RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --28
गतान्क से आगे........................
कल्लो के करीब होने के वजह से अब रूपाली को उसको चूचियाँ नज़र नही आ रही थी. बस उन दोनो के जिस्म के बीच रूपाली अपने हाथ घुसाकर चूचियाँ दबाए जा रही थी. कल्लो की उखड़ी हुई गरम साँस उसको अपने गले पर महसूस हो रही थी जो धीरे धीरे उसके पुर जिस्म को गरम कर रही थी.
नशे की सी हालत में कल्लो आहें भर रही थी और जब रूपाली ने एक बार फिर उसके निपल्स को दबाया तो वो और भी रूपाली से सॅट गयी. और तब पहली बार रूपाली को उसकी छातियाँ अपनी खुद की छातियों पर महसूस हुई.
एक अजीब सा मज़ा उसके शरीर में भर गया. पहली बार था के किसी और औरत की छातियाँ उसको अपनी छातियों पर महसूस हो रही थी और रूपाली के आनंद की जैसे कोई सीमा नही रही.
और यही वो वक़्त था जब उसको पहली बार समझ आया के क्यूँ कल्लो उसको बार बार अपनी चूचियाँ दबाने को कहती रहती है.
कल्लो की चूचियो का दबाव जब उसकी अपनी चूचियो पर पड़ा तो रूपाली ने भी अपने हाथ चूचियो से हटाकर कल्लो के पीठ पर रख लिए और उससे सॅट गयी. ऐसा करने का उसका इरादा बस यही था के अपनी चूचियों के और ज़ोर से कल्लो की चूचियों पर दबाए. ऐसा करने से उसके सीने में ऐसे एक करेंट सा दौड़ रहा था और वो और कस्के कल्लो से सटी जा रही थी.
कल्लो फ़ौरन समझ गयी के रूपाली क्या करने की कोशिश कर रही है. उसके हाथ रूपाली की पीठ से हटे और दोनो के जिस्म के बीच आते हुए साइड रूपाली की जवान होती चूचियो पर आ गये.
वो पहला मौका था के रूपाली ने अपने जिस्म पर अपने सिवाय किसी और के हाथों को महसूस किया था. कल्लो ने उसकी चूचियो को एक ही पल में ऐसे रगड़ दिया के दर्द की एक लहर उसके पुर जिस्म में दौड़ गयी.
"आआहह कल्लो" रूपाली बोली "धीरे से"
उधर कल्लो भी उसका इशारा समझ गयी. रूपाली ने उसको रोकने की कोई कोशिश नही की थी. उसने अपने हाथों को थोड़ा सा ढीला छ्चोड़ा और रूपाली की चूचियों को मसल्ने लगी.
रूपाली ने पूरी तरह से कल्लो से लिपट गयी. कल्लो कर सर उसके कंधे पर और उसका कल्लो के कंधे पर ऐसे था जैसे दोनो गले मिल रही हों. कल्लो ने एक बार फिर अपने हाथ का दबाव बढ़ाया और पूरे ज़ोर से रूपाली की चूचियो को दबाने लगी.
उधर रूपाली का जिस्म थोड़ी देर के लिए ऐंठ गया और फिर अपने आप ही ढीला पड़ता चला गया. उसके पूरे शरीर में आनंद की एक लहर सी दौड़ गयी और उसे ऐसा लगने लगा जैसे के वो नशे में हो, जैसे हवा में उड़ रही हो. कल्लो के जिस्म पर उसके गिरफ़्त ढीली पड़ गयी और वो धीरे धीरे बिस्तर पर गिरती चली गयी.
कल्लो ने उसको सहारा देकर सीधा लिटाया. रूपाली की आँखें अब बंद हो चली थी. 2 हाथ अब भी उसकी चूचियाँ दबा रहे थे.
"आआअहह छ्होटी मालकिन" उसको कल्लो की आवाज़ सुनाई दी तो उसने अपनी आँखें खोली "कितनी सख़्त हैं आपकी चूचियाँ"
रूपाली ने आँखें खोलकर देखा. अंधेरे में भी अब उसको साफ दिखाई दे रहा था. कल्लो साइड में लेटी उसके उपेर झुकी हुई थी. उसके बाल खुले हुए थे और उसकी चूचियाँ नीचे को और लटक रही थी.
अचानक कल्लो के हाथ रूपाली के सीने से हटे और वो सीधी होकर बैठ गयी. रूपाली ने नज़र घूमाकर देखा के वो क्या कर रही है. कल्लो अपनी कमर पर बँधी सारी को ढीला कर रही थी.
"पूरी नंगी?" रूपाली ने मन ही मन सोचा और उसको समझ नही आया के क्या करे.
और उसका शक सही निकला. कल्लो ने पहले अपनी सारी और फिर अपना पेटिकट उतारकर वहीं बिस्तर के नीचे गिरा दिया और पूरी नंगी होकर रूपाली से आकर सॅट गयी.
रूपाली को साइड से अपने हाथ पर कल्लो का पेट और उसकी नंगी जाँघ महसूस हुई.
"कल्लो?" उसके मुँह से सवाल की शकल में नाम निकला
"ष्ह्ह्ह्ह्ह" कल्लो ने अपने होंठों पर अंगुली रखते हुए कहा "बस मज़े लो. आज में आपको पहली बार जन्नत की सैर करती हूँ"
और फिर कल्लो ने वो किया जिसके लिए रूपाली बिल्कुल तैय्यार नही थी पर उसने कल्लो को रोकने की कोशिश भी नही की.
साइड में लेटी हुई कल्लो सरक कर पूरी तरह रूपाली के उपेर आ गयी. उसके वज़न के नीचे रूपाली को एक पल के लिए तकलीफ़ हुई पर अगले ही पल जैसे उसके जिस्म ने खुद ही अपने आपको अड्जस्ट कर लिया और कल्लो का वज़न उसे बिल्कुल भी महसूस होना बंद हो गया.
रूपाली को अब अपनी कोई होश नही रही और वो एक लाश की तरह बिस्तर पर लेटी रही. कल्लो अपनी टाँगें उसके दोनो तरफ रखे उसके उपेर सवार थी और बस रूपाली नीचे आँखें बंद किए लेटी एक अंजाने से एहसास में डूबी जा रही थी.
कल्लो की गरम साँस उसको अपने चेहरे पर महसूस हुई और फिर उसके होंठ अपने माथे पर. उसने रूपाली के माथे को चूमा, फिर बारी बारी उसके दोनो गालों को, फिर उसके गले पर, फिर नाइटी के उपेर से ही उसकी दोनो छातियो को एक एक करके चूमा और धीरे धीरे नीचे सरकने लगी.
रूपाली ने एक बार फिर आँखें खोलकर देखा. पूरी तरह से नंगी कल्लो उसके उपेर बैठी सी हुई थी और उसके जिस्म को चूमते हुए धीरे धीरे नीचे सरक रही थी. रूपाली ने एक आह भरी और फिर अपनी आँखें बंद कर ली.
उसकी टाँगों को चूमते हुए कल्लो रूपाली के घुटनो तक आई और फिर उसकी पिंदलियों पर हाथ रख कर नाइटी को उपेर सरकाने लगी.
"मुझे भी नंगी करेगी क्या?" रूपाली के दिमाग़ में सवाल बिजली की तरह उठा पर कल्लो को रोकने की ना तो उसमें हिम्मत थी और ना ही ताक़त. अपना जिस्म उसको किसी चिड़िया के पंख की तरह हल्का महसूस हो रहा था. आँखें भारी हो रही थी और उसमें जैसे इतनी भी जान नही बची थी के अपने हाथ उपेर उठा सके.
कल्लो ने धीरे धीरे उसकी नाइटी को रूपाली के पेट तक सरका दिया. सोते वक़्त रूपाली नाइटी के नीचे ना तो पॅंटी पेहेन्ति थी और ना ही ब्रा. नाइटी के उपेर सरकते ही उसे ठंडी हवा सीधी अपनी चूत पर महसूस हुई.
"नंगी कर दिया मुझे" रूपाली की दिमाग़ में फिर ख्याल उठा. ये पहली बार था के उसकी चूत किसी और के सामने खुली थी, भले ही वो कोई और एक औरत ही थी.
कल्लो यहाँ भी आकर रुकी नही. उसने नाइटी को सरकाना जारी रखा और थोड़ी ही देर बाद रूपाली की चूचियाँ भी पूरी खुली हुई थी. और फिर कल्लो ने रूपाली के कंधो को सहारा देकर थोड़ा उपेर किया और नाइटी को पूरी तरह उतार कर नीचे फेंक दिया.
"मैं नंगी हूँ ... नंगी" रूपाली का दिमाग़ फिर चिल्लाया. ठंडी हवा अब उसको अपने पूरे जिस्म पर महसूस हो रही थी.
कुच्छ देर अपने जिस्म पर जब उसे कुच्छ भी महसूस नही हुआ तो उसने आँखें खोल कर देखा. कल्लो उसकी बगल में बैठी उसको निहार रही थी.
"मालकिन" जब उसने देखा के रूपाली उसकी तरफ देख रही है तो वो बोली "बहुत सुंदर हो आप. ये कच्चे आम तो आज मैं ही खाऊंगी"
इससे पहले के रूपाली को कुच्छ समझ आता, कल्लो नीचे को झुकी और रूपाली का छ्होटा सा निपल अपने मुँह में ले लिया.
"कल्लो !!! क्या कर रही?" रूपाली बस इतना ही कह सकी. कल्लो को रोकने की ताक़त उसमें अब भी जैसे नही थी.
"बस आप मज़े लो" कल्लो ने कहा और फिर रूपाली के जिस्म पर ऐसे टूट पड़ी जैसे बरसो के भूखे को खाना मिल गया हो.
वो सरक कर फिर पूरी तरह रूपाली के उपेर आ गयी और अपने दोनो हाथों में रूपाली की चूचियाँ को पकड़कर बारी बारी चूसने लगी.
रूपाली को अब अपना कोई होश नही था. उसको बस इतना पता था के उसके जिस्म में एक करेंट सा उठ रहा था जो उसके दिमाग़ को सुन्न और उसकी आँखों को भारी कर रहा था.
कल्लो के हाथ उसको अब अपने पूरे जिस्म पर महसूस हो रहे थे. कभी पेट पर, कभी टाँगो पर, कभी छाती पर, कभी चेहरे पर.
फिर वो हाथ सरक कर रूपाली की टाँगो के बीच गया और सीधा उसको चूत पर आ गया. रूपाली का पूरा जिस्म ज़ोर से हिला, उसकी कमर ने ज़ोर का झटका खाया, एक लहर उसकी टाँगो के बीच से उठकर उसके दिमाग़ से टकराई और फिर रूपाली को कुच्छ याद नही रहा.
भारी होती आँखें अब पूरी तरह बंद हो गयी और रूपाली अपने होश पूरी तरह खो बैठी.
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अपनी जीप में बैठा ख़ान गाओं से गुज़रता पोलीस स्टेशन की तरफ जा रहा था. तभी उसकी नज़र सामने सड़क पर चलती बिंदिया पर पड़ी.
दोपहर का वक़्त था. सड़क पर बिंदिया के सिवा कोई नही था. ख़ान ने उसके करीब ले जाकर जीप रोकी.
"कहाँ जा रही हो?"
बिंदिया रुक गयी.
"बस यहीं थोड़ा कुच्छ काम से जा रही थी साहब"
ख़ान ने बिंदिया को एक नज़र उपेर से नीचे तक देखा. एक पुरानी सी सारी में लिपटी वो गाओं की सीधी सादी औरत थी. कद उसका थोड़ा लंबा था और उसको देखकर ही कोई ये कह सकता था के इस औरत ने शारीरिक काम बहुत किया है. उसका पूरा शरीर एकदम गठा हुआ था, कहीं चर्बी का ज़रा भी नाम-ओ-निशान नही.
"वो चंदू के साथ सोती है वो, पता नही कब्से ऐसा चल रहा है" अचानक ख़ान को जै की कही बात याद आई.
बिंदिया को देख कर कोई ये नही कह सकता था के ऐसा हो सकता है. उसकी शकल को देख कर तो लगता था के वो एक अपनी इज़्ज़त संभालने वाली औरत है.
"क्या जै ग़लत हो सकता है?" ख़ान ने दिल ही दिल में सोचा
"कुच्छ काम था साहिब?" बिंदिया की आवाज़ सुनकर ख़ान का ध्यान टूटा.
"हां ऐसा करना के शाम को ज़रा चोव्कि आ जाना" उसने बिंदिया से कहा
"क्यूँ?"
"कुच्छ सवाल करने हैं तुमसे"
"मैं जितना जानती थी पहले ही बता चुकी हूँ. इससे ज़्यादा मुझे कुच्छ नही पता साहब" बिंदिया ने फिर वही 2 टूक़ जवाब दिया.
ख़ान जानता था के वो इस औरत के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती से काम नही ले सकता था और ना ही उसपर पोलीस वाला रोब झाड़ सकता था. इसको कुच्छ कहना मतलब सीधा ठाकुर खानदान से उलझना, मतलब सीधा एक फोन किसी नेता या मंत्री या किसी पहुँचे हुए आदमी को, मतलब ख़ान के लिए मुसीबत.
"अगर जै ग़लत हुआ तो?" ख़ान ने दिमाग़ में फिर सवाल उठा "अगर मैने इस औरत पर ऐसा कोई इल्ज़ाम लगाया तो बखेड़ा खड़ा हो सकता है"
"देखो" ख़ान ने कहना शुरू किया
"अगर जै झूठ बोल रहा है तो?" ख़ान का दिमाग़ फिर चिल्लाया "पर वो झूठ क्यूँ बोलेगा. वो जानता है के उसको मौत की सज़ा होने वाली है"
"हां कहिए" बिंदिया ने ख़ान को सोचते देख फिर सवाल किया
"चान्स तो लेना पड़ेगा" ख़ान ने दिल ही दिल में सोचा "इस बार जै की कही बात पर यकीन करना पड़ेगा"
"मैं जानता हूँ के तुमने जो मुझे बताया उससे कहीं ज़्यादा जानती हो तुम और छुपा रही हो" उसने आख़िर में अंधेरे में तीर चलाने का फ़ैसला कर ही लिया.
"क्या मतलब?" बिंदिया ने चौंकते हुए पुचछा
"मतलब ये के या तो तुम सीधे सीधे मेरे हर सवाल का सही जवाब दो और मुझे सब बता दो नही तो मैं सबको बता दूँगा" ख़ान के दिल की धड़कन तेज़ हो गयी.
उसने आस पास नज़र दौड़ाई ये तसल्ली करने के लिए के अगर यहाँ थप्पड़ पड़ा तो कोई देख तो नही रहा. किसी औरत से वो पहली बार पंगा ले रहा था.
"कमाल हैं" उसने दिल ही दिल में सोचा "एक मामूली औरत से इसलिए डरना पड़ रहा है के वो एक बड़े घर में काम करती है.
"क्या बता देंगे सबसे?" बिंदिया ने हैरत से पुछा
"तुम्हारा राज़" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा
"कौन सा राज़?" बिंदिया के चेहरे का रंग बदल रहा था.
क्रमशः........................................
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