RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
ननद की ट्रैनिंग – भाग 8
(लेखिका - रानी कौर)
फिर मैने पैरों मे अपनी एक खूब चौड़ी सी घुंघरू वाली पायल पहनाई और उसके कमरे मे ले गयी. कमरा भी मैने सज़ा रखा था. साफ गुलाबी सिल्कन चादर, ढेर सारे तकिये और कुशण, दो खूब लंबी ऐयरोमैटिक कंडेल्स, ताज़ा गुलाब की महक का रूम फ्रेशनर और , पलंग के सामने एक खूब चौड़ा सा शीशा, मेज पे रखी खूब बड़ी सी एक वैसलीन की शीशी...
गुड्डी ने जब शीशे मे अपना रूप देखा तो खुद लजा गयी. बड़ी बड़ी, कानों से बाते करती काजल की रेख से सजी कजरारी आँखे, सुतवाँ नाक और उसमे हिलती डुलती नथ, जैसे कोई दूध मे दो बूँद गुलाबी रंग के के डाल दे, वैसा हल्का गुलाबी मदमाता रंग, पतले रसीले गुलाबी होंठ और गहरी ठुड्डी, और एक काला सा तिल, लंबी सी सुरहिदार गरदन मे जड़ाऊ हार और उसके नीचे तो बस, बार बार छलकते आँचल से झलकते, जैसे सोने के थाल मे दो सोने के लड्डू रखे हों, उसकी चोली भी उन्हे बाँध नही पा रही थी ऐसे रसीले छलक्ते मदमाते यौवन के रस कलश, और उसके नीचे, पतला खूब गोरा पेट और गहरी सी नाभि जिसे चारों ओर मैनें सज़ा दिया था और एक निशान नीचे की ओर बना दिया था, रस कूप की ओर. साड़ी खूब नीचे बँधी थी और उसकी जगहे और चौड़े कूल्हे साफ दिख रहे थे.
" हे इस रूप को देख के तो वो बेहोश हो जाएगा..." मैने चिढ़ाया."
" नही भाभी, वो बेहोश जाएगा तो आपने ये जो रच रच के शृंगार किया है वो तो बेकार हो जाएगा."
" अरे नही देख आज किस तरह वो तेरे शृंगार का दमन करता है. कल सुबह मैं पूछूंगी तुमसे इस रात का फसाना. हाँ एक आख़िरी बात गुर की, मैं तुम्हे समझा दूं. पहली चुदाई मर्द की होती है, शुरुआत उसे करने देना , शुरू मे थोड़ा शरमाना लजाना और धीरे धीरे साथ बढ़ाना, जैसे झूले की पेंग बढ़ाते है ना उसी तरह . दूसरी चुदाई दोनों की होती है, जब एक बार चुद गयी तो फिर क्या शरमाना.
हां अदाएँ नखडे तो ज़रूरी है. लेकिन इस बार उसके हर धक्के का जवाब धक्के से देना, एककम खोल के कचकचा के मज़े लेना. और तीसरी चुदाई औरत की होती है. ज़्यादातर मरद दो बार के बाद सुस्त हो जाते है. थोड़े आराम के बाद, तुम पहल करना. अपने रसीले होंठों का, हर अंग का ...इस्तेमाल कर के . जब एकदम बेकरार हो जाय तभी चुदाई शुरू करना. दो बार झडाने के बाद जल्दी झड़ने का कोई डर तो रहेगा नही."
" ठीक है भाभी..." वो बार बार घड़ी की ओर देख रही थी.
" हे, मुझे मालूम है वो आ गया होगा और हर पल उसके लिए पहाड़ हो रहा होगा लेकिन तुम 10 मिनट इंतजार करा के ही बत्ती बुझा के इशारा करना, और ये दूध और बखिर, पहले दूध पिलाना और फिर एक राउंड के बाद ये बखिर."
" बखिर, ये क्या है भाभी."
" याद है मैने तुमसे जो गन्ने का रस मँगवाया था, उसी से और गुड से ये बनती है. गाव मे जो गौने मे दुलहन आती है उसे और दूल्हे को खास तौर पे ये खिलाया जाता है. ये मानते है कि इसकी तासीर खीर से ज़्यादा गरम होती है. गौने की रात सारी दुलहनें बिना रुके चुदवाती है...अच्छा मैं चलती हू वरना तुम और तुम्हारा यार दोनो मुझे गाली देंगे'" और मैं कमरे से बाहर चली आई. मैने बाहर से ही उसके कमरे की संकल लगा दी और घर की बत्ती बुझा दी.
जैसा तय था. मैं बगल के कमरे मे आ गयी. ये उसके कमरे से सटा था और जिस की खिड़की से मैने एक बड़ा सा छेद दिन मे ही बना दिया था. थोड़े ही देर मे आहट हुई और गुड्डी ने दरवाजा खोला. उसका रूप देख के तो जैसे उसके यार के होश उड़ गये. जब वो पास आया तो शरमा के गुड्डी ने मूह फेर लिया, पर उसने कस के उसे अपनी बाँहों मे भर ,चूम लिया. आँचल तो उसका कब का धलक चुका था और तेज चलती साँसों के साथ, उसके सीने का उठना गिरना उसको और मादक बना रहा था. उसकी पलकें लाज से झुकी थी. उसके यार ने उसकी ठुड्डी पकड़ उसके रसीले होंठों को फिर चूम लिया और उसे उठा के, पलंग पे ले आ के, अपनी गोद मे बैठा लिया. " हे देखो ना ...." उसका चेहरा उठा के वो बोला.
" धत्त..." शरमा के फिर एक बार उसकी हिरण सी बड़ी बड़ी आँखे झुक गयी. उसने बिना रुके उसके गुलाबी रसीले होंठ चूम लिए. गुड्डी के होंठ स्पर्श होते ही लरज से गये, पर वह बिना रुके गुलाबी गालों पे, कभी गहरे चिबुक पे और कभी चिबुक पे चूमता रहा. थोड़ी देर रुक के जब उसने दुबारा कस के अपनी ओर खींच के, उसके होंठ चूमे तो बहोत हल्के से अबकी बार गुड्डी ने भी जवाब दिया. अब क्या था. जैसे अधिकार पूर्वक उसकी बाँहो ने उसे अपनी बाँहों मे भर रखा था उसी तरह, अब उसके होंठों ने गुड्डी के रसभरे अधरो को जाकड़ लिया और कस के उसका रस पान करने लगे, और फिर जीभ भी क्यों पीछे रहती, वो भी मूह मे घुस गयी. अब थोड़ी देर तक लगातार कस के रस पान कर के जो उसने छोड़ा, तो गुड्डी की हिम्मत बढ़ चुकी थी. उसने भी दो तीन छोटे चुंबन अपने यार के होंठों के ले लिए.
" तुम्हे देखु कि तुमसे बात करू... कि तुम्हे प्यार करू" उसके रूप मे खोए हुए उसने पूछा.
" मैं बताऊ....तीनो" हंस के गुड्डी बोली तो लगा जैसे हज़ार जलतरन्ग एक साथ बज गये हो.
अब वो दोनों बार एक दूसरे को चूम रहे थे, बाँहों मे दबा रहे थे. उसका हाथ कभी उसके ढलकते खुले कंधों को सहलाता कभी पीठ पे सरकता और वो भी उसे कस के अपनी बाँहों मे भींच लेती.
तभी गुड्डी की निगाह टेबल पे रखे दूध पे पड़ी. " हे मैं तो भूल ही गयी थी. तुम कहोगे कि मेहमान को कुछ खिलाया पिलाया नही सिर्फ़..." और वो उसे ले के फिर उसकी गोद मे बैठ गयी और अपने मेहंदी लगे हाथों से उसके होंठों से लगा दिया. दूध मे मैने केसर के अलावा शिलाजीत और अनेक ऐसी ही आयुरवैदिक चीज़ें मिला रखी थी. थोड़ा सा पी के उसने गुड्डी को पिलाया, पर उस बीच उसकी निगाहें उसके गदराए उभारों पे फिसल रही थी और उसकी चोली से झमकती गहराइयों पे. और उसकी उंगलियाँ भी उसकी निगाहों के साथ साथ बार उसके चोली के बँध पे जाके रुक जाती थी, पर गुड्डी उसके हाथों को रोक लेती थी. अब जब वो, बचा हुआ सारा दूध अपने दोनो हाथों से पकड़ के उसे पिलाने लगी तो पीठ पे टहलाती, उसकी शरारती अंगुलियों को मौका मिल गया और उसने चोली के बंधन खोल कर उसे दूर फेंक दिया. उसकी लेसी गुलाबी ब्राइडल ब्रा जोबन दिखा ज़्यादा रही थी, छिपा कम रही थी. पर वो भी कब तक... जल्द ही वो भी चोली के पास जा पहुँची. पर गुड्डी आज उसे इतज़र करने पे तुली थी. उसने अपने रस कलश अपने हाथों से छिपा लिए और कुछ इशारा कर के कहा जैसे कह रही हो कि मुझे तो टाप लेस कर दिया और खुद...और वो भी टाप लेस होगया. पर वो इत्ति जल्दी मानने वाली नही थी उसने बत्ती की ओर इशारा किया .उसने बत्ती भी बुझा दी. पर दोनो बड़ी ऐयरोमैटिक कंडेल की रोशनी मे मुझे सब कुछ साफ साफ दिख रहा था.
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