Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
07-03-2018, 11:28 AM,
#42
RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं जल्दी से वहीं मोढे (वुडन प्लेन्क) पर बैठ गया। सामने राखी ने थोडी सी सब्जी और दो रोटियां दे दी। मैं चुप-चाप खाने लगा। राखी ने भी अपने लिये थोडी सी सब्जी और रोटी निकाल ली और खाने लगी। रसोई घर में गरमी काफि थी। इस कारण उसके माथे पर पसिने कि बुंदे चुहचुहाने लगी। मैं भी पसिने से नहा गया था। राखी ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा,
"बहुत गरमी है।"

मैने कहा, "हां।"
और अपने पैरों को उठा के, अपनी लुंगी को उठा के, पुरा जांघो के बीच में कर लिया। राखी मेरे इस हरकत पर मुस्कुराने लगी पर बोली कुछ नही। वो चुंकि घुटने मोड कर बैठी थी, इसलिये उसने पेटिकोट को उठा कर, घुटनो तक कर दिया और आराम से खाने लगी। उसकी गोरी पिन्डलियों और घुटनो का नजारा करते हुए, मैं भी खाना खाने लगा। लंड की तो ये हालत थी अभी की, राखी को देख लेने भर से उसमे सुरसुरी होने लगती थी। यहां राखी मस्ती में दोनो पैर फैला कर घुटनो से थोडा उपर तक साडी उठा कर, दिखा रही थी। मैने राखी से कहा
"एक रोटी और दे।"

"नही, अब और नही। फिर रात में भी खाना तो खाना है, ना। अच्छी सब्जी बना देती हुं, अभी हल्का खा ले।"

"क्या राखी, तुम तो पुरा खाने भी नही देती। अभी खा लुन्गा तो, क्या हो जायेगा ?"

"जब, जिस चीज का टाईम हो, तभी वो करना चाहिए। अभी तु हल्क-फुल्का खा ले, रात में पुरा खाना।"

मैं इस पर बडबडाते हुए बोला,
"सुबह से तो खाली हल्का-फुल्का ही खाये जा रहा हुं। पुरा खाना तो पता नही, कब खाने को मिलेगा ?"

ये बात बोलते हुए मेरी नजरें, उसकी दोनो जांघो के बीच में गडी हुई थी। हम दोनो बहन भाई को, शायद द्विअर्थी बातें करने में महारत हांसिल हो गई थी। हर बात में दो-दो अर्थ निकल आते थे। राखी भी इसको अच्छी तरह से समझती थी इसलिये मुस्कुराते हुए बोली,
"एकबार में पुरा पेट भर के खा लेगा, तो फिर चला भी न जायेगा। आराम से धीरे-धीरे खा।"

मैं इस पर गहरी सांस लेते हुए बोला,
"हां, अब तो इसी आशा में रात का इन्तेजार करुन्गा कि शायद, तब पेट भर खाने को मिल जाये।"

राखी मेरी तडप का मजा लेते हुए बोली,
"उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। जब इतनी देर तक इन्तेजार किया तो, थोडा और कर ले। आराम से खाना, अपने जीजा की तरह जल्दी क्यों करता है ?"

मैं ने तब तक खाना खतम कर लिया था, और उठ कर लुंगी में हाथ पोंछ कर, रसोई से बाहर निकाल गया। राखी ने भी खाना खतम कर लिया था। मैं ईस्त्री वाले कमरे आ गया, और देखा कि अंगीठी पुरी लाल हो चुकी है। मैं ईस्त्री गरम करने को डाल दी और अपनी लुंगी को मोड कर, घुटनो के उपर तक कर लिया। बनियान भी मैने उतार दी, और ईस्त्री करने के काम में लग गया। हालांकि, मेरा मन अभी भी रसोई-घर में ही अटका पर था, और जी कर रह था मैं राखी के आस पास ही मंडराता रहुं। मगर, क्या कर सकता था काम तो करना ही था। थोडी देर तक रसोई-घर में खट-पट की आवाजे आती रही। मेरा ध्यान अभी भी रसोई-घर की तरफ ही था। पूरे वातावरण में ऐसा लगता था कि एक अजीब सी खुश्बु समाई हुई है। आंखो के आगे बार-बार, वही राखी की चुचियों को मसलने वाला द्रश्य तैर रहा था। हाथों में अभी भी उसका अहसास बाकि था। हाथ तो मेरे कपडों को ईस्त्री कर रहे थे, परंतु दिमाग में दिनभर की घटनाये घुम रही थी। मेरा मन तो काम करने में नही लग रह था, पर क्या करता। तभी राखी के कदमो की आहट सुनाई दी। मैने मुड कर देखा तो पाया की, राखी मेरे पास ही आ रही थी। उसके हाथ में हांसिया (सब्जी काटने के लिये गांव में इस्तेमाल होने वाली चीज) और सब्जी का टोकरा था। मैने राखी की ओर देखा, वो मेरी ओर देख के मुस्कुराते हुए वहीं पर बैठ गई। फिर उसने पुछा,
"कौन-सी सब्जी खायेगा ?"

मैने कहा,
"जो सब्जी तुम बना दोगी, वही खा लुन्गा।"

इस पर राखी ने फिर जोर दे के पुछा,
"अरे बता तो, आज सारी चीज तेरी पसंद की बनाती हुं। तेरा जीजा तो आज है नही, तेरी ही पसंद का तो ख्याल रखना है।"

तब मैने कहा,
"जब जीजा नही है तो, फिर आज केले या बैगन की सब्जी बना ले। हम दोनो वही खा लेन्गे। तुझे भी तो पसंद है, इसकी सब्जी।"

राखी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"चल ठीक है, वही बना देती हुं।"

और वहीं बैठ के सब्जीयां काटने लगी। सब्जी काटने के लिये, जब वो बैठी थी, तब उसने अपना एक पैर मोड कर, जमीन पर रख दिया था और दुसरा पैर मोड कर, अपनी छाती से टीका रखा था। और गरदन झुकाये सब्जीयां काट रही थी। उसके इस तरह से बैठने के कारण उसकी एक चुंची, जो की उसके एक घुटने से दब रही थी, ब्लाउस के बाहर निकलने लगी और उपर से झांखने लगी। गोरी-गोरी चुंची और उस पर की नीली-नीली रेखायें, सब नुमाया हो रहा था । मेरी नजर तो वहीं पर जा के ठहर गई थी। राखी ने मुझे देखा, हम दोनो की नजरें आपस में मिली, और मैने झेंप कर अपनी नजर नीचे कर ली और ईस्त्री करने लगा। इस पर राखी ने हसते हुए कहा,
"चोरी-चोरी देखने की आदत गई नही। दिन में इतना सब-कुछ हो गया, अब भी,,,,,,,,,,,???" मैने कुछ नही कहा और अपने काम में लगा रह। तभी राखी ने सब्जी काटना बंध कर दिया, और उठ कर खडी हो गई और बोली,
"खाना बना देती हुं, तु तब तक छत पर बिछावन लगा दे। बडी गरमी है आज तो, ईस्त्री छोड कल सुबह उठ के कर लेना।"

मैने ने कहा,
"बस थोडा-सा और करदुं, फिर बाकी तो कल ही करुन्गा।"
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