RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
अचानक मां ने निढाल होकर आत्मसमर्पण कर दिया और बेतहाशा मुझे चूमने लगी. उसकी भी वासना अब काबू के बाहर हो गयी थी. मुंह खोल कर जीभें लड़ाते हुए और एक दूसरे का मुखरस चूसते हुए हम चूमाचाटी करने लगे. मैंने फ़िर उसका पेटीकोट उतारना चाहा तो अब उसने प्रतिकार नहीं किया. पेटीकोट निकाल कर मैंने फ़र्श पर फ़ेंक दिया.
मां ने किसी नई दुल्हन जैसे लाज से अपने हाथों से अपनी बुर को ढक लिया. अपने उस खजाने को वह अपने बेटे से छुपाने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसके हाथ पकड़कर अलग किये और उस अमूल्य वस्तु को मन भर कर देखने लगा.
काले घने बालों से भरी उस मोटी फ़ूली हुई बुर को मैंने देखा और मेरा लंड और उछलने लगा. इसी में से मैं जन्मा था! मां ने शरमा कर मुझे अपने ऊपर खींच लिया और चूमने लगी. उसे चूमते हुए मैंने अपने हाथों से उसकी बुर सहलाई और फ़िर उसके उरोजों को चूमते हुए और निपलों को एक छोटे बच्चे जैसे चूसते हुए अपनी उंगली उसकी बुर की लकीर में घुमाने लगा.
बुर एकदम गीली थी और मैंने तुरंत अपनी बीच की उंगली उस तपी हुई कोमल रिसती हुई चूत में डाल दी. मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूं क्योंकि सपने में भी मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरी मां कभी मुझे अपना पेटीकोट उतार कर अपनी चूत से खेलने देगी.
मैं अब मां के शरीर को चूमते हुए नीचे खिसका और उसकी जांघें चूमने और चाटने लगा. जब आखिर अपना मुंह मैंने मां की घनी झांटों में छुपा कर उसकी चूत को चूमना शुरू किया, तो कमला, मेरी मां, मस्ती से हुमक उठी. झांटों को चूमते हुए मैंने अपनी उंगलियों से उसके भगोष्ठ खोले और उस मखमली चूत का नजारा अब बिलकुल पास से मेरे सामने था. मां की चूत में से निकलती मादक खुशबू सूंघते हुए मैंने उसके लाल मखमली छेद को देखा और उसके छोटे से गुलाबी मूत्रछिद्र को और उसके ऊपर दिख रहे अनार के दाने जैसे क्लिटोरिस को चूम लिया.
अपनी जीभ मैंने उस खजाने में डाल दी और उसमें से रिसते सुगंधित अमृत का पान करने लगा. जब मैंने मां के क्लिटोरिस को जीभ से रगड़ा तो वह तड़प उठी और एक अस्फ़ुट किलकारी के साथ अपनी हाथों से मेरा सिर अपनी बुर पर जोर से दबा लिया. मैंने अब एक उंगली अम्मा की चूत में डाली और उसे अंदर बाहर करते हुए चूत चूसने लगा.
मां की सांस अब रुक रुक कर जोर से चल रही थी और वह वासना के अतिरेक से हांफ़ रही थी. मैंने खूब चूत चूसी और उस अनार के दाने को जीभ से घिसता रहा. साथ ही उंगली से अम्मा को हस्तमैथुन भी कराता रहा. सहसा अम्मा का पूरा शरीर जकड़ गया और वह एक दबी चीख के साथ स्खलित हो गयी. मैं उसका क्लिट चाटता रहा और चूत में से निकलते रस का पान करता रहा. बड़ी सुहावनी घड़ी थी वह. मैंने मां को उसका पहला चरमोत्कर्ष दिलाया था.
तृप्त होने के बाद वह कुछ संभली और मुझे उठाकर अपने ऊपर लिटा लिया. मेरे सीने में मुंह छूपाकर वह शरमाती हुई बोली. "सुंदर बेटे, निहाल हो गयी आज मैं, कितने दिनों के बाद पहली बार इस मस्ती से मैं झड़ी हूं."
"अम्मा, तुमसे सुंदर और सेक्सी कोई नहीं है इस संसार में. कितने दिनों से मेरा यह सपना था तुमसे मैथुन करने का जो आज पूरा हो रहा है."
मां मुझे चूमते हुए बोली. "सच में मैं इतने सुंदर हूं बेटे कि अपने ही बेटे को रिझा लिया?"
मैं उसके स्तन दबाता हुआ बोला. "हां मां, तुम इन सब अभिनेत्रियों से भी सुंदर हो."
मां ने मेरी इस बात पर सुख से विभोर होते हुए मुझे अपने ऊपर खींच कर मेरे मुंह पर अपने होंठ रख दिये और मेरे मुंह में जीभ डाल कर उसे घुमाने लगी; साथ ही साथ उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और अपनी योनि पर उसे रगड़ने लगी. उसकी चूत बिलकुल गीली थी. वह अब कामवासना से सिसक उठी और मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझ से मूक याचना करने लगी. मैंने मां के कानों में कहा. "अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूं, अब तुझे चोदना चाहता हूं."
अम्मा ने अपनी टांगें पसार दीं. यह उसकी मूक सहमति थी. साथ ही उसने मेरा लंड हाथ में लेकर सुपाड़ा खुद ही अपनी चूत के मुंह पर जमा दिया. उसका मुंह चूसते हुए और उसकी काली मदभरी आंखों में झांकते हुए मैंने लंड पेलना शुरू किया. मेरा लंड काफ़ी मोटा और तगड़ा था इसलिये धीरे धीरे अंदर गया. उसकी चूत किसी गुलाब के फ़ूल की पंखुड़ियों जैसी चौड़ी होकर मेरा लंड अंदर लेने लगी.
अम्मा अब इतनी कामातुर हो गई थी कि उससे यह धीमी गति का शिश्न प्रवेश सहन नहीं हुआ और मचल कर सहसा उसने अपने नितंब उछाल कर एक धक्का दिया और मेरा लंड जड़ तक अपनी चूत ले लिया. मां की चूत बड़ी टाइट थी. मुझे अचरज हुआ कि तीन बच्चों के बाद भी मेरी जननी की योनि इतनी संकरी कैसे है. उसकी योनि की शक्तिशाली पेशियों ने मेरे शिश्न को घूंसे जैसा पकड़ रखा था. मैंने लंड आधा बाहर निकाला और फ़िर पूरा अंदर पेल दिया. गीली तपी उस बुर में लंड ऐसा मस्त सरक रहा था जैसे उसमें मक्खन लगा हो.
इसके बाद मैं पूरे जोर से मां को चोदने में लग गया. मैं इतना उत्तेजित था कि जितना कभी जिंदगी में नहीं हुआ. मेरे तन कर खड़े लंड में बहुत सुखद अनुभूति हो रही थी और मैं उसका मजा लेता हुआ अम्मा को ऐसे हचक हचक कर चोद रहा था कि हर धक्के से उसका शरीर हिल जाता. मां की चूत के रस में सराबोर मेरा शिश्न बहुत आसानी से अंदर बाहर हो रहा था.
हम दोनों मदहोश होकर ऐसे चोद रहे थे जैसे हमें इसी काम एक लिये बनाया गया हो. मां ने मेरी पीठ को अपनी बांहों में कस रखा था और मेरे हर धक्के पर वह नीचे से अपने नितंब उछाल कर धक्का लगा रही थी. हर बार जब मैं अपना शिश्न अम्मा की योनि में घुसाता तो वह उसके गर्भाशय के मुंह पर पहुंच जाता, उस मुलायम अंदर के मुंह का स्पर्श मुझे अपने सुपाड़े पर साफ़ महसूस होता. अम्मा अब जोर जोर से सांसें लेते हुए झड़ने के करीब थी. जानवरों की तरह हमने पंद्रह मिनट जोरदार संभोग किया. फ़िर एकाएक मां का शरीर जकड़ गया और वह कांपने लगी.
मां के इस तीव्र स्खलन के कारण उसकी योनि मेरे लंड को अब पकड़ने छोड़ने लगी और उसी समय मैं भी कसमसा कर झड़ गया. इतना वीर्य मेरे लंड ने उसकी चूत में उगला कि वह बाहर निकल कर बहने लगा. काफ़ी देर हम एक दूसरे को चूमते हुए उस स्वर्गिक आनंद को भोगते हुए वैसे ही लिपटे पड़े रहे.
मां के मीठे चुंबनों से और मेरी छाती पर दबे उसके कोमल उरोजों और उनके बीच के कड़े निपलों की चुभन से अब भी योनि में घुसा हुआ मेरा शिश्न फ़िर धीरे धीरे खड़ा हो गया. जल्द ही हमारा संभोग फ़िर शुरू हो गया. इस बार हमने मजे ले लेकर बहुत देर कामक्रीड़ा की. मां को मैंने बहुत प्यार से हौले हौले उसके चुंबन लेते हुए करीब आधे घंटे तक चोदा. हम दोनों एक साथ स्खलित हुए.
अम्मा की आंखों में एक पूर्ण तृप्ति के भाव थे. मुझे प्यार करती हुई वह बोली. "सुन्दर, तेरा बहुत बड़ा है बेटे, बिलकुल मुझे पूरा भर दिया तूने."
मैं बहुत खुश था और गर्व महसूस कर रहा था कि पहले ही मैथुन में मैंने अम्मा को वह सुख दिया जो आज तक कोई उसे नहीं दे पाया था. मैं भरे स्वर में बोला. "यह इसलिये मां कि मैं तुझपर मरता हूं और बहुत प्यार करता हूं."
मां सिहर कर बोली. "इतना आनंद मुझे कभी नहीं आया. मैं तो भूल ही गई थी कि स्खलन किसे कहते हैं" मैं मां को लिपटा रहा और हम प्यार से एक दूसरे के बदन सहलाते हुए चूमते रहे.
आखिर मां मुझे अलग करते हुए बोली "सुन्दर, मेरे राजा, मेरे लाल, अब मैं जाती हूं. हमें सावधान रहना चाहिये, किसी को शक न हो जाये."
उठ कर उसने अपना बदन पोंछा और कपड़े पहनने लगी. मैंने उससे धीमे स्वर में पूछा. "अम्मा, मैं तुम्हारा पेटीकोट रख लूं? अपनी पहली रात की निशानी?"
वह मुस्करा कर बोली. "रख ले राजा, पर छुपा कर रखना." उसने साड़ी पहनी और मुझे एक आखरी चुंबन देकर बाहर चली गई.
मैं जल्द ही सो गया, सोते समय मैंने अपनी मां का पेटीकोट अपने तकिये पर रखा था. उसमें से आ रही मां के बदन और उसके रस की खुशबू सूंघते हुए कब मेरी आंख लग गयी, पता ही नहीं चला.
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