Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:12 PM,
#25
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --25

गतान्क से आगे........................

"कहना क्या चाह रहे हो?" ख़ान ने हल्के गुस्से से पुछा

"सोचिए"

ख़ान ने एक पल के लिए सोचा और फिर हैरत से जै की तरफ देखा

"बकवास कर रहे हो तुम"

जै ने इनकार में गर्दन हिलाई

"तुम्हें कैसे पता?"

"अपनी आँखों से देखा मैने" जै मुस्कुराते हुए बोला

"और अगर ऐसा ना हुआ तो?"

"जो चीज़ मैने खुद अपनी आँखों से देखी, बार बार देखी, वो ग़लत कैसी हो सकती है ख़ान साहब?"

"अगर तुम्हारी बात सच भी है जै तो काफ़ी कुच्छ इस बात पे भी डिपेंड करता है के बिंदिया जानती कितना है, और क्या जानती है"

जै ने हाँ में गर्दन हिलाई.

"मैं उसको इस बात की धमकी देकर डराउ भी पर अगर उसको हक़ीक़त में कुच्छ नही पता तो सब डरना धमकाना बेकार है"

जै ख़ान की बात सुनकर चुप चाप हां में गर्दन हिलाता रहा.

"वैसे एक बात तो है" ख़ान ने कहा "एक बात पर वो बौखला तो गयी थी"

"किस बात पर?"

"मैने उससे पुछा के ठाकुर के साथ उसका रिश्ता कैसा था और इस पर वो ऐसे चौंक पड़ी जैसे मैने ये पुच्छ लिया हो के ठाकुर के साथ वो आखरी बार कब सोई थी"

"हो तो सकता है" जै ने हामी भारी "चाची काफ़ी सालों से उनसे अलग ही सो रही है और आक्सिडेंट के बाद से तो वो बिस्तर से हिल भी नही पाती. ऐसी हालत में इतने सालों तक चाचा किसी औरत के साथ ना रहें हो ये यकीन करने काबिल बात है नही"

"हां और घर की नौकरानी जो हर पल हाज़िर रहती है उससे आसान क्या होगा"

ख़ान ने बात में बात जोड़ी

"और ख़ास तौर से अगर नौकरानी इतनी गरम हो के अपने बेटे की उमर के लड़के के साथ सोती हो" जै ने बात ख़तम करते हुए कहा

"चलो मैं देखता हूं के ये बात कहाँ पहुँचती है. फिलहाल तो तुम उम्मीद ही करो बस के वो बिंदिया कुच्छ जानती हो"

जै चुप रहा.

"अगर पहले सवाल का जवाब मिल जाए तो दूसरा सवाल अपने हाल हो जाएगा" ख़ान ने कहा

"पहला सवाल?"

"हां" ख़ान ने कहा "अगर किसी तरह ये समझ आ जाए के बंद कमरे के अंदर सबकी नज़र बचा कर खून कैसे हुआ तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है के खूनी कौन है"

"कमरा बंद कहाँ था" जै बोला "दरवाज़ा खुला हुआ था"

"उस दरवाज़े के बाहर तो 2 लोग बैठे थे मेरे भाई" ख़ान ने कहा "दरवाज़े को छ्चोड़कर तो कमरा तो बंद था ना. खिड़की की सिट्कॅनी अंदर से लगी हुई थी"

"जब मैं अंदर दाखिल हुआ तो सिर्फ़ ये देखा था के खिड़की बंद है, सिट्कॅनी के बारे में तो मैं भी कुच्छ नही कह सकता"

"हां अगर सामने लाश पड़ी हो तो खिड़की की सिट्कॅनी की तरफ किसका ध्यान जाता है. वैसे ......." ख़ान कहता कहता रुक गया

"वैसे?" जै ने पुछा

"कुच्छ आया है दिमाग़ में, पहले एक बार खुद देख लूँ, बाद में बताऊँगा"

थोड़ी देर बाद ख़ान अपनी जीप में सवार वापिस गाओं की तरफ चल पड़ा.

उसी शाम वो फिर एक बार हवेली में था. उसकी किस्मत थी के हवेली के सब लोग कहीं गये हुए थे और सिर्फ़ एक पायल और भूषण ही हवेली में थे.

ख़ान ठाकुर के कमरे में खिड़की के सामने खड़ा था.

कमरे में सब कुच्छ वैसा ही था जैसा की पहले, कुच्छ ख़ास बदला नही गया था सिवाय इसके के ज़मीन पर वो कालीन बदल दी गयी थी. ठाकुर के खून के धब्बो वाली कालीन हटा दी गयी थी.

ख़ान बड़े ध्यान से खिड़की की तरफ देख रहा था. खिड़की पर नीचे की तरफ सिर्फ़ एक सिट्कॅनी थी जिसको नीचे कुंडे में गिरने पर खिड़की बंद होती थी. आम तौर पर खिड़कियों में उपेर की तरफ भी सिटकनी होती है जिसको चढ़ा कर खिड़की लॉक की जा सकती है पर इस खिड़की में नही. यहाँ सिर्फ़ एक ही सिट्कॅनी थी.

और ख़ान के दिमाग़ में 2 बाते घूम रही थी जिसपे उसको खुद हैरत थी के उसने ऐसा पहले क्यूँ नही सोचा.

1. खून होने के बाद हवेली में तूफान सा आ गया था. हर किसी का ध्यान जै की तरफ था. तो क्या ये मुमकिन नही के जिसने भी खून किया, वो उस मौके का फ़ायडा उठाकर कमरे में दाखिल हुआ और धीरे से सिट्कॅनी लगा दी जिससे ये लगे के खिड़की पहले से ही अंदर से बंद थी.

2. दूसरी बात के लिए ख़ान ने सिट्कॅनी उपेर की और खिड़की खोली. उसने सिट्कॅनी को घुमा कर टेढ़ा नही किया, बस सीधा सीधा ही उपेर की ओर खींच दी. फिर वो खिड़की पर चढ़ा और बाहर कूद गया. बाहर निकल कर उसने खिड़की को धीरे से बंद करना शुरू किया. जब खिड़की के दोनो किवाड़ तकरीबन बंद हो ही गये तो उसने एक झटके से खिड़की को बंद कर दिया.

झटका लगने की वजह से उपेर की और सीधी खींची हुई सिट्कॅनी नीचे कुंडे में जा गिरी और खिड़की अंदर की तरफ से बंद हो गयी.

कल्लो से आखरी बार बात करने के बाद रूपाली के दिल को जैसे सुकून सा मिल गया था. उसका ये डर के कल्लो कहीं किसी से ये ना कह दे के रूपाली ने उनको देखा था अब जा चुका था. बल्कि कल्लो का उससे डर कर ये विनती करना के वो किसी से शिकायत ना करे उसको और हौसला दे रहा था.

इसके बाद कुच्छ दिन तक रूपाली की कल्लो से इस बारे में कोई बात नही हुई. कल्लो अब भी काफ़ी संभाल गयी थी. रूपाली ने कई बार कोशिश की पर कल्लो तो शंभू काका से इस तरह दूर रहने लगी थी जैसे काका में काँटे उग आए हों. चाहकर भी रूपाली उन दोनो को फिर साथ में नही देख सकी.

उस दिन वो अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी पढ़ रही थी. एग्ज़ॅम्स पास आ रहे थे और पिच्छले कुच्छ दिन से उसका ध्यान पढ़ाई में नही लग रहा था. फैल होने का मतलब वो अच्छी तरह जानती थी इसलिए अपने बाप के डर से किताबों में सर खपा रही थी.

तभी कल्लो उसके कमरे में दाखिल हुई और झाड़ू लगाने लगी. उसने सफेद एक सलवार कमीज़ पहेन रखा था और गले में दुपट्टा नही था.

पढ़ते पढ़ते रूपाली ने एक नज़र कल्लो पर डाली और फिर किताब की तरफ देखने लगी. पर उस एक झलक में उसे जो दिखाई दिया उसने रूपाली को दोबारा नज़र उठाने पर मजबूर कर दिया.

कल्लो झुकी हुई झाड़ू लगा रही थी और उसकी कमीज़ के गले से काले रंग में बंद उसकी चूचियाँ सॉफ दिखाई दे रही थी.

रूपाली ने चोर नज़र से फिर एक बार कल्लो की चूचियो की तरफ देखा. उसकी बड़ी बड़ी काली छातियाँ हर बार रूपाली की नज़र को जैसे बाँध सी लेती थी और इस बार भी यही हुआ. पहले चोर नज़र से देखती रूपाली अब बेख़बर होकर कल्लो की चूचियो को घूर रही थी. जब भी झाड़ू लगाने के लिए कल्लो हाथ हिलाती, उसकी चूचियाँ हिलती और ना जाने क्यूँ उनको देखने में रूपाली को एक अजीब सा मज़ा आने लगा.

उसका इस तरह से देखना कल्लो से छुपा ना रहा. उसको एहसास हो गया के रूपाली क्या देख रही थी और वो फ़ौरन खड़ी होकर अपनी कमीज़ ठीक करने लगी.

"ऐसे क्या देख रही हो बीबी जी" कल्लो शरमाते हुए बोली

और ना जाने कहाँ से रूपाली के अंदर इतनी हिम्मत आई पर इससे पहले के उसको खुद भी एहसास होता, वो बोल पड़ी.

"कितने बड़े बड़े हैं तेरे"

जब रूपाली को एहसास हुआ के वो क्या बोल गयी तो उसने खुद अपनी ज़ुबान काट ली. उसकी बात सुनकर कल्लो भी शर्मा सी गयी.

"आप भी ना बीबी जी" कल्लो बोली "कैसी बातें करती हैं"

और इस बार रूपाली ने ग़लती से नही पर खुद जान भूझ कर बात आगे बढ़ाई.

"नही सच कह रही हूँ" वो बोली "बहुत ज़्यादा बड़े हैं तेरे"

"जानती हूँ" कल्लो अपना गला ठीक करते हुए बोली "मुसीबत ही है ये भी एक"

"मुसीबत क्यूँ?" रूपाली ने पुछा

"अजीब से लगते हैं इतने बड़े बड़े" कल्लो ने फिर झाड़ू लगाना शुरू कर दिया "सबसे पहले सबकी नज़र यहीं पड़ती है"

"सब कौन" रूपाली ने शरारत से पुछा

"सब मतलब सब" कल्लो बोली "जैसे के आपकी नज़र भी तो यहीं पड़ी ना जबकि आप तो खुद एक लड़की हो"

"ह्म्‍म्म" रूपाली बोली "तो अच्छी बात होगी ना. सब तुझे ही देखते होंगे"

कल्लो इस बात पर हस पड़ी

"कोई घूर घूर कर आपकी छातियो को देखे तो इसमें अच्छा क्या है. आपके खुद के इतने बड़े होते तो पता चलता"

इस बात पर रूपाली भी हस पड़ी.

"वैसे मर्द घूर घूर कर देखे तो समझ आता है पर आप ऐसे क्या देख रही थी?"

"पता नही" रूपाली बच्चे की तरह इठलाते हुए बोली "अच्छे लग रहे थे तेरे"

"आपके खुद के पास भी तो हैं"

"हां पर तेरे जैसे बड़े बड़े नही हैं" रूपाली ने जवाब दिया

कुच्छ देर तक कल्लो खामोशी से झाड़ू लगाती रही और फिर अपना काम ख़तम करके जाने लगी.

"रुक" रूपाली ने उसो पिछे से आवाज़ दी. कल्लो उसकी तरफ पलटी.

"एक बार और दिखा दे ना" रूपाली ने कहा

कल्लो जैसे उसकी बात सुन कर सकते में आ गयी.

"कैसी बात कर रही हो मालकिन"

"अर्रे मुझसे क्या शर्मा रही है. मैं भी तो लड़की ही हूँ" रूपाली ने कहा

"फिर भी" कल्लो शर्मा गयी "इसका मतलब ये थोड़े ही है के मैं दुनिया जहाँ की औरतों को दिखाती फिरुन्गि"

"दुनिया जहाँ की नही बस मुझे दिखा दे" रूपाली उसको चिड़ाते हुए बोली

"अपने देख लो ना अगर इतना शौक है तो" कल्लो भी हासकर बोली

"वो तो रोज़ ही देखती हूँ. आज तू दिखा दे"

कल्लो ने इनकार में गर्दन हिला दी.

"देख मैं तेरे और शंभू काका के बारे में ......"

"दिखाती हूँ" कल्लो ने उसकी बात भी पूरी नही होने दी और नीचे को झुक गयी

"ऐसे नही" रूपाली ने कहा

"तो फिर?" कल्लो ने पुछा

"पूरा खोलके दिखा" रूपाली ऐसे अड़ गयी थी जैसे कोई छ्होटा बच्चा किसी खिलोने की ज़िद कर रहा हो

"नही बिल्कुल नही" कल्लो उठकर सीधी खड़ी हो गयी

"तो फिर मैं मम्मी पापा को ..... " रूपाली ने कहना शुरू ही किया था के कल्लो ने फिर उसकी बात काट दी

"ठीक है"

क्रमशः........................................
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