RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --34
गतान्क से आगे........................
"तुम्हारे हाथ बँधे नही हैं, तुम खुद अपने आपको रोक रहे हो. कॉलेज में याद है सब मुझे आइटम आइटम कहके बुलाते थे पर जब तुम मेरे साथ आए तो मैं आइटम से सबके लिए किरण जी हो गयी थी, ऐसा दबदबा था तुम्हारा. किसी की आवाज़ नही निकलती थी तुम्हारे सामने, प्रोफेस्सर्स की भी नही"
"हां याद है" ख़ान हस्ता हुआ बोला
"तो अब क्या हुआ? कैसे बदल गये इतना. एक नौकरानी के सामने घबरा रहे थे?" किरण बिंदिया की तरफ इशारा करते हुए बोली जिसके बारे में ख़ान उसे बता चुका था.
"पता नही यार. अब वो बात रही नही मुझ में"
"बिल्कुल है. कम ऑन यार. किसी मासूम को बचा रहे हो, कोई ग़लत काम नही कर रहे. अच्छा बताओ, तुम्हें क्या लगता है के खून कैसे हुआ?"
"एक ही तरीका था, ठाकुर के कमरे की खिड़की"
"जो कि तुम्हें लगता है के खूनी ने कमरे से बाहर निकल कर इस तरह से बंद की के ऐसा लगे जैसे अंदर से खिड़की बंद हो?" किरण ने पुछा. ख़ान उसको खिड़की के बारे में तब बता चुका था जब वो उसके कमरे पर उससे मिलने गयी थी.
"हां" ख़ान ने कहा
"और शक किस पर है तुमको?"
"सच कहूँ तो सब पर है" ख़ान ने कहना शुरू किया "पर सबके साथ सर खपाने से कोई फायडा नही है. कुच्छ लोग हैं जिनको शक के दायरे से निकाला जा सकता है"
"जैसे कि?" किरण ने पुछा
"जैसे की भूषण"
"क्यूँ?" किरण ने कहा
"जिस वक़्त खून हुआ ये घर के बाहर था, गाड़ी निकाल रहा था इस बात की गवाही देने वाले लोग हैं. जै ने खुद इसको बाहर देखा था"
"हो सकता है के ये खून करके बाहर गया हो"
"नही, ख़ान बोला. 2 वजह हैं जिनसे ऐसा नही हो सकता. पहली तो ये के इसके ठाकुर के कमरे से निकलने के बाद पायल ठाकुर के कमरे में गयी थी और तब वो ज़िंदा थे. दूसरा ये के अगर इसने ठाकुर पर वार किया होता तो खून के छिन्ते इसके कपड़े पर होते पर ऐसा था नही. कमरे से बाहर आते इसको ठकुराइन ने देखा था और बाद में जै ने बाहर देखा और वो साफ था."
"ह्म्म्म्म" किरण बोली "और वैसे भी, ठाकुर के फोटोस देखे थे मैने. उनपे एक स्क्रूड्राइवर से वार करके उनको मार डालना उस एक बुड्ढे आदमी के बस में था भी नही"
"करेक्ट" ख़ान बोला "नेक्स्ट हैं सरिता देवी, यानी के ठकुराइन"
"उनपे शक?" किरण ने पुछा
"यू सीरियस्ली थिंक के एक व्हील चेर पर बैठी औरत जो खुद हिल भी नही सकती उसने ठाकुर को मार गिराया होगा?"
"लगता तो नही" किरण सोचते हुए बोली "पर होने को कुच्छ भी हो सकता है"
"हां हो सकता है, यू नेवेर नो. बट ठकुराइन के कमरे से बाहर आने के बाद भूषण और पायल दोनो ठाकुर के कमरे में गये थे और तब ठाकुर ज़िंदा था. उस वक़्त ये हवेली के कॉरिडर में बैठी शराब पी रही थी और वहाँ इनको भूषण, पायल और खुद जै ने भी देखा था. अगर इन्होने स्क्रू ड्राइवर से ठाकुर पे वार किया होता, जो की इनके बस में ही नही था, तो इनपर भी खून की छिन्ते होते पर वो नही थे. ना ठकुराइन पर, ना उनके कपड़ो पर और ना उनकी व्हील चेर पर"
"ह्म्म्म्मम" किरण बोली "और शक किस किस पर है"
"सब पर मगर सबसे ज़्यादा तेज पर" ख़ान ने कहा
"वजह?"
"ठाकुर को मारने की सबसे ज़्यादा वजह इसी के पास है. अलग जायदाद चाहता था, ठाकुर से इसकी बनती नही थी, इसको लगता था के इसको जायदाद से निकाल दिया जाएगा और गुस्से का तेज़"
"ह्म्म्म्म"
"ठाकुर मरने से एक दो दिन पहले अपनी वसीयत बदलना चाहते थे तो बहुत मुमकिन है के तेज ये समझा हो के इसका नाम निकाल दिया जाएगा और इसने ठाकुर का खून किया हो. इसकी अययाशी से ठाकुर सख़्त परेशान था और ये बात तेज जानता था इसलिए जायदाद से बाहर होने का डर सबसे ज़्यादा इसको ही हो सकता है"
"मिले हो इससे अब तक?" किरण ने पुछा
"नही" ख़ान ने कहा "इसके अलावा मेरा दूसरे नंबर का शक उस नौकरानी की बेटी पायल पर है"
"पायल?" किरण ने पुछा
"वो आखरी थी जिसने ठाकुर को ज़िंदा देखा था, वही थी जिसने जै को ठाकुर के साथ देख कर हल्ला मचाया था"
"ये शक करने की कोई ख़ास वजह नही हुई" किरण बोली
"जानता हूँ. वजह कुच्छ और है"
"क्या?"
"ठाकुर ने जायदाद का कुच्छ हिस्सा इसके नाम भी कर रखा था"
"रियली? क्यूँ?" किरण ने पुछा तो ख़ान उसको ठाकुर की वसीयत के बारे में बताने लगा.
"क्यूँ तो मैं भी नही जानता पर जाने क्यूँ मुझे लगता है के इस क्यूँ में ही ठाकुर की मौत की वजह है. वसीयत की बात पर शायद इसने ही ठाकुर का काम कर दिया हो"
"या इसकी माँ ने" किरण ने आगे बात जोड़ी
"या दोनो ने" ख़ान ने कहा
"ट्रू. तो एक काम करते हैं. जै से ही शुरू करते हैं. कल उसी से मिलते हैं"
"हैं?" ख़ान हस्ते हुए बोला "ये हैं में मेरे अलावा और कौन है?"
"मे ऑफ कोर्स" किरण बोली
"किरण इस केस में फिलहाल कोई पब्लिसिटी .... " ख़ान कह ही रहा था के किरण ने उसकी बात काट दी
"डोंट वरी. तुम्हारे साथ एक कहानी की भूखी जर्नलिस्ट नही तुम्हारी ........ " और वो कहते कहते रुक गयी जैसे समझ ना आया हो के आगे क्या कहे.
" तो कल मिलते हैं" ख़ान ने सिचुयेशन को एक पल की खामोशी के बाद संभाला "वैसे भी अफीशियली तो मैं इन्वेस्टिगेट कर ही नही रहा तो एक से भले दो"
"बिल्कुल" किरण हस्ते हुए बोली "अब सो जाओ. सी यू टूमारो"
दोनो ने थोड़ी देर और बात करके फोन रख दिए. ख़ान ने लाइट्स ऑफ की और सोने के लिए लेटा ही था के सेल की घंटी फिर बजी.
किरण का मेसेज. ख़ान ने पढ़ना शुरू किया. एक शेर था.
"तेरा वादा था मेरे हर वादे के पिछे,
मिलेगा तू मुझसे हर गली दरवाज़े के पिछे,
फिर क्यूँ तू ऐसा बेवफा हो गया,
के एक तू ही नही था मेरे जनाज़े के पिछे?"
ख़ान ने दो पल के लिए सोचा और किरण के मेसेज का जवाब दिया.
"मेरा वादा था तेरे हर वादे के पिछे,
मिलूँगा मैं तुझसे हर गली दरवाज़े के पिछे,
तूने आए जान-ए-हया पलटके देखा ही नही,
वरना एक जनाज़ा और भी था तेरे जनाज़े के पिछे"
दिन के करीब 11 बज रहे थे. ख़ान और किरण तेज से मिलने हवेली पहुँचे तो पता चला के वो वहाँ नही था.
"वो तो कल रात से ही घर पर नही आए" पुरुषोत्तम ने कहा. किरण और ख़ान हवेली के ड्रॉयिंग रूम में बैठे चाई पी रहे थे.
"कोई आइडिया कब तक आएँगे?" ख़ान ने पुछा
"नही. कोई काम?" पुरुषोत्तम ने कहा
"केस के सिलसिले में कुच्छ बात करनी थी" ख़ान बोला
"तेज से?"
"हां. वो आए तो आप उनको पोलीस स्टेशन आने को कह सकते हैं?"
जिस तरह से पुरुषोत्तम के चेहरे के भाव बदले, उससे साफ ज़ाहिर था के उसको ख़ान का इस तरह पुछ्ना पसंद नही आया. आख़िर वो ठाकुर थे और एक मामूली पोलिसेवाले की ये हिम्मत के वो उन्हें पोलीस स्टेशन आने को कहे?
पर उसने जल्दी ही अपने आपको संभाल लिया.
"मैं कह दूँगा. और कोई सेवा?" उसने ठंडी आवाज़ में ख़ान से पुछा
पुच्छने के तरीके से साफ ज़ाहिर था के अब ख़ान को वहाँ से निकल लेना चाहिए.
"जी बस कुच्छ नही" ख़ान ने कहाँ और किरण को लेकर बाहर आ गया.
बाहर आते वक़्त रास्ते में उनसे कामिनी टकरा गयी. ख़ान ने एक नज़र उस पर डाली पर इस बार वो सोच में पड़ गया. जिस लड़की को उसने जैल में जै से मिलने जाते देखा था वो उसे एक पल के लिए दूर से कामिनी ही लगी थी पर अब जब कामिनी को करीब से देखा तो वो सोच में पड़ गया के क्या यही वो लड़की थी.
"वाउ" बाहर आकर किरण बोली "ही हॅज़ सम आटिट्यूड"
"दे ऑल डू" ख़ान ने जवाब दिया "दे आर ठाकूर्स आफ्टर ऑल"
वो वापिस ख़ान के घर की तरफ जा ही रहे थे के ख़ान का सेल बजा. कॉल एक लॅंडलाइन # से थी.
"हेलो" उसने फोन उठाया
"सर मैं जै" दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
नंबर सेंट्रल जैल का था, ख़ान समझ गया.
"हां जै बोलो" ख़ान ने पुछा
"ऐसे ही बोर हो रहा था तो सोचा आपको फोन करके पुच्छ लूँ के कुच्छ पता चला हो"
ख़ान ने उसको बताया के वो तेज से मिलने हवेली गया था पर तेज मिला नही.
"वो हवेली में नही मिलेगा सर" जै ने कहा "उसके लिए आपको यहाँ शहर आना पड़ेगा"
"क्यूँ?"
"यहाँ कोई रेखा नाम की हाइ क्लास प्रॉस्टिट्यूट है. उसी के यहाँ पड़ा रहता है. तेज को पकड़ना है तो उस प्रॉस्टिट्यूट के यहाँ पहुँच जाइए"
"कहाँ रहती है वो?" ख़ान ने पुछा
"अड्रेस मैं बता देता हूँ. आप लिख लीजिए"
"नही अभी नही, फिलहाल गाड़ी चला रहा हूँ. कल मैं आके तुमसे मिलता हूँ पहले, तभी अड्रेस ले लूँगा और वहाँ से मिलने चला जाऊँगा"
"ठीक है" जै ने कहा "और किसी से बात की?"
"नही अभी तक तो नही"
"उस बुड्ढे भूषण को पकड़ लीजिए"
"थोड़ी देर पहले फोन करते तो मैं हवेली में उससे मिल लेता. वहीं से आ रहा हूँ"
"हवेली में नही सर. वहाँ वो बात नही करेगा. उसको पकडीए अकेले में"
"तो फिर ये भी तुम ही बता दो के कहाँ पाकडूं"
"शाम को गाओं में जो एक शराब की दुकान है वो रोज़ जाता है वहाँ. एक शराब की बॉटल लेता है और पीकर सोता है. वहाँ मिल जाएगा" जै बोला
और उसी शाम जै के कहने पर ख़ान शराब की दुकान पर पहुँच गया. थोड़ी देर इंतेज़ार के बाद उसको भूषण आता दिखाई दे गया. ख़ान ने उसको रोक कर अपनी जीप में बैठाया और अपने घर ले आया.
क्रमशः........................................
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