RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --14
गतान्क से आगे........................
एक हाथ से उसने लंड पकड़ा और धीरे से हिलाया. वो जानती थी के उसके पति को उसका लंड हिलाना बहुत पसंद है और ये नज़र भी आ गया. लंड पकड़ते ही पातिदेव की आँखें बंद हो गयी और वो पेड़ के सहर कमर टीका कर खड़ा हो गया.
"ओह रांड़ साली ....." आवाज़ आई "हर जगह चुदने को तैय्यार रहती है. पर नीचे बैठी क्या कर रही है चल घाघरा उठा, जल्दी से चोद देता हूँ तुझे. फिर मुझे काम है बहुत"
"स्शह," बिंदिया ने फिर इशारा किया. "खड़े रहो और चुप चाप मज़े लो."
वो उसका लंड हिलाती रही और अपनी होंठों से उसकी जाँघो को चूमती रही. खुद नीचे उसकी अपनी चूत भी गीली हो चुकी थी और लंड के लिए तैय्यार थी पर इस वक़्त बिंदिया के दिमाग़ में कुच्छ और था. वो एक ऐसा काम करने जा रही थी जो उसने अपनी शादी शुदा ज़िंदगी में कभी नही किया था.
लंड अब अकड़ना शुरू हो गया था. बिंदिया का हाथ तेज़ी से उपेर नीचे हो रहा था.
"हिलाके ही निकाल देगी क्या?" उसके पति की आवाज़ आई पर बिंदिया अपने काम में मगन थी.
धीरे धीरे बिंदिया ने अपना मुँह आगे करना शुरू किया. लंड उसके चेहरे से बस कुच्छ ही दूर था. हाथ अब भी लंड पर उपेर नीचे हो रहा था और लंड के साथ साथ नीचे लटके टटटे भी झूल रहे थे. बिंदिया के हलक से आह की आवाज़ निकली और उसने लंड को और तेज़ी से हिलाया ताकि वो अच्छी तरह से खड़ा हो सके. उसके पति के मुँह से आती आवाज़ों से वो अच्छी तरह जानती थी के उसको बहुत मज़ा आ रहा है.
कैसी शुरू करूँ सोचते हुए बिंदिया ने अपनी जीभ एक बार अपने होंठों पर घुमाई और नीचे हिलते टट्टो पर धीरे से फिराई. जीभ पर अजीब सा नमकीन टेस्ट आ गया. उसके एक बार फिर अपनी जीभ बाहर निकाली और फिर वही काम किया.
हाथ अब भी तेज़ी से लंड हिला रहा था.
उसने अब लगातार टट्टो पर जीभ घुमानी शुरू कर दी. सामने खड़े उसके पति ने अपनी आँखें खोलकर देखा और चौंक पड़ा.
"क्या कर रही हो?" वो हिलने लगा पर एक हाथ से बिंदिया ने फिर उसको पेड़ के सहारे धकेल दिया.
जब वो फिर चुप चाप खड़ा होकर बिंदिया को हैरत से देखने लगा तो बिंदिया ने अपना एक हाथ उसकी टाँगो के बीच से पिछे घुमाया और उसकी गांद को पकड़ लिया. टट्टो को वो अब भी चाट रही थी और जिस तरह से लंड उसके हाथ में अकड़ रहा था वो जानती थी के बहुत जल्द खेल ख़तम हो जाएगा और उसका हाथ वीर्य से भर जाएगा.
अब भी उसको समझ नही आ रहा था के आगे क्या करे. करे या ना करे?
पर अब तक खुद उसके दिल में भी ये भावना जाग चुकी थी के लंड को एक बार मुँह में लेके देखे. देखे के कैसा लगता है लंड चूसना. बिस्तर पर हमेशा
वो कुच्छ नया करने को तैय्यार रहती थी और ये तो पूरी तरह नया था.
अगर कार में वो औरत जै का चूस सकती है तो मैं भी अपनी पति का चूस ही सकती हूँ, उसने सोचा. उसका लंड, छ्होटा सा ज़रूर था पर कितना अकड़ गया था.
एक आह की आवाज़ के साथ बिंदिया ने अपनी जीभ टट्टो पर पूरी तरह से घुमाई, उन्हें अच्छे से चॅटा और दोनो बॉल्स को अपने मुँह में भर लिया.
"आआहह" उसके पति की आवाज़ आई पर उसने बिंदिया को रोकने की कोई कोशिश नही की.
मुँह में दोनो बॉल्स को लेटे ही बिंदिया के शरीर में एक अजीब सा करेंट दौड़ गया जो उसके सर से होता हुआ सीधा उसकी टाँगो के बीच जाकर रुका. अगले ही पल उसकी
चूत से भी पानी बह चला. उसके मुँह से अजीब सी आवाज़ निकल पड़ी जो मुँह में भरे हुए टट्टो की वजह से पूरी तरह बाहर ना आई. हाथ अब भी तेज़ी के साथ लंड हिला रहा था.
अब उसके हाथ के साथ साथ उसके पति ने भी अपनी गांद हिलानी शुरू कर दी थी जैसे बिंदिया के हाथ को ही चोद रहा था. बिंदिया ने अपना मन पक्का किया और उसके टट्टो को मुँह से निकाला.
वो लंड मुँह में लेने की सोच ही रही थी के एक वीर्य की तेज़ धार सीधी उसके मुँह पर आकर गिरी.
दूसरी उसके सर पर.
तीसरी सीधी उसके होंठो पर.
वो थोड़ी पिछे को हुई और उसके बाद उसके पति का वीर्य लंड से निकलता हुआ सीधा उसके ब्लाउस पर गिरने लगा. कुच्छ ब्लाउस के उपेर गले के पास गिरा और बहता हुआ नीचे उसकी छातियो के बीच चला गया.
बिंदिया मन मसोस कर रह गयी. जो काम वो करना चाह रही थी वो पूरा कर नही पाई.
उस दिन के बाद बिंदिया की दोनो ख्वाहिश सिर्फ़ ख्वाहिश ही रह गयी.
उस दिन के बाद उसके पति ने कभी उसको अपना मुँह में नही लेने दिया. जब भी
बिंदया ऐसी कोशिश करती , वो उसको ये कहके रोक देता के ऐसा करना ग़लत है. बिंदिया मन मारकर रह जाती.
दूसरा जब भी वो अपने पति से ये बात करती के उस दिन कार में जै के साथ कौन औरत हो सकती थी, वो हर बार ये कहकर बात टाल जाता ले उन्होने ठाकुर खानदान का नमक खाया है और उनके खिलाफ बोलना ठीक नही है.
और कुच्छ दिन बाद ही उसका पति साँप के काट लेने से इस दुनिय से चलता हुआ.
कुच्छ दिन तक बिंदिया अपने उस झोपड़ी में अपनी बेटी के साथ रही और फिर चंदर को गोद ले आई. चंदर को वो प्यार से चंदू कहकर बुलाती थी. वो बचपन से ही गूंगा था. कुच्छ बोल नही सकता था पर दिमाग़ का बहुत तेज़ था. हर काम बड़ी तेज़ी से सीखता और बहुत मेहनत से करता. बिंदिया के साथ साथ वो भी ठाकुर के खेतों में काम करने लगा.
एक दिन बिंदिया को खबर मिली के ठकुराइन को सीढ़ियों से गिरने की वजह से बहुत चोट आई है और वो बिस्तर पर हैं. ठाकुर साहब का बड़ा बेटा पुरषोत्तम उन दिनो विदेश में था. इलाज करने के लिए ठकुराइन को भी अपने बेटे के पास विदेश भेज दिया गया. ठाकुर साहब की तरफ से बिंदिया को फरमान मिल चुका था के जैसे ही ठकुराइन वापिस आए, वो उनकी देखभाल के लिए हवेली में ही आकर रहना शुरू कर दे.
इन दिनो के आस पास ही ऐसा कुच्छ हुआ के बिंदिया का अपने मुँह बोले बेटे चंदू के साथ रिश्ता बदल गया.
चंदर तब करीब 17 साल का था. बिंदिया दोपहर के करीब खाना लेकर खेत के उस तरफ चली जहाँ चंदर काम कर रहा था. ये उसकी बहुत पुरानी आदत आज भी वैसे ही थी. कई साल पहले वो अपनी पति के लिए खाना लेकर जाती थी और अब अपने बेटे के लिए.
वो खेत में पहुँची तो चंदर कहीं दिखाई नही दिया. उसको ढूँढती बिंदिया ट्यूब वेल की तरफ गयी तो चंदर मिल गया पर वो अकेला नही था.
उसके साथ सुनीता थी.
सुनीता गाओं की ही एक लड़की थी और चंदर से करीब 3 साल बड़ी थी. वो उस वक़्त ट्यूब वेल के नीचे बैठी नहा रही थी. चंदर किनारे पर बैठा उसको देख रहा था.
"चंदू चल खाना खा ले बेटा" कहती हुई बिंदिया नज़दीक आई. चंदू ने उसकी आवाज़ सुनी तो फ़ौरन पलटकर उसको देखा. वो एक पल के लिए खड़ा होने लगा पर फिर अपनी जगह पर बैठ गया.
सुनीता भी ट्यूब वेल के नीचे से निकल कर बाहर आ गयी. उसने उस वक़्त एक हल्के गुलाबी रंग की सलवार कमीज़ पहेन रखी थी और पूरी तरह भीगी हुई थी.
"आजा तू भी खा ले" बिंदिया ने सुनीता से कहा. सुनीता ने फ़ौरन हां में सर हिला दिया.
"आप चलो, मैं हाथ मुँह धोके आता हूँ" चंदू ने इशारे से बिंदिया को कहा.
"जल्दी आना" बिंदिया ने उसको जवाब दिया और सुनीता को साथ लेकर उस तरफ चल पड़ी जहाँ वो खाना छ्चोड़ कर आई थी.
उनके पिछे पिछे ही चंदू भी आ गया और उसके आते ही बिंदिया समझ गयी के वो उनके साथ क्यूँ नही आया था. उसका पाजामा सामने की तरफ से अजीब तरह उठा हुआ था.
बिंदिया समझ गयी के ऐसा क्यूँ है और क्यूँ चंदू सुनीता के पास बैठा हुआ था. सुनीता शरीर से पूरी तरह औरत थी और चंदू उसके भीगे हुए शरीर को निहार रहा था.
बिंदिया को शरम भी आई और हैरत भी हुई. जिस चंदू को वो बच्चा समझती थी वो कब इतना जवान हो गया था उसको खबर ही ना हुई थी..
वो तीनो ही खाना खाने के लिए बैठ गये. बिंदिया ने महसूस किया के खाने खाते हुए भी चंदू नज़र बचा कर बार बार सुनीता की तरफ देख रहा था जो अभी भी भीगी हुई थी. गुलाबी रंग के उसके सूट में से उसके शरीर का हर अंग सॉफ सॉफ नज़र आ रहा था.
बिंदिया ने दिल ही दिल में चंदू को दोष नही दिया. सुनीता शकल से खूबसूरत थी और शरीर पूरी तरह भरा हुआ था. पर चंदू अभी काफ़ी छ्होटा था, कम से कम बिंदिया को तो ऐसा ही लगता था.
कुच्छ देर बाद खाना खाकर चंदू उठ गया और सुनीता भी चली गयी. बिंदिया बर्तन समेट कर वापिस घर आने लगी तो चंदू ने इशारे से कहा के वो भी घर जाकर थोड़ी देर सोना चाहता है. वो दोनो साथ साथ वापिस झोपड़ी में पहुँचे.
चंदू झोपड़ी में पड़ी चारपाई पर आँखें मूंद कर लेट गया. दोपहर का वक़्त था. थोड़ी देर बाद बिंदिया भी आराम करने के इरादे से ज़मीन पर चादर बिच्छा कर लेट गयी और उसकी आँख लग गयी.
थोड़ी देर बाद उसकी आँख खुली तो चंदू चारपाई पर नही था. शायद खेत पर चला गया हो, बिंदिया ने सोचा. वो उठी और उसको ढूँढती झोपड़ी के पिछे आई तो हैरत से उसकी आँखें खुली रह गयी.
झोपड़ी के पिछे बैठा चंदू अपना लंड हिला रहा था.
बिंदिया के आने की आवाज़ सुनकर वो उठा और खड़ा हो गया पर अपना लंड च्छुपाने की कोई कोशिश नही की. बिंदिया को भी जाने क्या सूझा पर वो भी वहीं खड़ी एकटूक चंदर की तरफ देखती रही. उसका लंड अब भी उसके हाथ में था जिसको वो बेशर्मी से बिंदिया के सामने ही हिला रहा था.
बिंदिया को अपनी और चंदू की हालत का अंदाज़ा तब हुआ जब उसकी खुद की टाँगो के बीच उसे गीला पन महसूस हुआ. उस गीलेपन ने बिंदिया को एहसास दिलाया के वो अपने मुँह बोले बेटे को देखकर ही गरम हो रही थी.
वो फ़ौरन ही पलटी और झोपड़ी के अंदर आ गयी.
पीछे पीछे ही चंदू भी अंदर आ गया और उस दिन मुँह बोली माँ और मुँह बोले बेटे का रिश्ता ख़तम होकर दोनो के बीच एक आदमी और औरत का रिश्ता बन गया.
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ख़ान जानता था के उसके पास टाइम बहुत कम था. जै की पोलीस रेमांड ख़तम होने वाली थी मतलब उसपर मुक़दमा
शुरू होने के दिन काफ़ी नज़दीक आ गये.
और ख़ान ये भी जानता था के ये मुक़दमा ज़्यादा दिन नही चलने वाला. जल्द से जल्द केस को निपटाया जाएगा और जै को फाँसी पर टंगा दिया जाएगा.
"मुझे समझ नही आ रहा के कहाँ से शुरू करूँ यार" वो जै से मिलने जैल आया हुआ था "जिधर से भी घूमके देखूं, हर किसी का कोई ना कोई अलीबी है. हर कोई क़त्ल के वक़्त या तो किसी और के साथ था या उसको कहीं और किसी
ना किसी ने देखा था. क़त्ल के वक़्त ठाकुर साहब के वक़्त तुम्हारे सिवा कोई भ उनके आस पास नही था"
"बाकी लोगों से बात की आपने?" जै ने पुछा
"कहाँ यार" ख़ान ने साँस छ्चोड़ते हुए कहा "साला पोलीस इन्वेस्टिगेशन के लिए भी ऐसे बुलाना पड़ता है जैसे कहीं शादी में बुला रहे हों और फिर साले आते भी नही. ठाकुर ना हुए राजा हो गये यहाँ के"
"उनका रुतबा इस इलाक़े में राजा से कम नही है ख़ान साहब" जै ने कहा "मेरी मानिए तो पुच्छने का काम नौकरों से
शुरू कीजिए"
उसी दिन शाम को ख़ान अपने घर में बैठा फिर से पहेली सुलझाने की कोशिश कर रहा था. सामने डाइयरी थी और हाथ में पेन.
वो बड़ी खुशी खुशी ये थेओरी अपना लेता के ठाकुर को बाहर के किसी आदमी ने मारा है. ऐसा हो सकता था. ख़ान ने हवेली का पूरा जायज़ा लिया था. चारों तरफ एक तकरीबन 15 फुट ऊँची दीवार थे जिसपर बिजली के तार थे. उन तारों में 24 घंटे करेंट रहता था यानी किसी का भी दीवार कूदकर आ पाना ना-मुमकिन था.
क्रमशः........................................
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