RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --24
गतान्क से आगे........................
बिंदिया पोलीस स्टेशन में ख़ान के सामने बैठी थी.
"चाई लॉगी?" ख़ान ने पुछा तो बिंदिया ने इनकार में सर हिला दिया
ख़ान उसके सामने बैठ गया और एक पेन निकालकर अपनी डाइयरी खोली.
"हाँ तो अब बताना शुरू करो" उसने बिंदिया से कहाँ
"मैने कुच्छ नही किया साहब" बिंदिया ने फ़ौरन कहा
"तो मैने कब कहा के तुमने किया है?" ख़ान ने जवाब दिया "मैं तो सिर्फ़ तुमसे ये पुच्छ रहा हूँ के खून की रात तुम कहाँ थी और तुमने क्या देखा?"
"मैं किचन में थी साहब" बिंदिया ने कहा "उधर की काम कर रही थी, आप चाहें तो मेरी बेटी से पुच्छ लें, वो उधर ही थी मेरे साथ"
"ह्म्म्म्म" ख़ान ने अपनी डाइयरी की तरफ देखा. वहाँ उसने पहले से ही यही लिखा हुआ था के बिंदिया खून के वक़्त अपनी बेटी के साथ थी.
"और बाकी सब लोग कहाँ थे उस वक़्त?" उसने बिंदिया से पुछा
"अभी मैं क्या बताऊं साहब" बिंदिया आँखें घूमाते हुए बोली "मैं तो शाम से ही किचन में खाने का इंटेज़ाम कर रही थी"
"
सोचके बताओ" ख़ान ने कहा
"ह्म्म्म्म .... चंदर बाहर दरवाज़े पर था, पायल मेरे साथ थी, भूषण बाहर कार लेने को गया था और मालकिन दरवाज़े के पास बैठी थी हमेशा की तरह. बाकी का पता नही"
"किसी को आते जाते देखा तुमने ठाकुर साहब के कमरे में?" ख़ान ने सवाल किया
"मैने तो देखा नही पर पायल बोली थी के छ्होटे मालिक गये थे बड़े मालिक के कमरे में"
"छ्होटे मालिक?" ख़ान ने सवालिया नज़र से देखा
"तेज बाबू" बिंदिया ने जवाब दिया
"फिर?"
"फिर कुच्छ ज़ोर ज़ोर से बोलने की आवाज़ आई. असल में उसी आवाज़ को सुनकर मैने पायल से पुछा था के क्या हुआ तो वो बोली के तेज बाबू गये थे बड़े मालिक के कमरे में"
"चिल्लाने की आवज़ किसकी थी?" ख़ान ने पुचछा
"बड़े मालिक और तेज बाबू दोनो की ही थी. कुच्छ कहा सुनी हो गयी थी शायद"
"किस बारे में बात कर रहे थे वो?" ख़ान ने डाइयरी में सारी बातें लिखते हुए सवाल किया
"ये तो समझ नही आया साहब" बिंदिया ने जवाब दिया पर ख़ान फ़ौरन समझ गया के वो झूठ बोल रही थी.
"खैर" उसने पेन नीचे रखा "कुच्छ हवेली में रहने वालो के बारे में बताओ"
ख़ान खुद जानता था के बिंदिया कुच्छ नही बताएगी. अभी थोड़ी देर पहले ही उसने सॉफ झूठ बोल दिया था के वो नही जानती तेज और ठाकुर किस बात को लेकर लड़ रहे थे.
"अभी मैं क्या बताऊं साहब" बिंदिया ने ख़ान की उम्मीद के मुताबिक ही जवाब दिया "मैं तो बस एक नौकरानी हूँ. बड़े लोगों की बातें मैं क्या जानूँगी भला"
"तो चलो मैं ही पुछ्ता हूँ" ख़ान ने फिर डाइयरी में लिखना शुरू किया "रूपाली के बारे में क्या जानती हो. सच बताना"
"मेमसाहिब बहुत अच्छी औरत हैं. सबका बहुत ध्यान रखती हैं. मेरे को अपने पुराने कपड़े देती हैं पहेन्ने को"
"मैं ये नही पुच्छ रहा. ये बताओ के उनका अपने पति और घर के बाकी लोगों के साथ रिश्ता कैसा था?"
"जैसा होना चाहिए वैसा ही था. सुख शांति से रहती थी" बिंदिया ने फिर गोल मोल जवाब दिया
ख़ान समझ गया के बिंदिया से इस तरह सवाल करके उसको कुच्छ हासिल नही होगा. खेली खाई औरत थी, ऐसे नही टूटेगी.
"काब्से रह रही हो तुम हवेली में?" उसने सवाल किया
"अभी तो बहुत बरस हो गये साहब" बिंदिया ने जवाब दिया "मेरे मरद के मरने के बाद से मैं, पायल और चंदर इधर ही रहने को आ गये थे हवेली में"
"और ऐसा क्यूँ?"
"बड़ी मालकिन को चोट लगने के बाद से उनका ख्याल रखती थी मैं. वो तो बिस्तर से खुद उठ भी नही सकती. रात को पानी वगेरह भी मैं ही उठके देती हूँ"
"तुम उनके कमरे में सोती हो?" ख़ान ने पुछा
"कभी कभी" बिंदिया बोलती रही "जब कभी उनकी तबीयत ज़्यादा खराब हो तब. नही तो मैं अपने ही कमरे में सोती हूँ"
"ठकुराइन और ठाकुर अलग अलग कमरे में क्यूँ सोते हैं?" ख़ान ने सवाल किया
थोड़ी देर के लिए खामोशी च्छा गयी. बिंदिया को समझ नही आ रहा था के वो क्या जवाब दे ये उसके चेहरे से सॉफ ज़ाहिर था.
"अभी उनके लिए एक अलग बिस्तर चाहिए. सोते में हिल डुल नही सकती इसलिए. कभी कभी रात भर दर्द में कराहती हैं जिससे ठाकुर साहब की नींद खराब होती थी इसलिए"
ख़ान को ये बात हाज़ाम नही हुई. अगर बीवी दर्द में कराह रही हो तो किस तरह का पति होगा जो जाकर अलग सो जाएगा, बजाय इसके के अपनी बीवी का ख्याल रखे.
"तुम्हारा अपना रिश्ता कैसा था ठाकुर साहब के साथ?"
ख़ान के सवाल करते ही बिंदिया के चेहरे पर जो भाव बदले उन्हें देखते ही ख़ान समझ गया के इस बार तीर निशाने पर लगा है.
"रिश्ता मतलब?" बिंदिया ने संभालते हुए पुछा
"मतलब तुम्हारी बात चीत कैसी थी ठाकुर साहब के साथ? तुम्हारे साथ उनका रवैयय्या कैसा था?"
"ठीक ही था" बिंदिया बोली "जैसा मालिक नौकर का होता है. कभी मैं ग़लती कर देती थी काम करते हुए तो चिल्ला भी देते थे ठाकुर साहब मुझपर"
थोड़ी देर बाद बिंदिया उठकर पोलीस स्टेशन से चली गयी. ख़ान उससे और भी पुच्छना चाहता था पर वो समझ गया था के बिंदिया आसानी से जवाब देने वाली औरतों में से नही. जिस एक बात का उसको पूरी तरह यकीन था वो ये थी के कुच्छ था बिंदिया और ठाकुर के बीच जिसकी वजह से रिश्ता शब्द सुनते ही वो बौखला गयी थी.
ख़ान जै के सामने बैठा था.
"बहुत दबाव है मेरे उपेर के अब तक चार्ज शीट क्यूँ दाखिल नही की गयी है" वो जै से बोला
"किसी पर शक है आपको?" जै ने पुछा
"सब पर है और किसी पर भी नही" ख़ान ने अपना सर पकड़ते हुए बोला "कहानी हर बार घूम कर फिर एक ही बात पे आ जाती है के हर किसी की गवाही कोई ना कोई दे रहा है. या तो हवेली में मौजूद लोगों को किसी ना किसी ने कहीं ना कहीं देखा है है जिनको नही देखा उनकी गवाही इस बात से मिल जाती है के उनको कमरे में जाते किसी ने भी नही देखा"
थोड़ी देर दोनो चुप बैठे रहे.
"केस शुरू हो गया तो क्या लगता है आपको?" जै ने चुप्पी तोड़ी
"शुरू हो गया तो एक या दो हियरिंग्स में ख़तम हो जाएगा और तुम्हें मौत की सज़ा ही होगी ये मानके चलो" ख़ान ने जवाब दिया
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी.
"मुझे समझ ये नही आ रहा के शुरू करूँ तो किससे करूँ. तुम्हारे कहने के मुताबिक मैने नौकरों से शुरू किया पर जिससे बात की उसने गोल मोल जवाब ही दिए. ठाकुर खानदान इस सब में इन्वॉल्व्ड है और कई बड़े लोगों का दबाव होने की वजह से मैं ज़ोर ज़बरदस्ती से भी काम नही ले सकता"
"किससे बात की आपने?" जै ने पुचछा
"बिंदिया"
"ह्म्म्म्म" जै मुस्कुराते हुए बोला "वो ऐसे कुच्छ नही बोलेगी पर हां खून करने का हौसला और ताक़त दोनो है उसमें, अगर वजह उसके पास हो तो"
ख़ान ने अपनी आँखें सिकोडते हुए जै की तरफ देखा. जै इशारा समझ गया.
"कम ओन ख़ान साहब" जै ने जवाब दिया "गाओं की पली बढ़ी औरत है वो, खेतों में काम करती थी, पति के मरने के 2 बच्चो को पाल पोसकर बड़ा किया, आपको नही लगता के इतना जिगरा होगा उसमें?"
ख़ान ने हामी भरते हुए गर्दन हिलाई.
"और वो ऐसे कोई जवाब नही देगी, बल्कि हवेली का कोई नौकर अगर कुच्छ जानता है तो ऐसे नही बताएगा क्यूंकी उनको अपनी जान का ख़तरा है के अगर पुरुषोत्तम या तेज को ये पता चल गया के उन्होने ठाकुरों के खिलाफ कुच्छ बोला है तो"
"कहना क्या चाह रहे हो?" ख़ान ने पुछा
"यही ख़ान साहब के उन सबकी दुखती रग पे हाथ रखिए. एक ऐसी नस पकडीए जिसके दबाते ही वो गा कर आपको सब बताएँ"
"शाबाश मेरे शेर. अब इतना बता रहे हो तो ये भी बता दो के ऐसी दुखती रग मैं लाऊँ कहाँ से सबके लिए"
जै ख़ान की तरफ देखकर मुस्कुराने लगा. उस पल वो किसी लोमड़ी की तरह लग रहा था जो हर किसी का कच्चा चिट्ठा जानती हो. ख़ान को समझते एक पल नही लगा.
"तुम जानते हो, ऑफ कोर्स. हवेली में रहे हो, ठाकुर खानदान का हिस्सा हो, तुम्हें तो पता होगा ही"
"सबके बारे में तो नही जानता पर इस बिंदिया के बारे में ऐसा कुच्छ बता सकता हूँ के वो आपके कदमों में गिर जाएगी और जो आप कहोने वो करेगी"
"बोलते रहो"
"ये एक गाओं है ख़ान साहब" जै ने टेबल पर अपने हाथों से तबला बजाते हुए कहा "यहाँ अब भी सबसे बड़ी चीज़ इज़्ज़त होती है, भले खाने के लिए 2 वक़्त की रोटी ना मिले. आप किसी की इज़्ज़त को उच्छालने की धमकी दो, वो वहीं टूट जाएगा"
"सीधे मतलब की बात पे आओ" ख़ान ने जै का हाथ पकड़ कर रोका "और ये तबला बजाना बंद करो"
"चंदू को जानते हैं?" जै ने पुछा
"हां. बिंदिया का बेटा. क्यूँ?"
"सगा बेटा नही है वो उसका" जै बोला
"जानता हूँ"
"तो आपको क्या लगता है के वो उसको अपने साथ क्यूँ रखती है, हर पल, हर जगह"
"इसमें ऐसा क्या है जो नॉर्मल नही है? वो उसको अपना बेटा मानती है"
"ठाकुर साहब के मना करने के बावजूद हवेली लाई थी वो उसको. सुलाती भी रात को अपने ही कमरे में है, किसी छ्होटे बच्चे की तरह"
क्रमशः........................................
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