RE: Antarvasna stories मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग
मामा उल्टे मुँह किए सो रहे थे और उधर विश्वनथजी भी मामा के पास ही पड़े हुए थे.ऐसा मालूम होता था मानो रात को कुच्छ हुआ ही नही था.सब लोग उठ कर फारिग हुए और खाना बनाया और खाना खाया. खाना खाते हुए विश्वनथजी कभी मुझे और कभी भाभी को घूर कर देख रहे थे.
में बोली' भाभी विश्वनथजी ऐसे देख रहे हैं कि मानो अभी फिर से तुम्हे चोद देंगे'
भाभी- मुझे भी ऐसा ही लग रहा है बताओ अब क्या किया जाए.
मई बोली-' किया क्या जाए, चुप रहो, चुद-वाओ और मज़ा लो'
भाभी- तुम्हे तो हर वक़्त चुदाई के सिवाए और कुच्छ सूझता ही नही है
मैं बोली- अक्च्छा बन तो ऐसी शरिफजादी रही ही जैसे कभी चुडवाया ही नही हो, चार दिनों से लोंडो का पीचछा ही नही छ्चोड़ रही और यहाँ अपनी शराफ़त की मा चुद रही हो.'
भाभी- अब बस भी करो , मैने ग़लती की जो तुम्हारे सामने मुँह खोला. चुप करो नही तो कोई सुन लेगा.
और इस तरह हमारी नोंक-झोंक ख़तम हुई.
अगले दिन हमारी ममीज़ी ने कहा कि उनके पीहर के यहाँ से बुलावा आया है और वो दो दिन के लिए वहाँ जाना चाहती हैं. इस पर ममाजी बोले भाई मैं तो काफ़ी थका हुआ हूँ और वहाँ जाने की मेरी कोई इच्छा नही है. विश्वनथजी तो जैसे मौका ही तलाश कर रहे थे ममीज़ी के साथ जाने का, [यह फिर मामी को चोदने का चान्स पाने का क्योंकि कल के दिन विश्वनथजी मामी को चोद नही पाए थे] तुरंत ही बोले कोई बात नही भैसाहेब, मैं हूँ ना, मैं ले जाऊँगा भाभिजी को उनके मयके और दो दिन बिता कर हम वहाँ से वापिस यहाँ पर आ जाएँगे. विश्वंतजी की यह बेताबी देख कर भाभी और मैं मुँह दबा कर हंस रहे थे. जानते थे कि विश्वनथजी मौका पाते ही ममीज़ी की चुदाई ज़रूर करेंगे. और सच पूच्छो तो मामीजी भी ज़रूर उनसे चुदवाना चाह रही होंगी इसलिए एक बार भी ना-नुकूर किए बिना तुरंत ही मान गयी.
अब हमारी मामी और विश्वनथजी के जाने के बाद हमारे लिए रास्ता एक दम सॉफ था. शाम के वक़्त हम तीनो याने में, मेरी भाभी और हमारे ममाजी घूमने निकले. याने की मेला देखने {और मेला देखने के बहाने अपनी चूची गंद और चूत मसलवाने} निकले..
क्रमशः......................
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