RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--59
गतान्क से आगे......
अफ़रा-तफ़री का फ़ायदा उठाते हुए देवेन अपनी च्छूपने की जगह से निकला ,गॅरेज से उसने 1 रस्सी उठा ली थी जो कि अब उसके कंधे पे तंगी थी.वो बंगल की तरफ भागा,”आग लग गयी आग!”,वो बेतहाशा चीख रहा था.उसे पता था कि वो बहुत बड़ा ख़तरा उठा रहा है.अगर किसी को ज़रा भी अंदेशा हुआ कि वो घुसपैठिया है तो उसे गोली मारने मे वो ज़रा भी नही हिचकिचाएंगे लेकिन ये ख़तरा तो उसे उठाना ही था,”अरे खड़े-2 देख क्या रहे हो.आग बुझाने मे मदद करो!मैं बॉस को बुलाता हू!”,वो बंगल के दरवाज़े की ओर भाग रहा था.बंगल की रखवाली करते गार्ड्स थोड़े हिचकिचाते दिखे मगर देवेन ने जिस भरोसे के साथ उनसे बात की थी उन्हे उसपे शक़ नही हुआ था & वो आग बुझाने भागे,”कमाल हो यार तुम सब भी!हथियार लेके आग बुझा रहे हो.रखो यहा सब!”,उसे खुद पे हैरत हो रही थी.वो उन सबको ऐसे डाँट रहा था जैसे वो ही उनका बॉस हो!
उसने 1 गुंडे की छ्चोड़ी मशीन गन उठाई & अंदर भागा & उसकी किस्मेत की वो भागते आते बालम सिंग से टकराया,”क्या हुआ?..तुम कौन हो?”
“चुप!”,देवेन ने उसपे बंदूक तानि.बंगल के अहाते मे वो वही काली गाड़ी खड़ी थी जिसमे बालम सिंग वाहा आया था,”चुप चाप गाड़ी मे बैठ.चल!चिल्लाना मत वरना बस 1 बार ट्रिग्गर दबाउन्गा,उसके बाद मैं मर भी जाऊं तो मुझे परवाह नही.तू तो उपर पहुँच चुक्का होगा साले!”,
“द-देखो,तुम बच के नही जा सकते..”
“तो क्या हुआ कामीने..तू भी तो नही बचेगा..अगर जान प्यारी है तो बैठ गाड़ी मे ड्राइविंग सीट पे.”बालम सिंग आगे बैठा & पीछे देवेन,”..अब गाड़ी बुंगले से बाहर ले चल.”,उसने वैसा ही किया,”..गार्ड को कोई इशारा तक किया तो ट्रिग्गर दब जाएगा.”,पिच्छली सीट पे बैठे उसकी कमर के ठीक उपर बाई तरफ बंदूक की नाल सटी हुई थी.बालम सिंग जानता था कि पीछे बैठा आदमी जुनूनी है & वो कुच्छ भी कर सकता है.वो गाड़ी गेट तक ले गया & गार्ड से गेट खोलने को कहा.गाड़ी गेट से बाहर निकली & देवेन ने उसे हराड की ओर चलने को कहा.रास्ते मे बालम सिंग ने दमकल की गाड़ी को उसके फार्म की ओर जाते देखा.कुच्छ देर पहले वो कितना निश्चिंत बैठा टीवी देख रहा था & अब उसे ये भी पता नही था कि वो ज़िंदा बचेगा या नही & अगर बच भी गया तो उसका धंधा सलामत रहेगा या नही,”..उधर मोड़ झाड़ियो में..हां ..रोक!”
“आईईयईीई..क्या कर रहे हो?..मैं मर जाऊँगा..आहह..!”,देवेन ने पीछे से रस्सी उसके गले मे बाँध दी थी & फिर उसे लपेटते हुए बालम सिंग को गाड़ी की सीट से ही बाँध दिया था,”..तुम्हे चाहिए क्या?..पैसा..मैं मालामाल कर दूँगा तुम्हे..जो बोलो सो दूँगा..!”,घबराया बालम सिंग बके जा रहा था.
“दयाल.”
“हैं?”
“दयाल कहा है?”
“अरे कौन दयाल..मैं किसी दयाल को नही जानता..तुम्हे ग़लतफहमी..-“
‘-..चुप!याद कर जब तू गोपालपुर के साथ वाले कस्बे की जैल मे था.तू किसके साथ मिलके क़ैदियो को ग़ैरक़ानूनी चीज़ें मुहैय्या करता था..याद कर..!”
“वो..दयाल..”
“हां..याद आया.”
“कहा है वो कमीना?”
“मुझे क्या पता भाई!..वो तो भाग गया था वाहा से.”
“क्या?क्यू भागा था & कहाँ?”
“हां..अब मुझे क्या पता कहा गया वो..आहह..”
“झूठ मत बोल!”,गले मे बँधी रस्सी को देवेन ने ज़ोर से खींचा था & बालम सिंग की सांस रुकने लगी थी,”..तू उसके बारे मे जो भी जानता है मुझे बता वरना ये रस्सी अभी & कसेगी.”,देवेन ने रस्सी को & खींचा.
“आरर्ग्घह..आहह..बताता हू..ढीला करो इसे.”,देवेन ने रस्सी ढीली की,”..दयाल ..”,वो खांसने लगा,”..वाहा ड्रग्स का धंधा करता था.मैं उस से चर्स,गार्ड लेके अंदर क़ैदियो को बेचा करता था.वो बाकी चीज़ें भी सप्लाइ करता था मगर उसका असली धंधा ड्रग्स का ही था.”
“उसका धंधा तो चोरी के जवाहरात बेचना था?”
“नही.वो तो उसकी 1 चाल भर थी खुद को बचाने के लिए.नारकॉटैक्स ब्यूरो को इस बात की खबर लग गयी थी कि वो ड्रग्स का कारोबार करता है लेकिन उन्हे पता नही था कि वो कैसा दिखता है फिर दयाल उसका असली नाम था भी नही.”
“तो क्या था उसका असली नाम?”
“ये तो शायद केवल उसकी मा को पता होगा.साला,कपड़ो की तरह नाम बदलता था.उस वक़्त वो दयाल नाम इस्तेमाल कर रहा था.उसने 1 चाल चली जिसमे मैं भी शामिल था.उसने 1 दूसरे शख्स को अपनी जगह नारकॉटैक्स ब्यूरो के जाल मे फसाने की सोची.ब्यूरो का 1 एजेंट दयाल के पीछे-2 गोपालपुर तक आ पहुँचा था.
“मैने उसे उस शख्स के बारे मे बता दिया जिसे दयाल अपनी जगह गिरफ्तार करवाना चाहता था.”
“अच्छा,कौन था वो?”,देवेन की आवाज़ का गुस्सा अब बहुत ख़तरनाक लग रहा था लेकिन बेचारे बालम सिंग को इसका एहसास नही था.
“पता नही.मैं उसका नाम नही जानता था..हां,उसकी कोई प्रेमिका थी..मैने दयाल केकेहने पे उसे ये बताया कि उसका प्रेमी ग़लत काम कर रहा है & अगर वो 1 बार पोलीस की मदद कर दे तो वो उसे पकड़ के उस से चोरी का माल बरामद कर उसे छ्चोड़ देंगे फिर वो उसे समझा-बुझा के अपने साथ ले जा सकती है.”..तो ये बात थी!इन कामीनो ने उसकी सुमित्रा का इस्तेमाल किया था उसके खिलाफ.
“फिर क्या हुआ?”
“वो बड़ी भोली थी.मान गयी हमारी बात & सीधा उस नारकॉटैक्स एजेंट को बता दिया अपने आशिक़ के बारे मे & फिर वो पकड़ा गया.दयाल का काम हो गया.”
“लेकिन 1 बार वो कोलकाता गया था उस लड़की के साथ?”
“हां,साला जितना शातिर था उतना हिम्मती भी.उस लड़की को ले गया कोलकाता ये भरोसा दिलाके की अब वो उसके प्रेमी को छुड़ा के ले आएगा.उसे इस बात का डर भी नही था कि वो पकड़ा जाएगा.उसका कहना था कि जब ‘दयाल’पोलीस की गिरफ़्त मे है तो कोई उसपे हाथ क्यू डालेगा!..हुंग!..जब वो लड़की वाहा पहुँची & ये सुना कि उसका प्रेमी 1 ड्रग स्मग्लर था तो उसका दिल टूट गया & वो वापस आ गयी & दयाल उसे दिलासा देने के बाद मुल्क से रफूचक्कर हो गया.”..दोस्ती का नाम लेके कितना बड़ा खेल खेला था उस कामीने ने & अपने जाल मे फँसा 2 प्यार भरे दिलो को हमेशा-2 के लिए जुदा कर दिया था उसने..& वो अपनी सुमित्रा को धोखेबाज़ समझता रहा & सुमित्रा उसे 1 गलिज़ मुजरिम!
“दयाल गया कहा आख़िर?”
“मुझे नही मालूम.”
“बोल?”,रस्सी कस गयी.”
“उउन्नगगगगगघह..सच..के..हता..हू..!”,वो सच कह रहा था.देवेन ने रस्सी ढीली की & अपनी जेब से रुमाल निकाला & उस बंदूक को पोंच्छा.उसके बाद कार की पिच्छली सीट से उतरा & आगे का दरवाज़ा खोल उस गन के पिच्छले हिस्से को बालम सिंग के माथे पे दे मारा.चीख मार वो बेहोश हो गया.20 मिनिट बाद उस जगह से 1किमी दूर पहाड़ी रास्ते के किनारे क्की खाई मे कुच्छ गिरने की बहुत ज़ोर की आवाज़ आई.1 शख्स ने बहुत दूर से देखा था & उसने पोलीस को यही बताया था की कोई जलती सी चीज़ खाई मे गिरी थी.अगले रोज़ बालम सिंग की राख हो चुकी लाश बंदूक के साथ खाई मे गाड़ी की अगली सीट पे पड़ी मिली थी.
देवेन आँसू बहाता रास्ते पे पैदल चला जा रहा था.उसे बालम सिंग के बेहोश जिस्म को उसी की कार के पेट्रोल से नहला के आग लगाके कार समेत खाई मे धकेलने का गम नही था,उसे गम था कि वो अपनी सुमित्रा को सच्चाई नही बता सका की वो मुजरिम नही था.उसके साथ 1 बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने के लालच का फयडा उठाया था उस कामीने ने..& वो कमीना भी गायब था अब..पता नही कहा..कैसे सज़ा देगा उसे वो..आख़िर कैसे?
वो 1 ढाबे पे पहुँचा & हाथ-मुँह धोया.वो जानता था कि पोलीस अब 1 काली कमीज़ & काली जेनस वाले शख्स की तलाश मे होगी.गाल का निशान किसी ने देखा या नही ये उसे पता नही था मगर ये बहुत मुमकिन था कि उन्हे ये पता चल जाए कि 2 लोग वाहा मशरूम की पैदावार के बारे मे पता करने आए थे.उसने पहले ही अपना & रंभा का झूठा नाम लिखवाया था.भला हो गोआ के उसके दोस्तो का जो उन्होने बिल्कुल असली दिखने वाली फ़र्ज़ी ईद उसे मुहैय्या कराई हुई थी.अब उसे रंभा को खबर करनी थी लेकिन हो सकता है कि बाद मे पोलीस सारे इलाक़े मे इस वक़्त की गयी फोन कॉल्स को खंगले.उसे कोई बहुत महफूज़ लाइन खोजनी थी फोन करने के लिए..हां!
उसने 1 ट्रक मे लिफ्ट ली & हराड की ओर बढ़ा.हराड से थोड़ा पहले 1 गाँव था जहा उसने 1 डाक खाना देखा था.वो उस गाँव से थोड़ा आगे उतरा..वो कोई चान्स नही ले रहा था..अगर ट्रक ड्राइवर को वो याद भी रहा तो वो यही कहेगा की वो गाँव से आगे उतरा था.डाक खाने के अंदर घुसना उतना आसान नही था जितना उसने सोचा था.पुराने अंदाज़ की लोहे की च्छड़ो वाली खिड़कियाँ थी & दरवाज़े पे बड़ा सा ताला.वो मायूस हो वाहा से जा ही रहा था कि उसकी निगाह फूस के छप्पर पे पड़ी & अगले ही पल इक्का-दुक्का घूमते लोगो की नज़र बचा वो छप्पर पे चढ़ गया था & फिर पेट के बल लेट के फूस हटा थोड़ी देर बाद अंदर उतर चुका था.
“हेलो,रंभा.कहा हो तुम?”
“आप कहा हैं?ठीक है ना आप?..जल्दी आइए ना!मुझे कुच्छ बहुत ज़रूरी बताना है आपको..प्लीज़ आप फ़ौरन यहा आइए.”
“क्या बताना है & आऊँ कहा?..सब ठीक तो है ना?”
“हां,सब ठीक है.पर..पर..ओफ्फो..आप आइए ना यहा?!”
“अरे मगर बताओ तो कहा?”,उस तनाव भरे माहौल मे भी देवेन को हँसी आ गयी.
हराड & उस डाक खाने वाले गाँव के बीच 1 रास्ता मैं रोड से उतर के अंदर जाता था.उसी पे 1 गाँव था भूमल.1 बरसाती नदी बहती थी उस तरफ से जिसमे अभी उतना पानी नही था.बरसात के आसपास वो जगह बड़ी खूबसूरत हो जाती थी & नदी मच्चलियो से भर जाती थी.मच्चली मारने वालो का मजमा लगा रहता था उसके किनारे.अब रंभा के हाथ वाहा कौन सी मच्चली लग गयी थी यही देखने देवेन वाहा जा रहा था.1 लेट नाइट बस सर्विस की बस को हाथ देके उसने रोका & उसमे सवार हो गया.जब वो बस मे चढ़ा तो उसमे बैठी सवारीयो को कोई काली कमीज़ & पतलून पहना शख्स नही बल्कि पीली चेक की कमीज़ & काली पतलून पहना चेहरे पे गम्छा ओढ़े देहाती सा शख्स दिखा.ये कमीज़ उसने गाँव के 1 घर के बाहर सुख़्ते कपड़ो मे से उठा ली थी & गंच्छा उसे पोस्ट ऑफीस मे ही पड़ा मिल गया था.उसकी कमीज़ अभी उसके कंधे पे लटके 1 झोले मे थी जोकि किसी डाकिये ने पोस्टॉफ़्फिसे मे रख छ्चोड़ा था.
1 घंटे बाद वो बस से उतरा & भूमल की ओर जा रहे रास्ते पे पैदल चलने लगा कि तभी सामने से उसे किसी गाड़ी की हेडलाइट्स दिखी.वो मुस्कुराता खड़ा हो गया.गाड़ी उसके करीब आई & उसकी खिड़की का शीशा नीचे हुआ,”हा..हा..ये क्या हुलिया बना रखा है!”,रंभा हँसने लगी.1 पल को सुमित्रा की शक्ल नाच उठी देवेन की आँखो के सामने..हंसते वक़्त वो बिल्कुल सुमित्रा जैसी लग रही थी,”..क्या हुआ?”,रंभा ने हँसना बंद किया & खुद को 1 तक देखते देवेन से पुचछा.
“बाद मे बताउन्गा.”,देवेन खिड़की के पास आया & उसका माथा चूमा,”..अब बताओ क्या दिखाना चाहती थी मुझे?”,रंभा अचानक संजीदा हो गयी.सच तो ये था की जबसे वो भूमल आई थी उसके होश-हवस उड़ गये थे.वो खुश तो बहुत हुई थी लेकिन साथ ही 1 अंजाना डर भी उसके दिल मे पैदा हो गया था.वो तो देवेन का हुलिया देख उसे हँसी आ गयी &1 पल को वो सब भूल गयी थी.
“चलिए.”,देवेन बैठा तो रंभा ने कार घुमाई.
“तुम यहा कैसे आ गयी?”
“मेरा मन नही माना की आपको अकेला छ्चोड़ू लेकिन आपकी बात मना करना भी ठीक नही लग रहा था.इसी उधेड़बुन मे मुझे बोर्ड दिखा & मुझे यहा की बरसाती नदी की याद आ गयी.उसके बारे मे बहुत सुना था.तो सोचा कि उसे भी देख लू लेकिन दरअसल मैं आगे बढ़ना टाल रही थी.”,देवेन उसकी बात सुन मुस्कुराया.
“पर तुम्हे मिला क्या है?”
“वही चल के देख लीजिएगा.”,कोई 40 मिनिट & ड्राइव करने के बाद वो दोनो भूमल पहुँच गये थे.यहा बिजली नही थी & घरो मे लालटेने जल रही थी.नदी की कल-2 की आवाज़ भी आ रही थी.रंभा गाड़ी से उतरी & टॉर्च से रास्ता दिखाते उसे ले जाने लगी.1 घर की आगे पहुँच वो रुक गयी.उस घर की चौखट के 1 किनारे उसके बरामदे मे कोई बैठा था.अंधेरे मे देवेन को उसकी शक्ल नही दिख रही थी बस इतना पता चल रहा था कि वो शख्स ज़मीन पे चादर या दुशाला ओढ़े बैठा है.
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क्रमशः.......
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