RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--85
गतान्क से आगे......
“तुम्हे अब अपने घर लौट जाना चाहिए.”,खाना ख़त्म होरे ही महादेव शाह ने 1 बार फिर रंभा को बाहो मे भर लिया.
“उन्न्ञणन्..मेरा मन नही है.”,रंभा उसके गले मे बाहे डाल उसके होंठ चूमने लगी,”..आज रात यही रुक जाती हूँ.”
“दिल तो मेरा भी यही चाहता है..”,शाह ने किस तोड़ी,”..पर हमारे प्लान की कामयाबी के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि किसी को हमारे रिश्ते की ज़रा भी भनक ना लगे इसीलिए कह रहा हू कि तुम घर लौट जाओ.”
“ठीक है.”,रंभा ने काफ़ी उदास होने का नाटक किया पर सच्चाई ये थी कि उसे थोडा बुरा तो लग रहा था.शाह के साथ चुदाई मे उसे बहुत मज़ा आया था & अभी उसका दिल वाहा से जाने को कर नही रहा था,”..आप कहते हैं तो जाती हू.”
“मेरी जान,उदास क्यू होती हो.”,शाह ने उसे वैसे ही पचकारा जैसे कोई किसी रूठे बच्चे को पूचकारता है,”.मेरा वादा है की चाहे कुच्छ भी हो जाए मैं रोज़ तुमसे मिलूँगा.”
“सच?”,रंभा ने किसी भोली लड़की की तरह खुश होने का नाटक किया.
“सच!”,दोनो 1 लंबी किस मे खो गये जिसके बाद रंभा वाहा से निकल गयी.घर पहुँच उसने समीर से छुप के देवेन को फोन किया & उस से कल मिलने की बात की.देवेन ने इलाक़े जायज़ा ले लिया था & उसे सब ठीक लगा तो उसने रंभा को अगली सुबह उनके पास आने को कहा.
गोआ से लौटने के बाद रंभा समीर से अलग कमरे मे सोने लगी थी.अपने बिस्तर पे लेटी वो अपने आशिक़ो के बारे मे सोच रही थी & उसे प्रणव का ख़याल आया.वो उठ बैठी..वो ज़रूर अभी आएगा..इस ख़याल की आते ही रंभा दबे पाँव कमरे से निकली और समीर के कमरे तक गयी और अंदर झाँका.वो गहरी नींद मे सो रहा था.वो वाहा से हटी & बाल्कनी मे चली गयी.
10 मिनिट बाद उसे प्रणव आता दिखा तो उसने हाथ से उसे रुकने का इशारा किया & फिर दबे पाँव नीचे गयी,”तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रही थी.”,उसने उसका हाथ पकड़ा & उसे घर के अंदर ले आई.कुच्छ देर बाद दोनो रंभा के कमरे मे बैठे थे.
“कहा चली गयी थी तुम अपने दफ़्तर से?”,प्रणव के हाथ उसके जिस्म से आ लगे & वो उसे बाहो मे भर पागलो की तरह चूमने लगा.
“आराम से..आहह..आवाज़ मत करो प्रणव..कही समीर ना जाग जाए!”,उसने आँखे बंद कर ली.उसका दिल नही कर रहा था प्रणव के साथ चुदाई करने का.घर आके उसे महसूस हुआ था कि शाह ने उसे कितना थका दिया था & वो अब बस सोना चाहती थी.पर वो प्रणव को नाराज़ भी नही करना चाहती थी.
“क्लब चली गयी थी & फिर इधर-उधर घूमती वापस आ गयी..उउन्न्ह..!”,प्रणव ने उसे बिस्तर पे लिटा दिया था & उसके उपर चढ़ उसके चेहरे को चूमते हुए उसकी नाइटी के उपर से ही उसकी चूचियाँ दबा रहा था.
“मुझे बुला लेती.”,प्रणव ने उसकी नाइटी के गले को नीचे किया & उसकी दाई छाती को बाहर निकाल चाटने लगा.
“प्रणव..डार्लिंग..उउन्न्ञणन्..बुरा तो नही मनोगे?”,उसने उसके बाल पकड़ उसका सर सीने से उठाया.
“क्या बात है,रंभा?”,प्रणव फ़ौरन उसकी चूचियाँ छ्चोड़ उसकी आँखो मे देखने लगा & उसके गाल सहलाने लगा.
“आज दिल नही कर रहा.”
“ओह.”,प्रणव की आवाज़ मे मायूसी सॉफ झलक रही थी & वो उसके उपर से हटने लगा की रंभा ने उसे रोक लिया.
“दिल तो ये कर रहा है कि बस तुमहरि मज़बूत बाहो मे सुकून से सो जाऊं पर ये मुमकिन नही.”,रंभा ने ठंडी आह भरी.समीर का दिल खुशी से भर उठा.जहा रंभा उसके लिए 1 मोहरा थी जो उसे ट्रस्ट ग्रूप का मालिक बनाने वाली थी & 1 खूबसूरत खिलोना थी जिस से वो अपने जिस्म की हवस मिटाता था वही वो उस से मोहब्बत करने लगी थी.
“हां,जान फिलहाल तो ये मुमकिन नही पर हालात बहुत जल्द बदलेंगे.”,रंभा ने उसे झुका के गले से लगा लिया.उसे खुद पे गुरूर भी हो रहा था & हैरत भी..ये सारे चालाक मर्द इतनी आसानी से उसकी झूठी,रस भरी बातो मे फँस कैसे जाते थे!
कुच्छ देर बाद वो बड़े आराम से सो रही थी.
विजयंत मेहरा की नींद खुली तो वो कमरे से बाहर आया.उसने देखा कि घर के मैं दरवाज़े पे 1 लॅडीस कोट पड़ा था.उसने आगे देखा तो पाया कि घर के हॉल से लेके देवेन के कमरे तक के रास्ते मे 1 लॅडीस टॉप,जीन्स & ब्रा भी पड़े थे.वो समझ गया की रंभा आई है & उसका दिल खुशी से भर गया.वो आगे बढ़ा मगर उसने देखा की देवेन के कमरे का दरवाज़ा बंद था.उसे मायूसी हुई पर वो कर ही क्या सकता था.दोनो के इतने एहसान थे उसपे & वो अपने जिस्मानी स्वार्थ के लिए दोनो की मोहब्बत मे खलल नही डालना चाहता था.उसने दरवाज़े से कान लगाया तो अंदर से रंभा की मस्तानी आहो की धीमी आवाज़ उसके कान मे पड़ी & वो बेचैन हो गया.
वो वाहा से हटा & रसोई मे चला आया & चाइ बनाना लगा.जब से वो डेवाले आया था उसे 1 अजीब सी उलझन & बेचैनी ने आ घेरा था.उसे ये शहर,यहा की आबो-हवा सब देखे-2 से लगते थे मगर उसे कुच्छ याद नही आ रहा था.उसे उसी वक़्त रंभा की याद आई थी & वो उसे ये सब बताना चाहता था.आज वो आ गयी थी मगर..
उसने चाइ बनाई & कप मे डाल पीते हुए रंभा के कमरे से भरा आने का इंतेज़ार करने लगा.
“उउन्न्ञनननगगगगगगगघह……!”
“आहह…….!”,सलवटो से भरे बिस्तर पे आपस मे गुत्थमगुत्था दो जिस्मो ने 1 साथ ज़ोर से आ भर अपने-2 जिस्मो के मज़े की इंतेहा तक पहुचने का प्लान किया.
“तो उसका इरादा तुमसे शादी कर कंपनी हड़पने का है पर उसके पहले समीर को रास्ते से हटाना ज़रूरी है.”,देवेन अभी भी रंभा के उपर ही था.उसका लंड सिकुड़ने के बावजूद रंभा की चूत मे था.रंभा उसके चेहरे को अपनी उंगली के पोरो से सहला रही थी & वो कभी उसके चेहरे तो कभी चूचियो को चूम रहा था.
“हूँ..& अब इस काम मे हमे उसकी ‘मदद’ करनी है.”,देवेन ने उसकी ओर देखा और दोनो हंस पड़े.
“अच्छा तुम 1 काम करना..”,उसने हँसती हुई रंभा के होंठ चूमे & फिर उसके जिस्म से हट गया & बिस्तर से उतर अपने कपड़े पहनने लगा,”..जब भी अगली बार मिलो इस शाह से,मुझे खबर करना,मैं उसे देखना चाहता हू.”
“ठीक है.”,रंभा ने देवेन को अपने & शाह की पूरी कहानी नही बताई थी ना ही देवेन ने उस से ज़्यादा तफ़सील से उस बारे मे पुछा था.रंभा ने अपनी पॅंटी पहनी तो देवेन बाहर चला गया & उसके कपड़े लेके लौटा.रंभा को उस वक़्त थोड़ी ग्लानि महसूस हुई..ये शख्स उस से मोहब्बत करता था & वो भी उसे जान से ज़्यादा चाहती थी..फिर अभी भी दूसरे मर्दो से चुदने मे उसे मज़ा क्यू आता था?..वो देवेन की तरफ पीठ कर कपड़े पहनने लगी..ना जाने क्यू उस से नज़रे मिलाने मे उसे झिझक होने लगी थी.कपड़े पहन वो शीशे के सामने खड़ी हो बाल ठीक करने लगी & तब उसने अपनी ही आँखो मे झाँका..वो ऐसी ही थी & ये बात सबसे पहले उसे खुद कबूलनी थी.इसके लिए शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नही थी उसे.ये उसकी शख्सियत का अहम हिस्सा था & इसके बिना वो खुश होके नही जी सकती थी.उसने अपने बाल ठीक किए & कमरे से बाहर आई.
सामने चाइ का कप उसकी ओर बढ़ाए विजयंत खड़ा था,”गुड मॉर्निंग,डॅड.कैसे हैं आप?..थॅंक्स!”,उसने आगे बढ़ विजयंत का गाल चूमा & कप ले लिया.
“ठीक हू.”,रंभा ने उसके चेहरे के भाव पढ़ लिए & देवेन से आँखो के इशारे से पुछा तो सुने कंधे उचका दिए.रंभा ने विजयंत की पीठ पे हाथ रखा & उसे उसके कमरे मे ले गयी.
“डॅड,जो भी बात है मुझसे कहिए.”,विजयंत कुच्छ पल सर झुकाए बैठा रहा & फिर उसने उसे अपने दिल का हाल बताया.रंभा को खुशी हुई कि उसे कुच्छ तो जाना-पहचाना लगा मगर साथ ही थोड़ी घबराहट भी हुई.देवेन की दिमागी हालत अभी भी नाज़ुक थी & उसे बहुत एहतियात से रहना था.अब यहा यूरी भी नही था उनकी मदद के लिए.
“डॅड..”,उसने उसके कंधे पे हाथ रखा,”..अभी मैं आपको आपकी कंपनी हड़पने के लिए चल रही चालो के बारे मे कुच्छ बताउन्गि पर उस से पहले आपसे 1 बात कहना चाहती हू.आपकी तबीयत अभी भी ठीक नही है.आप अपने दिमाग़ पे बहुत ना डालें.आपको सब याद आ जाएगा & वो भी बहुत जल्दी.ये उलझन तो यही जता रही है कि आपको कुच्छ तो याद आ रहा है.मगर फिर भी ज़रा भी तकलीफ़ हो,परेशानी हो,मुझे फोन कीजिए.मैं फ़ौरन आऊँगी.ओके?”
“ओके.”,विजयंत मुस्कुराया तो रंभा ने 1 बार फिर उसका गाल चूमा & उसे बाहर हॉल मे देवेन के पास ले आई जहा दो नो ने उसे शाह & प्रणव के बारे मे बताया.
“अच्छा देवेन..”,रंभा अपनी कार की ड्राइविंग सीट पे बैठी तो देवेन ने दरवाज़ा बंद किया,”..दयाल को ढूँडने के काम मे कुछ नया हुआ?”
“हां,कल होगा.”
“अच्छा,क्या?”,रंभा ने खुश होके पुचछा.
“कल का अख़बार पढ़ना.”
“बताइए ना!”,वो मचल गई.
“ना!कल का अख़बार पढ़ना खुद बा खुद समझ जाओगी.”,वो मुस्कुराया.रंभा समझ गयी की वो अभी कुच्छ नही बताने वाला & शोखी से मुस्कुराती अपने दफ़्तर के लिए रवाना हो गयी.
“एक्सक्यूस मी,मेडम.”,रंभा ने अपनी कार पार्क की तो 1 शॉफर उसके करीब आ खड़ा हुआ.
“यस?”,रंभा ने उसे सवालिया निगाहो से देखा.
“ये आपके लिए.”,उसने 1 पॅकेट उसे थमाया & सलाम कर चला गया.
रंभा ने पॅकेट के अंदर देखा तो 1 गिफ्ट पेपर मे लिपटा डिब्बा था जिसपे 1 गुलाब का फूल चिपका था & 1 कार्ड था जिसपे सुर्ख स्याही से लिखा था,”फॉर माइ डार्लिंग-फ्रॉम म”.रंभा समझ गयी कि उसके नये आशिक़ ने उसे तोहफा भेजा है.वो पॅकेट लिए अपने दफ़्तर मे आई.
कॅबिन के एकांत मे उसने जल्दी से तोहफा खोला तो अंदर से लेस की हल्के गुलाबी रंग की ट्रॅन्स्परेंट लाइनाये निकली.रंभा ने मुस्कुराते हुए स्ट्रेप्लेस्स ब्रा & पॅंटी को देखा.शाह आदमी जैसा भी हो उसकी पसंद बहुत अच्छी थी.रंभा ने देखा डिब्बे मे 1 क्रेडिट कार्ड जैसा भी कुच्छ था.उसे उठाया तो उसने पाया कि वो होटेल कलमबस के 1 रूम का के कार्ड था & उसके साथ 1 और कार्ड था जिसपे सुर्ख स्याही से लिखा था,2 पीएम.
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क्रमशः.......
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