RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
मैने उसकी तूथनी का चुंबन लिया और अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी
जीभ से लड़ाने लगा. जल्द ही उसकी लंबी मासल जीभ मेरे मूह मे थी. उसे
चुसते हुए मैं हचक हचक कर ज़िनी को चोदने लगा. आमने सामने की
इंसानों के आसान की यह चुदाइ बड़ी मस्त थी. इतने पास से कुतिया की
आँखों मे जब मैने देखा तो किसी इंसान जैसा प्यार और वासना का भाव
उन आँखों मे पाया.
उधर मंजू अब टॉमी से अलग होकर चूतड़ हवा मे किए लेटी थी. बोली
"मालकिन अब जल्दी आ जाओ तो कुछ मस्त खा पी ले."
टॉमी भी अब मा की चूत से लंड निकालकर लेट गया था. मा अपने चूतड़
हवा मे किए हुए खिसककर मंजू के पास आई और उलटी दिशा मे उसके पास
लेट गयी. झट उन दोनों चुदैलो ने एक दूसरे की चूत मे मूह डाला और
उसमें से बह निकले कुत्तों के वीर्य पर ताव मारने लगी. मुझे यह
देखकर और ताव चढ़ रहा था. उनपर ईर्ष्या भी हो रही थी क्योंकि अब इस
हालत मे उन सुंदर कुत्तों के यौन रस को चखने को मैं भी बेताब था.
उधर वे कुत्ते भी शांत पड़े थे. हमेशा की तरह अपने लंड को नही
चाट रहे थे जैसे कुत्ते चुदाई के बाद करते है. मैं सोच रहा था कि क्यों
पर जल्द ही जवाब मिल गया. रघु उठाकर उनके पास गया और कुत्तों की टाँग
उठाकर उनके झाडे लंड मूह मे लेकर उन्हे प्यार से चूस कर सॉफ कर डाला.
दोनों दूँ हिला हिला कर कू कू करते हुए मानो कह रहे थे कि रघु तुम
तो हमसे भी अच्छे लंड चाटते हो.
ये सब विकृत कामुक क्रीडाये देखकर मैं झड्ने के करीब आ गया था.
मैने ज़िनी को कस कर भींचा और उसे बेरहमी से चोदने लगा. वह एक दो
बार कीकियाई पर उसे भी मज़ा आ रहा था. अचानक वह कुटिया झाड़ गयी. यह
मुझे तब पता चला जब उसकी ढीली मखमली चूत ने अचानक मेरे लंड
को ऐसे भींच लिया जैसे किसीने मुठ्ठी मे कस कर पकड़ लिया हो. इतना
सुखद दबाव था यह कि मैं भी एक चीख के साथ झाड़ गया.
ज़िनी की जीभ मेरे मूह से निकल गयी और वह ज़ोर ज़ोर से मेरी चेहरा चाटने
लगे जैसे कह रही हो कि वाह मेरे राजा, क्या चोदा है! मैं उठने लगा तो वह
दाँत निकाल कर गुर्राने लगी और मुझे पंजों से और कस कर पकड़ लिया. जब
मैने लंड बाहर खींचना बंद कर दिया तो वह फिर प्यार से मेरा मूह
चाटने लगी.
रघु उठकर मेरे पास आ कर बैठ गया. हँसते हुए बोला. "अब समझा
मुन्ना कुतिया कैसे कुत्तों के लंड पकड़ लेती है और छोड़ती नही, अब तू चुप
चाप पड़ा रह और मज़ा ले. जब यह पूरी झाड़ जाएगी तो अपने आप तुझे छोड़
देगी."
दस मिनिट ज़िनी मज़ा लेती रही और उसकी चूत खुल बंद हो कर मेरे लंड को
दुहति रही. आख़िर उसने मुझे छोड़ा और पंजे फटकारकर मेरे नीचे से
वह निकल आई और पास लेट कर आराम करने लगी.
"अरे अरे क्या ज़ुल्म करती है रानी, भूल गयी जो सिखाया था?" रघु की फटकार
सुनकर ज़िनी फिर पंजे हवा मे उठाकर अपनी पीठ पर लेट गयी. रघु उसके
पास गया और उसके निचले दो पैर पकड़कर उसे उठाकर अपने पास
खींचकर उसकी रिसति चूत मे मूह लगाकर चूसने लगा. कुतिया की चूत मे
से अब मेरा वीर्य और ज़िनी का रस बह रहा था. रघु उसे ऐसे चूस रहा था
जैसे मस्त शहद हो.
पूरी छूट खाली करके ही वह उठा. मूह पोछते हुए बोला. "मज़ा आ गया
मुन्ना. इसका रस तो कई बार पिया है मैने पर आज स्वाद और ही है. मेरी मा
और मालकिन को मालूम है ये स्वाद. पूछो क्या करती है जब मैं ज़िनी को चोद
लेता हू!"
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