RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
साली को मेरे खुले मुँह को अपनी बुर से चिपका कर उसमे मूतने मे बहुत मज़ा आया, ऐसी गरम हो गयी थी कि मूतना खतम होते ही मेरे मुँह पर सवार होकर मुठ्ठ मारने लगी मुझे भी मंजू बाई के मूत का स्वाद उत्तेजक लगा, मा के मूत से अलग था, ज़्यादा खारा सा था पर मजेदार था
बाद मे मैं यह कई बार करने लगा मा को नहीं बताया कि वह नाराज़ ना हो जाए मंजू तो फिदा हो गयी थी मुझपर, जब भी मैं कहता हाजिर हो जाती उसने भी यह बात रघू से छुपा कर रखी मेरे मुँह मे मूतना उसके लिए इतना मस्त काम था कि वह यह उसे पूरा गुप्त रखना चाहती थी
हमारी चुदाई अब सधे ढंग से चलने लगी थी, जैसे आम बात हो हमारी टाइम टेबल जैसा भी बन गया था अक्सर हम तरह तरह के खेल खेलते कभी कभी सिर्फ़ गान्ड मराई होती रात भर हमारी रंडी माएँ एक दूसरी की बुर चुसतीं और हम दोनों बेटे उनपर चढकर उनकी गान्ड मारते कभी कभी 'एक एक पर तीन तीन' खेल होता इसमे किसी एक को निशाना बनाकर बाकी तीनों उसपर चढ जाते और तीनों ओर से याने चूत या लंड, गान्ड और मुँह मे से एक साथ चोदते मा या मंजू पर चढते समय मैं और रघू आगे पीछे से दोनों छेदो से उन्हें एक साथ चोदते और मुँह मे बची हुई औरत की चूत होती मैं या रघू जब निशाना बनाते तो गान्ड मे लंड होता और मुँह और लंड पर मा या मंजू बाई होती
हम लोगों के इस मस्त जीवन मे अगला मोड करीब एक साल बाद आया और वह भी ऐसा मोड जिसके अतिशय विकृत पर मादक आनंद की मैने कभी कल्पना भी नहीं की थी
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