नज़र एक बार तो तो ज़रूर उस पर जाएगी.” मम्मी पापा को उकसाते हुए बोली. ये सुन कर पापा की कुच्छ हिम्मत बढ़ी और वो थोरे हिचकिचाते हुए बोले,
“तुम ठीक कहती हो कविता. शादी के बाद से कंचन का जिस्म भर गया है. अब तो उसके कपड़े उसकी जवानी को नहीं संभाल पाते हैं. ऊपर से नहा के पूरे घर में सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस में ही घूमती रहती है. ऐसे में किसी भी मरद की नज़र उस पर जाएगी ना ?”
“मैं आपको कहाँ कुच्छ कह रही हूँ? आपकी बात बिल्कुल ठीक है. शादी हो गयी लेकिन अभी तक बचपाना नहीं गया है. अपने आप को छ्होटा ही समझती है”
“ऊओफ़ छ्होटी कहाँ है अब ? पेटिकोट और ब्लाउस में से तो उसकी जवानी गिरने को होती है.” पापा एक लंबी आह भर के बोले.
“हाई, लगता है आपको अपनी बेटी की जवानी तंग करने लगी है. कहीं उसे देख के खड़ा तो नहीं होने लगा है?”
“देखो मेरी जान ग़लत मत समझना लेकिन जब वो गीले पेटिकोट में घूमती रहती है तो किसी भी मरद का खड़ा हो जाएगा.”
“आपका अपनी बेटी की जवानी को भोगने का मन नहीं करता ?”
“तुम तो सुचमुच पागल हो गयी हो. हम अपनी ही बेटी के साथ ये सब कैसे कर सकते हैं?” मम्मी ने पापा की लूँगी खीच ली. मैं तो पापा का मोटा काला तना हुआ लॉडा देख के घबरा ही गयी. आज बरसों बाद पापा का लॉडा देख रही थी. मम्मी पापा के तने हुए लंड को प्यार से सहलाते हुए बोली,
“हम कुच्छ करने को कहाँ कह रहे हैं? मन करना और सुचमुच कुच्छ करने में तो बहुत अंतर है. बोलिए बेटी की जवानी भोगने का मन तो करता होगा?”
“हां…. इस तरह उसे देख कर करता तो है. लेकिन हम ऐसा कभी करेंगे नहीं.”
अब तो बात बिल्कुल सॉफ थी. पापा भी मुझे वासना की नज़र से देखते थे ये जान कर मैं बहुत खुश थी. जिस बेटी को देख कर बाप का भी मन डोल जाए उसमें कुच्छ तो बात होगी.
“अच्छा चलिए आज रात आप हमे कंचन समझ लीजिए. हम आपको पापा कहेंगे और आप हमे बेटी कहिए. ठीक है पापा?” मम्मी उन्हें चिढ़ाती हुई बोली.
“ये क्या मज़ाक है कविता ?”
“कविता नहीं, कंचन! अगर आज रात आपको कुच्छ चाहिए तो हमे कंचन समझ कर ले लीजिए. नहीं तो चुप चाप सो जाइए.”
“आज तुम्हें ये क्या हो गया है कविता?”
“फिर कविता? कविता नहीं कंचन. ही पापा आपको हमारे नितूम्ब बहुत अच्छे लगते है ना? हमे भी आपका ये मोटा लंड बहुत अच्छा लगता है. चोदिये ना आज अपने इस मोटे लॉड से अपनी बेटी को.” मम्मी पापा के लंड पे जीभ फेरते हुए बोली.
क्रमशः.........
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