RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --6
गतान्क से आगे........................
"किस्में मज़ा आ रहा है?" पापा जैसे सवाल पर सवाल कर रहे थे
"गांद मरवाने में" मम्मी भी अब बिना रुके जवाब दे रही थी.
"ज़ोर से मारु या धीरे से?"
"अब कुच्छ नही बोलूँगी" मम्मी ने आँखें खोली "पहले बेड पर लेट जाने दो उसके बाद जो पुच्छना है पुच्छ लेना"
पापा हस्ने लगे और मम्मी को छ्चोड़ते हुए धीरे से पिछे हुए.
तब रूपाली को पहली बार अंदाज़ा हुआ के हो क्या रहा था और उसको एक झटका सा लगा. पापा जब पिछे हुए तो उनकी लड़को वाली चीज़ मम्मी के पिछे से बाहर आई. दो चीज़ें जो रूपाली को नज़र नही आ रही थी वो अब अचानक से दिखी. अपने बाप का खड़ा हुआ लंड और अपनी माँ की गांद. ये उसकी आँखों के लिए बहुत ज़्यादा हो गया था, अपने माँ बाप को यूँ नंगे देखना. गिल्ट और शरम की एक फीलिंग उसके पूरे शरीर में दौड़ गयी और वो फ़ौरन दरवाज़े से हटी, कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे में आ गयी.
ख़ान अपने घर पहुँचा तो दिमाग़ में बस एक ही ख्याल और एक ही नाम घूम रहा था.
किरण चतुर्वेदी
किरण से वो पहली बार कॉलेज में मिला था. किरण के पिछे कॉलेज का हर लड़का था, हर ख्याल के साथ. कोई उससे दोस्ती करना चाहता था, कोई उससे अफेर रखना चाहता था, कोई उससे प्यार करना चाहता था, कोई बस उसको चोदना चाहता था और कोई उससे शादी करना चाहता था.
पर किस्मत खुली तो ख़ान की. किरण से उसकी दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदलती चली गयी. वो दोनो एक दूसरे के करीब आते चले गये और जल्दी ही प्यार शादी के इरादे में बदल गया.
मुसीबत आई कॉलेज ख़तम होने के बाद. किरण के घरवाले उसकी शादी करना चाहते थे और ख़ान को समझ नही आ रहा था के क्या करे. वो एक पठान था और किरण एक ब्रामिन. उसके उपेर से वो एक ग़रीब घर से था और किरण का बाप करोड़पति था.
उन दोनो को ये मालूम था के किरण का बाप उनकी शादी होने नही देगा इसलिए दोनो ने भागने का प्लान बनाया.
ख़ान को आज भी याद था के जिस दिन उनका शाम को भागने का प्लान था उसी दिन उसके घर पर कुच्छ लोग आए. उन्होने घर में घुसकर ख़ान और उसकी माँ को इतना मारा था के उसकी माँ की वहीं मौत हो गयी थी और ख़ान 1 महीने तक हॉस्पिटल में रहा था.
बाहर आया तो पता चला के किरण की शादी हो चुकी था. उसकी दोस्तों से मालूम किया तो खबर मिली के किरण ने खुद ही अपने बाप को उस दिन भाग जाने के प्लान के बारे में बता दिया था. वो जानता था के जिन लोगों ने उसकी माँ को मारा वो कौन था पर उसकी लाख कोशिश पर भी पोलीस ने किरण के बाप के खिलाफ एक एफआइआर तक दर्ज नही की और ना ही कोई कार्यवाही हुई. उल्टा ख़ान पर इल्ज़ाम डाल दिया गया के उसकी संगत ग़लत थी और उसने कुच्छ ग़लत लोगों से पैसे उधार ले रखे थे जिन्होने पैसे वापिस ने मिलने की वजह से ख़ान और उसकी माँ पर हमला किया.
सिर्फ़ किरण के बाप से अपनी माँ की मौत का बदला लेने के लिए ख़ान पोलीस में भरती हुआ पर उसकी फूटी किस्मत के जिस दिन उसने पोलीस फोर्स जाय्न की, उसी दिन किरण के बाप की हार्ट अटॅक से मौत हो गयी. बदले का इरादा सिर्फ़ इरादा रह गया.
एक बुरा सपना समझकर ख़ान सारी बातों को भूलकर ज़िंदगी में आगे बढ़ गया. किरण से उसका कोई वास्ता ना रहा और उसने उसके बारे में सोचना भी बंद कर दिया था. एक दिन जब एक एनकाउंटर में ख़ान की गोली से एक सब-इनस्पेक्टर की मौत हुई तो उसकी ज़िंदगी में वापिस किरण दाखिल हुई.
उस दिन ख़ान ने पहली बार कई सालों बाद किरण को देखा था. उसको तो पता भी नही था के किरण एक जर्नलिस्ट बन गयी थी और एक काफ़ी बड़े चॅनेल के लिए काम करती थी. जो सब-इनस्पेक्टर ख़ान की गोली से मरा था वो किरण की किसी सहेली का भाई था और पता नही कैसे पर किरण को ये इन्फर्मेशन मिल गयी के जो गोली सब-इंस्पेकोर को लगी थी, वो पोलीस रेवोल्वेर से चली थी और उस एनकाउंटर के दौरान रेवोल्वेर सिर्फ़ एक ख़ान के पास था.
वो किरण ही थी जिसने इस बात को लेकर मीडीया में बवाल मचा दिया था. बात यहाँ तक बढ़ गयी थी ख़ान की नौकरी पर बन आई थी. वो तो पोलीस कमिशनर से उसकी बहुत अच्छी बनती थी जिसकी वजह से इस बात को दबा दिया गया और कुच्छ टाइम के लिए ख़ान को इस छ्होटे से गाओं में पोस्ट कर दिया गया ताकि वो कुच्छ दिन के लिए गायब हो सके.
और आज फिर कुच्छ महीनो बाद किरण ने उसको फोन किया. क्यूँ, ये बात वो नही जानता था.
"किरण किरण कम्बख़्त किरण" ख़ान अपने आप से बोला "मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पनौती"
दूसरा केस में एक ऐसे इनस्पेक्टर की इन्वॉल्व्मेंट जिसपर खुद कभी अपने एक कॉलेग, एक सब इनस्पेक्टर को मारने का इल्ज़ाम था पोलीस वाले नही चाहते थे. इसलिए पोलीस कमिशनर के फोर्स करने पर ख़ान ने चार्ज शीट पर साइन कर दिया पर जाने क्यूँ उसको लगता था के कहीं कुच्छ मिस्सिंग था. हो सकता था के खून जै ने ही किया हो पर बिना किसी छान बीन के यूँ सीधे सीधे जै को ही फंदे पर टंगा देना उसको ठीक नही लग रहा था. ये भी तो हो सकता था के खून किसी और ने किया हो और जै बस ग़लत वक़्त पर वहाँ पहुँच गया हो.
ख़ान ये भी जानता था के हर कोई जल्दी से जल्दी जै को खून के इल्ज़ाम में टंगा देना चाहेगा. पोलीस वाले इतनी एविडेन्स दे देंगे के ये केस कोर्ट में ओपन आंड शूट केस साबित होगा और जै का काम तमाम कर दिया जाएगा. उसको जो करना था, जल्दी करना था.
यही सोचते हुए उसने ड्रॉयर से एक पेन और नोटपॅड निकाला और बेड पर एक कप चाइ लेकर बैठ गया.
केस के बारे में जो बातें वो जानता था उसने नोटपेड में लिखनी शुरू कर दी.
1. क़त्ल की रात ठाकुर ने अपने कमरे में ही डिन्नर किया था. उनको अपने कमरे के बाहर आखरी बार 8 बजे देखा गया था, ड्रॉयिंग हॉल में टीवी देखते हुए.
2. 8:15 के करीब वो अपने कमरे में चले गये थे और उसके बाद उनकी नौकरानी पायल खाना देने कमरे में गयी.
3. 8:30 के आस पास नौकरानी ठाकुर के बुलाने पर वापिस उनके कमरे में पहुँची. ठाकुर ने ज़्यादा कुच्छ नही खाया था और उसको प्लेट्स ले जाने के लिए कहा.
4. इसके बाद 9:15 के आस पास उनकी बहू रूपाली कपड़े लेने के लिए हवेली की पिछे वाले हिस्से में गयी जहाँ ठाकुर के कमरे की खिड़की खुलती थी और खिड़की से ठाकुर उसको अपने कमरे में खड़े हुए दिखाई दिए. वो अकेले थे.
5. उसके बाद तकरीबन 9.30 बजे तेज अपने बाप के कमरे में उनसे बात करने पहुँचा था. क्या बात करनी थी ये उसने नही बताया. सिर्फ़ कुच्छ बात करनी थी.
6. 9:40 के करीब सरिता देवी अपने पति के कमरे में पहुँची. उनके आने के बाद तेज वहाँ से चला गया.
7. 9:45 के करीब ठाकुर ने भूषण को बुलाकर गाड़ी निकालने को कहा. कहाँ जाना था ये नही बताया और खुद सरिता देवी भी ये नही जानती थी के उनके पति कहाँ जा रहे हैं.
8. 10:00 बजे के करीब भूषण वापिस ठाकुर के कमरे में चाबी लेने गया. ठाकुर उस वक़्त कमरे में अकेले थे और सरिता देवी बाहर कॉरिडर में बैठी थी.
9. 10:00 के करीब ही जब भूषण ठाकुर के कमरे से बाहर निकला तो पायल कमरे में गयी ये पुच्छने के लिए के ठाकुर को और कुच्छ तो नही चाहिए था. ठाकुर ने उसको मना कर दिया.
10. 10:05 के करीब जब भूषण कार पार्किंग की ओर जा रहा था तब उसने और ठकुराइन ने जै को हवेली में दाखिल होते हुए देखा.
11. 10:15 पर जब पायल किचन बंद करके अपने कमरे की ओर जा रही थी तब उसने ठाकुर के कमरे से जै को बाहर निकलते देखा. वो पूरा खून में सना हुआ था जिसके बाद उसने चीख मारी.
12. उसकी चीख की आवाज़ सुनकर जै को समझ नही आया के क्या करे. वो पायल को बताने लगा के अंदर ठाकुर साहब ज़ख़्मी हैं और इसी वक़्त पुरुषोत्तम और तेज आ गये. जब उन्होने जै को खून में सना देखा और अपने बाप को अंदर नीचे ज़मीन पर पड़ा देखा तो वो जै को मारने लगे.
13. जै भागकर किचन में घुस गया और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
14. 10:45 के करीब ख़ान को फोन आया था के ठाकुर का खून हो गया है जिसके बाद वो हवेली पहुँचा.
पूरा लिखकर ख़ान ने अपनी लिस्ट को दोबारा देखा. जब जै हवेली में आया था उस वक़्त ठाकुर ज़िंदा थे इस बात की गवाही घर के 3 लोग दे सकते हैं. जै का कहना है जब वो कमरे में दाखिल हुआ था तब ठाकुर साहब मरे पड़े थे. यानी के जो हुआ, बीच के कुल 10 मिनट में हुआ.
"10 मिनट में खून? वाउ" ख़ान ने सोचा
जो बातें उसको अब तक पता नही थी वो ये थी के जै इतनी रात को हवेली क्या करने गया था और घर की कौन सी औरत ने ख़ान को फोन करके खून के बारे में बताया था.
और सबसे बड़ा सवाल ये था के अगर जै ने ठाकुर को नही मारा, तो किसने मारा. और 10 मिनट के अंदर अंदर कैसे मारा.
उस रात के इन्सिडेंट ने रूपाली के दिल और दिमाग़ को जैसे झंझोड़ दिया था. एक ही हफ्ते में उसने 2 आदमियों और 2 औरतों को नंगा देखा था, आपस में कुच्छ ऐसा करते हुए जो उसकी समझ में अब तक नही आया था पर हां इतना ज़रूर समझ गयी थी के वो जो भी कर रहे थे, उन्हें ऐसा करते हुए बहुत अच्छा लग रहा था.
वो जवानी की दहलीज़ पर अभी कदम रख ही रही थी. बचपाना अभी तक गया नही था और जवानी पूरी तरह आई नही थी. सीने पर उभार उठ गया था और उसने कुच्छ दिन पहले ही ब्रा पहननी शुरू की थी. टाँगो के बीच हल्के हल्के बाल आ गये थे. वो एक बच्ची से एक जवान लड़की में तब्दील हो रही थी पर जवानी के खेल से पूरी तरह अंजान थी. स्कूल में उसकी सहेलियाँ गिनी चुनी ही थी और जो थी उनको किताबों से फ़ुर्सत नही होती थी. खुद रूपाली भी आधा वक़्त किताबों में घुसी रहती और बाकी आधा वक़्त अपनी सहेलियों से गप्पे लड़ाती रहती.
उस रात के बाद अपने माँ बाप को नंगा देखकर वो सहम सी गयी थी. उसका दिमाग़ कन्फ्यूज़्ड था के रिक्ट करे तो कैसे करे. उसके दिल में एक तरफ तो एक ये डर था के अगर किसी भी तरह मम्मी पापा को पता चल गया के उसने उस रात उन दोनो को देखा था तो उसका क्या होगा तो दूसरी तरफ ये गिल्ट के उसने अपने मम्मी पापा को नंगा देखा.
ज़्यादा गिल्ट इस बात का था के उसे उन दोनो को देखते वक़्त बहुत अच्छा लग रहा था.
अगले कुच्छ दिन तक वो बहुत खोई खोई सी रही. दिल में एक अजीब सी बेचैनी और घबराहट रहती थी. वो ना तो अपने माँ बाप से नज़रे मिला पाती और ना ही कल्लो और शंभू से. हर पल यही लगता के वो सब जानते हैं के उसने क्या किया था और किसी भी वक़्त उससे पुच्छ लेंगे के उसने ऐसा क्यूँ किया.
उसकी हालत ऐसी हो गयी थी के उसकी माँ को फिकर होने लगी के कहीं वो बीमार तो नही.
ज़्यादा परेशान रूपाली को ये बात कर रही थी के वो समझ नही पा रही थी के उसने क्या देखा और कहीं उसका दिमाग़ उसके माँ बाप से नाराज़ था के वो अकेले में ऐसे गंदे काम करते हैं. वो 2 लोग जिन्हें वो इतना प्यार करती थी उन दोनो को ऐसा काम करते देख उसका दिमाग़ सहम गया था. कभी कभी दिल करता था के चिल्ला कर बोल पड़े के आप लोग गंदे हो, मैने देखा था आपको उस रात.
इसी कन्फ्यूषन के चलते उसने अगले कुच्छ हफ़्तो तक दोबारा कल्लो और शंभू को भी देखने की कोशिश नही की जबकि वो जानती थी के उन्होने फिर से वही काम सनडे को किया तो ज़रूर होगा.
और जैसे ये सब कन्फ्यूषन एक दिन अचानक शुरू हो गया था, वैसे ही सब कुच्छ एक दिन अचानक ख़तम हो गया.
क्रमशः........................................
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