RE: Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
कंचन अपनी दोनो टाँगें सटा के डाइनिंग चेर पे बैठी हुई थी, जैसा की लड़कियो को सिखाया जाता है. इतने में एक सेकेंड के लिए कंचन की टाँगें चौड़ी हुई और शर्मा जी को उसकी पॅंटी की झलक मिल गयी. चूत पे चिपकी हुई पॅंटी पर एक बड़ा सा गीला दाग था. शर्मा जी का लॉडा फिर से हुंकार उठा.. वो जानते थे कि बिटिया अभी अभी पेशाब कर के आई है और ये पेशाब का ही दाग था. एक बार फिर शर्मा जी के कसमे- वादे हवा हो गये. बेटी उनका जीना हराम करती जा रही थी.
एक दिन कंचन स्कूल से वापस आ कर बाहर लॉन में लगे झूले पे बैठे हुई थी. शर्मा जी भी ऑफीस से लंच के लिए घर आए. शर्मा जी को देखते ही बोली,
“ पापू, हमे थोड़ा झूला दो ना.”
“अरे गुड़िया अपने आप झूल लो. हमे जल्दी वापस ऑफीस जाना है.”
“ प्लीज़ पपूऊ..! सिर्फ़ एक बार !”
“ ठीक है. तुम तो बहुत ज़िद्दी हो.” शर्मा जी बेटी के पीछे खड़े हो कर उसे धक्का लगाने लगे. कंचन जैसे ही आगे को झूलती हुई जाती उसकी स्कर्ट हवा से फूल जाती. ये देख के शर्मा जी के दिमाग़ में आया कि अगर वो सामने की ओर जा के कुर्सी पे बैठ जाएँ तो बिटिया की टाँगों के बीच का नज़ारा देख सकेंगे. शर्मा जी ने ज़ोर से धक्का लगा कर कंचन से कहा,
“बेटी अब तुम अपने आप झूलो हम थोड़ी देर बैठ जाते हैं.”
“ठीक है पपाऊ.”
शर्मा जी सामने कुर्सी पे बैठ गये. कंचन अपने आप ही झूल रही थी. जैसे ही वो शर्मा जी की ओर झूलती हुई आती उसकी स्कर्ट हवा से फूल कर ऊपर की ओर उठ जाती. शर्मा जी को बेटी की स्कर्ट के नीचे से उसकी गोरी गोरी जांघों ऑर पॅंटी के दर्शन हो जाते. पहले तो शर्मा जी को कंचन की पॅंटी की झलक मात्र ही मिल पाती थी लेकिन आज तो काफ़ी देर तक उन्हें बिटिया की पॅंटी नज़र आ रही थी. शर्मा जी को समझते देर नहीं लगी कि बेटी की चूत भी अपनी मा की चूत की तरह खूब फूली हुई है. आज शर्मा जी ने काई बार बिटिया की पॅंटी के दर्शन किए.
इस तरह समय बीत रहा था. कई बार शर्मा जी निश्चय कर लेते कि अब वो कभी बेटी की टाँगों के बीच नहीं झाँकेंगे और फिर काई दिन तक अपने पर कंट्रोल रख के बिटिया की टाँगों के बीच झाँकने से अपने को रोकते थे. लेकिन अक्सर जब बाथरूम में बेटी की उतारी हुई पॅंटी नज़र आ जाती तो अपने ऊपर काबू खो बैठते और उसकी मादक खुश्बू सूँगते हुए मूठ मार लेते. कंचन थी तो बहुत ही चुलबुली. अक्सर जब शर्मा जी टीवी देख रहे होते तो वो उनकी गोद में आ कर बैठ जाती. कबड्डी वाली घटना के बाद से जब भी कंचन शर्मा जी की गोद में बैठती, उसकी मादक जांघों के स्पर्श से शर्मा जी का लंड खड़ा हो जाता. लेकिन शर्मा जी कभी भी अंडरवेर पहनना नहीं भूलते थे. अंडरवेर होने के कारण कंचन को कभी भी शर्मा जी के खड़े लंड का अहसास नहीं हुआ.
देखते ही देखते कंचन 18 साल की हो गयी और अब वो 12थ में आ गयी थी. चुचियो का साइज़ 38 हो चला था. चूटर भी भारी हो गये थे और बहुत फैलते जा रहे थे. बिटिया की छ्होटी सी पॅंटी के बस में अब उसके भारी भारी चूतेर संभालना नहीं रहा था. आधे से ज़्यादा चूतेर तो पॅंटी के बाहर ही रहते थे. जैसे जैसे दिन गुज़रता जाता, कंचन की पॅंटी उन आधे ढके हुए चूतरो पर से भी सिमट कर दोनो चूतरो की दरार में घुसने की कोशिश करती. अब तो बेटी के चूतेर फैल कर बिल्कुल उतने चौड़े हो गये थे जितने उनकी पत्नी के शादी के वक़्त थे. चलती भी चूतरो को मटका के थी. शर्मा जी के दिल पे च्छूरियाँ चल जाती थी. जैसे जैसे बिटिया बड़ी हो रही थी, थोड़ा चुलबुलापन कम हो गया था और उठने बैठने में सावधान हो गयी थी. अब शर्मा जी को उसकी पॅंटी के दर्शन बहुत ही मुश्किल से तीन चार महीने में एक आध बार ही होने लगे. अब तो बेटी अपनी उतारी हुई पॅंटी भी बाथरूम में नहीं छोड़ती थी. बेटी की चूत की सुगंध लिए तो अब शर्मा जी को महीनों बीत गये थे. लकिन अब भी वो उनकी गोद में अक्सर बैठ जाती थी.
फिर एक दिन कुच्छ ऐसी घटना हुई कि कंचन के लिए सब बदल गया. गर्मियों की छुट्टिया चल रही थी. नीलम, कंचन के घर तीन चार दिन रहने आई थी. दोनो सहेलिओं ने खूब मज़ा किया ओर दुनिया भर की गप्पें मारी. रात को नीलम, कंचन के कमरे में ही सोई. अचानक रात को नीलम ने कंचन को जगाया ओर बोली,
“ सुन कंचन, ये करहाने की आवाज़ें कहाँ से आ रही हैं?”
“ ओह हो सो जा नीलम. ये तो मेरी मम्मी की आवाज़ें हैं. बेचारी के पेट में बहुत दर्द रहता है.अक्सर तो सारी रात कहराती रहती है.”
“ कंचन तू सुचमुच बहुत भोली है. ये पेट के दर्द की आवाज़ें नहीं है. ऐसी आवाज़ें तो औरत के मुँह से तब निकलती है जब उसकी चुदाई होती है.” कंचन एकदम गुस्से में बोली,
“ क्या बकवास कर रही है तू मेरी मम्मी ओर पापा के बारे में. मम्मी ने मेरे पूच्छने पर खुद बताया था कि उनके पैट में बहुत दर्द रहता है.”
“ ठीक है तो शर्त लगा ले 50 रुपये की.”
“ लगा ले शर्त, लेकिन मेरे पास 50 रुपये नहीं हैं.”
“ कोई बात नहीं अगर तू हार गयी तो जो मैं कहूँगी वो करना पड़ेगा. बोल मंज़ूर है?”
“ मंज़ूर है. हमारे और मम्मी पापा के कमरे के बीच जो खिरकी है उस पर उनके कमरे की ओर से परदा पड़ा है. कल मैं रात को वो परदा साइड में कर दूँगी और वरामदे की लाइट भी ऑन कर दूँगी जिससे हमे उस कमरे में सब कुच्छ नज़र आएगा. खिड़की से लग के खड़े रहेंगे तो आवाज़ें भी सॉफ सुनाई देंगी. सिर्फ़ कल ही का दिन है हमारे पास क्योंकि परसों मम्मी मैके जा रही है.”
“ वाह! कंचन तेरा दिमाग़ तो बहुत चलता है.”
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