Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:10 PM,
#18
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --18

गतान्क से आगे........................

उनके सामने उस लड़के का लंड था जो उस वक़्त डर के मारे सिकुड कर मुश्किल से 1 इंच का भी नही था. उस वक़्त उसके टट्टो और लंड में कोई ख़ास फरक नही लग रहा था.

"सरदार वैसे यहाँ ठकुराइन के लिए कुच्छ ख़ास है नही. इतने से इनका क्या होगा?" लड़के के पिछे खड़ा आदमी उसके लंड को देख कर बोला और सब ज़ोर ज़ोर से हस पड़े.

"क्या ठकुराइन" राजन की आवाज़ फिर आई "ऐसे नमर्द पैदा हो रहे हैं ठाकुर खानदान में? एक तो गूंगा और उपेर से इतना सा लंड? ऐसे कैसे चलेगा?"

दोबारा हसी की आवाज़ गूँज उठी.

सरिता देवी ने आँखें बंद किए हुए अपने खुला मुँह लड़के के लंड की तरफ बढ़ाया. उस वक़्त वो लड़का और सरिता देवी दोनो ही बुरी तरह काँप रहे थे. राजन के पूरे खानदान को दिल ही दिल में कोसते हुए सरिता देवी ने लंड मुँह में ले लिया.

उस लड़का का जिस्म लंड मुँह में जाते ही ऐसा हिला जैसे 1000 वॉट का करेंट दौड़ गया हो.

"अबे खड़ा रह आराम से" उसको पकड़ने वाले ने कहा "तेरी मान तेरा लंड चूस रही है. ऐसा नसीब किसी किसी को ही नसीब होता है बेटा. सरदार का एहसान मान और मज़े ले"

फिर से एक हसी की आवाज़ गूँजी.

नीचे सरिता देवी अपने मुँह में लंड लिए बैठी थी. उनको समझ नही आ रहा था के क्या करे. वो अपने घुटनो के बल उकड़ूं बैठी आगे को झुकी हुई थी और उस लड़के का ज़रा सा लंड उनके पूरा उनके मुँह में समाया हुआ था. उन्होने आँखें खोलकर एक नज़र लड़के की तरफ उठाई. वो आँखें बंद किए खड़ा था पर उसकी आँखों से बहता पानी सरिता देवी देख चुकी थी.

"वाह क्या सीन है" राजन बोला "एक कॅमरा होता मेरे पास तो कसम से एक फोटो तो ज़रूर लेता"

फिर से हसी की आवाज़ उठी.

सरिता देवी अपने मुँह में लंड लिए वैसे ही बैठी रही. उन्होने कोई हरकत नही की. अपने पति के साथ जब लंड उनके मुँह में होता तो अपने मुँह, जीभ और हाथ का ऐसा ताल मेल बिठाकर वो चूसा करती थी के ठाकुर उनके मुँह में ही झड़ने को आ जाते थे. पर इस वक़्त वो सिर्फ़ मुँह में लंड लिए बैठी रही. ना अपनी जीभ चलाई, ना मुँह आगे पिछे किया और ना ही अपने हाथ उपेर उठाए. वो बस इस लम्हे को किसी बुरे सपने की तरह पूरा हो देना चाहती थी.

पर तभी उनके मुँह में हरकत हुई और उनकी आँखें हैरत से खुल गयी.

उस लड़के का लंड उनके मुँह में खड़ा हो रहा था.

"नही" उनका दिमाग़ ने जैसे एक चीख मारी "ये ग़लत है"

पर वो खुद भी जानती थी के इसमें उस लड़के की कोई ग़लती नही थी. भले उनके साथ उसका कोई भी रिश्ता हो पर वो एक औरत भी थी जो उस वक़्त उसका लंड अपने मुँह में लिए बैठी थी. खड़ा तो होना ही था.

धीरे धीरे लंड मुँह में बड़ा होता चला गया और सरिता देवी एक अजीब दुविधा में पड़ गयी.

अगर वो लंड मुँह से निकालती तो सब देखते के लड़के का लंड खड़ा हो गया है और हस्ते. फिर ये किसी से ना च्छूपा रहता के जो हो रहा था, उसमें उस लड़के को मज़ा आ रहा था.

दूसरा ये के लंड खड़ा होने के बाद उसको मुँह से निकाल कर ठकुराइन के अंदर कहीं और से डाला जाएगा. सरिता देवी भले ही लंड मुँह में लिए बैठी थी पर उस लड़के को अपने उपेर, अपनी टाँगो के बीच सोचकर ही उनका कलेजा दहल गया.

"नही !!" उन्होने सोचा "जो हुआ सो हुआ, इससे आगे नही"

वो अपने दिल ही दिल में ठान चुकी थी के उनको क्या करना है. और फिर जो काम वो इस वक़्त कर रही थी, ये काम करना तो बिस्तर पर वो काफ़ी अच्छी तरह से कर लेती थी.

लकड़े के खड़े होते लंड को सरिता देवी ने अपने मुँह में ही रखा. वो खड़ा होकर उनका मुँह भरता चला गया और उनके गले के अंदर तक पहुँच गया पर सरिता देवी ने ज़रा भी अपने मुँह से बाहर ना निकलने दिया.

"सरदार" एक आदमी ने कहा "ये लड़का तो नमार्द भी है शायद"

फिर से हसी की आवाज़ गूँजी.

सरिता देवी जानती थी के उनको जो करना था जल्दी ही करना था. लंड अपने मुँह में रखे रखे उन्होने अपनी जीभ लंड पर रगड़ी शुरू कर दी. वो मुँह बंद किए अंदर ही अंदर जीभ ऐसे हिला रही थी जैसे लंड को धीरे धीरे सहला रही थी.

लड़का कच्चा था, किसी औरत के साथ पहली बार था. ठकुराइन बिस्तर पर खेली खाई थी. मुश्किल से आधे मिनिट में उनकी जीभ ने काम कर दिखाया.

राजन कुच्छ सोचकर उस लड़के की तरफ बढ़ा ही था के लड़का का पूरा शरीर काँपा और उसी पल सरिता देवी ने उसका लंड मुँह से निकाल दिया. लंड से वीर्य छूट रहा था जो आधा सरिता देवी के मुँह में था और बाकी निकलकर सीधा उनके चेहरे पर जा गिरा.

"ये लो" राजन बोला "ये तो साला इतने में ही ख़तम हो गया और कहाँ हम सोच रहे थे के अब चुदाई होगी"

"सरदार" अचानक उसका एक आदमी चिल्लाया "उस तरफ"

सबने नज़र उठाकर उस तरफ देखा जहाँ वो आदमी इशारा कर रहा था. डोर कुच्छ गाड़ियों की रोशनी दिखाई दे रही थी. हेडलाइट के अंदाज़े से कहा जा सकता था के कम से कम चार गाड़ियाँ थी.

"निकलो यहाँ से" राजन ने अपने आदमियों को इशारा किया और वो सारे अगले पाले ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग.

ठकुराइन ने भाग कर अपने कपड़े उठाए और पहेन्ने लगी. उस लड़के ने भी अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया.

"किसी से कुच्छ कहने की ज़रूरत नही" सरिता देवी ने उस लड़के से कहा.

गाड़ियों की रोशनी धीरे धीरे नज़दीक आती जा रही थी.

अगले दिन सरिता देवी किसी ज़िंदा लाश से ज़्यादा नही थी. मंन में हज़ार ख्याल उठ रहे थे जिन में से एक अपने आपको मार लेने का भी था. ठाकुर गुस्से से पागल हुए जा रहे थे. हर तरफ राजन को ढूँढा जा रहा था.

पूरे गाओं में और आस पास के सारे गाओं में ये बात फेल चुकी थी के राजन ने ठकुराइन की कार को रोक कर उन्हें लूटने की कोशिश की और उनके ड्राइवर को मार दिया.

उस रात हक़ीक़त में जो हुआ था वो सरिता देवी और उस लड़के के सिवा और कोई नही जानता था. ये उनकी किस्मत ही थी के उस रात ठाकुर ने उनसे बात करने के लिए उनकी बहेन के घर फोन कर दिया. जब वहाँ से पता चला के ठकुराइन शाम के 5 बजे ही अपने गाओं के लिए निकल गयी थी तो ठाकुर परेशान हो उठे. उन्होने फ़ौरन अपनी गाड़ी निकाली और अपने कुच्छ आदमियों के साथ ठकुराइन को ढूँढने के लिए निकल पड़े. पर जब तक वो सरिता देवी तक पहुँचे, देर हो चुकी थी.

सरिता देवी ने आती गाड़ियों के देख कर अंदाज़ा लगा लिया था के ठाकुर ही उनको ढूँढते हुए आ रहे हैं. राजन के आदमी वहाँ से भाग चुके थे. ठकुराइन ने फ़ौरन अपने कपड़े पहने और अपनी हालत ठीक की. जब तक ठाकुर की गाड़ी आकर रुकी, सरिता देवी को देख कर ये कोई नही कह सकता था के अभी थोड़ी देर पहले ये औरत नंगी बैठी लंड चूस रही थी.

ठाकुर आए तो उन्होने सिर्फ़ इतना ही बताया के राजन ने उनकी गाड़ी रोकी और उन्हें लूटने की कोशिश की. जब उन्होने विरोध किया तो उनके ड्राइवर को मार दिया गया और ठकुराइन को भी थप्पड़ मारा. उनका चेहरा तब तक राजन के पड़े थप्पड़ की वजह से लाल था.

अगले 2 दिन जैसे हवेली में तूफान मचा हुआ था. कभी पोलिसेवाले आते तो कभी ठाकुर के आदमी. ठाकुर ने एलान करवा दिया था के जिसने भी राजन का पता दिया उसको 5 लाख इनाम और जिसने राजन को पकड़ कर ठाकुर के हवाले कर दिया उसको 10 लाख. आस पास के 50 गाओं में जैसे हर कोई बस एक ही काम में लगा हुआ था और वो था राजन को ढूँढना ताकि इनाम की मोटी रकम कमा सके.

कहते हैं के ढूँढने से तो भगवान भी मिल सकते हैं, भला राजन क्या चीज़ थी. ठाकुर के कहेर के आगे वो 2 दिन नही टिक सका. हर तरफ हर कोई बस उसे ही ढूँढ रहा था जिसकी वजह से उसके च्छूपने और भागने का हर रास्ता बंद हो चुका था.

दूसरे दिन की शाम सरिता देवी अपने कमरे में खोई खोई से बैठी थी. घड़ी में 8 बज रहे थे और रात के खाने का इंटेज़ाम किया जा रहा था पर उनकी भूख तो 2 दिन से जैसे उनके पास तक नही आई थी. डरी सहमी वो बस अपने कमरे में ही बैठी रहती थी. तभी बाहर एक शोर उठा और उन्हें ठाकुर साहब की गुस्से में किसी पर चिल्ला की आवाज़ आई . सरिता देवी उठकर हवेली के बाहर निकली और सामने बने लॉन में आई.

बाहर एक भीड़ सी लगी हुई थी. कुच्छ पोलिसेवाले खड़े थे और कुच्छ ठाकुर के हथियार बंद आदमी.

"यहाँ आइए" ठाकुर ने उन्हें आते देखा तो अपने करीब बुलाया. सरिता देवी बाहर निकल कर उनके करीब आई.

सामने ज़मीन पर 6 लाशें पड़ी थी.

ठकुराइन देखते ही समझ गयी के ये राजन के आदमी थे. और वहीं एक तरफ ज़मीन पर रस्सी से बँधा बैठा था खुद राजन.

सरिता देवी को अंदर उसे देखते ही एक अजीब सा एहसास हुआ. अपने गाल पर पड़े थप्पड़ का दर्द एक बार फिर उठ गया और डर का एहसास दिल में समा गया. पर अगले ही पल वो डर गुस्से और नफ़रत में बदल गया.

ठकुराइन के आते ही सब खामोश हो गये और एक अजीब सा सन्नाटा फेल गया. ठाकुर ने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के सरिता देवी ने हाथ के इशारे से उनको चुप रहने को कह दिया.

धीमे कदमो से चलती वो राजन के करीब आई.

उनके सामने अब जो बँधा बैठा था वो एक मश-हूर डकेट नही था जिसके डर से लोग रात को सफ़र नही करते थे. उस रात का राजन जिसने सरिता देवी से अपने मंन की करवाई थी कहीं गायब हो चुका. अब जो उनके सामने था उसकी हालत किसी गली के कुत्ते से ज़्यादा नही था जिसके साथी उसकी बगल में मरे पड़े थे.

राजन को देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उसको बहुत बुरी तरह से मारा पीटा गया है. उसका पूरा चेहरा सूजा हुआ था. आँखें मुश्किल से खुल पा रही थी. जिस्म खून में सना हुआ था. वो अपने घुटनो पर बैठा हुआ था और उसके हाथ पावं किसी जानवर की तरह रस्सी से बँधे हुए थे.

सरिता देवी ठीक उसे सामने जा खड़ी हुई.

"क्या हुआ राजन?" उन्होने नफ़रत से भरी आवाज़ में कहा "अब हमें उठकर थप्पड़ नही मारेगा?"

उसकी हालत देख कर सरिता देवी ये कह नही सकती थी के वो उनकी बात सुन भी रहा है या नही. ठाकुर सरिता देवी के पास आए और उनके हाथ में एक पिस्टल दे दी.

"आपका मुजरिम है ये" ठाकुर ने कहा "सज़ा भी आप ही देंगी. इसलिए हमने इसे अब तक ज़िंदा रखा है ताकि आप इसकी जान निकाल सकें"

"नही" सरिता देवी ने हाथ में पिस्टल लेते हुए कहा "मौत तो आसान रास्ता है इसके लिए"

ठाकुर ने सवालिया नज़रों से उनकी तरफ देखा.

"हम चाहते हैं के ये हमारी शकल देखे और उसके बाद ज़िंदा तो रहे पर फिर और कुच्छ ना देख सके. बस हमारी शकल ही इसके दिमाग़ में आखरी नज़ारा बन कर रहे ताकि ये उमर भर तड़प्ता रहे. इसने हमसे बद-तमीज़ी की थी, हमें गाली दी थी और हम चाहते हैं के अब ये ज़िंदगी भर कुच्छ ना कह सके"

ठाकुर उनकी बात समझ गये. उन्होने अपने आदमी को इशारा किया.

कुच्छ देर बाद उनका एक आदमी एक कार की बॅटरी उठा लाया. दूसरे आदमी ने एक बड़ा सा च्छुरा निकाला.

"पहले आँखें" सरिता देवी नफ़रत से जल रही थी "ताकि जब ये दर्द से रोए चिल्लाए, रहम की भीख माँगे तो हम सुन सकें"

क्रमशः........................................
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