RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --29
गतान्क से आगे........................
ख़ान समझने की कोशिश कर रहा था के ये रंग डर का है या गुस्से का.
"तुम्हारा और चंदू का राज़" उसने सीधे चोट की
और अगले ही पल वो समझ गया के उसका तीर निशाने पर लगा है. जै सच कह रहा था.
"क्या मतलब है आपका?" बिंदिया ने हकलाते हुए पुछा
"देखो बिंदिया" ख़ान ने थोड़ा अकल्मंदी से काम लेना ठीक समझा. ज़ाहिर सी बात थी के बिंदिया इतनी आसानी से तो मानने वाली नही थी
"मैं तो यहाँ नया ही हूँ तो इसलिए मुझे तो ये बातें पता नही हो सकती. किसी ने बताया ही है मुझे. किसी ऐसे ने जिसने के तुम्हें देखा है. अब सोच लो. ये बात झूठ ही सही, पर अगर उड़ गयी तो तुम्हारा क्या बनेगा. उस लड़के के साथ जिसे तुम अपना बेटा कहती हो ....."
"बस" बिंदिया ने बात काट दी "सरासर झूठ है ये. किसने बताया आपको?"
ये ऐसे नही मानेगी. ख़ान ने दिल ही दिल में सोचा.
"जब वो छ्होटा था तबसे ही रह रहा है ना वो तुम्हारे साथ. तो मुझे क्या पता के कब्से ऐसा कर रही हो तुम उसके साथ. इसलिए एक नाबालिग से ऐसा रिश्ता बनाने के जुर्म में, या यूँ कहो के ऐसा तुमने किया इस बात की शक की बिना पर मैं तुम्हें गिरफ्तार कर सकता हूँ. बाद में भले झूठ साबित हो, पर फिर बात उड़ तो जाएगी ही. और वो भी एक ऐसा बच्चे जो अपाहिज था? गूंगा था?"
वो खुद भी दिल में जानता था के ये बात कितनी बड़ी बकवास है. कोई भी अकल्मंद पढ़ा लिखा आदमी हँसेगा उसकी बात पर. पर गाओं की एक अनपढ़ औरत शायद फस जाए. और उसका शक सही निकला.
"क्या पूछना चाहते हैं आप?" जिस तरह से बिंदिया के चेहरे का रंग उड़ चुका था उससे ख़ान समझ गया था के वो यक़ीनन चंदू के साथ सो रही थी.
"यहाँ नही" उसने बिंदिया से कहा "शाम को थाने आ जाना
"शाम को नही आ पाऊँगी" बिंदिया ने जवाब दिया
"तो कल आ जाना" ख़ान ने कहा और जीप स्टार्ट की
"किसी से कहेंगे तो नही ना आप?" बिंदिया ने डरते डरते सवाल किया
"तो मतलब बात सच है?" ख़ान ने मुस्कुराते हुए पुछा
बिंदिया को देख कर ही लग रहा था के वो शरम से मरी जा रही है.
"किसने बताया आपको?" बिंदिया ने नज़र नीची किए हुए सवाल किया
"इश्क़ और मुश्क़ च्छुपाए नही च्छुपते मेरी जान" ख़ान ने कोरे पॉलिसिया अंदाज़ में कहा और जीप आगे बढ़ा दी.
थाने पहुँचकर वो अपनी टेबल पर बैठा और जेब से अपना मोबाइल निकाला.
2 मिस्ड कॉल्स.
पहली डॉक्टर. अस्थाना की. इसी ने ठाकुर साहब का पोस्ट मॉर्टेम किया था.
दूसरी ठाकुर के वकील देवधर की. ख़ान ने दिन में 2 बार इसका नंबर ट्राइ किया था पर उसने उठाया नही था.
पहली कॉल ख़ान ने डॉक्टर. अस्थाना को मिलाई.
"हां डॉक्टर. साहब" दूसरी तरफ से कॉल रिसीव होने पर उसने कहा
"एक बात बताना चाहता हूँ आपको" अस्थाना ने कहा
"हां कहिए"
"पहले आप भरोसा दिलाएँ के किसी से इस बात का ज़िक्र नही करेंगे"
ख़ान चौंक पड़ा.
"मैं ज़ुबान देता हूँ" उसने सोचते हुए कहा
दूसरी तरफ थोड़ी देर खामोशी रही.
"देखिए ये बात आपको बताने की वजह से मेरी जान भी जा सकती है इसलिए प्लीज़ अपना वादा भूलना मत" अस्थाना बोला
"आप बेफिकर रहिए" ख़ान बोला "ये बात मेरे से आगे नही जाएगी"
फिर थोड़ी देर खामोशी.
"पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट में एक बात लिखी नही थी मैने" अस्थाना आख़िर में बोल पड़ा
"कौन सी बात?" ख़ान ने पुचछा
"देखिए इसमें मैं कुच्छ नही कर सकता था. मुझपर बहुत दबाव था के मैं इस बात का रिपोर्ट में कोई ज़िक्र ना करूँ. धमकी दी गयी थी मुझे"
"कौन सी बात?" ख़ान ने फिर पुछा
फिर थोड़ी देर खामोशी.
"पोस्ट मॉर्टेम में ठाकुर साहब के जिस्म पर किसी औरत के वेजाइनल डिसचार्ज के ट्रेसस मिले थे" अस्थाना ऐसे बोला जैसे दुनिया का सबसे बड़ा राज़ बता रहा हो
ख़ान को उसकी बात का मतलब समझने में एक पल लगा.
"मतलब ......"
"जी हां" अस्थाना उसकी बात ख़तम करने से पहले ही बोल पड़ा "ठाकुर साहब मरने से कुच्छ वक़्त पहले ही किसी के साथ हम-बिस्तर हुए थे"
ख़ान पे जैसे एक बॉम्ब सा गिरा
"इतनी ज़रूरी बात पोस्ट मॉर्टेम से निकाल दी आपने?"
"दबाव था मुझपर" अस्थाना बोला
ख़ान उसकी बात समझ गया. वो एक पोलीस वाला होते हुए एक मामूली नौकरानी से डर रहा था, अस्थाना तो बेचारा एक सीधा शरीफ डॉक्टर था.
"और अब ये क्यूँ बता रहे हैं आप मुझे?" ख़ान ने पुछा
"ठाकुर साहब का एक एहसान था मुझपर. मैं भी चाहता हूँ के उनका क़ातिल पकड़ा जाए. इसलिए मैने ये बात भी आपको बता दी के शायद इससे कुच्छ मदद मिले"
"और ये बात ग़लत हुई तो?" ख़ान ने सवाल किया
"पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट की ओरिजिनल अनेडिटेड कॉपी अब भी मेरे पास है" अस्थाना बोला
थोड़ी देर फिर खामोशी रही.
"ये बात सच है" अस्थाना ने कहा और फोन रख दिया
ख़ान का दिमाग़ जैसे चक्कर खा गया.
ठाकुर हमबिस्तर हुआ था किसी के साथ. पर किसके? उसकी बीवी तो इस काम की थी ही नही.
और ज़ाहिर सी बात है के इसीलिए इस बात को दबाया गया. अगर बीवी नही तो कौन सो रही थी ठाकुर के साथ?
ज़रूर ठाकुर के बेटो ने ही इस बात को पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट से हटवाया होगा.
और उस रात फोन भी तो मुझे किसी औरत ने ही किया था, खून की जानकारी देने के लिए जो बाद में सामने नही आई.
सोचते सोचते ख़ान ने देवधर का नंबर मिलाया.
"मैं आपसे ठाकुर साहब की वसीयत के बारे में पुच्छना चाह रहा था" देवधर के फोन उठाने पर ख़ान ने कहा.
"जी पुछिये" देवधर बोला
"कौन है बेनिफिशीयरी?" ख़ान ने पुचछा
"वैसे तो मैं ये बात आपको बताने से इनकार कर सकता हूँ पर फिर आप कोर्ट से ऑर्डर लाएँगे के ये इन्फर्मेशन आपको मर्डर इन्वेस्टिगेशन के लिए चाहिए और फिर वैसे भी ये वसीयत अब खोली ही जाएगी इसलिए मैं बता ही देता हूँ" देवधर ऐसे बोला जैसे ख़ान पर एहसान कर रहा हो
"ह्म्म्म्मम" ख़ान ने अपना गुस्सा पीते हुए हामी भरी
"5 लोग हैं बेनिफिशीयरी" देवधर बोला
ठाकुर के 3 बेटे, 1 बेटी और बीवी. ख़ान ने दिल ही दिल में सोचा
"ठाकुर साहब के 3 बेटे, बेटी और उनकी नौकरानी की बेटी पायल" ख़ान पर उस दिन का दूसरा बॉम्ब आकर गिरा.
वो अभी सोच ही रहा था के उसने सही सुना या ग़लत के फिर तीसरा बॉम्ब भी आ गिरा.
"वैसे तो ये वसीयत ठाकुर साहब बदलना चाहते थे पर अब वो रहे नही तो यही अप्लिकबल विल है"
"बदलना चाहते थे?" ख़ान ने पुछा
"हां मरने से 2 दिन पहले फोन किया था मुझे पर फिर बिज़ी होने की वजह से ना मैं उनसे मिलने जा सका और ना वो मिलने आ सके"
अगले दिन सुबह ख़ान देवधर के ऑफीस में उसके सामने बैठा था.
"काफ़ी इंटेरेस्ट है आपको विल में. कहीं अपना नाम तो एक्सपेक्ट नही कर रहे थे?" देवधर ने हस्ते हुए पुछा
"काश ऐसा होता के हमें भी कोई लाखों करोड़ों की जयदाद छ्चोड़के जाता" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "पर अपना तो वही हाल है के सारा दिन मेहनत करके कमाओ तो 2 वक़्त की रोटी खाओ"
ख़ान की बात पर दोनो हस पड़े.
"वसीयत के लिए इतना दूर आने की क्या ज़रूरत थी आपको? फोन पर ही बात कर लेते" देवधर ने कहा
"नही असल में आया तो मैं किसी और काम से हूँ. सोचा आपसे भी मिलता चलूं"
"ज़रूर" देवधर ने वसीयत निकालते हुए कहा "कहिए क्या जानना चाहते हैं"
"वसीयत कब बदली गयी थी?" ख़ान ने सवाल किया
"यही कोई 3 साल पहले"
"क्या बदलाव था?"
"पहले 4 लोगों के नाम थे, 3 साल पहले पायल का भी नाम जोड़ दिया था ठाकुर साहब ने"
"4 लोग?" ख़ान ने शक्की अंदाज़ में सवाल किया
"हां" देवधर वसीयत की तरफ देखता हुआ बोला "ठाकुर साहब के 4 बच्चे"
"और ठकुराइन?"
"उनका नाम तो कोई 12-13 साल पहले ही हटा दिया था ठाकुर साहब ने" देवधर सिगरेट जलाते हुए बोला.
हाथ बढ़ा कर उसने एक सिगरेट ख़ान को ऑफर की.
"ठकुराइन का नाम हटाने की कोई वजह?" ख़ान ने सिगरेट का कश लगते हुए कहा
"कोई वजह तो ज़रूर होगी ही ख़ान साहब पर अगर आप ये उम्मीद कर रहे हैं के मुझे वजह पता है तो ग़लत उम्मीद कर रहे हैं"
"आप वकील थे" ख़ान ने उम्मीद भरे आवाज़ में कहा
"और सिर्फ़ वकील बने रहने में भलाई थी मेरी. ज़्यादा अपनी नाक उनके घर के मामलो में घुसाता तो मुझे काट के फेंक देते और नया वकील रख लेते"
"आपका कोई ख्याल के ऐसा क्यूँ हुआ हो सकता है के ठकुराइन को वसीयत से निकाल दिया गया?"
देवधर ने इनकार में गर्दन हिलाई.
"कोई ख्याल के घर की नौकरानी की बेटी को जायदाद का हिस्सेदार क्यूँ बनाया गया?"
देवधर ने फिर इनकार में सर हिलाया.
"आपको अजीब नही लगा?" ख़ान ने पुछा
"लगा था पर जब मैने पुछा के ऐसा क्यूँ तो मुझे सिर्फ़ ये कहा के वो नौकरानी की बच्ची को भी कुच्छ देकर जाना चाहते हैं क्यूंकी उसकी माँ उनकी बहुत देखभाल करती है"
"ह्म्म्म्मममम" ख़ान सोचते हुए बोला
थोड़ी देर दोनो खामोशी से सिगरेट के कश लगते रहे
"जब ठकुराइन का नाम हटाया गया था विल से, उस वक़्त कौन कौन था विल में?" कुच्छ देर बाद ख़ान बोला
"देखिए पहले 6 लोग थे" देवधर आराम से कुर्सी से टेक लगाता हुआ कहने लगा "ठाकुर साहब के 4 बच्चे, उनकी पत्नी और उनका भतीजा जै. कोई 15 साल पहले जै का नाम हटा दिया गया, फिर ठकुराइन का और अब पायल का नाम जोड़ दिया गया"
क्रमशः........................................
|