Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:22 PM,
#37
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --38

गतान्क से आगे........................

जै से उसने 2 मिनट और इधर उधर की बात की और फिर फोन रख दिया. फोन रख कर उसने एक बार फिर अपनी डाइयरी उठाई और उन लोगों के नाम देखने शुरू किए जिनके सामने कोई इन्फर्मेशन नही थी.

1. सरिता देवी - मोटिव है बदला उस पति से जिसने उन्हें सीढ़ियों से धक्का दिया और ज़िंदगी भर के लिए एक कुर्सी पर बैठा दिया

सवाल - 15 साल पुरानी बात का बदला लेने के लिए अब तक इंतेज़ार क्यूँ जबकि वो सिर्फ़ ठाकुर की चाइ में ज़हर मिलाके कभी भी उसका काम तमाम कर सकती थी.

क्या व्हील चेर पर बैठी बुद्धि कमज़ोर औरत क्या ऐसा कर सकती है?

ठाकुर ने इसको सीढ़ियों से धक्का दिया तो ये बात जै को कैसे नही पता?

2. भूषण - कोई मोटिव नही. एक बुड्ढ़ा जो सारी ज़िंदगी हवेली में ही काम करता रहा. ये अपनी ही मालिक को क्यूँ मारेगा जिसकी गाड़ी चलाकर ये रोज़ी रोटी कमाता था. इसका तो देखा जाए तो नुकसान हुआ. पता नही ठाकुर के बेटे इसको नौकरी पर रखें या ना रखें.

सवाल - कोई नही

3. तेज - सॉलिड वजह है. वसीयत से बाहर हो जाने का डर, बाप से कभी बनी नही, अययाशी की आदत जिससे इसके बाप को सख़्त नफ़रत थी. गौर तलब बात है के ये अपने बाप की जान लेना भी चाहता था.

सवाल - कोई नही क्यूंकी इस पर तो सॉफ तौर पे शक ही शक है.

4. पुरुषोत्तम - वजह ही वजह. माँ का लाड़ला जो अपनी माँ को बहुत चाहता है, बाप से नफ़रत करता है और पिछे कई सालों से बाप से बात तक नही की. दौलत का डर इसको भी हो सकता था क्यूंकी जिस बाप से ये बात नही करता वो इसको वसीयत से निकाल बाहर कर सकता था.

सवाल - कोई सवाल नही. पूरी तरह से शक के घेरे में है.

5. इंदर -- वजह हो सकती है पर अभी तक सामने कुच्छ नही आया है. इसके बारे में पता करना है.

ख़ान ने अपना फोन उठाया और किरण को मिलाया.

"कैसी हो?" ख़ान ने कहा

"बस तुम्हें फोन करने ही वाली थी" दूसरी तरफ से किरण की आवाज़ आई "वैसे अच्छा हुआ के तुमने फोन कर दिया"

"क्यूँ?" ख़ान ने पुछा

"वरना मुझे तो लगने लगा था के मैं ही तुम्हें फोन करती रहती हूँ. तुम करते ही नही"

"यॅ राइट. अच्छा सुनो, इससे पहले के मैं भूल जाऊं, एक काम कर सकती हो?

"क्या?" किरण ने पुछा

"रूपाली का भाई, इंदर, ये शहर में ही कहीं रहता है और कोई बिज़्नेस है इसका. देखो इसके बारे में क्या पता कर सकती हो?"

"शक है इस्पे?" किरण ने पुछा

"आक्च्युयली तो सबसे कम शक इसी पर है. मेरे ख्याल से ये बस वहाँ बेहन से मिलने ही गया था और उसी रात ठाकुर का खून हो गया. पर फिर भी, मैं पता करना चाहता हूँ"

"ओके सर" किरण बोली "गुलाम के लिए कोई और हुकुम?"

"नही बस इतना ही फिलहाल" ख़ान ने कहा "और मैं आपको 10 मिनट में दोबारा फोन करता हूँ"

ख़ान ने फोन रख दिया और फिर वापिस अपनी लिस्ट की तरफ देखा.

6. कुलदीप

इस बार उसने फोन शर्मा को मिलाया. शर्मा की नींद में डूबी हुई आवाज़ आई.

"हां सर"

"इतनी जल्दी सो भी गये?" ख़ान ने पुछा "चलो में कल बात करता हूँ. आराम करो"

"नही बताइए. अब तो आँख खुल ही गयी" शर्मा बोला

"कुलदीप के बारे में क्या बता सकते हो?"

"क्या सर. इतनी रात को आपको ये सब सूझ रहा है. सो जाओ"

"बताओगे?" ख़ान ने ज़िद भरी आवाज़ में कहा

"ज़्यादा कुच्छ नही सर" शर्मा बोला "वो बहुत छ्होटा था जब उसको लंडन भेज दिया गया था. उस वक़्त पुरुषोत्तम भी लंडन में ही था इसलिए वो अपने भाई के साथ रहा. बाद में पुरुषोत्तम वापिस आ गया पर कुलदीप पढ़ाई पूरी करने के लिए वहीं रुका रहा. आजकल छुट्टियो में आया हुआ है"

"और कुच्छ?" ख़ान ने पुछा "नही सर, इससे ज़्यादा कुच्छ नही"

"ओके सो जाओ" कहते हुए ख़ान ने फोन रख दिया.

अब भी लिस्ट में कई नाम थे जिनके बारे में ख़ान को अब भी पता करना था. और कई सवाल थे जिनके जवाब अब भी गुम थे.

उस रात उसको फोन किस लड़की ने किया था जिसके कहने पर वो हवेली आया था.

ठाकुर के साथ मरने की रात सोई कौन थी? क्या बिंदिया ही थी या कोई और भी हो सकती थी?

अगर बिंदिया नही थी तो क्या वो औरत जिसने फोन किया और क्या सोने वाली औरत एक ही थी?

ख़ान ने एक झटके में अपनी डाइयरी को बंद किया और एक तरफ फेंक दिया. सोच सोच कर उसके सर में दर्द होने लगा था.

तभी फोन एक बार फिर बज उठा. नंबर शर्मा का था.

"तुम तो सो रहे थे?"

"ख़ान ने सवाल किया"

"हां पर आपने जगाया तो आँख खुल गयी. एक बात ध्यान आई जो शायद आपको पता ना हो तो मैने सोचा के आपको बताऊं"

"हां कहो" ख़ान बोला

"आपको पता है के ठाकुर की बहू रूपाली पर रेप अटेंप्ट हो चुका है?"

"अच्छा? कब?"

"बचपन में, जब वो शायद 16-17 की थी"

"किसने किया था?"

"उनके घर के नौकर ने"

"फिर?"

"फिर वो चिल्लाई और उसका बाप वहाँ आ गया. उसने नौकर को वहीं गोली मार दी. उनके घर की एक नौकरानी भी थी जो इसमें मिली हुई थी. रूपाली के बाप ने उस नौकरानी को भी गोली मारी पर वो बच गयी"

"और ये सब तुम्हें कैसे पता?"

"पोलीस वाला हूँ सर. ऐसी बातें तो मुझे पता होगी ही. वैसे भी जब ये हुआ था तो काफ़ी उड़ी थी ये बात"

"ओके" ख़ान सुनता रहा

"लोग तो कहते थे के रेप नही हुआ था, रूपाली खुद ही लगी हुई थी बुड्ढे नौकर के साथ. बाप बीच में आ गया तो उसे लगा के रेप हो रहा है इसलिए उसने नौकर को गोली मार दी"

"इसलिए उसको सब लूस कॅरक्टर समझते हैं?"

"हां" शर्मा हस्ता हुआ बोला

दरवाज़े पर दस्तक हुई तो ख़ान की आँख खुली. घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6 बजे रहे थे.

"इतनी सुबह किस मनहूस को मुसीबत आ गयी?" ख़ान दिल ही दिल में बोला और उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़ा. दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई.

"आ रहा हूँ"वो चिढ़ता हुआ बोला और जाकर दरवाज़ा खोला. बाहर शर्मा खड़ा था.

"तुम? इतनी सुबह?"

"हां सर. आप यकीन नही करोगे के क्या देख कर आ रहा हूँ" कहता हुआ शर्मा बिना ख़ान के बुलाने का इंतेज़ार करता हुआ अंदर आ गया.

ख़ान ने उसपर एक नज़र डाली. शर्मा ने एक ढीली सी टी-शर्ट, एक खाकी रंग की हाफ रंग और नीचे पोलीस वाले पी.टी. शूज पहेन रखे थे.

"दौड़ने जा रहे हो या दौड़के आ रहे हो?" उसने पुछ और किचेन की तरफ बढ़ा.

"सर सुबह निकला तो दौड़ने ही था पर कुच्छ ऐसा दिख गया के आज दौड़ना कॅन्सल" शर्मा उतावला होते हुए बोला. वो जैसे ख़ान को कोई बात बताने को मरा जा रहा था.

"ऐसा क्या देख लिया" ख़ान ने स्टोव पर चाइ चढ़ाते हुए बोला.

शर्मा ने बताना शुरू किया.

शर्मा की पुरानी आदत थी के वो हर सुबह कम से कम 5 किलोमीटर दौड़ कर आता था. मोटे पेट से उसको सख़्त नफ़रत थी इसलिए वो पूरी कोशिश करता था के किसी भी हाल में उसका पेट ना निकले और इसी के चलते, बचपन से ही उसको रोज़ाना सुबह दौड़ने की आदत थी.

उस दिन भी सुबह वो हर रोज़ की तरह घर से निकला और दौड़ता हुआ गाओं से बाहर खेतों की तरफ आ गया. सुबह की हल्की हल्की लाली आसमान पर फेल रही थी पर अंधेरा पूरी तरह हटा नही था. ख़ान दौड़ता हुआ आदत के मुताबकी नहर की तरफ चला जहाँ पहुँच कर वो थोड़ी देर रुकता था और फिर गाओं की तरफ दौड़ना शुरू कर देता था. पर आज कुच्छ ऐसा हुआ जो पहले कभी भी नही हुआ था.

कुच्छ आगे बढ़ने पर खेतों के बीचे बनी कच्ची पगडंडी पर ख़ान को अपने आगे एक साया चलता हुआ महसूस हुआ. सुबह की हल्की रोशनी में वो साया सॉफ नज़र नही आ रहा था पर इतना पता चल गया था के कोई बंदा ही है जो उसकी तरफ सुबह सुबह दौड़ रहा है.

"कमाल है" शर्मा ने दिल ही दिल में सोचा "मेरी तरह और ये शौक किसे चढ़ गया"

वो अभी सोच ही रहा था के अचानक उसको एहसास हुआ के वो साया अकेला नही है. उससे थोड़ा सा आगे एक लड़की एक पेड़ के पिछे खड़ी थी जो उस साए को देखते ही पेड़ के पिछे से निकल कर उस आदमी की तरफ बढ़ी.

"एक मिनट एक मिनट" ख़ान ने शर्मा को टोका "इतनी सुबह सुबह गाओं से बाहर खेतों में एक लड़की? जहाँ तक मैने सुना है के गाओं से कोई भी लड़की अंधेरा होने के बाद या सुबह को रोशनी फेल जाने तक गाओं से बाहर नही निकलती?"

"इसी बात की तो हैरानी मुझे भी हुई सर. अब आयेज सुनिए" कहकर शर्मा आगे बताने लगा.

अचानक उस लड़की के यूँ आ जाने से शर्मा अपनी जगह रुक कर खड़ा हो गया. वो उनसे ख़ासी दूरी पर था और हल्का हल्का अंधेरा अब भी फेला हुआ था जिससे वो आदमी और लड़की शर्मा को नही देख सकते थे पर फिर भी वो कुच्छ सोच कर सड़क के किनारे होकर च्छूप सा गया.

"च्छूपे क्यूँ?" ख़ान ने फिर पुछा

"अर्रे सर इतनी सुबह अंधेरे में लड़का लड़की गाओं से बाहर मिले तो क्या लगता आपको?"

"के उन दोनो का चक्कर चल रहा है" ख़ान ने कहा

"हां तो मुझे भी यही लगा और मैं देखना चाहता था के कौन है लड़का लड़की इसलिए ज़रा च्छूप कर देखने लगा ताकि वो मुझे देख कर घबराए नही"

"कौन थे वो दोनो?" ख़ान ने फ़ौरन पुछा. जिस तरह से शर्मा बता रहा था उससे सॉफ ज़ाहिर था के लड़का लड़की कोई ऐसे थे जिनको ख़ान जानता था.

"अर्रे पूरी बात तो सुनिए" शर्मा ने फिर बताना शुरू किया.

शर्मा चुप चाप खड़ा उस लड़के और लड़की को देखता रहा. इतनी दूर से हल्के अंधेरे में नज़र नही आ रहा था के कौन हैं पर लड़की ने एक सलवार कमीज़ और लड़के ने हाफ पेंट, टीशर्ट और स्पोर्ट्स शूज पहने हुए थे.

वो दोनो खड़े हुए कोई बात कर रहे थे और उनके बात करने के तरीके से सॉफ ज़ाहिर था के वो बात कम, बहस ज़्यादा कर रहे थे.

क्रमशः........................................
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