RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --35
गतान्क से आगे........................
किरण हवेली से आने के थोड़ी देर बाद ही वापिस चली गयी थी इसलिए भूषण के साथ वो अपने घर में अकेला ही था.
"कोई ग़लती हो गयी मालिक?" भूषण हाथ जोड़कर बोला और नीचे ज़मीन पर बैठने लगा
"अर्रे वहाँ नही. उपेर आराम से बैठो" ख़ान ने कुर्सी की तरह इशारा किया "और नही कोई ग़लती नही हुई. ऐसे ही कुच्छ बात करनी थी तुमसे"
"जी मुझसे?"
"हां तुमसे पर वो बाद में. पहले ज़रा शाम को रंगीन किया जाए" ख़ान ने कहा और अपने ड्रॉयर से वाइन की एक बॉटल निकाली "गाओं की दुकान से देसी तो रोज़ाना पीते हो, आज अँग्रेज़ी वाइन का मज़ा लो"
शराब की बॉटल, वो भी इंग्लीश वाइन. देख कर ही भूषण की आँखों में चमक गयी.
"वो ऐसे कुच्छ नही बताएगा सर. पर नशा कमज़ोरी है उसकी, थोड़ी सी पिला दीजिए फिर देखिए के कैसे गा गाकर आपको सब बताएगा" ख़ान को जै की कही बात याद आई.
अगले आधे घंटे पर शराब का दौर चला. ख़ान खुद पीता नही था इसलिए वो पेप्सी पी रहा था पर भूषण आधी वाइन की बॉटल खाली कर चुका था और होश कब्के खो चुका था.
"और बताओ भूषण" ख़ान ने ऐसे कहा जैसे किसी पुराने दोस्त से बात कर रहा हो
"किस बारे में मालिक?" भूषण ने लड़खड़ाती आवाज़ में पुछा
"अपने बारे में ही बता दो"
"ग़रीब के बारे में जानके क्या करेंगे साहिब और वैसे भी कुच्छ ख़ास है नही मेरे बारे में जानने को" भूषण एक और पेग बनाता हुआ बोला
"शादी नही की तुमने?"
"की थी मालिक, पर भाग गयी साली"
"फिर से शादी?" ख़ान ने पुछा तो भूषण ने इनकार में सर हिला गिया
"तो ज़िंदगी भर काम कैसे चलाया?" ख़ान हस्ते हुए बोला "अपने हाथ जगन्नाथ?"
"क्या आप भी साहिब" भूषण शर्मिंदा सा होते हुए बोला
"नही सच में. कभी ज़रूरत महसूस नही हुई?"
"हुई थी साहिब. पर अपने इंटेज़ाम थे" भूषण शेखी उड़ाता हुआ बोला
"इंटेज़ाम?" ख़ान ऐसे बोला जैसे बहुत राज़ की बात कर रहा हो "गाओं में या हवेली में ही?"
भूषण एक पल के लिए चौंका पर फिर ज़ोर ज़ोर से हसणे लगा
"क्या साहिब. हवेली में कहाँ इंटेज़ाम होगा?"
"अर्रे क्यूँ नही हो सकता. इतने मस्त मस्त आइटम हैं"
"मेरे से आधी उमर की बच्चियाँ हैं सब" भूषण वाइन गले से नीचे उतारता हुआ बोला
"अर्रे तो अच्छी बात है ना. कच्ची कलियों में खेलो"
"अर्रे नही साहिब. उमर गयी अब अपनी ये सब काम करने की"
"जवानी में तो सोचा होगा कभी"
"जब हम जवान थे तो हवेली में ऐसी कोई थी ही नही" भूषण भी अब सुर से सुर मिलाके बोल रहा था
"क्यूँ ठकुराइन थी तो" ख़ान अब भी बात ऐसे ही कर रहा था जैसे दो शराबी मज़ाक कर रहे हों
"कहाँ मालिक" भूषण बोला "वो कुर्सी से तो उठ नही सकती"
"अर्रे हमेशा से कुर्सी पर थोड़े ही थी. देखके तो लगता है के जवानी में बड़ी सही छम्मक छल्लो रही होगी"
"बात तो वैसे सही कह रहे हो आप" भूषण ने कहा "थी तो बहुत सुंदर"
"लगता भी है. पर अफ़सोस के बेचारी आक्सिडेंट के बाद बेकार ही हो गयी"
"अर्रे काहे का आक्सिडेंट" भूषण अब बिल्कुल होश के बाहर था "सब ठाकुर का किया धरा था"
ख़ान चौंक पड़ा. ये बात नयी थी.
"ठाकुर का किया धरा मतलब" उसने बात को इस तरह से पुछा के भूषण को ये ना लगे के वो क्या बक रहा है.
"ठाकुर ने धक्का दिया था सीढ़ियों से" भूषण नशे की हालत में बोल गया
ख़ान थोड़ी देर चुप बैठा रहा.
"क्यूँ?" कुच्छ देर बाद उसने पुछा
"सही तो पता नही पर उससे पहले काफ़ी लड़ाई झगड़ा हुआ था. मुझे लगता था के ठकुराइन का किसी से नाजायज़ रिश्ता हो गया था जिस पर ठाकुर काफ़ी बिगड़ा था"
जै का बताया फ़ॉर्मूला काम कर गया. काफ़ी कुच्छ भूषण से ऐसा पता चला था जिसकी ख़ान को भनक तक नही थी.
"किससे?" उसने पुछा
"कौन जाने साहिब" भूषण ने कहा "होगा कोई चोदु भगत"
और वो दोनो ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगे.
"ये बात कोई और भी जानता है हवेली में के ठकुराइन का आक्सिडेंट नही हुआ था?"
"हां जानता है ना. पुरुषोत्तम को पता है सब. मैने उसको ठाकुर से लड़ते हुए सुना था के ठाकुर उसकी माँ के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं"
"फिर?" ख़ान ने पुछा
"फिर ये राज़ एक राज़ बनकर रह गया. किसी ने किसी से कुच्छ नही कहा. ठकुराइन बिस्तर से लग गयी और ठाकुर ने देख भाल को एक नौकरानी रख ली. पर पुरुषोत्तम की फिर कभी अपने बाप से बनी नही"
"अच्छा?" ख़ान बोला
"हां" भूषण कहता जा रहा था "हवेली के अंदर दोनो बात तक नही करते थे. पुरुषोत्तम अपनी माँ के साथ काफ़ी करीब था. हमेशा अपनी माँ से चिपका रहता था. वो जहाँ जाती उसको साथ लेके जाती. तो जब उसकी माँ के साथ ऐसा हुआ तो वो कुच्छ कर तो नही सका पर फिर अपने बाप से कभी बात भी नही की"
अगले ही दिन किरण फिर ख़ान के घर पर थी. ख़ान उसको अपनी कल रात की भूषण से हुई सारी बात बता चुका था.
"और तुम्हें पूरा यकीन है के वो सच कह रहा है?" किरण बोली
"जिस तरह से वो कल शराब पीने के बात मुझे सब बता रहा था उससे 2 ही बातें ज़ाहिर हो सकती हैं. या तो ये के वो एक कमाल का आक्टर है और झूठ बोलने की कोई सॉलिड वजह है उसके पास या दूसरी ये के वो नशे की हालत में सब सच उगल रहा था"
"ह्म्म्म्मम" किरण कमरे में चहल-कदमी करते हुए बोली "तुम भी पी रहे थे?"
" यू नो आइ डोंट ड्रिंक" ख़ान ने जवाब दिया. वो दोनो के लिए चाई बना रहा था.
"यप" किरण बोली "यू नेवेर डिड. वैसे एक बात तो है. कोई आसानी से बता नही सकता के ठाकुर ने अपनी बीवी के साथ ऐसा किया था. आइ मीन जिस तरह से फॅमिली रहती है, कोई नही कह सकता के इतना बड़ा राज़ दफ़न है"
"ठाकुर लोग हैं. जान से ज़्यादा इज़्ज़त प्यारी होती है" ख़ान ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"आइ मीन जिस तरह से उसने अपनी बीवी का इलाज करने की कोशिश की, कौन कहेगा के अपनी बीवी की इस हालत को वो खुद ही ज़िम्मेदार था. आंड दट ठकुराइन, शी वाज़ स्टिल लिविंग वित दा सेम मॅन अंडर दा सेम रूफ"
"यप" ख़ान ने जवाब दिया
"सो" किरण चलते चलते उसकी टेबल तक आई "शराब ना पीने की तुम्हारी पुरानी आदत अब तक बनी हुई है. और कौन कौन सी आदतें बची हुई हैं?"
"आइ आम प्रेटी मच दा सेम गाइ" ख़ान ने कहा
"आइ कॅन सी दट. शेर-ओ-शायरी भी अभी तक करते हो"
उसकी बात सुनकर ख़ान ने पलटकर देखा. किरण टेबल के पास खड़ी एक डाइयरी खोले देख रही थी.
"तुम्हारी भी आदतें कहाँ बदली अब तक. अब भी मेरे सामान में मुझसे बिना पुच्छे ही घुस रही हो" ख़ान ने कहा पर इससे पहले के वो कुच्छ करता, किरण ने डाइयरी से पढ़ना शुरू कर दिया.
मेरे हमसफर,
वो जो एक रिश्ता-ए-दर्द था,
तेरे नाम का मेरे नाम से,
तेरी सुबह का मेरी शाम से,
आज बेइज़्ज़त पड़ा हुआ है,
गुमनाम सा, बदनाम सा,
शरम-सार सा, नाकाम सा,
मेरी रास्तो से कयि रास्ते उलझ गये,
वो चिराग जो मेरे साथ थे, बुझ गये,
मेरे हमसफ़र, तुझे क्या खबर,
जो वक़्त है किसी धूप छाँव के खेल सा,
उसे देखते, उसे झेलते,
मेरी मायूस आँखें झुलस गयी,
मेरे बेख़बर, तेरे नाम पर,
वो जो फूल खिलते थे होंठ पर,
वो नही रहे,
जो एक रिश्ता था दरमियाँ,
वो बिखर गया,
मेरे हमसफ़र, है वही सफ़र,
मगर एक मोड़ के फ़र्क़ से,
तेरे हाथ से मेरे हाथ तक,
वो जो फासला था हाथ भर का,
कई सदियों में बदल गया,
और उसे नापते, उसे मिटाते,
मेरा सारा वक़्त निकल गया.
शेर ख़तम हुआ तो कमरे में चुप्पी छा गयी. किरण ने चुप चाप डाइयरी बंद की और टेबल पर रख दी. ना वो कुच्छ बोली और ना ख़ान.
"वाह वाह " दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो दोनो ने चौंक कर उस तरफ देखा.
दरवाज़े पर हेड कॉन्स्टेबल शर्मा खड़ा था.
"वाह सर वाह, मज़ा आ गया. आपको शेरो शायरी का शौक है मुझे तो पता ही नही था" कहता हुआ वो अंदर आया.
"तुम कब आए" ख़ान ने पुछा
"बस जब मे मेडम पढ़ रही थी तब. दरवाज़ा खुला हुआ था तो मैने भी शेर सुन लिया" कहते हुए शर्मा ने किरण की तरफ़ देखा
"किरण ये हेड कॉन्स्टेबल शर्मा है और शर्मा ये किरण है, मेरी ....... "ख़ान एक पल के लिए रुका "पुरानी दोस्त" उसने बात ख़तम की.
"नाइस मीटिंग यू मेडम जी" शर्मा ने फ़ौरन किरण की तरफ हाथ बढ़ाया
"कहो कैसे आए" ख़ान ने एक कप में चाई और निकाल कर शर्मा की तरफ बढ़ाई.
"सर आप कल से पोलीस स्टेशन नही आए तो मैं थोड़ा परेशान हो चला था के कहीं तबीयत तो खराब नही हो गयी इसलिए ख़ैरियत पुछ्ने चला आया"
"नही मैं ठीक हूँ" ख़ान बोला. वो तीनो चाइ के कप लिए आराम से बैठ गये
"यार सच मानो तो मुझे समझ नही आ रहा के इन्वेस्टिगेशन कहाँ से शुरू करूँ और किससे शुरू करूँ" ख़ान ने किरण से कहा
क्रमशः........................................
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