RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मेरी तो हालत उसके हाथ के छुने भर से फिर से खराब होने लगी। मेरी समझ में एकदम नही आ रहा था कि क्या करुं। कुछ जवाब देते हुए भी नही बन रहा था कि क्या जवाब दुं। तभी वो हल्का-सा आगे की ओर सरकी और झुकी। आगे झुकते ही उसका आंचल उसके ब्लाउस पर से सरक गया। पर उसने कोई प्रयास नही किया उसको ठीक करने का। अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी। मेरी आंखो के सामने उसकी नारीयल के जैसी सख्त चुचियां जीनको सपने में देख कर, मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गीराया था, और जीसको दुर से देख कर ही तडपता रहता था, नुमाया थी। भले ही चुचियां अभी भी ब्लाउस में ही कैद थी, परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके उपर से ही लगाया जा सकता था। ब्लाउस के उपरी भाग से उसकी चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा-गोरा हिस्सा नजर आ रहा था। हालांकि, चुचियों को बहुत बडा तो नही कहा जा सकता, पर उतनी बडी तो थी ही, जितनी एक स्वस्थ शरीर की मालकिन की हो सकती है। मेरा मतलब है कि इतनी बडी जीतनी कि आप के हाथों में ना आये, पर इतनी बडी भी नही की आप को दो-दो हाथो से पकडनी पडे, और फिर भी आपके हाथ ना आये। एकदम किसी भाले की तरह नुकिली लग रही थी, और सामने की ओर निकली हुई थी। मेरी आंखे तो हटाये नही हट रही थी। तभी राखी ने अपने हाथों को मेरे लंड पर थोडा जोर से दबाते हुए पुछा,
"बोलना, और दबाउं क्या ?"
"हाये,,,,,,राखी, छोडो ना।"
उसने जोर से मेरे लंड को मुठ्ठी में भर लिया।
"हाये राखी, छोडो बहुत गुद-गुदी होती है।"
"तो होने दे ना, तु खाली बोल दबाउं या नही ?"
"हाये दबाओ राखी, मसलो।"
"अब आया ना, रस्ते पर।"
"हाये राखी, तुम्हारे हाथों में तो जादु है।"
"जादु हाथों में है या,,,,,,!!!, या फिर इसमे है,,,,??"
(अपने ब्लाउस की तरफ इशारा कर के पुछा।)
"हाये राखी, तुम तो बस,,,,,?!!"
"शरमाता क्यों है ?,बोलना क्या अच्छा लग रहा है,,?"
"हाय राखी,, मैं क्या बोलुं ?"
"क्यों क्या अच्छा लग रहा है,,,?, अरे, अब बोल भी दे शरमाता क्यों है,,?"
"हाये राखी दोनो अच्छे लग रहे है।"
"क्या, ये दोनो ? "
(अपने ब्लाउस की तरफ इशारा कर के पुछा)
"हां, और तुम्हारा दबाना भी।"
"तो फिर शरमा क्यों रहा था, बोलने में ? ऐसे तो हर रोज घुर-घुर कर मेरे अनारो को देखता रहता है।फिर राखी ने बडे आराम से मेरे पुरे लंड को मुठ्ठी के अंदर कैद कर हल्के-हल्के अपना हाथ चलाना शुरु कर दिया।
"तु तो पुरा जवान हो गया है, रे!"
"हाये राखी,,,,"
"हाये, हाये, क्या कर रहा है। पुरा सांढ की तरह से जवान हो गया है तु तो। अब तो बरदाश्त भी नही होता होगा, कैसे करता है,,,?"
"क्या राखी,,,,?"
"वही बरदाश्त, और क्या ? तुझे तो अब छेद (होल) चाहिये। समझा, छेद मतलब ?"
"नही राखी, नही समझा,,"
"क्या उल्लु लडका है रे, तु ? छेद मतलब नही समझता,,,,?!!"
मैने नाटक करते हुए कहा,
"नही राखी, नही समझता।"
इस पर राखी हल्के-हल्के मुस्कुराने लगी और बोली,
"चल समझ जायेगा, अभी तो ये बता कि कभी इसको (लंड की तरफ इशारा करते हुए) मसल-मसल के माल गीराया है ?"
"माल मतलब,,,!? क्या होता है, राखी,,,?"
"अरे उल्लु, कभी इसमे से पानी गीराया है, या नही ?" "हाय, वो तो मैं हर-रोज गीराता हुं। सुबह-शाम दिनभर में चार-पांच बार। कभी ज्यादा पानी पी लिया तो ज्यादा बार हो जाता है।"
"हाये, दिनभर में चार-पांच बार ? और पानी पीने से तेरा ज्यादा बार निकलता है ? कही तु पेशाब करने की बात तो नही कर रहा ?"
"हां राखी, वही तो मैं तो दिनभर में चार-पांच बार पेशाब करने जाता हुं।"
इस पर राखी ने मेरे लंड को छोड कर, हल्के-से मेरे गाल पर एक झापड लगाई और बोली,
"उल्लु का उल्लु ही रह गया, क्या तु ?"
फिर बोली
"ठहर जा, अभी तुझे दिखाती हुं, माल कैसे निकल जाता है ?"
फिर वो अपने हाथों को तेजी से मेरे लंड पर चलाने लगी। मारे गुद-गुदी और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था। समझ में नही आ रहा था क्या करुं। दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढा कर राखी की दोनो चुचियों को कस के पकड लुं, और खूब जोर-जोर से दबाउं। पर सोच रहा था कि कहीं बुरा ना मान जाये। इस चक्कर में मैने कराहते हुए सहारा लेने के लिये, सामने बैठी राखी के कंधे पर अपने दोनो हाथ रख दिये। वो उस पर तो कुछ नही बोली, पर अपनी नजरे उपर कर के मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोली,
"क्यों मजा आ रहा है की, नही,,,?"
"हाये राखी, मजे की तो बस पुछो मत। बहुत मजा आ रहा है।"
मैं बोला। इस पर राखी ने अपना हाथ और तेजी से चलाना शुरु कर दिया और बोली,
"साले, हरामी कहीं के !!! मैं जब नहाती हुं, तब घुर-घुर के मुझे देखता रहता है। मैं जब सो रही थी, तो मेरे चुंचे दबा रहा था, और अभी मजे से मुठ मरवा रहा है। कमीने, तेरे को शरम नही आती ?" मेरा तो होश ही उड गया। ये राखी क्या बोल रही थी। पर मैने देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाये जा रहा था। तभी राखी, मेरे चेहरे के उडे हुए रंग को देख कर हसने लगी, और हसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पड लगा दिया। मैने कभी भी इस से पहले राखी को, ना तो ऐसे बोलते सुना था, ना ही इस तरह से बर्ताव करते हुए देखा था। इसलिये मुझे बडा आश्चर्य हो रहा था।
पर उसके हसते हुए थप्पड लगाने पर तो मुझे, और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ की, आखिर ये चाहती क्या है। और मैने बोला की,
"माफ कर दो राखी, अगर कोई गलती हो गई हो तो।"
इस पर राखी ने मेरे गालों को हल्के सहलाते हुए कहा की,
"गलती तो तु कर बैठा है, बेटे। अब केवल गलती की सजा मिलेगी तुझे।"
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