RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --10
गतान्क से आगे........................
"आइ नो" जै बोला "और शायद मैं ये बात करता भी नही पर एक दिन मैने चाचा जी को उनके वक़ील देवधर से बात करते सुना. मैं उनके कमरे के बाहर से गुज़र रहा था के अचानक उनकी आवाज़ मेरे कानो में पड़ी. वो अपनी विल की बात कर रहे थे जिसके अनुसार सारी प्रॉपर्टी उनको 3 बेटों और बेटी कामिनी में बराबर बाट दी जाती यानी के मेरे हिस्से में आता बाबाजी का घंटा जिसको मैं सारी उमर बैठके हिलाता रहता"
ख़ान हल्के से हसा.
". ये बात बर्दाश्त ना हुई" जै ने बात जारी रखी "मैं छोटा ज़रूर था पर इतनी समझ थी मुझ में. उसी दिन रात को डिन्नर के बाद मैने चाचा जी से प्रॉपर्टी में अपने हिस्से की बात की जिसको लेकर वो मुझपर बहुत चिल्लाए और अगले ही दिन मुझे हवेली से निकाल दिया गया."
"एक आखरी सवाल" ख़ान अपनी कॅप उठाते हुए बोला "जब तुम कमरे में दाखिल हुए या जब कमरे की तरफ जा रहे थे, तब किसी और को तुमने कमरे से निकलते देखा?
जै ने इनकार में सर हिलाया
"ठाकुर साहब के कमरे में एक खिड़की है जो हवेली के पिच्छले हिस्से की तरफ खुलती है. जब तुम कमरे में गये तो खिड़की बंद थी या खुली हुई? ख़ान ने खड़े होते हुए कहा
जै सोचने लगा और फिर गर्दन हिलाता हुआ बोला
"कह नही सकता. ध्यान ही नही दिया मैने. मेरे सामने चाचा जी पड़े थे और मेरा पूरा ध्यान उन्ही पर था"
करीब 15 मिनट बाद ख़ान पोलीस स्टेशन से निकला और अपनी जीप में बैठकर गाँव की तरफ चल पड़ा. उसका ये यकीन के जै ने खून नही किया और पक्का हो गया था और वो जानता था के अपनी तरफ से वो जै को बचाने की पूरी कोशिश करेगा क्यूंकी वो जानता था के जै के साथ ना-इंसाफी होगी अगर उसको सज़ा हुई तो. बहुत साल पहले खुद ख़ान के साथ ना-इंसाफी हुई थी जिसकी वजह से उसकी माँ की मौत हो गयी थी पर उसको किसी ने इंसाफ़ नही दिया था तबसे ही उसको हमदर्दी थी जै जैसे लोगों से जो बेकार ही सूली चढ़ा दिए जाते थे.
सबसे बड़ा सवाल अब भी ख़ान के सामने वैसा ही खड़ा था. अगर जै ने ठाकुर को नही मारा तो किसने मारा, और 10 मिनट के अंदर अंदर कैसे मारा?
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उस रात अपने माँ बाप के बेडरूम में सोने के बाद रूपाली के लिए जैसे सब कुच्छ बदल गया था. जो भी झिझक दिल में बची थी सब जाती रही. वो समझ गयी थी के यूँ आपस में लिपटा लिपटी करने में मज़ा आता है. वो अक्सर अब अपने आप से खेलने लगी थी.
अगले 2 हफ़्तो तक वो इंतेज़ार करती रही के फिर से शंभू और कल्लो का खेल देखे पर किस्मत ने साथ नही दिया. तबीयत खराब होने की वजह से उसके माँ बाप खुद तो मंदिर गये पर उसके भाई को साथ नही ले गये. वो घर पर ही होता और उसकी देख रेख करने के लिए एक नौकरानी और घर में रहती. रूपाली का दिल ऐसे टूटा जैसे किसी बच्चे का खिलोना छिन गया हो. वो कल्लो और शंभू का खेल देखने के लिए मरी जा रही थी, उन दोनो को फिर से नंगा देखने की उत्सुकता बढ़ रही थी.
ऐसे ही एक दिन शाम को रूपाली बैठी टीवी देख रही थी के हाथ में झाड़ू उठाए कल्लो कमरे में दाखिल हुई. रूपाली का पूरा ध्यान टीवी की तरफ था और कल्लो कमरे में झाड़ू लगा रही थी. झाड़ू लगाती लगती कल्लो उस सोफा के सामने आई जिस पर रूपाली बैठी हुई थी.
"पावं थोड़ा उपर करना बीबी" कल्लो ने कहा
रूपाली ने टीवी की तरफ देखते देखते ही अपने पावं उपेर करके सोफे पर रख लिए. कल्लो सोफा के नीच से झाड़ू लगाने के लिए अपने घुटनो पर बैठ गयी और झुक कर झाड़ू निकालने लगी. तभी रूपाली की नज़र एक पल के लिए उसपर पड़ी और वहीं थम कर रह गयी.
कल्लो ठीक उसके सामने घुटनो पर बैठी ज़मीन पर झुक कर सोफा के नीचे झाड़ू घुमा रही थी. उसने एक काले रंग का सलवार सूट पहेन रखा था जिसका गला काफ़ी बड़ा था. झुकी होने के वजह से गला खुल सा गया था और रूपाली की नज़र कमीज़ से होती हुई सीधी कल्लो के सीने पर पड़ी.
कल्लो ने सफेद रंग का ब्रा पहें रखा था. उस सफेद ब्रा में क़ैद उसकी काली रंग की चूचियाँ मुश्किल से ब्रा के अंदर समा पा रही थी. रूपाली पहले भी एक बार इन छातियों को देख चुकी थी पर ब्रा के अंदर नही. उसकी खुद की छ्होटी छ्होटी छातियो ब्रा के अंदर गायब हो जाती थी, बल्कि ब्रा हल्का ढीला ही रह जाता था पर कल्लो का ब्रा देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे फॅट जाएगा. ब्लॅक & वाइट का वो कॉंबिनेशन देख कर रूपाली की नज़र कुच्छ पल के लिए वहीं अटक गयी थी.
तभी उसको एहसास हुआ के कल्लो एक ही जगह पर रुकी हुई है और झाड़ू के लिए उसका हाथ अब हिल नही रहा था. रूपाली ने फ़ौरन नज़र उठाई और उसकी नज़र सीधी कल्लो की नज़र से टकराई. कल्लो सीधा रूपाली की तरफ देख रही थी पर वैसे ही आराम से झुकी हुई थी, जैसे खुद रूपाली को अपनी छातियों दिखा र्है हो. उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी.
अपनी चोरी पकड़े जाने पर रूपाली एकदम हड़बड़ा गयी. वो फ़ौरन उठ खड़ी हुई और टीवी ऐसे ही ऑन छ्चोड़ कर अपने कमरे की तरफ चल पड़ी. पीछे खड़ी कल्लो अब भी मुस्कुरा रही थी.
रूपाली कुच्छ देर तक यूँ ही अपने बिस्तर पर पड़ी रही. उसकी समझ नही आ रहा था के क्या करे.. डर लग रहा था के कल्लो ने अगर किसी को कुच्छ कह दिया तो? अगर कल्लो ने उसकी माँ से शिकायत कर दी के रूपाली क्या देख रही थी तो?
तभी दिल में ख्याल आया के अगर कल्लो ने कुच्छ कहा तो वो भी अपनी माँ को कह देगी के कल्लो और शंभू सनडे को उनके कमरे में ही क्या करते थे. इस ख्याल ने उसको थोड़ा हौसला दिया पर उसकी हिम्मत अब भी कल्लो से आँख मिलाने की नही हो रही थी.
उसने घड़ी पर नज़र डाली. शाम के 4 बज रहे थे. रूपाली का कुच्छ खाने का दिल हुआ और वो अपने कमरे से निकल कर किचन की तरफ बढ़ी.दिल ही दिल में वो ये दुआ कर रही थी के कल्लो से सामना ना हो और उसकी दुआ जैसे क़बूल हो गयी. उसको कल्लो घर में कहीं दिखाई नही दी. रूपाली किचन में पहुँची तो वहाँ उसको शंभू काका भी दिखाई नही दिए.
रूपाली को बहुत भूख लगी थी और अक्सर वो अपनी माँ से ही खाने को कुच्छ माँगा करती थी पर इस वक़्त उसके माँ बाप घर पर नही थे. उसके पास सिवाय शंभू काका से कुच्छ बनाने को कहने के अलावा कोई चारा नही था.
"शायद स्टोर से कुच्छ लाने को गये हों" सोचकर रूपाली स्टोर रूम की तरफ बढ़ी.
स्टोर रूम घर के पिछे बना हुआ था. रूपाली के पिता भी एक ठाकुर थे और अपने खेत थे. अक्सर उन खेतों से आया गेहूँ और चावल घर के पिछे बने हुए एक स्टोर रूम में रखा होता था. घर की आधी से ज़्यादा ज़रूरत की चीज़ें उसी स्टोर रूम में होती थी इसलिए शंभू के पास हमेशा उसकी चाबी होती थी.
धीरे कदमो से चलती रूपाली स्टोर के पास आई. दरवाज़े पर ताला नही था पर दरवाज़ा बंद था. रूपाली जैसे ही दरवाज़े के नज़दीक आई उसको एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई पड़ी.
आवाज़ कल्लो की थी.
रूपाली आवाज़ सुनते ही पहचान गयी के ऐसी आवाज़ कल्लो के मुँह से कब निकलती है. घर से कल्लो और शंभू काका दोनो ही गायब थे. उसको एक पल में समझ आ गया के वो दोनो अंदर स्टोर में था और क्या कर रहे थे.
रूपाली के दिल की धड़कन बढ़ चली. एक पल को तो उसको ख्याल आया के वापिस चली जाए पर अगले ही पल उसने अपना इरादा बदल दिया. वो तो खुद कब्से ये नज़ारा देखने के लिए सनडे का इंतेज़ार कर रही ही. उसने अपना मंन अंदर देखने का बना लिया और उस वक़्त ये काम ज़्यादा मुश्किल भी साबित नही हुआ.
स्टोर का दरवाज़ा लकड़ी का था और बहुत पुराना था. वो दरवाज़ा नीचे के हिस्से से हल्का सा टूटा हुआ था जिसकी वजह से ज़मीन और दरवाज़े के बीच हल्की सी जगह होती थी जहाँ से अंदर देखा जा सकता था. रूपाली फ़ौरन ज़मीन पर लेट सी गयी और कमरे के अंदर झाँका.
स्टोर के अंदर आते चावल की बोरियाँ हमेशा भरी रहती थी जिसकी वजह से कमरे के अंदर जगह नही होती थी. थोड़ी सी जगह बस दरवाज़े के पास ही होती थी ताकि अंदर जाने वाला दरवाज़ा खोलकर अंदर खड़ा हो सके और बोरियाँ बाहर निकाली जा सकें. इसी वजह से जैसे ही रूपाली ने अंदर नज़र डाली, उसको शंभू और कल्लो बिल्कुल दरवाज़े के पास ही नज़र आए. मुश्किल से 4 फुट का फासला था. इस तरफ रूपाली ज़मीन पर लेटी हुई देख रही थी, बीच में दरवाज़े और दरवाज़े के बिल्कुल पास ही दूसरी तरफ कल्लो और शंभू.
पहली नज़र पड़ते ही एक पल के लिए रूपाली को समझ नही आ सका के वो क्या देख रही थी. दरार छ्होटी सी ही थी इसलिए ज़्यादा नज़र आ रहा था और जो नज़र आ रहा था वो इंसानी शरीर ही थी पर कौन सा हिस्सा ये रूपाली को समझ नही आया. उसने गौर से देखा और समझने की कोशिश की. वो हिस्सा जो भी था वो हिल रहा था और थोड़ी देर गौर से देखने के बाद रूपाली समझ गयी के वो क्या था.
कमरे के दूसरी तरफ कल्लो नीचे ज़मीन पर लेटी हुई. उसका सर दूसरी तरफ और पावं दरवाज़े की तरफ थे और खुले हुए थे. उसने सलवार उतार रखी थी इसलिए रूपाली की नज़र सीधी उसकी टाँगो के बीच पड़ रही थी. कल्लो की दोनो टांगे उपेर हवा में उठी हुई थी और उसकी टाँगो को पकड़े हुए बीच में बैठे थे शंभू काका.
काका का चेहरा दरवाज़े की दूसरी तरफ यानी कल्लो की तरफ था और उनकी पीठ दरवाज़े की ओर. रूपाली को पिछे से उनकी पीठ और उनकी गांद दिखाई दे रही थी. वो अपने पंजो पर उकड़ू बैठे हुए और आगे पिछे हो रहे थे. उनके दोनो तरफ कल्लो की टांगे उपेर उठी हुई थी जिनको उन्होने अपने हाथ से पकड़ रखा था और आगे पिछे हिल रहे थे.
"हाए मेरी माँ" कल्लो की आवाज़ आई "ज़ोर से धक्का लगाओ"
ये बात सुनकर काका ज़ोर ज़ोर से अपनी कमर हिलाने लगे और तब रूपाली का ध्यान उनकी गांद के नीचे लटक रहे उनको आंडो की तरफ गया. वो जानती थी के ये क्या हैं पर इतने बड़े होते हैं वो ये पहली बार देख रही थी. आंडो से ही लगा काका की लड़कों वाली चीज़ थी जो कल्लो की ......
रूपाली की आँखें हैरत से खुल गयी.
वो कल्लो की लड़कियों वाली चीज़ के अंदर घुसी हुई और अंदर बाहर हो रही थी.
रूपाली का दिल धक से रह गया. तो लड़के ये यहाँ भी डालते हैं. उसको वो रात याद आई जब उसने अपने माँ बाप को देखा था. वो जानती थी के पापा ने मम्मी के पिछे से घुसा रखा था और अब काका ने कल्लो के आगे से. मतलब आगे पिछे दोनो तरफ घुसा सकते हैं?
रूपाली चुप चाप लेटी देखती रही. काका हिल रहे थे और वो लंबी सी चीज़ कल्लो के अंदर बाहर हो रही थी.
"और तेज़ ... ज़ोर से .... ज़ोर से ...." कल्लो की आवाज़ आ रही थी.
"तो इसको गांद मारना कहते हैं" रूपाली ने उस दिन अपनी माँ के मुँह से निकले शब्दों के बारे में सोचा.
क्रमशः........................................
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