RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --30
गतान्क से आगे........................
ठीक जैसा की जै ने कहा था, 15 साल पहले उसका नाम वासेयत से हटाने की बात कर रहे थे जब उसको हवेली से निकल दिया था, ख़ान ने सोचा.
कोई एक घंटे बाद ख़ान ने शहर के बीच बने कब्रिस्तान के पास गाड़ी लाकर रोकी. ठीक आज ही के दिन उसकी माँ का इंतेक़ाल हुआ था और तबसे उसने ये आदत बना ली थी के हर महीने उस तारीख को कब्रिस्तान आता था.
सुबह के तकरीबन 11 बज रहे थे जब ख़ान ने सेंट्रल जैल के सामने अपनी जीप रोकी.
बाहर ब्लॅक कलर की एक मर्सिडीस खड़ी थी. ख़ान कार देखते ही समझ गया के ये गाड़ी हवेली की थी.
"जै से मिलने हवेली से कौन आया?" ख़ान सोच ही रहा था के उसको अपने सवाल का जवाब मिल गया. जैल का दरवाज़ा खुला और अंदर से कामिनी बाहर निकली.
और हमेशा की तरह ख़ान उसको फिर बस देखता ही रह गया. वो सावले रंग की आम सी शकल सूरत की लड़की थी पर उसके पूरे अंदाज़ में कुच्छ ऐसा था के नज़र बस उसपर अटक कर रह जाती थी.
ख़ान जीप में बैठा उसको देखता रहा. कामिनी जैल से बाहर निकली, अपनी गाड़ी में बैठी और चली गयी.
कुच्छ देर बाद ख़ान जै के सामने बैठा था. जै उसकी नज़र में सॉफ ज़ाहिर सवाल को देखकर फ़ौरन समझ गया के वो क्या पुच्छना चाह रहा था.
"पूरी हवेली में बस यही है शायद जिसे मेरे बेगुनाह होने पर यकीन है. आज मिलने चली आई थी" जै ने जवाब दिया
"कुच्छ ऐसा बताया इसने जिससे हमें मदद मिले?"
"कहाँ सर" जै ने जवाब दिया "सीधी सादी लड़की है बेचारी. घर में सब इसको भोली कहके बुलाते हैं"
"ह्म्म्म्म" ख़ान ने जवाब दिया
"आपको कुच्छ पता चला?" जै बोला
"तुम्हारी बात सही निकली बिंदिया के बारे में"
"आपने बात की उससे?" जै ने फ़ौरन सवाल किया
ख़ान ने हां में सर हिलाया
"क्या बोली?"
"डर गयी थी काफ़ी. मिलने आने वाली थी आज मुझसे और मैं उम्मीद कर रहा था के आज कुच्छ कोशिश करूँगा पता करने का उससे पर फिर मुझे कुच्छ काम था तो शहर चला आया.
"और किसी से बात?"
"नही यार. और सच कहो तो मुझे यही नही पता के बिंदिया से भी क्या पुछु. मुझे तो इतना भी यकीन नही के इसको कुच्छ पता भी है. अंधेरे में तीर चलाने वाली बात है"
"अगर उससे नही तो भूषण से बात करने की कोशिश कीजिए. काफ़ी टाइम से है वो हवेली में, सारी ज़िंदगी यहीं गुज़ारी है उसने अपनी. शायद कुच्छ पता चले"
"और उसकी भी कोई दुखती रग है?"
जै हस पड़ा
"नही दुखती रग तो नही है पर कमज़ोर है एक, गांजा. 2 कश साथ बैठा कर लगवा दीजिए, जो जानता है सब उगल देगा"
"ठीक है. करता हूँ बात, फिलहाल तो चलूं. एक दो काम और हैं मुझे"
तकरीबन 1 बजे ख़ान फिर गाओं पहुँचा. पता चला के बिंदिया उससे मिलने आई थी पर फिर इंतेज़ार करके चली गयी.
थोड़ी देर पोलीस स्टेशन में रुकने के बाद ख़ान अपने कमरे पर पहुँचा. दोपहर के 2 बज रहे थे, गर्मी और लू पूरे ज़ोर पर थी. सब अपने अपने घरो में दुब्के हुए थे.
वो खाना खाने को तैय्यार हो ही रहा था के दरवाज़ा खटखटने की आवाज़ आई. उसने उठकर दरवाज़ा खोला.
सामने बिंदिया खड़ी थी.
"तुम"? बिंदिया के अपने घर पर आया देखकर ख़ान चौंक पड़ा "यहाँ क्या कर रही हो?'
"थाने गयी थी सुबह पर पता चला के आप ही नही हो" बिंदिया ने कहा
"हां कुच्छ काम निकल आया था इसलिए जाना पड़ गया था" ख़ान बोला
"तो मैने सोचा के आपके घर जाकर ही मिल आऊँ"
"शाम को आ जाती. इतनी दोपहर में यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी"
"नही कोई बात नही. इधर से गुज़र रही थी तो सोचा के आपसे मिलती ही चलूं. शाम को हवेली में ज़रा ज़्यादा काम होता है इसलिए शायद आना होता या नही"
साली ऐसे जता रही है जैसे मुझसे मिलने आकर मुझपे एहसान करती, एक बड़ा आदमी शामिल हो जाए तो पोलिसेवला अकेला कुच्छ नही उखाड़ सकता, , ख़ान ने दिल ही दिल में सोचा.
"आओ अंदर आओ" उसने बिंदिया से कहा और दरवाज़े से हट गया.
ख़ान एक छ्होटे से सरकारी क्वॉर्टर में रहता था, 2 कमरे और किचन, टाय्लेट, बस.
बिंदिया अंदर आई तो ख़ान ने उसको ढंग से देखा. बाहर धूप तेज़ थी जिसकी वजह से वो एक पल के लिए बिंदिया को गौर से देख नही पाया था पर जब वो अंदर आई तो ख़ान ने एक नज़र उसपर डाली. उसने एक काले रंग की सारी
डाल रखी थी जिसके पल्लू को उसने अपने उपरी जिस्म पर चादर की तरह लपेट रखा था.
"बैठो" ख़ान ने सामने रखी एक कुर्सी की तरफ इशारा किया.
बिंदिया ने अब तक जो पल्लू अपने उपेर लपेट रखा था हटा दिया. अब उसकी सारी की पल्लू आम तौर पर उसके कंधे पर था जैसा की अक्सर सारी पहनी हुई औरतों का होता है. सारी के नीचे उसने एक स्लीव्ले ब्लाउस पहना हुआ
था.
"कहो" उसने एक दूसरी कुर्सी पर बैठते हुए कहा.
"मैं क्या कहूँ" बिंदिया बोली "आपने बुलाया था, आप कहिए के क्या चाहते हैं"
"ख़ास कुच्छ नही" ख़ान ने अपनी टेबल का ड्रॉयर खोलते हुए कहा "बस कुच्छ सवालों के जवाब"
"आपके सवाल मैं जानती हूँ और मेरा जवाब है हां" बिंदिया बोली
"हां?" ड्रॉयर में कुच्छ ढूँढते हुए ख़ान ने गर्दन उठाकर बिंदिया की तरफ देखा.
जवाब में बिंदिया उठकर सीधी खड़ी हो गयी और उसने अपनी सारी का पल्लू नीचे गिरा दिया. अगले ही पल ख़ान समझ गया के गर्मी होते हुए भी उसने यहाँ आते हुए अपनी सारी का पल्लू और उपेर क्यूँ लपेट रखा था.
उसका ब्लाउस एक तो स्लीव्ले और उपेर से बिल्कुल ट्रॅन्स्परेंट था. ब्लाउस के नीचे उसने कोई ब्रा नही पहेन रखी थी. ट्रॅन्स्परेंट ब्लाउस के नीचे उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ सीधे ख़ान की नज़रों के सामने थी.
ख़ान समझ गया के बिंदिया ने उसके डराने धमकाने का क्या मतलब निकाला था.
"मैं आपके सामने हूँ और जब तक आप यहाँ हैं, जब आप चाहेंगे आ जाऊंगी. बस मेरी इज़्ज़त मत उच्छालना नही तो मेरे पास मरने के अलावा और कोई चारा नही बचेगा"
ख़ान ने एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. उसके सामने खड़ी औरत की एक जवान बेटी थी पर उसके बावजूद खुद उसके जिस्म में कहीं कोई ढीलापन नही था. पेट पर कोई चर्बी नही और जिस्म अब भी पूरे शेप में था.
ब्लाउस के अंदर से झाँकति चूचियाँ ब्रा ना होने के बावजूद भी अब तक तनी हुई थी.
"चोदने की हिसाब से माल बुरा नही है" ख़ान के दिल में ख्याल आया.
एक पल को उसने फिलहाल मौके का फ़ायदा उठाने की सोची पर फिर अपना ख्याल बदल दिया.
"अपने आप को ढको प्लीज़" उसने ड्रॉयर से पेन और अपनी डाइयरी निकाली "और बैठ जाओ"
क्रमशः........................................
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