RE: Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
दोस्तो यहाँ से कहानी थोड़ी से फ्लेश बैक मे जाएगी
कंचन लेटे लेटे पुरानी बचपन की हसीन यादों में खो गयी……… …………….
पापा के मन में क्या है ये तो मुझे बचपन में ही पता लग गया था.
कंचन बचपन से ही एक बहुत चंचल, शोख और हँसमुख स्वाभाव की लड़की थी. कंचन के पिता विजय शर्मा एक बड़ी कंपनी में ऑफीसर थे. पड़ोस के लोग उन्हें शर्मा जी के नाम से बुलाते थे. कंचन की मा कविता एक बहुत सुन्दर सुडौल और कसे हुए बदन की औरत थी. इस उमर में भी उसकी जवानी कम नहीं हुई थी. जवानी तो कम हुई ही नहीं थी बल्कि साथ में जवानी की आग भी कम नहीं हुई थी. शर्मा जी अपनी बीवी के दीवाने थे. वो अपनी बीवी के मांसल बदन और ख़ास कर उसके चौड़े फैले हुए चूतेरो पे जान छिडकते थे. कविता भी अपने पति की दीवानी थी. वो भी बहुत कामुक स्वाभाव की औरत थी. लेकिन कभी उसने अपने पति के इलावा दूसरे मरद की ओर नहीं देखा था. शर्मा जी लंबे तगड़े इंसान थे और कविता को उन्होने तृप्त कर रखा था. कविता अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझती थी जिसका कारण था उसके पति यानी शर्मा जी का लंड. शरमा जी का लंड करीब 9 इंच का था. उनके लंड को बहुत बड़ा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन आम आदमी के लंड से तो काफ़ी बड़ा था. लेकिन उनके लंड की ख़ासियत उसकी लंबाई नहीं बल्कि मोटाई थी. बहुत ही मोटा था. शायद पूरे शहर में इतना मोटा लंड किसी का ना हो. कविता को तो दोनो हाथों का इस्तेमाल करना पड़ता था. शर्मा जी को चोदने का बहुत शौक था. शादी के बाद तो वो कविता को पूरी पूरी रात पाँच छेह बार चोदते थे और दिन में भी कम से कम दो बार तो चोद ही लेते थे. जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे दिन में चोदना बंद हो गया. बढ़ती उमर के साथ रात को भी चोदना थोड़ा कम हो गया लेकिन अब भी रोज़ रात को एक बार तो चोद ही लेते थे.
शर्मा जी के दो बच्चे थे कंचन और विकी. कंचन विकी से दो साल बड़ी थी. कंचन बचपन से ही बहुत चंचल, शोख और हँसमुख मिज़ाज़ की थी. शर्मा जी एक आछे पिता थे. कंचन अपने पापा की लाडली थी. दोनो बाप बेटी में बहुत पटती थी. शर्मा जी को कंचन का चुलबुलापन बहुत अच्छा लगता था. कंचन अपने पापा के साथ कोई ना कोई शरारत करती ही रहती थी. शर्मा जी कंचन को अक्सर परिओ की शहज़ादी, गुड़िया, राजकुमारी और बेबी डॉल आदि नामों से बुलाते थे और कंचन भी पापा को कभी पापू, पंपकिन आदि नामों से पुकारा करती थी. देखते ही देखते शर्मा जी के बच्चे बड़े हो गये. कंचन अब 9थ में थी छातिया उभरने लगी थी. बदन भरने लगा था. लेकिन शर्मा जी के लिए तो वो अब भी बच्ची थी. कंचन को स्पोर्ट्स का बहुत शौक था. वो अपने स्कूल की लड़कियो की कबड्डी और बॅस्केटबॉल टीम की कॅप्टन थी. शर्मा जी ने बिटिया के लिए अपने घर के लॉन में बॅस्केटबॉल का पोल लगा दिया था जहाँ कंचन प्रॅक्टीस किया करती थी.
एक दिन की बात है. कंचन अपनी पाँच सहेलिओं के साथ स्कूल से आई. सभी लड़कियाँ स्कूल ड्रेस में ही थी यानी स्कर्ट और ब्लाउस में और बहुत एग्ज़ाइटेड थी.
कंचन आते ही शर्मा जी से बोली,
“पापा हमारे स्कूल का कल कबड्डी का मॅच है. हम यहाँ प्रॅक्टीस करना चाहती हैं.”
“ ज़रूर करो बेटी. तुम लोगों को मॅच ज़रूर जीतना चाहिए.”
कंचन और उसकी सहेलियाँ लॉन में कबड्डी की प्रॅक्टीस करने लगी. शर्मा जी अंडर ऑफीस का कुच्छ काम करने लगे. इतने में कंचन भागी भागी आई और बोली,
“पापा आपने एक बार बताया था कि आप भी अपने कॉलेज की कबड्डी की टीम में थे.”
“हाँ बेटी, हमने तो बहुत कबड्डी खेली है.”
“तो फिर आइए ना.. हमे भी कुच्छ कबड्डी के गुर बताइए.”
“बेटी अभी नहीं हमे बहुत काम है.”
“पापा प्लीईईआसए…..मैं अपनी सहेलिओं को बोल के आई हूँ कि आप अपने ज़माने के बहुत आछे खिलाड़ी थे. चलिए ना….. अब तो मेरी इज़्ज़त का सवाल है.”
शर्मा जी अपनी लाडली बिटिया को मना नहीं कर सके.
“ओफ बेटी, तुम तो बहुत ज़िद्दी हो. चलो.”
“ये हुई ना बात ! पापू आप बहुत अच्छे हैं.” ये कहते हुए कंचन ने शर्मा जी के गाल को चूम लिया.
शर्मा जी बाहर लॉन में आए और बोले,
“बोलो लड़कियो क्या प्राब्लम है?”
“अंकल, हमारी सबसे बड़ी प्राब्लम ये है कि जब हम सब मिल के दूसरी टीम के खिलाड़ी को पकड़ लेते हैं तो वो अक्सर लाइन पे हाथ लगाने में कामयाब हो जाती है. ऐसे में हमारी टीम की तीन चार लड़कियाँ आउट हो जाती हैं.” कंचन की सहेली नीलम बोली.
“ हां बेटी, ये सबसे ख़तरनाक साबित हो सकता है. एक ही बार में पूरी टीम आउट हो सकती है.”
“तो इसका क्या इलाज है अंकल ?” सुनीता ने पूचछा.
“ मेरे पापू को सब पता है. बहुत अच्छे खिलाड़ी रह चुके हैं.” कंचन बड़े गर्व से अपने पापा को देखते हुए बोली. शर्मा जी बोले,
“देखो बच्चो, जब पहले दूसरी टीम की लड़की को खूब अंडर अपने इलाक़े में आने दो. फिर उसे दो लड़कियाँ घेर लो और पहले ज़मीन पे गिरा दो. ज़मीन पे गिरते ही दो लड़कियाँ उसकी टाँगें पकड़ लें, दो लड़कियाँ उसके ऊपर चढ़ के उसे दबा के रखें और एक लड़की उसके हाथों को लाइन से टच ना होने दे. इस तरह अगर प्लान करोगी तो हमेशा जीतोगि. अब तुम सब लोग इसकी प्रॅक्टीस करो.”
“अरे लेकिन हम तो पाँच ही हैं. हम पाँच तो पकड़ने का काम करेंगी. पापा आप प्लीज़ दूसरी टीम की तरफ से एक प्रॅक्टीस करा दो.” कंचन ज़िद करती हुई बोली.
“ठीक है चलो.”
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