RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --33
गतान्क से आगे........................
ख़ान सिविल ड्रेस में था. उसने जेब से अपना आइडी कार्ड निकाला.
"अगर तो 1 मिनिट के अंदर अंदर यहाँ से दफ़ा नही हुआ तो जो डंडा तेरे हाथ में है वो तेरे पिच्छवाड़े में होगा"
हवलदार को जब एहसास हुआ के वो एक पोलीस इनस्पेक्टर से बात कर रहा है तो फ़ौरन सल्यूट की पोज़िशन में आ गया.
"सॉरी सर" और इससे पहले के ख़ान कुच्छ कहता, हवलदार चलता बना,
"वाउ!" जै ख़ान की हरकत देखकर बोला "आप तो सीरियस्ली काफ़ी गुस्से में हो. ऐसा क्या कर दिया मैने?"
"किसी रिपोर्टर से बात की तुमने?"
"मैने कई रिपोर्टर्स से बात की है" जै बोला
"एक लड़की ... यहाँ जैल में आई थी तुमसे मिलने को"
"ओह" जै बोला "किरण नाम था शायद"
"हां वही" ख़ान ने घूरते हुए कहा "क्या बात की?"
"ख़ास कुच्छ नही. उसने मुझसे एक दो सवाल किए और मैने यही कहा के मैं बेकसूर हूँ. फिर उसने आपका नाम लिया तो मैने कहा के आप मेरी मदद कर रहे हैं"
ख़ान चुप चाप जै को ऐसे देख रहा था जैसे अभी कच्चा चबा जाएगा.
"व्हाट?" जै ने हाथ फैलाते हुए सवाल किया
"अगली बार बिना मुझसे पुछे किसी से इस तरह की कोई बात की तो कसम है मुझे अपनी मरी हुई माँ की जै, फाँसी के फंदे तक तुम्हें मैं खुद छ्चोड़के आऊंगा"
ख़ान की बात सुनकर जै चौंक पड़ा और खामोशी से उसको देखता रहा.
"वो कह रही थी के वो मदद करना चाहती है इसलिए मैने सोचा ........"
"सोचने का काम मुझपे छ्चोड़ दो. तुम यहाँ बैठके सिर्फ़ एक काम करो, दुआ. दुआ करो के मैं तुम्हें बचा लूँ. समझे?"
जै फिर वैसे ही खामोशी से देखता रहा जैसे कोई बच्चा चोरी पकड़े जाने पर देखता है.
"देखो जै" ख़ान अपना गुस्सा ठंडा करता हुआ बोला "पहली बात तो ये के वो एक रिपोर्टर है और वो सिर्फ़ एक कहानी ढूँढ रही है. उसको कोई फरक नही पड़ता के तुम जियो या मरो. वो बस अपना मतलब देखेगी. दूसरा ये एक प्रेस में इस बात को उड़ाके तुम्हें कोई फ़ायदा नही होगा जैसा की तुम सोच रहे हो. सिर्फ़ आग को हवा मिलेगी और तुम्हें जल्दी से जल्दी निपटाने की कोशिश की जाएगी. बस ये जान लो तुम"
जै ने हां में गर्दन हिलाई.
"और वैसे भी, तुम्हारे मामले मैं तो मुझे ये लग रहा है के मैं कोई प्राइवेट डीटेक्टिव हूँ, एक पुलिस वाला नही"
"क्यूँ?"
"यार मैं खुल्ले तरीके से इसमें इन्वेस्टिगेट नही कर सकता. अगर बात ये फेली के मैं ओफ्फिसीयाली इसमें इन्वेस्टिगेट कर रहा हूँ तो मुझे कहीं और किसी केस पर लगा दिया जाएगा और फिर गये तुम"
जै ने समझते हुए हामी भरी.
"इतना जान लो के और केसस में पब्लिसिटी शायद अक्क्यूस्ड के फेवर में जाती है पर यहाँ नही. क्यूंकी यहाँ हर कोई बिक जाएगा ठाकुर ख़ानदान के हाथों. पोलीस से लेके प्रेस तक, सब. जब तक सब इस खुश फहमी में हैं के तुम्हें ही कातिल समझ लिया गया है तब तक कोई ज़्यादा शोर नही मचाएगा. बस खामोशी से फ़ैसले का इंतेज़ार करेंगे."
"ये यू आर राइट" जै बोला
"तो मेरे भाई, सब मुझपे छ्चोड़ दो और भरोसा रखो. मुझसे जो बन सकेगा मैं करूँगा और कर भी रहा हूँ. झूठी तसल्ली और वादे नही करूँगा के तुम्हें 100% बचा लूँगा पर ये तो मान ही लो के अगर मैं कुच्छ नही कर पाया, तो कोई और भी कुच्छ नही कर सकता था."
जब ख़ान जै से मिलकर वापिस अपने घर पहुँचा तो दरवाज़े की तरफ बढ़ते कदम अचानक रुक गये.
उसके घर के बाहर एक कार खड़ी थी और घर के दरवाज़े के पास आँगन में घर की दीवार से टेक लगाए किरण बैठी थी.
"तुम?" ख़ान इतना ही कह सका
"हां काफ़ी देर से तुम्हारा इंतेज़ार कर रही थी" किरण खड़ी होते हुए बोली
"क्यूँ?"
"3 घंटे से यहाँ अकेली बैठी हूँ. अंदर बुलाकर कम से कम एक ग्लास पानी तो पिला ही सकते हो. बहुत प्यास लगी है"
ख़ान ने चुप चाप लॉक खोला और अंदर आया.
"बैठो" उसने किरण को इशारा किया.
आज वो सालों बाद किरण से आमने सामने बात कर रहा था. आखरी बार जब उसने किरण से अकेले में बात की थी वो तब था जब वो भागने का प्लान बना रहे थे, और उसके बाद आज. सारा गुस्सा, दिल में भरी कुढन, किरण को भला बुरा कहने की सारी ख्वाहिशें जैसे पल में हवा हो चुकी थी.
उसने किरण को एक ग्लास में पानी लाकर दिया.
"और?" पानी का ग्लास खाली हो गया तो उसने पुछा
किरण ने इनकार में सर हिलाया.
"कुच्छ खाया है?" ख़ान ने पुछा और बिना जवाब का इंतेज़ार किए फ्रिड्ज खोलकर कुच्छ खाने को ढूँढने लगा.
उसको देख कर किरण हस पड़ी.
"आदत गयी नही तुम्हारी? पहले भी दिन में 10 बार मुझसे पुछ्ते थे के मैने कुच्छ खाया के नही"
"वो इसलिए क्यूंकी तुम कुच्छ खाती नही थी" ख़ान ने फ्रिड्ज से वो दलिया निकाला जो उसने सुबह बनाया था "खाने के नाम पर बस एक आपल खाया करती थी"
किरण मुस्कुरा पड़ी
"हां. मैं और मेरा डाइयेटिंग का भूत. क्या कर रहे हो?" वो ख़ान को स्टोव ऑन करते हुए देख कर बोली.
"कुच्छ खाने को गरम कर रहा हूँ"
"क्या?"
"दलिया"
"दलिया?" किरण ने हैरानी से पुचछा
"अकेला रहता हूँ....खाना बनाना नही आता मुझे. एक दो चीज़ें ही हैं जो बना लेता हूँ और दलिया उनमें से एक है" वो दलिया गरम करता हुआ बोला
उसने कई बार मन ही मन में सोचा था के अगर कभी किरण से मिला तो क्या करेगा. कभी ख्याल में उसको थप्पड़ मार रहा था, कभी गालियाँ दे रहा था और कभी कभी तो गोली भी मार दी थी. पर आज वो जब यूँ सामने आ खड़ी हुई तो उसके लिए दलिया गरम कर रहा था.
और यही हाल शायद किरण का भी था. जिस लड़की ने उसपर कभी अख़बार में इतना कीचड़ उछाला था, जो उसकी नौकरी खा जाने पर तुली थी, जिसके हर कोशिश ये थी के ख़ान जैल जाए आज उसके सामने फिर वही लड़की बनी बैठी थी जिसकी एक मुस्कुराहट पर ख़ान अपनी जान देने को तैय्यार रहता था.
"खा लो" वो दलिया एक प्लेट में डालकर लाया और किरण के सामने टेबल पर रख दिया.
"और तुम?"
"आदत तुम्हारी भी गयी नही" ख़ान उससे नज़र अब भी नज़र बचा रहा था "अपने खाने से पहले मेरे खाने का सोच रही हो"
किरण ने मुस्कुरा कर प्लेट उसकी तरफ खिसकाई.
"तुम भी खा लो" वो बोली
"नही मैने आते हुए रास्ते में खा लिया था" ख़ान ने कहा. अब तक दोनो एक दूसरे से ऐसे नज़र चुरा कर बात कर रहे थे जैसे अपनी अपनी कोई चोरी पकड़े जाने का डर हो.
"एक और पुरानी आदत. झूठ बोलना के मैं खा चुका हूँ. एक स्पून और ले आओ और खा लो"
"नही तुम खाओ. मैने सच में खा लिया" ख़ान एक ग्लास में पानी डालता हुआ बोला और एक नज़र किरण पर डाली.
"कैसे आना हुआ?"
"यू नो आइ आम सॉरी अबौट युवर मदर. आइ डिड्न्ट नो"
"इट्स ओके" ख़ान ने कहा
"ऑल दिस टाइम आइ थॉट दट यू रन अवे. पता ही नही था के तुम पर क्या गुज़री. आइ आम रियली सॉरी"
"आइ आम सॉरी टू" ख़ान ने कहा "मुझे समझना चाहिए था के तुम कर भी क्या सकती थी जबके मैं खुद ही कुच्छ नही कर सका"
"और तुम्हारा नाम और पता मैने नही दिया था. नाम तो ऑफ कोर्स डॅड को मेरे सामान की तलाशी लेने के बाद मिल गया था, वो कार्ड्स से जो तुमने मुझे दिए थे. और तुम्हारा अड्रेस उन्होने कॉलेज के प्रिन्सिपल से पुछ्कर कॉलेज रेकॉर्ड्स से निकाला था"
"मैं भागा नही था. तुम्हारे पास आ ही रहा था के तुम्हारे डॅड के आदमी मेरे घर आ पहुँचे और फिर उसके बाद ...." ख़ान बात पूरी नही कर सका.
और तब उसने पहली बार नज़र किरण से मिलाई. दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और जैसे सारे गीले शिकवे एक पल में ख़तम हो गये.
"हाउ कुड यू हेट हेर सो मच इफ़ यू स्टिल डिड्न्ट लव हर" ख़ान को कहीं पढ़ी एक बात याद आई.
"जै से मिले?" किरण ने पुछा तो ख़ान ने हां में गर्दन हिलाई.
"कोई चान्स?"
"कोशिश कर रहा हूँ उसको बचाने की"
और वो किरण के साथ पूरा केस ऐसे डिसकस करने लगा जैसे वो उसके साथ ही काम कर रही हो. ये ज़िद के किरण की कोई मदद नही चाहिए अंजाने में ही कबकि ख़तम हो चुकी थी.
वो ख़ान की बात गौर से सुनती किसी बच्ची की तरह दलिया खा रही थी. रेडियो अब भी ऑन था और एक गाना धीमी आवाज़ में बज रहा था.
हसीन कितना ज़्यादा हो गया है
जबसे तू और सादा हो गया है
घड़ी भर तेरी आँख में रह कर
पानी भी कितना खुषादा हो गया है
दिल धड़केगा तो तेरे ही नाम पर,
मेरा तुझसे ये वादा हो गया है.
जुदाई का गम तुझे भी रहा है शायद,
के अब तो तू भी आधा हो गया है.
"सच मानो तो मैने जै से वादा तो किया है के मैं उसको बचा लूँगा पर अब तक कोई ख़ास कर नही सका हूँ मैं" ख़ान बोला "बस कुच्छ लोगों से यहाँ वहाँ बात ज़रूर की है पर इसके सिवा और कुच्छ नही"
.............
ख़ान किरण से फोन पर बात कर रहा था. रात के 12 बज रहे थे और वो दोनो पिच्छले 2 घंटे से फोन पर लगे हुए थे. किरण उससे मिलकर वापिस घर चली गयी थी और जाते ही ख़ान को फोन कर दिया था.
"हर बार मैं उससे मिलने जाता हूँ तो वो मुझे उम्मीद भरी नज़र से देखता है के मैं कुच्छ ऐसा कहूँगा या बताऊँगा जिससे उसको लगेगा के वो बच जाएगा. पर अब तक मैं उसके लिए कुच्छ कर नही पाया हूँ"
"ऐसा क्यूँ?" किरण ने पुछा
ख़ान ने एक ठंडी साँस ली और किरण को पूरी बात बताने लगा.
"कम ऑन यार" बात ख़तम होने पर वो बोली "तुम एक पोलीस वाले हो, तुम्हारे हाथ में काफ़ी पवर है"
"और काफ़ी प्रेशर भी है यार. वैसे ही एक बार मेरी नौकरी जाते जाते बची है, फिर से चान्स नही ले सकता"
किरण फ़ौरन समझ गयी के नौकरी जाने की बात ख़ान किस वजह से कह रहा था.
"आइ आम सॉरी यार" वो बोली "मैं पता नही क्यूँ तुम्हें इतना बदनाम कर रही थी, बिना पूरी बात जाने"
"अर्रे नही" ख़ान फ़ौरन बोला "आइ डिड्न्ट मीन दट. इट्स जस्ट दट के मुझे लगता है के मेरे हाथ बँधे हुए हैं"
क्रमशः........................................
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