RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --23
गतान्क से आगे........................
बिंदिया अपने कमरे में समान बाँधे बैठी थी. चंदर अपना समान बाँध रहा था और पायल बाहर खेल रही थी.
"चंदर" बिंदिया ने कहा
चंदर ने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा.
"ठाकुर साहब ने आज फिर कहलवाया है के तुझे हवेली ना लेकर जाऊं. वो चाहते हैं के तू यहीं रुक कर खेतों की देख भाल करे"
चंदर ने अजीब नज़रों से उसकी तरफ देखा.
"ऐसे मत देख मेरी तरफ" बिंदिया बोली "रुक जा ना यहीं पर. मैं रोज़ आ जाया करूँगी तेरे पास. तब चोद लेना. और वैसे भी हवेली में किसी को भनक पड़ गयी के तेरे मेरे बीच क्या चल रहा है तो आफ़त आ जाएगी"
चंदर ने इनकार में सर हिलाया
"समझ मेरी बात को. यहाँ आराम से कोई नही होता. मैं दिन में तुझसे एक बार मिलने आ जाया करूँगी और तब जितना जी चाहे चोद लिया करना. जैसे चाहे चोद लेना मैं मना नही करूँगी पर हवेली चलने की ज़िद ना कर. मुझे ठाकुर साहब की बात ना मानते हुए डर लगता है"
चंदर ने गुस्से में उसकी तरफ देखा और फिर अपने पावं पटकता हुआ झोपड़ी से बाहर निकल गया.
सुबह ही ठाकुर साहब ने कहलवाया था के बिंदिया अब हवेली आकर रहना शुरू कर दे. पूरे गाओं को पता चल चुका था के ठकुराइन बिस्तर से लग चुकी हैं. अब चल फिर नही सकती और हर पल कोई ना कोई उनके साथ चाहिए जो उनकी देख रेख कर सके.
दूसरी बात जो पूरे गाओं में जंगल में आग की तरह फेली थी वो ये थी के जै को ठाकुर साहब ने हवेली से निकाल दिया था. कोई नही जानता था के क्यूँ पर अब वो शहर में बने ठाकुर के एक मकान में रहता था. पूरे गाओं का यही कहना था के ठाकुर ने उसको हवेली से इसलिए निकाला ताकि उन्हें जायदाद में बटवारा ना करना पड़े.
जो भी था, बिंदिया को सिर्फ़ ये पता था के उसको अब हवेली में जाकर रहना है. और एक तरह से वो ये सोचकर खुश भी थी. यूँ खेतों के बीच अकेले रहते हुए उसको डर भी लगता था. उसकी बेटी पायल अब जवानी की दहलीज़ पर कदम रख रही थी और बिंदिया के पास उसके बढ़ते जिस्म को ढकने के लिए कपड़े तक नही थे. अब अगर वो हवेली में रहेगी, तो पैसे भी थोड़े ज़्यादा मिल जाया करेंगे और खाना पीना भी हवेली में ही हो जाया करेगा.
यही सब सोचती वो अपनी जगह से उठी और समान पर एक आखरी नज़र डाली. पूरी हवेली में अब कुच्छ भी नही था. सिर्फ़ एक टूटी हुई चारपाई पड़ी थी. बाकी सब समान बँध चुका था. चंदर ने भी बिंदिया के कहने पर अपना समान बाँध लिया था पर बिंदिया को ठाकुर का हुकुम ना मानते हुए दर लग रहा था और उनका हुकुम था के चंदर यहीं खेतों में रहे, हवेली ना आए.
"इसको समझाना पड़ेगा. बाद में आती जाती रहूंगी. ये इस बात को नही समझ रहा के सिर्फ़ मैं इसकी ज़रूरत नही, ये खुद भी मेरी ज़रूरत है" सोचते हुए बिंदिया उठी और झोपड़ी के टूटे हुए दरवाज़े को बंद करके परदा डाल दिया.
झोपड़ी के कोने में ही उसने नहाने की जगह बना रखी थी. समान बाँधने के चक्कर में उसकी हालत खराब हो चुकी थी इसलिए उसने हवेली जाने से पहले एक बार नहाने की सोची.
बिंदिया ने अपने कपड़े उतारकर वहीं कोने में टाँग दिए और पूरी नंगी होकर अपने आपको एक बार देखा. अपने जिस्म पर उसको हमेशा से ही गर्व रहा था. एक बच्चे की माँ थी वो पर जिस्म पर कहीं भी ज़रा भी चर्बी ना निशान नही था. खेतों में काम करते करते उसका पूरा जिस्म गाथा हुआ था. चौड़े कंधे, पतली कमर, गठी हुई टांगे, बड़ी बड़ी पर एकदम तनी हुई चूचियाँ. उसके कूल्हे तक ज़रा भी ढीले नही पड़े थे और एकदम टाइट थे. जब वो घाघरा पहनकर चलती, तो पिछे से सारे मर्द उसकी टाइट गांद देखकर आहें भरते रहते थे, ये बात वो खुद भी जानती थी.
मुस्कुराते हुए उसने वहीं रखी बाल्टी से लेकर पानी अपने उपेर डाला और पूरे जिस्म पर साबुन मलने लगी.
वो अभी नहा ही रही थी के झोपड़ी का दरवाज़ा, जिसमें कुण्डा नही थी, खुला और परदा हटाता हुआ चंदर अंदर आ गया.
बिंदिया ने एक नज़र उसपर डाली और मुस्कुरा कर अपने जिस्म पर साबुन लगाती रही.
"पायल कहाँ है" बिंदिया ने पुछा तो चंदर ने उसको इशारे से बताया के बाहर पेड़ के नीचे वो खेलती खेलती सो गयी थी.
बिंदिया जानती थी के चंदर कभी पायल के सामने उसके साथ कोई हरकत नही करेगा इसलिए जब उसने कहा के पायल बाहर सो रही है, वो समझ गयी के वो अंदर क्या करने आया है.
चंदर ने भी एक एक करके अपने सारे कपड़े उतार दिए. अपने खड़े लंड को हिलाता हुआ वो बिंदिया के करीब आया और उसके कंधो पर हाथ रखा.
उसके छूते ही बिंदिया का पूरा शरीर सिहर उठा. वो एक बहुत ही गरम औरत थी जिसको गरम होने में ज़रा भी वक़्त नही लगता था. उसका बस चलता तो वो दिन में 10 बार चुदवाती. इस वक़्त भी चंदर को यूँ नंगा होकर अपने करीब आते देखकर उसकी चूत से पानी बह चला था.
पर चंदर के दिमाग़ में शायद कुच्छ और ही था. बिंदिया ने आगे बढ़कर उसके होंठ चूमने की कोशिश ही की थी के चंदर ने उसको दोनो कंधो से पकड़ा और लगभग धक्का देते हुए घूमकर दीवार से लगा दिया.
अब बिंदिया दीवार के साथ लगी खड़ी थी. उसका चेहरा दीवार की तरफ और कमर चंदर की तरफ थी जिससे वो सटा खड़ा था. उसका नंगा जिस्म बिंदिया के जिस्म से रग़ाद रहा था और लंड गांद के बीच फसा हुआ था. बिंदिया के पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था जिसकी वजह से दोनो के जिस्म आपस में एक दूसरे पर बिना किसी रुकावट के फिसल रहे थे.
"क्या हुआ?" बिंदिया बोली "अभी तक नाराज़ है?"
जवाब में चंदर ने उसके हाथ में पकड़ा साबुन लिया और अपने एक हाथ में लेकर साबुन अपने लंड पर रगड़ने लगा.
"क्या कर रहा है?" बिंदिया ने पुछा
वो पलटकर चंदर की तरफ देखने ही वाली थी के चंदर ने उसको फिर दीवार से धक्का देकर सटा दिया.
"चंदर" इससे पहले के बिंदिया आगे को कुच्छ कहती, चंदर का साबुन लगा लंड उसकी गांद के बीच आ फसा. बिंदिया समझ गयी के वो क्या करने वाला है और वो फिर पलटने लगी पर तब तक देर हो चुकी थी.
चंदर ने पूरी ताक़त से धक्का लगाया. लंड और बिंदिया की गांद, दोनो पर साबुन लगा हुआ था. लंड बिना रुके पूरा का पूरा बिंदिया की गांद में घुसता चला गया.
"निकाल निकाल" बिंदिया ऐसे तड़प उठी जैसे पानी बिना मच्चली. उसको दिन में तारे दिखाई देने लगे थे. चंदर का पूरा लंड उसकी गांद में समाया हुआ था और उसे ऐसे लग रहा था जैसे उसको काटकर 2 टुकड़ो में बाँट दिया गया हो.
बिंदिया पूरी ताक़त से चंदर को अपने से दूर करने की कोशिश कर रही थी पर वो उसके लिए काफ़ी ताक़तवर साबित हुआ. पूरी जान लगाने के बाद भी बिंदिया ना तो उसको अलग कर पाई और ना ही दीवार से हट सकी.
चंदर ने धक्के मारने शुरू कर दिए थे. उसका लंड बिंदिया की गांद में अंदर बाहर हो रहा था.
"मार ली तूने मेरी चंदर" बिंदिया की आँखों से आँसू बह चले "निकाल ले अपना लंड बाहर. मेरी जान निकल रही है. आआहह आअहह ... मत कर"
बिंदिया रोए जा रही थी, बड़बदाए जा रही थी और चंदर चुप चाप उसकी गांद पर धक्के लगाए जा रहा था. उस वक़्त जैसे वो गूंगे के साथ साथ बेहरा भी हो गया था.
"आआहह .... मर गयी मैं माँ .... मार ली रे तूने चंदर..... आज मेरी गांद भी मार ली ... " बिंदिया का दर्द जैसे बढ़ता जा रहा था.
आज से पहले भी चंदर ने उसकी गांद केयी बार मारने की कोशिश की थी पर बिंदिया ने कभी उसको लंड डालने नही दिया था. बस वो अपनी अंगुली ही उसको चोद्ते वक़्त उसकी गांद में घुसा लेता था. पर आज अचानक हुए इस हमले में ना तो बिंदिया उसको रोक पाई, ना कुच्छ कह पाई.
चंदर का लंड पूरी तरह से उसकी गांद में अंदर बाहर हो रहा था.
"आआहह चंदर..... " बिंदिया वैसे ही बड़बड़ा रही थी "धीरे .... धीरे कर. .... पूरा तो बाहर मत निकाल ... थोड़ा सा अंदर बाहर करता रह .... पूरा बाहर निकालके मत डाल ... अया"
और फिर दर्द जैसे कम होता चला गया. बिंदिया की गांद ने अपने आपको लंड के अनुसार अड्जस्ट कर लिया और बिंदिया के दर्द की जगह एक अजीब मज़े ने ले ली थी जिसका अंदाज़ा उसको आज से पहले कभी ना हुआ था.
"आअहह चंदर" वो अब भी बड़बड़ा रही थी पर बोल बदल चुके थे "मज़ा आ गया रे ,..... इतने वक़्त से क्यूँ रुका हुआ था ... इतनी मस्त गांद मैं तेरे सामने सारा दिन हिलती फिरती थी .. पहले क्यूँ नही मारी?"
उसकी हर बात पर चंदर का जोश बढ़ता जा रहा था और वो और ज़ोर से धक्के मार रहा था.
"अब तक क्यूँ सिर्फ़ चूत मारकर काम चला रहा था? मेरे मुँह में लंड घुसा लिया, चूत में घुसा लिया तो गांद क्यूँ छ्चोड़ रखी थी ... यहाँ भी घुसाता ... ये मज़ा मुझे पहले क्यूँ नही दिया रे"
चंदर के धक्के और बिंदिया का बड़बड़ा दोनो ही तेज़ होते जा रहे थे
"और ज़ोर से ... हां ऐसे ही ... धक्का ज़ोर से लगा ... पूरा लंड बाहर खींच ... हां अब घुसा पूरा अंदर तक ... मार ले मेरी गांद ... तेरे लिए ही बचा रखी थी ... इस गांद के बहुत दीवाने हैं पर आज मारी तूने है"
दोनो अब जैसे पागल हो चुके थे. चंदर पागलपन में धक्के लगा रहा था और बिंदिया पागल की तरह बड़बड़ा रही थी, गांद मरा रही थी.
"मार मेरी गांद ... मार ... मार ... ज़ोर से मार ... लगा धक्का ... पूरा घुसा ... मर्द नही है क्या .... बच्चे की तरह मत मार ... ज़ोर लगाके ढककर मार"
और अचानक चंदर ने पूरा लंड उसकी गांद में घुसाया और वहीं रुक गया. लंड से निकलता वीर्य बिंदिया की गांद में भरने लगा.
आउज़ इसके साथ खुद बिंदिया भी ख़तम होती चली गयी.
थोड़ी देर बाद जब दोनो की साँस थमी तो बिंदिया ने अपनी आँखें बंद किए हुए पिछे खड़े चंदर के बालों में हाथ फिराया. वो दोनो अब भी वैसे ही खड़े थे और लंड अब तक बिंदिया की गांद में था.
"तू मेरे साथ ही चलेगा चंदर" बिंदिया बोली "ठाकुर साहब कुच्छ भी कहें, तू हवेली में ही रहेगा मेरे साथ. तुझे यहाँ छ्चोड़ गयी तो हवेली में मेरी गांद कौन मारा करेगा?"
पीछे खड़े चंदर के चेहरे पर मुस्कुराहट फेल गयी. उसका प्लान कामयाबी की तरफ बढ़ रहा था. हवेली में रहना मतलब ठाकुर के करीब रहना और मौका मिलते ही ....
क्रमशः........................................
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