Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:07 PM,
#12
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --12

गतान्क से आगे........................

1. सरिता देवी - पूरी शाम अपने कमरे में थी. बीमारी की वजह से अपने पति से अलग सोती थी. रात का खाना कमरे में ही खाया. हर रात सोने से पहले वो अपने पति के कमरे में जाती थी और थोड़ी देर बात करके वापिस अपने कमरे में ही आकर सो जाती थी. उस रात भी 9.40 के करीब वो ठाकुर साहब के कमरे में पहुँची और तकरीबन 10 बजे तक रही. इस बात की गवाही घर के 2 नौकर दे सकते हैं. पहले बिंदिया जो ठकुराइन की व्हील चेर को धकेल कर यहाँ से वहाँ ले जाती है. वो ही ठकुराइन को व्हील चेर पर बैठाती और उतारती है. उसने उस रात ठकुराइन को कमरे से ठाकुर के कमरे तक छ्चोड़ा और करीब 15-20 मिनट बाद कमरे से बाहर लाकर कॉरिडर में छ्चोड़ा. दूसरी गवाही भूषण दे सकता है जिसने ठकुराइन को पहले ठाकुर के कमरे में बात करते देखा और फिर बाद में कॉरिडर में बैठी देखा. इस पूरे वक़्त के दौरान ठाकुर साहब ज़िंदा थे याकि की क़ातिल अब तक सिर्फ़ मौके की तलाश में था. सरिता देवी के कमरे से बाहर आते ही उसको मौका मिला और ठाकुर का काम ख़तम.

2. पुरुषोत्तम सिंग - शाम को तकरीबन 6 बजे घर वापिस आया था. अपने कमरे में गया और रात 8 बजे तक वहीं रहा. उसके बाद वो ऐसे ही थोड़ा घूमने के लिए बाहर निकला, शराब की दुकान से शराब खरीदी, नहर के किनारे बैठकर पी और 9 बजे के करीब घर वापिस आया और उसके बाद अपने कमरे में ही चला गया. इन साहब की गवाही इनकी बीवी दे सकती हैं जो 8 से पहले और 9 के बाद इनके साथ कमरे में थी.

3. तेजविंदर सिंग - इन साहब की कहानी की गवाह इनकी माँ हैं. कहते हैं कि पहले कहीं दोस्तों के साथ शराब पी रहे थे, तकरीबन 9.30 बजे वापिस आए. पिता के कमरे में गये. 10 मिनट वहाँ रुके और ठकुराइन के आने के बाद अपने कमरे में चले गये.

4. कुलदीप सिंग - ख़ास कुच्छ नही. बीमार थे इसलिए सारा दिन पड़े सोते रहे. क़त्ल की शाम और क़त्ल के वक़्त भी अपने कमरे में ही दवाई खाकर सो रहे थे. इनकी गवाह इनकी बेहन है जिसका कमरा इनके कमरे के साथ ही है. इनके हिसाब से कुलदीप पूरी शाम और रात सोता रहा. उसको तो क़त्ल का पता भी खून होने के 2 घंटे बाद चला.

5. कामिनी - इनकी कहानी का कोई गवाह नही. कहती हैं के पूरी शाम अपने कमरे में ही थी और चीख की आवाज़ सुनकर ही कमरे से निकली थी. ना किसी ने इनको देखा और ना कोई गवाही दे सकता है. इनकी बीच बीच की गवाही रूपाली का भाई ईन्देर दे सकता है जिसके मुताबिक वो 2-3 बार थोड़ी थोड़ी देर के लिए कुच्छ किताबें लेने कामिनी के कमरे में गया था

6. भूषण - घर के छ्होटे मोटे काम करता रहा. रात 9 बजे वापिस अपने कमरे में पहुँचा. ठाकुर के बुलाने पर उनके कमरे में गया और फिर गाड़ी निकाली. इसकी गवाही ठकुराइन और खुद जै दे सकता है जिन्होने इसको खून के टाइम हवेली के बाहर खड़ा देखा.

7. बिंदिया - पूरा दिन ठकुराइन के साथ थी. बस क़त्ल के वक़्त अपने बेटी के साथ थी. इसकी गवाही इसकी बेटी दे सकती है.

8. पायल - घर के काम करती रही सारा दिन. 8.15 ठाकुर को खाना देके आई, फिर 10 बजे दोबारा ठाकुर से कुच्छ ज़रूरत को पुच्छने गयी और उसके बाद 10.15 पर खून होता देखकर चिल्लाई. क़त्ल के वक़्त की इसकी गवाही इसकी माँ दे सकती है.

9. रूपाली - इनकी सारे वक़्त की गवाही है. घर के नौकर या इनके पाती, किसी ना किसी के ये साथ थी. खून होने के टाइम तक. सिर्फ़ एक टाइम पर ये अकेली थी और वो जब ये हवेली के पिछे से कुच्छ कपड़े लेने के लिए गयी.

10. इंद्रासेन राणा - अपने कमरे में बैठे हॅरी पॉटर सीरीस देख रहे थे. इन साहब की बस थोड़े से टाइम की गवाही है. एक तो तब जब पायल इनके कमरे में इनको चाइ देने गयी और दूसरा जब ये कामिनी के कमरे में बुक्स लेने गये.

11. चंदर - शाम से ही गेट पर बैठा हुआ पहरा दे रहा था. इसकी गवाही तो तेज ही दे सकता है जिसने इसको हवेली के अंदर दाखिल होते हुए इसको गाते के पास बैठे देखा था. "

"यहाँ तो हर किसी का गवाही कोई ना कोई दे रहा है सर" शर्मा बोला

"पर कोई ना कोई तो यहाँ झूठ बोल रहा है" ख़ान ने कहा "सवाल ये है के कौन"

जहाँ रूपाली एक और जवानी के खेल अभी खेलना सीख ही रही थी वहीं दूसरी और बिंदिया जवानी के एक ऐसे मोड़ पर खड़ी हुई थी जहाँ उसको समझ नही आ रहा था के क्या करे. समाज के क़ानून, भगवान का डर, धरम की बंदिश, एक औरत की मर्यादा, और कई साल से जिस्म की ना मिटी भूख उसके दिल और दिमाग़ को जैसे पागल कर रहे थे.

दिन के कोई 12 बज रहे थे. उसकी 12 साल की बेटी पायल अपनी सहेलियों के साथ खेलने बाहर गयी थी और घर पर सिर्फ़ बिंदिया और उसका बेटा चंदर थे. ठाकुर साहब के खेतों के बीच बनी अपनी छ्होटी से झोपड़ी में जो की बिंदिया का घर थी उस वक़्त वो दोनो अकेले ही थे.

झोपड़ी के बीच बिंदिया खामोशी से खड़ी थी. वो जानती थी के चंदर भी झोपड़ी के अंदर ही है.

बिंदिया ने अपनी आँखें खोली और चंदर की तरफ देखा.. चंदर की आँखें वासना से भरी हुई थी और अपनी माँ के शरीर को उपेर से नीचे तक देख रही थी. कभी वो उस पुराने से ब्लाउस में उपेर नीचे होती बिंदिया की छातियों देखता तो कभी नज़र नीचे करके बिंदिया की कमर और उठी हुई गांद देखने लगता. बिंदिया ये जानती थी के कुच्छ होने वाला है और उसकी साँस उखाड़ने लगी थी. वो जानती थी के अब जो भी होगा वो चंदर और खुद उसकी मर्ज़ी दोनो से होगा क्यूंकी वो दोनो ही ऐसा चाहते थे पर फिर भी हासिल करने से डरते थे.

चंदर ने आगे बढ़कर बिंदिया का हाथ पकड़ा. बिंदिया ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली. कुच्छ देर तक वो बिंदिया का हाथ ऐसे ही पकड़े खड़ा रहा और जाने क्या करता रहा. आँखें बंद किए खड़ी बिंदिया कपड़ो की आवाज़ सुनकर सिर्फ़ इतना अंदाज़ा लगा पाई के शायद चंदर दूसरे हाथ से अपने कपड़े उतार रहा है. फिर भी जाने क्यूँ ना तो वो कुच्छ कर पाई और ना ही कह पाई. ना तो उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की और ना ही चंदर को रोकने की.

कुच्छ देर बाद चंदर के हाथ ने हरकत की और बिंदिया के हाथ को पकड़कर आगे की ओर करने लगा. एक मदहोशी के से आलम में बिंदिया ने उसको जो चाहा करने दिया. उसने अपना हाथ वापिस लेने या रोकने की कोई कोशिशी नही की. अगले ही पल उसके हाथ में एक मोटी सी डंडे जैसी चीज़ आ गयी. फरक सिर्फ़ ये था के ये चीज़ किसी डंडे की तरफ सख़्त तो थी पर डंडे के जैसे ठंडी नही थी. ये चीज़ बहुत गरम थी, जैसे कोई लोहे की सलाख जो अभी अभी आग से निकली गयी हो.

बिंदिया की साँस फिर उखाड़ने लगी और दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. वो जानती थी के ये गरम डंडा कुच्छ और नही बल्कि चंदर का लंड था.

उसको अपनी उंगलियाँ चंदर के लंड पर महसूस हुई और अगले ही पल चंदर ने अपने हाथ से बिंदिया की उंगलियों को बंद करते हुए एक मुट्ठी बना दिया.

मुट्ठी में चंदर का लंड था.

बिंदिया की मुट्ठी में चंदर का लंड फूल रहा था जैसे वो भी अलग से साँस ले रहा हो और बिंदिया को उसकी लंबाई और मोटाई का सॉफ अंदाज़ा हो रहा था. ना चाहते हुए भी उसकी मुट्ठी लंड के गिर्द और कसति चली गयी और अगले ही पल उसके कानो में चंदर की आह की आवाज़ सुनाई दी. वो जानती थी के ये आह दर्द नही बल्कि मज़े की वजह से निकली है. वो मज़ा जो एक जवान औरत के लंड पकड़ने पर हर मर्द को आता है.

बिंदिया ने अपनी आँखें खोली और चंदर की तरफ देखा और फिर बड़ी ही बेशर्मी से उसकी आँखें उसके चेहरे से सीधा लंड पर गयी.

बिंदिया इस लंड को पहले भी देख चुकी थी और अपने शरीर पर महसूस भी कर चुकी थी पर आज पहली बार इतने करीब से देख रही थी. ना चाहते हुए भी उसके वासना की आग जैसे अचानक से दुगुनी हो गयी. उसने अपने जीवन में ये दूसरा लंड देखा था. पहला अपने पति का और दूसरा चंदर का.

और उसके पति का लंड उसके हाथ में पकड़े लंड का आधा भी नही था.

बिंदिया के दिमाग़ ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. बिना कुच्छ और सोचे उसका हाथ चंदर के लंड पर कसता चला गया और उपेर नीचे होने लगा. चंदर उसके बिल्कुल ठीक सामने खड़ा था. कद काठी में वो बिंदिया के बराबर ही था इसलिए सीधा बिंदिया से नज़र मिलाए उसकी आँखों में देख रहा था. खुद वो भी बड़ी बेशर्मी सी उससे नज़र मिलाए उसका लंड हिलाने लगी.

पहले उसका हाथ धीरे धीरे उपेर नीचे हो रहा था पर फिर बहुत तेज़ी से चंदर का लंड हिलाने लगी. अब आँखें बंद करने की बारी चंदर की थी. जहाँ उसके मुँह से हल्की हल्की आह आह की आवाज़ निकल रही थी वहीं खुद बिंदिया भी अपनी आवाज़ को दबा नही पाई. उसके साँस भारी थी और वो भी धीरे धीरे मज़े में कराह रही थी.

बिंदिया ने लंड हिलाना जारी रखा और तभी चंदर ने अपना एक हाथ उतारा बिंदिया की छाती पर रख दिया. उसका हाथ गीला था और गीलापन बिंदिया को अपने ब्लाउस के उपेर से भी सॉफ महसूस हुआ. हाथ की ठंडक ने इस बार उसके मुँह से निकलती धीमी आवाज़ो को और तेज़ कर दिया.

बिंदिया मज़े में कराहती रही, लंड हिलाती रही और चंदर बे अपना दूसरा हाथ भी उठाकर उसकी दोनो चूचियों को रगड़ना शुरू कर दिया.

"नही," अचानक बिंदिया ने कहा. "ओह्ह्ह, नही, रुक जा. ये ग़लत है ... ओह, चंदू!"

जवाब में चंदर के गले से सिर्फ़ एक आवाज़ निकली, जैसे कोई कुत्ता गुर्रा रहा हो और उसका एक हाथ बिंदिया की छाती से होता हुआ उसकी गांद पर आ गया.

उसका हाथ बिंदिया की गांद में घाघरे के उपेर से धस्ता चला गया. और यहाँ पर आकर बिंदिया का बचा हुआ सब्र भी जवाब दे गया.

उसने फ़ौरन आगे बढ़कर अपने होंठ चंदर के होंठों पर टीका दिए.

बिंदिया की जीभ उसके मुँह से निकलकर सीधा चंदर के मुँह में जा घुसी जिससे एक पल के लिए चंदर भी चौक गया और लड़खड़ा गया. उसकी माँ की जीभ उसके मुँह के अंदर घूम रही थी, वो अजीब भूखे अंदाज़ में उसके होंठों को कभी चाट रही थी तो कभी काट रही थी. बिंदिया आगे बढ़कर चंदर से चिपक गयी थी जिसके वजह से खड़ा हुआ लंड घाघरे के उपेर से सीधा चूत से टकरा रहा था.

बिंदिया ने अपनी टाँगें थोड़ा खोली और लंड को सीधा कपड़े के उपेर से ही अपनी जाँघो के बीच फसा लिया. लंड बीच में आते ही उसने अपनी टांगे दोबारा बंद की और अपनी गांद आगे पिछे हिलाने लगी. कपड़े के उपेर से ही उसकी चूत लंड पर घिसने लगी और वासना से बिंदिया का सर चकरा गया.

उसके घुटने कमज़ोर पड़ गये और वो वहीं नीचे ज़मीन पर गिरती चली गयी. पहले वो बैठी और अगले ही पल पीठ के बल नीचे लेटकर अपनी टांगे फेला दी. चंदर का लंड अब भी उसके हाथ में था जिसकी वजह से चंदर भी उसके उपेर गिरता चला गया.बिंदिया ने एक पागलपन के अंदाज़ में अपने घाघरे का नाडा खोला और बाकी काम चंदर ने कर दिया. एक पल घाघरा उसके जिस्म पर था और अगले पल नाडा खुलते ही नीचे को खींचा और हवा में उड़ता हुआ कमरे के एक कोने में जा गिरा.

बिंदिया ने फ़ौरन हाथ आगे बढ़ा कर चंदर का लंड पकड़ लिया.

"जल्दी कर!" उसने एक प्यासी शेरनी के से अंदाज़ में कहा. "हे भगवान ... जल्दी कर ना, चंदू!"

क्रमशः........................................
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