RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --44
गतान्क से आगे........................
उस रात रूपाली कल्लो के साथ तबीयत खराब का बहाना करके सोई तो नही पर इशारा कर दिया के वो शंभू के लिए तैय्यार है ......
और अगली रात ही आम तौर पर उस शांत रहने वाले घर में जैसे एक तूफान सा आ गया था.
रात के तकरीबन 2 बजे शंभू रूपाली के कमरे में दाखिल हुआ. कल्लो और रूपाली जैसे दोनो उसी के इंतेज़ार में बैठी थी. शंभू ने एक नज़र रूपाली पर डाली और मुस्कुराया. जवाब में रूपाली शर्मा कर दूसरी ओर देखने लगी.
"कोई बात नही बेटा" शंभू अपने हाथ में थमा बॅग एक तरफ रखते हुए बोला "पहली पहली बार ऐसा लगता है पर मज़ा बहुत आएगा आज रात तुम्हें"
"उस बॅग में क्या है?" रूपाली ने पुछा
"कुच्छ नही. बस तुम्हें मज़ा देने का इंटेज़ाम" शंभू ने कहा पर रूपाली जानती थी के उसमें वो कॅमरा छुपाके लाया था.
"आज की रात मेरी लाडो लड़की से पूरी औरत बन जाएगी" कल्लो ने प्यार से रूपाली के सर पर हाथ फेरते हुए कहा
शंभू चलते हुए रूपाली के नज़दीक आया और उसको बिस्तर से उठाकर खड़ा कर लिया. रूपाली ने आज रात भी एक नाइटी पहनी हुई थी.
"बहुत सुंदर लग रही हो" शंभू ने कहा
"मुझे शरम आ रही है" रूपाली बोली
"कोई बात नही. मैं बहुत प्यार से करूँगा. कल्लो ने बताया मुझे के तुम भी वही चाहती हो जो इस वक़्त मैं चाहता हूँ" कहते हुए शंभू ने एक बार रूपाली का माथा चूमा और उसको अपने गले से लगा लिया.
पसीने की बदबू फ़ौरन रूपाली की नाक में चढ़ गयी और उसको अपने आप से नफ़रत सी होने लगी के उसने इस गंदे आदमी के साथ सोने के बारे में सोचा भी था. शंभू एक हाथ उसकी पीठ पर फिरा रहा था और दूसरा हाथ उसके सर पर.
"मैं ऐसे नही कर पाऊँगी" रूपाली ने अपने आपको शंभू से अलग किया और पलट कर कल्लो से बोली "मुझे पहले की तरह बाँध दो"
उसकी इस बात पर कल्लो हैरानी से उसको देखने लगी पर फ़ौरन मुस्कुराइ
"मेरी बिटिया रानी को अलग तरीके से मज़ा आता है शायद" कहते हुए वो उठी और अलमारी से रूपाली की ही एक चुन्नी निकाल लाई. रूपाली फ़ौरन बिस्तर पर लेट गयी और अपने हाथ उपेर को कर लिए.
"शाबाश" कहते हुए कल्लो बिस्तर पर उसके नज़दीक आई और पहले की तरह ही उसके हाथ बिस्तर से बाँध दिए. शंभू भी बिस्तर पर आकर बैठ चुका था. एक बार हाथ बँध गये तो उसने रूपाली की नाइटी को पैरों के पास से उपेर उठाना शुरू कर दिया.
"पहले आप दोनो अपने कपड़े उतारो" नाइटी जांघों तक आई ही थी के रूपाली बोल पड़ी.
"नयी बच्ची है इसलिए शर्मा रही है" कल्लो ने कहा तो शंभू ने भी हां में सर हिलाया और उठकर खड़ा हो गया.
कपड़े के नाम पर उसके सिर्फ़ एक बनियान और लूँगी बाँध रखी थी. नंगा होने में उसको सिर्फ़ 2 सेकेंड लगे. उधेर कल्लो भी अपनी सारी उतार कर ब्लाउस के बटन खोलने में लगी थी.
नंगे हो चुके शंभू पर रूपाली ने एक नज़र डाली. उसका लंड पूरा खड़ा हुआ था और ये पहली बार था के रूपाली किसी मर्द का लंड इतने करीब से देख रही थी पर इस वक़्त उत्तेजित होने के बजाय उसके दिल में नफ़रत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था.
नंगा शंभू रूपाली के करीब आया और हाथ छाती की तरफ बढ़ाया. इससे पहले के वो रूपाली को च्छू पता, रूपाली ने अचानक चीख मारनी शुरू कर दी.
शांत पड़ा घर अचानक से जैसे रूपाली की चीख से गूँज उठा. उसके बाद जो हुआ वो बहुत ही तेज़ी के साथ हुआ. शंभू और कल्लो दोनो हड़बड़ा गये. एक पल के लिए समझ नही आया के क्या करें पर अगले ही पल शंभू ने रूपाली के मुँह पर हाथ रख कर उसको चुप करने की कोशिश की. पर रूपाली भी जैसे इसके लिए तैय्यार थी. उसने फ़ौरन अपना मुँह खोला और दाँत शंभू के हाथ पर गढ़ा दिए.
दर्द से शंभू बिलबिला उठा और उसके कसकर एक थप्पड़ रूपाली के मुँह पर जड़ दिया.
"रांड़ साली"
पर थप्पड़ के जवाब में रूपाली सिर्फ़ मुस्कुराइ और शंभू की तरफ देखा.
"साअलल्ल्ल्लीइीइ कुतिया" उसको मुस्कुराता देख कर शंभू समझ गया के क्या हुआ और फ़ौरन अपने कपड़े पहेन्ने शुरू कर दिए पर तब तक देर हो चुकी थी.
अगले ही पल रूपाली के कमरे का दरवाज़े पर एक ज़ोर का धक्का लगा. दरवाज़ा बंद था इसलिए खुला नही. फिर दूसरा धक्का, फिर तीसरा, फिर चौथा और दरवाज़ा खुल गया.
दरवाज़े पर रूपाली का बाप खड़ा था. उसने एक नज़र कमरे में डाली.
रूपाली बिस्तर पर बँधी पड़ी थी.
थप्पड़ से उसका गाल अब भी लाल था.
बाल बिखरे हुए थे.
कल्लो बिना सारी के खड़ी थी.
शंभू अपनी लूँगी बाँध रहा था और उपेर से नंगा था.
"मदारचोड़" रूपाली का बाप चिल्लाया और कमरे के अंदर आकर शंभू के मुँह पर एक मुक्का मारा. बुद्धा शंभू लड़खड़ा कर गिर पड़ा.
तभी घर के मेन गेट पर खड़ा रहने चौकीदार भागता हुआ कमरे के अंदर आया. उसके हाथ में एक लोडेड राइफल थी.
उस रात घर में 3 गोलियाँ चली. पहली शंभू के सर में लगी, दूसरी कल्लो की टाँग पर और तीसरी कल्लो की बड़ी बड़ी चूचियो के बीच.
"चुड़ैल है वो लड़की, डायन. खून पीने वाली डायन" कहती हुए कल्लो रो पड़ी.
ख़ान ने एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. वो व्हील चेर पर बैठी थी. घुटने के उपेर से उसकी एक टाँग कटी हुई थी.
"उस रात मैं तो बच गयी पर शंभू नही बच पाया. और मैं बची भी तो क्या, 1 महीने बाद ही मेरी टाँग भी काट दी गयी. गोली का ज़हर फेल गया था"
"ह्म्म्म्मम" ख़ान ने हामी भरी
"यही कहते रह गये सारे पोलिसेवाले" कल्लो अब भी रो रही थी "ह्म्म्म्मम. बस इतना ही कहा सबने."
कुच्छ देर तक कल्लो, किरण और ख़ान, तीनो चुप बैठे रहे.
"चलते हैं हम" ख़ान ने कहा और उसके साथ ही किरण भी उठ खड़ी हुई.
"उसको चुड़ैल और डायन कह रही हो तो अपने गिरेबान में झाँक कर भी देखो. उस लड़की के साथ तुम लोग जो करने वाले थे उसका सही बदला दिया उपेर वाले ने तुम्हें" किरण ने कहा और पलटकर बाहर की तरफ चल दी. ख़ान मुस्कुराया और उसके पिछे पिछे ही चल पड़ा.
"ओके" कुच्छ देर बाद दोनो एक रेस्टोरेंट में बैठे कॉफी पी रहे थे "आज की कहानी के बाद आइ वुड पुट रूपाली ऑन माइ सस्पेक्ट नंबर 1 प्लेस"
"क्यूँ?" ख़ान ने पुछा
"एक लड़की जो इतनी सी उमर में इस तरह से एक प्लान एक्सेक्यूट करके 2 लोगों की जान लेने की सोच सकती है, क्या लगता है के वो ठाकुर को नही मार सकती?"
"यू आर राइट" ख़ान ने जवाब दिया "पर तुम एक बहुत बड़ा पॉइंट मिस कर रही हो?"
"व्हाट ईज़ दट?"
"के अब तक हमारे पास मोटिव नही है रूपाली के लिए. मान लिया जाए के उसमें ऐसा करने की हिम्मत और अकल दोनो थे, पर फिर भी ऐसा किया तो क्यूँ. वजह क्या थी?"
"ह्म्म्म्मम" किरण ने सोचा "ये एक चीज़ अब भी मिस्सिंग है"
वो दोनो चुप चाप कॉफी पीने लगे.
"याद है पहले ये एक छ्होटी सी चाइ की दुकान हुआ करती थी, अब कितना बड़ा रेस्टुअरंट हो गया है" किरण ने मुस्कुराते हुए अपने चारों तरफ देखा
"हां. और कितना फॅन्सी भी" ख़ान भी साथ ही मुस्कुरा उठा
"कुच्छ पुच्छू?" ख़ान हिचकते हुए बोला
"हां पुछो"
"बुरा तो नही मनोगी?"
"नही"
"दिस गाइ यू मॅरीड, युवर एक्स-हज़्बेंड, वो भी इसी शहर में रहता है?"
"क्यूँ जलन हो रही है?"
"अर्रे नही ऐसे ही पुछ रहा था" ख़ान नज़र झुकाता हुआ बोला
"तो सुनो" किरण ने कहा "नही वो अब यहाँ नही रहता. बिज़्नेस में काफ़ी लॉसस हुए थे, काफ़ी कर्ज़ा हुआ और वो बचकर शहर छ्चोड़ भाग निकला. कहाँ, कोई नही जानता. शुक्र तो इस बात का था के मैं डाइवोर्स पहले ले चुकी थी वरना आज तक उसी के साथ फसि बैठी होती"
"ह्म्म्म्मम" ख़ान आगे कुच्छ कहने वाला ही था के पहले किरण बोल पड़ी
"मैं जानती हूँ तुम क्या पुच्छना चाह रहे हो. इस वक़्त मेरी लाइफ में कोई नही है मुन्ना, तुम्हारे सिवा"
ख़ान ने मुस्कुरा कर किरण की तरफ देखा और अपना एक हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
"कोई शेर सूनाओ ना" अचानक किरण बोल पड़ी
"शेर? ह्म्म्म्मममम"
"चलो मैं सुनाती हूँ" किरण बोली "अर्ज़ किया है ....."
"इरशाद"
मेरी निगाहों ने सारा ज़माना देखा है,
पर कहाँ तुझसा कोई दीवाना देखा है.
तड़पना दिल का देखा एक अरसे तक मैने,
मुद्दत बाद फिर अब दिल का लगाना देखा है.
तू रहे कहीं भी, मैं आऊँगी ज़रूर,
के मैने भी तेरा हर ठिकाना देखा है.
इससे पहले के ख़ान कुच्छ कह पाता, उसका फोन बज उठा. नंबर शर्मा का था.
क्रमशः........................................
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