Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:11 PM,
#20
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --20

गतान्क से आगे........................

"जो कर रहे हो वही करो" वो थोड़ी नाराज़गी से बोली "अब रुका नही जा रहा"

"पहले कहो के मेरी चूत चॅटो, तब करूँगा" ठाकुर ने ज़िद पर आदते हुए कहा

सरिता देवी जानती थी के वो ऐसे नही मानेंगे इसलिए वो खुद ही थोड़ा आगे हुई और अपनी चूत ठाकुर के होंठों पर लगा दी.

"आआहह !!! अब करो भी" उन्होने आहें भरते हुए कहा

ठाकुर ने भी आगे ज़िद करना ठीक नही समझा और अपने होठ फिर चूत पर रगड़ने लगे. अचानक सरिता देवी के दिल में एक ख्याल आया और ठाकुर के सर को अपने टाँगो के बीच पकड़े पकड़े ही वो गोल घूमी और अपना चेहरा शीशे के सामने कर लिया.

अब वो शीशे की तरफ मुँह किए खड़ी थी और अपने आपको देख सकती थी. ठाकुर का मुँह उनकी टाँगो के बीच उनकी तरफ था और पीठ शीशे की और. ठाकुर शीशे में सॉफ सॉफ देख सकती थी के ठाकुर किस तरह से उनकी चूत चाट रहे थे.

इस तरह ठकुराइन के घूमने से ठाकुर ने अपना मुँह चूत से हटाकर उपेर की तरफ देखा, फिर पिछे शीशे की तरफ देखा और मुस्कुरा उठे.

"देखने के दिल कर रहा है?" उन्होने पुछा

ठकुराइन ने मुस्कुराते हुए हां में सर हिला दिया.

ठाकुर ने एक बार फिर अपने होंठ चूत पर रखे पर इस बार उनकी ज़ुबान चूत के होंठ खोलती हुई अंदर जा लगी.

"ओह !!!!" जीभ को अपनी चूत के अंदर महसूस करते ही ठकुराइन का मज़ा दोगुना हो गया. ठाकुर ने उनकी दोनो जाँघो को पकड़ा और टाँगो को अच्छी तरह से फेला दिया ताकि चूत नीचे से पूरी तरह खुल जाए.

अपने आपको इस तरह आज ठकुराइन पहली बार देख रही थी. अजीब नज़ारा था शीशे में. वो अपनी नाइटी कमर पर पकड़े दोनो टाँगो को फेलाए खड़ी थी और ठाकुर टाँगो के बीचे ज़मीन पर बैठे चूत चाट रहे थे. उनकी जीभ कभी चूत को बाहरी तरफ से सहलाती तो कभी अंदर घुसाने की कोशिश करती. एक हाथ से ठाकुर ने सरिता देवी की जाँघ को पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उनकी गांद सहला रहे थे.

ठकुराइन को एहसास भी नही हुआ के कब खड़े खड़े ही उन्होने अपनी गांद हिलानी शुरू कर दी. उनकी कमर आगे पिछे को हिलने लगी और वो खुद भी अपनी चूत को नीचे बैठे अपनी पति के मुँह पर रगड़ने लगी. ठाकुर ने दोनो हाथों से उनकी गांद को पकड़ लिया और उनकी हिलती कमर को और ज़ोर से हिलाने लगी.

"आपकी जीभ ....... आपकी जीभ .... अंदर ... अंदर... और अंदर" उखड़ती हुई सांसो के बीच सरिता देवी बड़ी मुश्किल से इतना कह पाई.

ठाकुर के लिए इतना ही इशारा काफ़ी था. उन्होने अपनी जीभ को जितना हो सका ठकुराइन की चूत के अंदर कर दिया. सरिता देवी ने भी चूत के अंदर जीभ जाते ही अपनी कमर को और ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया. जैसे कोई औरत लंड चूत में लेकर अपनी कमर हिला रही हो, ठीक वैसे ही ठकुराइन ने अपनी के धक्के ठाकुर के मुँह पर मारने शुरू कर दिए.

"ऐसे ही.... ऐसे ही ... हां बस बस ... ऐसे ही ... ज़ोर से .. ऊऊहह .... हन आअष्ह" ठकुराइन की साँस उखाड़ने लगी, कमर और ज़ोर से हिलने लगी और वो जानती थी अब किसी भी पल उनकी चूत से पानी निकलने ही वाला था.

और तभी उन्हें वो खिड़की पर खड़ा दिखाई दिया.

ठकुराइन की पीठ कमरे में बनी उस खिड़की की तरफ थी जो हवेली के पिछे की तरफ खुलती थी. आम तौर पर वो खिड़की हमेशा ही बंद रहती थी पर आज गर्मी होने की वजह से खुली हुई थी. खिड़की पर परदा गिरा हुआ था इसलिए ना उन्हें ये ध्यान रहा के पर्दे के पिछे खिड़की खुली हुई है और ना ही ठाकुर को.

ठकुराइन का चेहरा शीशे की तरफ था और शीशे में उन्हें अपने पिछे खिड़की नज़र आ रही थी. परदा थोड़ा सा खिसका हुआ था और पर्दे के पिछे से वो लड़का अंदर झाँक रहा था. ठाकुर का मुँह ठकुराइन की टाँगो के बीच घुसा हुआ था इसलिए वो लड़का उन्हें नज़र नही आ सकता था.

सरिता देवी के मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी. वो एक पल के लिए हिली और ठाकुर को अपनी टाँगो से हटाने की कोशिश सी की. ठाकुर को लगा के वो मज़ा आने के कारण ऐसा कर रही हैं इसलिए इसका नतीजा ये हुआ के उन्होने और ज़ोर से चूत चाटनी शुरू कर दी.

वो ठाकुर को हटाकर उन्हें खिड़की के बारे में बताने ही वाली थी के रुक गयी. ठाकुर को अगर वो बता दें के खिड़की से खड़ा कौन देख रहा है तो वो उस लड़के को जान से मार देंगे, ये भी नही सोचेंगे को वो ठाकुर का अपना क्या लगता है.

ठकुराइन अजीब दुविधा में पड़ गयी. वो लड़का बेशर्मी से खिड़की पर खड़ा उनकी तरफ देख रहा था. देख रहा था के वो अपने कमरे में अपने पति के साथ क्या कर रही है. रिश्तों की हर मर्यादा को भूल कर वो अंदर झाँक रहा था, बिना ये सोचे के ठाकुर और ठकुराइन उसके अपने क्या लगते हैं.

इस सबके बीच ठकुराइन ये भूल ही गयी के वो अब भी नाइटी कमर पर पकड़े खड़ी थी और नीचे से पूरी तरह नंगी थी. यानी वो लड़का आराम से खिड़की पर खड़ा इतनी देर से उनकी गांद देख रहा था.

और जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ तो इस बार चीख नही रुकी.

ठकुराइन ने फ़ौरन अपनी नाइटी नीचे गिराई और पिछे को होकर खड़ी हो गयी. उन्होने खिड़की की तरफ देखा और ठीक उसी पल एक लम्हे के लिए उनकी नज़र उस लड़के से जा मिली.

"क्या हुआ?" ठाकुर ने नज़र उपेर करके पुछा. ठकुराइन ने उन्हें धक्का सा देकर अपने से दूर कर दिया था और नाइटी नीचे कर ली थी.

"वो, वो" सरिता देवी ने कुच्छ कहने की कोशिश की और नज़र खिड़की की तरफ घुमाई.

वो लड़का जा चुका था.

"खिड़की खुली हुई है" उन्होने ठाकुर से कहा "वो तो बंद कर दो पहले"

उस रात वाले इन्सिडेंट को 2 दिन चुके थे. सरिता देवी अब जानकर उस लड़के के सामने नही आती थी. वो 2 बार उन्हें नंगी देख चुका था, एक बार उनकी मर्ज़ी के खिलाफ ज़बरदस्ती पर दूसरी बार उनके कमरे में उन्हें अपने पति के साथ और ये बात उन्हें बहुत परेशान कर रही थी. वो चाह कर भी ना तो उसे खुद कुच्छ कह पाई और ना ही ठाकुर साहब से इसका ज़िक्र कर पाई.

दोपहर का वक़्त था. ठकुराइन अपने कमरे में लेटी एक किताब पढ़ रही थी. हवेली में उस वक़्त कोई नही था सिवाय उनके और कुच्छ नौकरों के. अपनी ही धुन में किताब पढ़ती सरिता देवी को जाने क्यूँ ऐसा लगा के कोई उन्हें

देख रहा है. एक नज़र उन्होने दरवाज़े पर डाली पर वो बंद था.

उनकी नज़र कमरे में लगे शीशे पर पड़ी और उन्हें फिर वो खिड़की पर खड़ा नज़र आया. वो खामोशी से वहाँ खड़ा ठकुराइन को देख रहा था.वो थोड़ा च्छुपकर खड़ा था ताकि ठकुराइन की सीधी नज़र उसपर ना पड़े पर कमरे में लगे शीशे में वो सॉफ दिखाई दे रहा है.

और इसके साथ ही ठकुराइन को ये भी नज़र आया के वो उन्हें क्यूँ देख रहा था. उन्होने एक सारी पहेन रखी थी जिसका उन्हें ख्याल ही नही था क्यूंकी वो कमरे में अकेली लेटी थी. उनकी सारी का पल्लू एक तरफ गिरा हुआ था और

सफेद रंग के ब्लाउस में उनकी छातियाँ जैसे कमरे की छत को च्छुने की कोशिश करती उपेर नीचे हो रही थी.

उन्होने अपनी एक टाँग मोड़ रखी थी जिसकी वजह से सारी खिसक कर घुटनो तक चढ़ि हुई थी.

और फिर ठकुराइन को तीसरी बात का अंदाज़ा हुआ. खिड़की पर खड़े हुआ उसका एक कंधा धीरे धीरे हिल रहा था, जो शायद उसका हाथ हिलने की वजह से था और उन्हें समझने में एक पल नही लगा के वो क्या कर रहा था.

वो उन्हें इस हालत में देख कर अपना लंड हिला रहा था.

ठकुराइन का गुस्सा पल में फ़ौरन आसमान छुने लगा. उन्होने उठकर उसको डाँटने की सोची ही थी के गुस्सा जिस तरफ चढ़ा था, एक पल में वैसे ही उतर गया और एक अजीब से एहसास ने गुस्से की जगह ले ली.

ये उनकी ज़िंदगी में पहली बार था के कोई उन्हें ऐसे चुपके चुपके देखकर अपना हिला रहा था और कहीं उनके दिल में ऐसा होता देख कर गुदगुदी सी होने लगी. वो खुद जानती थी के ये कितना ग़लत था और वो लड़का उनका क्या लगता

था पर ग़लत सही का ख्याल उस वक़्त जैसे एक तरफ हो गया.

जैसे एक नशे की सी हालत में ठकुराइन वैसे ही लेटी रही और खामोशी से शीशे में देखती रही. इस बात से अंजान के ठकुराइन ने उसको देख लिया है, वो लड़का खिड़की पर खड़ा अपना हिलाता रहा.

धीरे धीरे ठकुराइन का जिस्म गरम सा होने लगा और उनकी हैरत का कोई ठिकाना ना रहा. कहाँ तो वो 2 महीने से अपने पति से चुदवाते हुए भी गरम नही होती थी और कहाँ इस लड़के को यूँ झाँकता देखकर 2 पल में गरम हो गयी.

और फिर उनके दिल में भी शरम और हया की जगह वासना ने ले ली. उन्होने वो किया जो उनके अंदर की एक शरीफ औरत ने कभी नही किया था. धीरे से अब भी किताब पढ़ने का नाटक करते हुए उन्होने अपनी दूसरी टाँग भी मोड़

ली.

वो सीधी अपनी पीठ पर लेटी हुई थी और किताब सामने हाथों में पकड़ी हुई थी. एक टाँग उनकी पहली ही मूडी हुई थी और फिर दूसरी टाँग मोदती ही जो सारी पहले घुटने पर अटकी हुई थी अब सरक्ति हुई उनके पेट पर आ गिरी और

उनकी दोनो जांघे नंगी हो गयी.

और ये शायद उस लड़के के लिए काफ़ी ज़्यादा हो गया. उसका हाथ कुच्छ पल तेज़ी से हिला और फिर रुक गया. आँखें बंद किए उसने कुच्छ पल लंबी लंबी साँस ली और फिर एक झटके से खिड़की से हट गया.

ठकुराइन समझ गयी के उसका निकल गया था पर खुद अंदर ही अंदर वो बुरी तरह से गरम हो चुकी थी. लड़के के जाते ही फिर से वासना की जगह शरम ने ले ली और ठकुराइन को बहुत बुरा लगा के वो उस लड़के को यूँ अपना शरीर दिखा रही थी. वो लड़का जो की उनका खुद का .....

"हे भगवान !" ठकुराइन ने खुद से कहा और अपनी सारी फिर से ठीक कर ली.

उस रात जब ठाकुर ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया तो जैसे वासना का एक तूफान सा छूट पड़ा. दोपहर की गरम ठकुराइन फ़ौरन उनपर चढ़ पड़ी.

"अर्रे अर्रे "ठाकुर ने हैरत से कहा "क्या हो गया"

ठकुराइन ने कुच्छ नही कहा और उनका कुर्ता उतारने लगी

"क्या बात है" ठाकुर ने अपने हाथ उपेर किए और कुर्ता गिर जाने दिया "आज बड़े मूड में हो"

ठकुराइन ने फिर कोई जवाब नही दिया और फ़ौरन ठाकुर के सामने अपने घुटनो पर बैठ गयी. जबसे दोपहर को उन्होने उस लड़के को उन झाँकते हुए देखा था, उनके शरीर में जैसे आग सी लगी हुई थी जिसको वो जल्द से जल्द

ठंडा कर लेना चाहती थी.

उन्होने ठाकुर के पाजामे का नाडा खोला और ढीला करके नीचे खींचा. कुच्छ ही पल बाद ठाकुर कमरे में पूरे नंगे खड़े थे और ठकुराइन उनके सामने ज़मीन पर बैठी हुई थी. उन्होने धीरे से ठाकुर का लंड अपने हाथ में लिया.

"आअहह" लंड ठकुराइन के हाथ में आते ही ठाकुर के मुँह से आह निकल पड़ी

ठकुराइन ने लंड को अपने हाथ में पकड़कर थोड़ी देर हिलाया. लंड बैठा हुआ था पर ठकुराइन के हाथ में आते ही धीरे धीरे खड़ा होने लगा. ठकुराइन ने अपना मुँह खोला और जीभ निकल कर लंड के उपेर फिराने लगी.

"आपकी इस बात पे तो मैं फिदा हूँ" ठाकुर ने कहा "मस्त लंड चूस्ति हो आप"

ठाकुर थोड़ी देर तक अपनी जीभ को लंड पर उपेर नीचे फिरती रही. लंड अब तन कर पूरी तरह खड़ा हो चुका था और मुश्किल से ठकुराइन के हाथ में समा रहा था. ठकुराइन ने अपना मुँह जितना हो सका खोला और लंड को

अपने मुँह में भर लिया.

"पूरा लो" ठाकुर ने कहा "पूरा चूसो"

ठकुराइन ने लंड को थोड़े देर अपने मुँह में अंदर बाहर किया और पूरी तरह से गीला कर दिया. इस वक़्त उनको लंड चूसने से ज़्यादा दिलचस्पी छुड़वाने में थे. उनकी छूट में एक आग सी लगी हुई थी जिसको वो जल्दी से जल्दी बुझा लेना चाहती ही.

लंड को एक बार फिर अपने मुँह में लेकर उन्होने अच्छे से अपनी जीभ उसपर फिराई और उठकर खड़ी हो गयी.

क्रमशः........................................
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