RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
हम आखिर आकर नई जगह बस गये. यहां मैंने सभी को यही बताया कि मैं अपनी पत्नी के साथ हूं. हमारा संभोग तो अब ऐसा बढ़ा कि रुकता ही नहीं था. सुबह उठ कर, फ़िर काम पर जाने से पहले, दोपहर में खाने पर घर आने के बाद, शाम को लौटकर और फ़िर रात को जब मौका मिले, मैं बस अम्मा से लिपटा रहता था, उस पर चढ़ा रहता था.
मां की वासना भी शांत ही नहीं होती थी. कुछ माह हमने बहुत मजे लिये. फ़िर आठवें माह से मैंने उसे चोदना बंद कर दिया. मैं उसकी चूत चूस कर उसे झड़ा देता था और वह भी मेरा लंड चूस देती थी. घरवालों को मैंने अपना पता नहीं दिया था, बस कभी कभी फ़ोन पर बात कर लेता था.
आखिर एक दिन मां को अस्पताल में भरती किया. दूसरे ही दिन चांद सी गुड़िया को उसने जन्म दिया. मां तो खुशी से रो रही थी, अपने ही बेटे की बेटी उसने अपनी कोख से जनी थी. वह बच्ची मेरी बेटी भी थी और बहन भी. मां ने उसका नाम मेरे नाम पर सुन्दरी रखा.
इस बात को बहुत दिन बीत गये हैं. अब तो हम मानों स्वर्ग में हैं. मां के प्रति मेरे प्यार और वासना में जरा भी कमी नहीं हुए है, बल्कि और बढ़ गई है. एक उदाहरण यह है कि हमारी बच्ची अब एक साल की हो गयी है और अब मां का दूध नहीं पीती. पर मैं पीता हूं. मां के गर्भवती होने का यह सबसे बड़ा लाभ मुझे हुआ है कि अब मैं अपनी मां का दूध पी सकता हूं.
इसकी शुरुवात मां ने सुन्दरी छह माह की होने के बाद ही की. एक दिन जब वह मुझे लिटा कर ऊपर चढ़ कर चोद रही थी तो झुककर उसने अपना निपल मेरे मुंह में देकर मुझे दूध पिलाना शुरू कर दिया था. उस मीठे अमृत को पाकर मैं बहुत खुश था पर फ़िर भी मां को पूछ बैठा कि बच्ची को तो कम नहीं पड़ेगा.
वह बोली. "नहीं मेरे लाल, वह अब धीरे धीरे यह छोड़ देगी. पर जब तूने पहली बार मेरे निपल चूसे थे तो मैं यही सोच रही थी कि काश, मेरे इस जवान मस्त बेटे को फ़िर से पिलाने को मेरे स्तनों में दूध होता. आज वह इच्छा पूरी हो गयी."
मां ने बताया कि अब दो तीन साल भी उसके स्तनों से दूध आता रहेगा बशर्ते मैं उसे लगातार पिऊं. अंधे को चाहिये क्या, दो आंखें, मैं तो दिन में तीन चार बार अम्मा का दूध पी लेता हूं. खास कर उसे चोदते हुए पीना तो मुझे बहुत अच्छा लगता है.
मैंने मां को यही कहा है कि जब मैं घर में होऊं, वह नग्न रहा करे. उसने खुशी से यह मान लिया है. घर का काम वह नग्नावस्था में ही करती रहती है. जब वह किचन में प्लेटफ़ार्म के सामने खड़ी होकर खाना बनाती है, तब मुझे उसके पीछे खड़ा होकर उसके स्तन दबाना बहुत अच्छा लगता है. उस समय मैं अपना लंड भी उसके नितंबों के बीच के गहरी लकीर में सटा देता हूं.
मां को भी यह बहुत अच्छा लगता है और कभी कभी तो वह मुझे ऐसे में अपने गुदा में शिश्न डालने की भी सहमति दे देती है.
हां, मां से अब मैं कई बार अप्राकृतिक मैथुन याने गुदा मैथुन करता हूं, उसकी गांड मारता हूं. उसे यह हमेशा करना अच्छा नहीं लगता पर कभी कभी जब वह मूड में हो तो ऐसा करने देती है. खास कर अपने माहवारी के दिनों में.
इसकी शुरुवात भी ऐसे ही हुई. मां जब रजस्वला होती थी तो हमारा मैथुन रुक जाता था. वह तो उन दिनों में अपने आप पर संयम रखती थी पर मेरा लंड चूस कर मेरी तृप्ति कर देती थी. मुझे उसे जोर जोर से चढ़ कर चोदने की आदत पड़ गई था इसलिये ऐसे में मेरा पूर्ण स्खलन नहीं हो पाता था.
एक दिन जब वह ऐसे ही मेरा लंड चूस रही था तब मैं उसके नितंब उसकी साड़ी में हाथ डाल कर सहला रहा था. उसने पैड बांधा था इसलिये पैंटी पहने थी. मेरे हाथों के उसके नितंब सहलाने से उसने पहचान लिया कि मैं क्या सोच रहा हूं. फ़िर जब मैंने उंगली पैंटी के ऊपर से ही उसके गुदा में डालने लगा तब लंड चूसना छोड़ कर वह उठी और अंदर से कोल्ड क्रीम की शीशी ले आयी. एक कैंची भी लाई.
फ़िर मुस्करा कर लाड़ से मेरा चुंबन लेते हुए पलंग पर ओंधी लेट गयी और बोली. "सुन्दर, मैं जानती हूं तू कितना भूखा है दो दिन से. ले , मेरे पीछे के छेद से तेरी भूख कुछ मिटती हो तो उसमें मैथुन कर ले."
मैंने मां के कहे अनुसार पैंटी के बीच धीरे से छेद काटा और फ़िर उसमें से मां के गुदा में क्रीम लगाकर अपना मचलता लंड धीरे धीरे अंदर उतार दिया. अम्मा को काफ़ी दुखा होगा पर मेरे आनंद के लिये वह एक दो बार सीत्कारने के सिवाय कुछ न बोली. मां के उस नरम सकरे गुदा के छेद को चोदते हुए मुझे उस दिन जो आनंद मिला वह मैं बता नहीं सकता. उसके बाद यह हमेशा की बात हो गयी. माहवारी के उन तीन चार दिनों में रोज एक बार मां मुझे अपनी गांड मारने देती थी.
महने के बाकी स्वस्थ दिनों में वह इससे नाखुश रहती थी क्योंकि उसे दुखता था. पर मैंने धीरे धीरे उसे मना लिया. एक दो बार जब उसने सादे दिनों में मुझे गुदा मैथुन करने दिया तो उसके बाद मैंने उसकी योनि को इतने प्यार से चूसा और जीभ से चोदा कि वह तृप्ति से रो पड़ी. ऐसा एक दो बार होने पर अब वह हफ़्ते में दो तीन बार खुशी खुशी मुझसे गांड मरवा लेती है क्योंकि उसके बाद मैं उसकी बुर घंटों चूस कर उसे इतना सुख देता हूं कि वह निहाल हो जाती है.
और इसीलिये खाना बनाते समय जब मैं पीछे खड़ा होकर उसके स्तन दबाता हूं तो कभी कभी मस्ती में आकर अपना शिश्न उसके गुदा में डाल देता हूं और जब तक वह रोटी बनाये, खड़े खड़े ही उसकी गांड मार लेता हूं.
मेरे कामजीवन की तीव्रता का मुझे पूरा अहसास है. और मैं इसीलिये यही मनाता हूं कि मेरे जैसे और मातृप्रेमी अगर हों, तो वे साहस करें, आगे बढें, क्या पता, उन्हें भी मेरी तरह स्वर्ग सुख मिले. कामदेव से मैं यही प्रार्थना करता हूं कि सब मातृभक्तों की अपनी मां के साथ मादक और मधुर रति करने की इच्छा पूरी करें.
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