RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --7
गतान्क से आगे........................
उस रात बहुत गर्मी थी. रूपाली ने सोने से पहले नहाने की सोची और बाथरूम में दाखिल हुई. बाथरूम में जाकर कपड़े उतारे तो पता चला के वो टवल लाना भूल गयी थी. उसका बाथरूम उसके कमरे से अट्ष्ड था जिसका दरवाज़ा उसके कमरे में ही खुलता था. कमरा सिर्फ़ उसका था और अंदर से लॉक्ड था इसलिए वो नंगी ही बाथरूम से टवल लेने के लिए बाहर निकली.
टवल बेड पर पड़ा हुआ था. रूपाली ने टवल उठाया और वापिस बाथरूम में जा ही रही थी के उसकी नज़र अपने कमरे में लगे फुल साइज़ मिरर पर पड़ी.
रूपाली उस वक़्त पूरी तरह नंगी थी. जिस्म पर कपड़े के नाम पर एक धागा तक नही था. बॉल खुले हुए थे और उसका कच्चा जिस्म कमरे में जल रही ट्यूब लाइट की रोशनी में चमक सा रहा था. वो बाथरूम में जाती जाती एक पल के लिए रुकी और एक नज़र अपने उपेर डाली.
रूपाली को याद भी नही था के उसने कभी अपने आपको यूँ आईने में पूरी तरह नंगा देखा हो, कम से कम होश संभालने के बाद तो नही. वो बाथरूम में ही जाकर कपड़े उतारती और अक्सर एक टवल लपेटकर बाहर आती थी. कमरे में आकर कपड़े पहेन लेती थी. अगर कपड़े बदलने भी होते तो पूरी तरह से नंगी नही होती थी. पहले सलवार उतारती और नीचे कुच्छ और पहेन्ने के बाद कमीज़ उतारती थी.
आज अपनी 15 साल की ज़िंदगी में पहली बार होश संभालने के बाद वो आईने में अपने आपको नंगी देखने के इरादे से अपने आपको पूरी तरह नंगी देख रही थी.
एक पल के लिए वो खुद को देखकर ही शर्मा गयी. नज़रें शरम से नीचे झूल गयी और वो फिर बाथरूम की और बढ़ी. जाते जाते फिर रुकी, झिझकी, और फिर बाथरूम की तरफ बढ़ी.
और फिर ना जाने क्यूँ वो फिर वापिस आई, टवल फिर बेड पर रखा और अपने आपको एक बार और आईने में देखा.
उसके बाल काफ़ी लंबे थे जो कि बचपन से ही कटे नही थे. बाल पूरे खुलने पर उसकी पूरी कमर को ढक लेते थे. इस वक़्त भी कुच्छ बाल खुलकर उसके कमर पर तो कुच्छ उसके सीने पर गिरे हुए थे.
रूपाली ने अपने बाल सारे के सारे पिछे को किए और खुद पर नज़र डाली.
वो जानती थी के वो देखने में बेहद खूबसूरत है क्यूंकी आए दिन लोग या तो उसको ही कहते थे के वो बहुत सुंदर है या उसके माँ बाप को कहते के आपकी बेटी कितनी सुंदर हो गयी है. मासूम चेहरा, बड़ी बड़ी आँखें और मुलायम छ्होटे छ्होटे होंठ.
नज़र चेहरे से हटी और नीचे छातियो पर गयी.
कोई 3 साल पहले उसके सीने पर उभार आना शुरू हो गया था और अभी कुच्छ महीने पहले ही उसकी माँ ने उसको ब्रा पहेन्ने को कहा था. उसको ब्रा पहेन्ने पर बड़ा अजीब सा लगता था क्यूंकी एक तो उसका दम सा घुटना लगता था और दूसरा बार बार खुजली सी होती रहती थी. उसने एक दो बार पहेन्ने से इनकार भी किया पर माँ को ज़ोर डालने पर पहेनना पड़ा.
रूपाली ने गौर से अपनी छातियो की तरफ देखा.
उसकी छातियाँ दूध की तरह सफेद थी जिनपर लाइट ब्राउन कलर के छ्होटे छ्होटे निपल्स. अपनी छातियो पर नज़र पड़ते ही उसके दिमाग़ में पहला ख्याल कल्लो की चूचियो का आया और उसके दिमाग़ ने जैसे अपने आप ही कंपेर करना शुरू कर दिया. कल्लो की चूचियाँ रूपाली की चूचियो के मुक़ाबले बहुत काली थी. इतनी काली की जो निपल्स रूपाली की चूचियो पर सॉफ नज़र आ रहे हैं वो कल्लो के शरीर पर तो जैसे नज़र ही नही आ रहे थे. पूरी की पूरी छाती काले रंग की थी.
निपल्स का सोचते ही अगला ख्याल ये था के रूपाली के निपल्स बहुत छ्होटे छ्होटे से थे, एक 15 साल की लड़की के निपल्स पर कल्लो के निपल्स तो कितने बड़े बड़े थे. निपल्स ही क्या कल्लो की छातियाँ ही कितनी बड़ी थी. उसकी चूचियो में से रूपाली के बराबर की 3 चूचिया बन जाएँ.
और फिर जैसे अपने आप ही उसके बेकाबू हो रहे दिमाग़ ने अगला नज़ारा उसके माँ के नंगे जिस्म का पेश कर दिया. उसने अपनी माँ को ज़्यादा गौर से नही देखा था, बस एक हल्की सी नज़र ही डाली थी पर जितना देखा था उससे ये पता चल गया था के उसकी माँ की चूचियाँ भी काफ़ी बड़ी बड़ी थी. कल्लो जितनी बड़ी नही पर फिर भी काफ़ी बड़ी और उसकी माँ की छातियाँ भी रूपाली की तरह गोरी थी.
इससे पहले के उसकी सोच और आगे बढ़ती, रूपाली ने फ़ौरन अपने दिमाग़ से अपनी माँ के ख्याल को झटक दिया.
उसकी नज़र चूचियो से होती अपनी टाँगो के बीच पहुँची.
उसने आज तक अपने जिस्म के इस हिस्से को गौर से नही देखा था. गौर से क्या कभी देखा ही नही था. बस नहाते हुए हाथ पर साबुन लेकर अपनी टाँगो के बीच रगड़ लेती और बस. पर आज उसने पहली बार अपनी टाँगो के बीच नज़र डाली. उसकी चूत पर बाल आने शुरू हो गये थे जो उसने कभी काटे नही थे. बाल हल्के हल्के से लंबे थे पर इतने नही जितने के कल्लो के. कल्लो के बालों के बीच तो चूत नज़र ही नही आ रही थी जबकि रूपाली की चूत बॉल होते हुए भी हल्की हल्की दिखाई दे रही थी.
यही सब सोचते सोचते रूपाली को एहसास हुआ के उसकी टाँगो के ठीक बीच उसको कुच्छ गीला गीला महसूस हो रहा था. उसको कुच्छ समझ नही आया के ये क्या था और चेक करने के इरादे से वो अपना हाथ टाँगो के बीच ले गयी.
और जैसे ग़ज़ब हो गया.
हाथ लगते ही जैसे उसी वक़्त उसके जिस्म में एक करेंट सा दौड़ गया हो. उसका अपनी टाँगो के बीच हाथ लगाना उसके शरीर को हिला गया. एक अजीब सी फीलिंग पूरे शरीर में दौड़ गयी. रूपाली का हाथ जहाँ था वही रुक गया और उसने एक गहरी साँस ली.
उसने एक बार फिर अपने हाथ को अपनी चूत पर दबाया और उसके मुँह से आह निकल पड़ी.
और फिर तो जैसे हाथ रुका ही नही. वो बार बार अपना हाथ अपने चूत पर दबाने लगी. जो टाँगें पहले फेली हुई थी वो दोनो सिकुड गयी. वो अब भी आईने के सामने खड़ी थी पर अब अपने आपको नही देख रही थी. दोनो आँखें बंद थी और टाँगें सिकोड रखी थी जिनके बीच उसका हाथ धीरे धीरे उसकी चूत को दबा रहा था और सहला रहा था.
और तभी जैसे आसमान टूट पड़ा.
उसकी टाँगो के बीच से एक अजीब लहर सी उठी जो सीधा उसके दिमाग़ तक पहुँची. रूपाली की दोनो टाँगें काँप गयी, घुटने कमज़ोर पड़ गये, मुँह से आह निकल पड़ी और वो वहीं लड़खडकर नीचे गिर सी पड़ी. टाँगो के बीच उसका हाथ अब बुरी तरह गीला हो चुका था.
इस पूरे काम में मुश्किल से 1 मिनट लगा थे पर इस 1 मिनट में रूपाली ये समझ चुकी थी के उसकी माँ क्यूँ उसके बाप से और कल्लो क्यूँ शंभू काका से अकेले में लिपट रहे थे.
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ख़ान हवेली के उस कमरे में खड़ा था जहाँ खून हुआ था, यानी के ठाकुर का कमरा. उसने घर के लोगों से उसको कमरे में कुच्छ देर अकेला छ्चोड़ देने के लिए कहा था इसलिए उस वक़्त उस कमरे में उसके सिवा और कोई नही था.
"आप कुच्छ लेंगें? चाइ या कुच्छ ठंडा?" पीछे से आवाज़ आई तो ख़ान ने पलटकर देखा.
कमरे के दरवाज़े पर एक लड़की खड़ी थी. ख़ान ने उसकी तरफ गौर से देखा. उमर कोई 20-21 साल, रंग हल्का सांवला, बड़ी बड़ी आँखे, लंबे बालों की बँधी हुई चोटी. देखने में ना तो वो सुंदर थी और ना ही बदसूरत. बस एक आम सी लड़की. उसने एक सलवार कमीज़ पहेन रखा था जो देखने से ही काफ़ी पुराना लग रहा था. उसने उमर और पहनावे को देखकर ख़ान ने अंदाज़ा लगा लिया के वो घर की नौकरानी की बेटी पायल है जो हवेली में ही रहकर काम करती है.
"तुम पायल हो?" उसने लड़की से पुछा
"जी हां" पायल ने कहा
"उस रात जै को तुमने ही देखा था ठाकुर के कमरे में?" ख़ान ने पुचछा
पायल के चेहरे पर एक पल के लए कई भाव आकर चले गये जिनको ख़ान समझ नही सका. पायल ने हाँ में सर हिलाया
"नही फिलहाल मुझे कुच्छ नही चाहिए" उसने कहा तो पायल ने हामी में सर हिलाया और वापिस जाने लगी.
"सुनो" ख़ान ने कहा तो वो रुक कर पलटी
"तुम्हे याद है के उस रात कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था या बंद था?" ख़ान ने पुछा तो पायल ने चौंक कर चेहरा उपर उठाया
"जी?" वो बोली
"अर्रे उस रात जब ठाकुर साहब का खून हुआ था, तब ये दरवाज़ा खुला था या बंद था?"
"जी पहले बंद था पर बाद में आधा खुला हुआ था" पायल सहम कर बोली.
ख़ान ने एक पल के लिए उससे और पुच्छना चाहा पर रुक गया. वो इस लड़की से बाद में आराम से बैठ कर बात करना चाहता था, इस तरह से नही क्यूंकी इसी लड़की ने ठाकुर साहब को आखरी बार ज़िंदा देखा था और इसने ही ठाकुर ही उन्हें सबसे पहले मुर्दा देखा था, जै के बाद.
"कितना खुला हुआ था?" उसने पुछा
"जी?" पायल ने फिर सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देखा
"अर्रे कितना खुला हुआ था दरवाज़ा? आधा, पूरा या थोड़ा सा?"
"जी तकरीबन आधा खुला हुआ था" पायल बोली
"जितना उस रात दरवाज़ा खुला था उतना ही खोल दो और जाओ" उसने पायल से कहा.
हवेली काफ़ी पुरानी बनी हुई थी पर दरवाज़े सब नये थे यानी के पुराने 2 किवाड़ वाले दरवाज़ो को हटाकर सिंगल पेन डोर थे जिनपर मॉडर्न लॉकिंग सिस्टम था. टाला लगाने की ज़रूरत नही थी. दरवाज़े में ही इनबिल्ट लॉक था .
पायल ने दरवाज़े को तकरीबन आधा खोल दिया और चली गयी.
ख़ान ने एक बार फिर कमरे में नज़र फिराई. कमरा वैसा ही था जैसा के एक अमीर ठाकुर का होना चाहिए था. एक बड़ा सा कमरा जिसके बीचे बीच एक बड़ा सा बिस्तर लगा हुआ था. कमरे में चारो तरफ महेंगे रेशमी पर्दे लगे हुए थे. बिस्तर इतना बड़ा था के उसपर 10 लोग आराम से सो सकते थे. एक तरफ एक सोफा सेट रखा हुआ था जिसके सामने एक छ्होटी सी टेबल थी. सामने दीवार पर एक बड़ा सा फ्लॅट स्क्रीन टीवी लगा हुआ था. पूरे कमरे में एक नीले रंग का मखमली कालीन बिच्छा हुआ था.
ख़ान उस जगह पर पहुँचा जहाँ उस रात ठाकुर की लाश पड़ी हुई थी. नीले रंग पर खून के धब्बे नज़र तो आ रहे थे पर लाल रंग दिखाई नही दे रहा था. उसने हवेली में हिदायत की थी के बिना पोलीस की पर्मिशन के कमरे में कुच्छ भी बदला ना जाए और ना ही कोई चीज़ हटाई जाए. इसी वजह से वो कालीन अब तक कमरे से हटाया नही गया था.
जिस जगह पर ठाकुर की लाश पड़ी थी वो कमरे के दरवाज़े के काफ़ी करीब थी. भूषण के दिए स्टेट्मेंट में ये कहा गया था के वो हवेली के दरवाज़े पर था और उसके पास ही सरिता देवी अपनी व्हील चेर पर बैठी थी. ख़ान ने जिस जगह पर लाश पड़ी थी वहाँ खड़े होकर कमरे के बाहर देखा. बिल्कुल सामने ड्रॉयिंग हॉल था और नज़र सीधी हवेली के गेट पर पड़ी. ड्रॉयिंग हॉल काफ़ी बड़ा था और ये काफ़ी मुश्किल था के गेट से ठाकुर के कमरे के अंदर कुच्छ नज़र आता पर अगर खून हुआ था और दरवाज़ा आधा खुला था, तो ये नामुमकिन भी नही था के हवेली के दरवाज़े पर खड़े शख़्श को कुच्छ दिखाई या सुनाई ना दे.
कमरे के एक कोने पर एक खिड़की थी जो हवेली के पिच्छले हिस्से की तरफ खुलती थी. रूपाली के दिए स्टेट्मेंट में ये लिखा गया था के वो उस रात कपड़े उतारने के लिए यहाँ आई थी और उसने ठाकुर को अपने कमरे में ज़िंदा देखा था. खिड़की उस वक़्त खुली हुई थी.
जो एक बात ख़ान के ज़हन में सबसे ज़्यादा खटक रही थी. पहली तो ये के उसको अच्छी तरह से याद था खून की रात जब वो इस कमरे में आया तो ये खिड़की अंदर से बंद थी जो उसकी इस थियरी को नाकाम करती थी के क़ातिल खून करके इस खिड़की से निकल गया.
"आर यू डन?" पीछे से आवाज़ आई तो ख़ान ने पलटकर देखा. दरवाज़े पर ठाकुर का बड़ा बेटा पुरुषोत्तम खड़ा था.
"यस आइ आम डन" ख़ान ने कहा
क्रमशः........................................
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