Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
01-19-2018, 01:13 PM,
#14
RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
होली की महफिल

होली की शाम को सब लोग नहा-धोकर शिशिर के यहां इकट्ठे हुये। मलहोत्रा परिवार न आ सका, उनके यहां मेहमान आ गये थे। कुमुद ने सेब, पापड़ी, गुझिया, भांग की बरफी और भांग मिली ठंडाई का इंतेजाम कर रखा था। होली के माहौल का असर था ऊपर से भांग का शुरूर, सब बहक रहे थे। राकेश ने सुझाया कि सब लोग अपने-अपने पहले सेक्स का अनुभव सुनायें। 

सब एक साथ बोले- हाँ सब लोग अपनी अपनी बीती बतायें। सबसे पहले मेजबान शिशिर से कहा गया कि वह अपना अनुभव बाताये। 


***** ***** शिशिर की कहानी

होली का दिन था। मैं इंटरमीडियेट मैं रहा हूँगा। मेरी भाभी मुहल्ले में होली खेलकर आईं। वह बड़ी खुश थीं, कुछ गुनगुना रही थीं। मैं यह बता दूं कि भाभी मेरे से छः-सात साल बड़ी थीं, मेरे से बड़ा लाड़ करतीं थीं, जिसमें सेक्स बिल्कुल नहीं था। जब वह ब्याह के आईं तो मैं दस साल का रहा हूँगा। वह बिल्कुल भीग गईं थीं, साड़ी बदन से चिपक गई थी। उनके उभार और कमर की गोलाइयां पूरी तरह उभर आईं थीं। मेरी भाभी में बहुत ग्रेस था। अच्छी उंचाई की आकर्षक मुखछबि थी और शादी के छः-सात सालों में बदन बड़ी समानता से सुडौल हो गया था। 

आते ही वह बाथरूम में चली गईं। बाथरूम में दो दरवाजे थे, एक उनके कमरे की तरफ खुलता था एक मेरे कमरे की ओर जो अक्सर बंद रहता था क्योंकी मैं नीचे का बाथरूम इश्तेमाल करता था। लेकिन इस समय मेरी तरफ का दरवाजा खुला हुआ था। 

उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया क्योंकी होली के लिये मुझे अपने दोस्त के यहां जाना था और दूसरे दिन वापिस आना था। लेकिन मेरा प्रोग्राम ऐन मौके पर कैंसिल हो गया था। मैं यहीं होली खेलकर वापिस आ गया था और उसी बाथरूम में नहा धो लिया था। गलती से अपनी तरफ का दरवाजा खुला छूट गया था। मैं कमरे मैं आराम से लेटा हुआ था जहां से बाथरूम का नजारा साफ नजर आ रहा था। 

भाभी ने सबसे पहले अपनी साड़ी उतार के फेंक दी फिर पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी खींच ली। वह रंग से तर हो रही की जैसे उसपर ही निशाना लगाकर रंग फेंका गया हो। जैसे-जैसे वह ब्लाउज़ के बटन खोल रही थीं मेरी सांसें गरम होती जा रही थीं। ब्लाउज़ उनके शरीर से फिसलकर नीचे गिर गया। वह मेरे सामने केवल ब्रेजियर और पेटीकोट में खड़ी थीं। ब्रेजियर उनके सीने से चिपक गई थी बादामी शहतूत से चूचुक और उनके घेरे साफ नजर आ रहे थे। पेटीकोट आगे से उनकी रानों से बुरी तरह चिपक गया था और चूतड़ों के बीच में दरार अ फँस गया था। सामने झांट के बाल नजर आ रहे थे। उत्तेजित होकर मेरा लण्ड एकदम खड़ा हो गया। 

उन्होंने पीछे हाथ करके जैसे ही हुक खोलकर ब्रेजियर अलग की कि स्प्रिंग की तरह दो सफेद गेंदें सामने आ गईं। बहुत ही मतवाले भरे हुये जोबन थे। भाभी ने अपना हाथ पेटीकोट के नाड़े की तरफ बढ़ाया तो मेरा लण्ड और ऊपर होकर हिलने लगा। उन्होंने एक झटके में नाड़ा खींचा और पेटीकोट नीचे गिर गया। माई गोड मेरे सामने भाभी पूरी नंगी खड़ी थीं। बड़े-बड़े उभार, बादामी फूले-फूले चूचुक, चिकनी सुडौल जांघें, भरे-भरे उभार लिये चूतड़ों की गोलाइयां और जांघों के ऊपर तराशे हुये बादामी बाल। मैंने अपना लण्ड पकड़कर लिया नहीं तो वह हिल-हिल के बुरा हाल कर देता। 

भाभी की जांघों और चूतड़ों पर रंग के धब्बे लगे हुये थे। चूत के बाल भी रंग में चिपक गये थे। उन्होंने साबुन से मलकर रंग को छुड़ाया। इसके बाद उन्होंने जो कुछ किया मैं उठ के खड़ा हो गया। 

भाभी ने साबुन का ढेर सारा झाग बनाया और अपनी टांगें चौड़ी करके उंगली से साबुन का झाग अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगीं। मेरे सामने उनकी चूत का मुँह खुला हुआ था। छेद के ऊपर फांकों के बीच की और अंदर की साबुन मिली लाल गहराई मेरे सामने थी। लगता था वह रात के लिये तैयारी कर रही थीं। मेरे से न रहा गया और मैं दरबाजे के सामने जा खड़ा हुआ, लण्ड एकदम तना हुआ। 

भाभी ने मुझे देखा और उनके मुँह से चीख निकली- “उई माँ…” फिर एक हाथ से उन्होंने अपनी चूत ढंक ली और दूसरे से अपनी चूचियां छिपाते हुये बोलीं- “ऐसे क्या देखते हो जाओ न…” फिर खुद ही भागकर अपने कमरे में चली गईं। 

मैं बहुत गरम हो चुका था। उत्तेजना मैं मेरा लण्ड फड़फड़ा रहा था। आँखों के सामने भाभी का नंगा बदन नाच रहा था। मैं बाथरूम में घुस गया। पैंट उतारकर लण्ड को कस-कस के झटके दिये जि कि गाढ़ा गाढ़ा सफेद पदार्थ काफी देर तक उगलता रहा। भाभी की पैंटी उठा के उससे पोंछा। पता नहीं भाभी ने यह सब देखा या नहीं। 

शाम को भाभी मिलीं तो शर्म से लाल हो रही थीं। आँखें नहीं मिला रही थीं। 

हिम्मत करके मैंने उनसे से कहा- “भाभी, आप अंदर से भी उतनी सुंदर है जितनी बाहर से…”

भाभी बोलीं- “तुम बहुत बेशरम हो गये हो, जल्दी तुम्हारी शादी करना पड़ेगी…” 

उसके बाद बहुत दिनों तक वह मुझसे शर्माती रही। मैं भी उनसे बहुत दिनों तक सहज न हो पाया। 

सुनीता सोच रही की कि शिशिर उसमें अपनी भाभी को देखता है और इसीलिये शुरू से उसको ताकता है और भाभी-भाभी कहता है। जैसे अपनी भाभी के सामने न बढ़ा उसी तरह उसके आगे भी नहीं बढ़ता है। सुनीता ने निश्चय कर लिया कि इसका यह बैरियार तोड़ना ही पड़ेगा।
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