RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --39
गतान्क से आगे........................
कुच्छ देर तक दोनो यूँ ही बात करते रहे जिसका एक शब्द भी शर्मा को सुनाई नही पड़ा. फिर उस लड़के ने लड़की को कहा जिस बात पर लड़की पावं पटकती चल दी और लड़के ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और अपने गले लगा लिया.
और तब शर्मा को उन दोनो की शकलें नज़र आई और उसके पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गयी.
"कौन थे दोनो?" ख़ान ने भी फ़ौरन पुछा
"लड़की तो पायल थी सिर, बिंदिया के बेटी" ख़ान ने कहा
"और लड़का?"
"सुनते रहो" शर्मा मुस्कुराता हुआ बोला और कहानी आगे बताने लगा.
वो लड़का पायल को कुच्छ देर तक यूँ ही अपनी बाहों में लिए खड़ा रहा. फिर वो दोनो रास्ते से हट कर खेतों के अंदर की तरफ चल पड़े. शर्मा अच्छी तरह जानता था के यूँ मुँह अंधेरे सुबह सुबह खेतों के अंदर वो दोनो क्या करने वाले थे इसलिए वो भी चुप चाप उनके पिछे चल दिया.
कुच्छ दूर आगे जाकर झाड़ियों के बीच वो दोनो रुक गये और उनसे थोड़े से फ़ासले पर एक पेड़ के पिछे छुपा शर्मा दोनो को देखने लगा.
पायल ने अपनी चुन्नी अपने गले से निकाली और नीचे ज़मीन पर बिच्छा दी. इसपर लड़के ने उसको कुच्छ कहा और चुन्नी फिर से उठा कर समेत कर एक तरफ रख दी और और फिर से पायल को अपनी तरफ खींच लिया.
कुच्छ देर वो यूँ ही खड़े रहे. शर्मा को लगा के वो अब भी बस गले लगे हुए हैं पर फिर थोड़ी देर ध्यान से देखने पर पता चला के वो एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे. लड़के का एक हाथ लड़की की छाती पर था जिन्हें वो हल्के हल्के से दबा रहा था और पायल को चूम रहा था.
कुच्छ देर तक ऐसा करने के बाद उसने पायल को अपने से अलग किया और उसकी कमीज़ उपेर उठाने लगा.
पायल ने फ़ौरन इनकार किया और जिस तरह से उसने इशारा करते हुए उससे शर्मा समझ गया के वो कह रही थी के इतने खुल्ले में कपड़े उतारना ठीक नही, कोई भी आ सकता है. लड़के को उसकी बात शायद समझ आ गयी इसलिए उसने भी ज़्यादा ज़िद नही की पर ऐसा कुच्छ कहा जिससे पायल शरमाती हुई फिर उसके करीब आ गयी और अपने सीने पर से हाथ हटा लिए.
वो लड़का फिर से उसके करीब आया और इस बात कमीज़ उतारने के बजाय उठाकर पायल की चूचियो के उपेर कर दी और झुक कर उन्हें चूसने लगा.
"हाए री किस्मेत" शर्मा ने दिल ही दिल में सोचा "सुबह सुबह दूध लेने तो सब जाते हैं पर ऐसा दूध सबके नसीब में कहाँ"
कुच्छ देर तक पायल की चूचियो को चूसने के बाद वो लड़का हटा तो पायल ने फ़ौरन अपनी कमीज़ नीचे कर ली. लड़के ने मुस्कुराते हुए अपनी हाफ पेंट की ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाला.
शर्मा को अब भी उनकी बातें सुनाई नही दे रही थी पर इतना समझ आ गया था के लड़का पायल को लंड चूसने को कह रहा था और वो मना कर रही थी.
थोड़ी देर तक वो लड़का उसको मनाने की कोशिश करता रहा पर वो नही मानी. फिर पायल ने आस पास चारो तरफ एक नज़र घुमाई और अपनी सलवार का नाडा खोलने लगी.
उसकी कमीज़ अब उपेर उठी हुई नही थी इसलिए जब उसने सलवार खोलकर थोड़ी सी नीचे सर्काई तो शर्मा को नज़र कुच्छ नही आया. पायल के पीठ उसकी तरफ थी इसलिए वो पिछे से देख कर सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा पा रहा था के वो अपनी सलवार थोड़ी सी नीचे सरका कर उसको पकड़े खड़ी है ताकि पूरी नीचे ना गिर जाए.
वो लड़का खड़े खड़े ही पायल के बिल्कुल नज़दीक आया. कद में वो उससे लंबा था इसलिए ज़रा सा झुका और पायल से सॅट गया. पायल ने भी अपनी बाहें लड़के के गले में डाल दी और लड़के ने उसको कमर से पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया.
वो दोनो ऐसे खड़े थे जैसे एक दूसरे से गले मिल रहे हों बस फरक सिर्फ़ इतना था के लड़के ने अपने घुटने मोड हुए थे ताकि अपना कद पायल के कद से मिला सके और दोनो लगातार हिल रहे थे.
पायल के पीठ शर्मा की तरफ थी और उसे ये समझ नही आ रहा था के वो लड़का पायल को चोद रहा था या यूँ ही उपेर उपेर से लंड उसकी चूत पर रगड़ रहा था.
इतनी देर से शर्मा ने देखा सब था पर पायल के नंगे शरीर की एक झलक भी उसको नही मिली थी. वो दिल ही दिल में सोच रहा था के भगवान कुच्छ तो दिखा दे और जैसे उसके दिल की बात सुन ली गयी. लड़के ने अपने हाथ पायल की कमर से नीच को सरकाए, उसके कमीज़ के पल्लू को पिछे से पकड़ कर उपेर उठाया और पायल की गांद शर्मा की आँखों के आगे नंगी हो गयी.
वो आँखें फाडे वो नज़ारा देख रहा था. पायल के पूरे शरीर का बस वो ही हिस्सा था जो नंगा था. उपेर जिस्म पर कमीज़ और जाँघो के नीचे सलवार. नंगी थी तो बस उसकी भरी भरी गांद जिसपर वो लड़का हाथ फिराता हुआ हिल रहा था.
"बस बस बस" ख़ान ने उसको टोका "सुबह सुबह का वक़्त है, उपेर वाले का नाम ले. खुद तो अपनी सुबह पता नही क्या देख के आ रहा है और उपेर से मेरे दिमाग़ में भी वाहियात बातें डाल रहा है"
"अर्रे सर ...." शर्मा के हाथ अब भी फेले हुए थे जिनसे वो पायल की गांद का साइज़ बताना चाह रहा था.
"सब छ्चोड़. ये बता के लड़का कौन था उसके साथ ........" इससे पहले के वो आगे कुच्छ कहता, ख़ान ने बात काट दी.
"गेस करो सर" शर्मा बोला
"एक तो सुबह सुबह मेरी नींद खराब कर दी" ख़ान चाइ स्टोव से उतारता हुआ बोल "अब उपेर से पहेलियाँ बुझा रहा है, सीधे सीधे बता ना"
"कुलदीप सर" शर्मा ने राज़ बताने के से अंदाज़ में कहा.
ख़ान ने हाथ से चाइ का कप गिरते गिरते बचा.
"क्या बात कर रहा है. आर यू शुवर?"
"हां सर" शर्मा बोला "वही था"
"ह्म्म्म" ख़ान ने चाइ का एक कप शर्मा के हाथ में दिया और दोनो वहीं चेर पर बैठ गये "दिस ईज़ इंट्रेस्टिंग"
"वो कैसे?"
"इस बात से 2 लोग पूरी तारह शक के घेरे में आ जाते हैं"
"पायल और कुलदीप?"
"हां" शर्मा ने कहा "देख अगर वो दोनो एक दूसरे से सच में प्यार करते हैं और शादी वगेरह का प्लान है तो ज़ाहिर सी बात है के ठाकुर इसके खिलाफ रहा होगा, शायद उसको पता भी चल गया हो जिसके चलते इनमें से एक ने काम कर दिया हो"
'बात तो सही है सर, पर अगर यूँ ही टाइम पास के लिए पायल को बजा रहा हो?"
"तब कहानी थोड़ी सी अलग होगी. वो ज़ाहिर सी बात है के पायल को तो बताएगा नही के टाइम पास कर रहा है. वो तो यही सोचेगी के वो उससे प्यार करता है और दौलत का सपना देखती होगी. जब उसको लगा होगा के ठाकुर बीच
में आ रहा है, तब उसने कर दिया होगा काम"
"पर सर आप ये भी तो सोचो के पायल तो ऑलरेडी वसीयत में शामिल है, वो ऐसा क्यूँ करने लगी" शर्मा ने कहा
"गुड पॉइंट पर ये तब जबकि पायल को पता हो के वो वसीयत में शामिल है. एक काम कर, आज थाने बुला ले उसको. बात करते हैं" ख़ान ने कहा
"कितने बजे तक बुलाऊं?"
"बुला ले 11 बजे के करीब"
"वैसे कमाल की बात है ना सर" जाते जाते शर्मा ने कहा "कल ही आपने मुझे कहा था के इस कुलदीप के बारे में कुच्छ पता लगाऊं और आज ही ये जैसे खुद मेरी झोली में आ गिरा"
"हां सो तो है पर फिर भी नज़र रख इस पर. और एक काम और कर, ठाकुर साहब की बड़े बेटे के बारे में ज़रा कुच्छ पता कर"
"पुरुषोत्तम?"
"हां"
"उस नाल्ले के बारे में क्या पता करना है?"
"नल्ला?" ख़ान ने हैरानी से पुछा
"हां. खड़ा नही होता उसका" शर्मा ने ऐसा कहा जैसे बहुत पेट की बात बता रहा हो.
"उसका खड़ा होता है या नही इससे कोई मतलब नही मुझे. अपनी भैंस या घोड़ी नही चुदवानी मैने उससे. खून की रात वो भी हवेली में ही था और पूरे पूरे चान्स हैं के ये काम उसी ने कर दिया हो"
"एग्ज़ॅक्ट्ली क्या मालूम करना है?" शर्मा ने सर खुजाते हुए पुछा
"पता कर के किससे मिलता है, किनके साथ उतना बैठना है, कहीं क़र्ज़ वगेरह में तो नही फसा हुआ"
"सर अगर वो क़र्ज़ में फसा होता ...." शर्मा ने कहना शुरू किया ही था के बीच में ख़ान ने टोक दिया
"यार तू मेरे कहने पे पता करेगा ज़रा?"
"येस सर" शर्मा ने कहा "वैसे एक बात और कहूँ सर?"
"हां बोल"
"आप एक आदमी को अपने शक के घेरे से निकाल रहे हो"
"किसे" ख़ान ने पुछा
"जै को" शर्मा ने समझाते हुए कहा "ऐसा भी तो हो सकता है के मारा उसने ही हो और हम फ़िज़ूल में भाग दौड़ कर रहे हों"
"हां हो सकता है" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "पर फिर ठीक है ना. ऐसा हुआ तो हम एक खूनी को एक खूनी ही साबित करेंगे"
"पर वो तो ऑलरेडी अंदर है सर"
"अर्रे मेरे भाई तू मेरे कहने पे कर दे ये सब. मेरे दिल की तसल्ली हो जाएगी के जै निर्दोष नही था और सज़ा सही आदमी को हुई"
"ओके सर" कहता हुआ शर्मा दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया.
तैय्यार होकर ख़ान पोलीस स्टेशन जाने के लिए घर से निकल ही रहा था के सेल बजा. मेसेज आया था. उसने सेल उठाकर देखा.
किरण का मेसेज था. उससे उसने आज सुबह से कोई बात नही की थी वरना अब तो ये रुटीन हो गया था के वो सुबह उठते ही सबसे पहले किरण को फोन घुमाता था.
मेसेज में एक शेर था.
"कुच्छ तबीयत ही मिली थी ऐसी,
के सुकून से जीने की सूरत ना हुई,
जिसे चाहा उसको अपना ना सके,
जो मिला उससे मोहब्बत ना हुई"
ख़ान शेर पढ़कर मुस्कुरा उठा. उसने दो पल सोचा और जवाब दिया.
मेरे लब की हसी तेरे होंठो से निकले,
तेरे गम का दायरा मेरी आँखों से निकले.
खुशी तेरे दर से ना जाए कहीं,
दुआ यही हरदम मेरे दिल से निकले.
तेरे आँखों में अश्क़ जो आ जाए कभी,
तो साथ ही खबर मेरे मरने की निकले.
आरज़ू थी के तेरी बाहों में दम निकले,
कसूर तेरा नही, बदनसीब हम निकले.
क्रमशः........................................
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