RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
राखी और तेजी के साथ मेरे लंड को मुठीया रही थी, और बार-बार मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंगुठे से दबा भी रही थी। राखी बोली,
"अभी जल्दी से तेरा निकाल देती हुं, फिर देख तुझे कितना मजा आयेगा। अभी तो तेरी ये हालत है कि, देखते ही झड जायेगा। एक पानी निकाल दे, फिर देख तुझे कितना मजा आता है।"
,,,,,,,,,,,,,,,,,,"ठीक है राखी, निकाल दो एक पानी। मैं तुम्हारा दबाउं ?"
"पुछता क्या है, दबाना ? पर क्या दबायेगा, ये भी तो बता दे ?"
ये बोलते वक्त राखी के चेहरे पर, एक शैतानी भरी कातिल मुस्कुराहट खेल गई।
" वो तुम्हारी छातियां राखी, हाय।"
"छातियां, ये क्या होती है ? ये तो मर्दो की भी होती है, औरतो का तो कुछ और होता है। बता तो सही, नाम तो जानता ही होगाना।"
"चु,,,,,,चु,,,,,, मेरे से नही बोला जायेगा, छोडो नाम को।"
"बोलना, शरमाता क्यों है ? बहिन को खोल के दिखाने के लिये बोलने में नही शरमाता है, पर अंगो के नाम लेने में शरमाता है।"
" तुम्हारी,,,,,,,"
"हां हां, मेरी क्या,,,,,,,,बोल ?"
"तुम्हारी चु उ उ उंची।"
ये शब्द बोल के ही इतना मजा आ गया कि, लगा जैसे लौडा पानी फेंक देगा।
"हां, अब आयाना लाईन पर। दबा मेरी चुचियों को, इससे तेरा पानी जल्दी निकलेगा। हाय, क्या भयंकर लौडा है ? पता नही जब इस उमर में ये हाल है इस छोकरे के लंड का, तो पुरा जवान होगा तो क्या होगा ?"
मैने अपनी दोनो हथेलियों में बहिन की चुचियां भर ली और, उन्हे खूब कस-कस के दबाने लगा। गजब का मजा आ रहा था। ऐसा लगा रहा था, जैसे कि मैं पागल हो जाउन्गा। दोनो चुचियां किसी अनार की तरह सख्त और गुदाज थी। उसके मोटे-मोटे निप्पल भी ब्लाउस के उपर से पकड में आ रहे थे। मैं दोनो निप्पल के साथ-साथ पुरी चुंची को ब्लाउस के उपर से पकड कर दबाये जा रहा था। बहिन के मुंह से अब सिसकारियां निकलने लगी थी, और वो मेरा उत्साह बढाते जा रही थी शाबाश ! ऐसे ही दबा, मेरी चुचियों को। हाय क्या लौडा है ? पता नही, घोडे का है, या सांढ का है ? ठहर जा, अभी इसे चुस के तेरा पानी निकालती हुं।"
कह कर, वो नीचे की ओर झुक गई। जल्दी से मेरा लंड, अपने होंठो के बीच कैद कर लिया और सुपाडे को होंठो के बीच दबा के खूब कस-कस के चुसने लगी। जैसे कि पाईप लगा के, कोई कोका-कोला पीता है। मैं उसकी चुचियों को अब और ज्यादा जोर से दबा रह था। मेरी भी सिसकारीयां निकलने लगी थी, मेरा पानी अब छुटने वाला ही था।
"हाये रे, निकाल रे निकाल मेरा,,,,, निकल गया,,, ओह बहिन,,,, सारा,,,, सारा का सारा पानी, तेरे मुंह में ही निकल गया रे।"
राखी का हाथ, अब और तेज गती से चलने लगा। ऐसा लगा रहा था, जैसे वो मेरे पानी को गटा-गट पीते जा रही है। मेरे लंड के सुपाडे से निकली एक-एक बुंद चुस जाने के बाद राखी ने अपने होंठो को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई, मुझे देखने लगी और बोली,
"कैसा लगा ?"
मैने कहा,
"बहुत अच्छा।"
और बिस्तर पर एक तरफ लुढक गया । मेरे साथ-साथ राखी भी लुढक के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोडी देर तक चुमती रही।
थोडी देर तक आंख बंध कर के पडे रहने के बाद, जब मैं उठा तो देखा की राखी ने अपनी आंखे बंध कर रखी है और अपने हाथो से अपनी चुचियों को हल्के-हल्के सहला रही थी। मैं उठ कर बैठ गया और धीरे-से राखी के पैरो के पास चला गया । राखी ने अपना एक पैर मोडे रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ था। उसका पेटिकोट उसकी झांघो तक उठा हुआ था। पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गेप सा बन गया था। उस गेप से उसकी झांघ, अंदर तक नजर आ रही थी। उसकी गुदाज झांघो के उपर हाथ रख के, मैं हल्का-सा झुक गया अंदर तक देखने के लिये। हांलाकि अंदर रोशनी बहुत कम थी, परंतु फिर भी मुझे उसके काले-काले झांठो के दर्शन हो गये। झांठो के कारण चुत तो नही दिखी, परंतु चुत की खुश्बु जुरुर मिल गई। तभी राखी ने अपनी आंखे खोल दी और मुझे अपनी झांघो के बीच झांखते हुए देख कर बोली,
"हाये दैया, उठ भी गया तु ? मैं तो सोच रही थी, अभी कम से कम आधा घंटा शांत पडा रहेगा, और मेरी झांघो के बीच क्या कर रहा है ? देखो इस लडके को,चूत देखने के लिये दिवाना हुआ बैठा है।"
फिर मुझे अपनी बांहो में भर कर, मेरे गाल पर चुम्मी काट कर बोली,
"मेरे भाई को अपनी बहिन की चूत देखनी है ना, अभी दिखाती हुं मेरे छोरे। हाय मुझे नही पता था कि, तेरे अंदर इतनी बेकरारी है,चूत देखने की।"
मेरी भी हिम्मत बढ गई थी।
" जल्दी से खोलो और दिखा दो।"
"अभी दिखाती हुं, कैसे देखेगा, बताना ?"
"कैसे क्या, खोलोना बस जल्दी से।"
"तो ले, ये है मेरे पेटिकोट का नाडा। खुद ही खोल के बहिन को नंगा कर दे, और देख ले।"
" मेरे से नही होगा, तुम खोलोना।"
"क्यों नही होगा ? जब तु पेटिकोट ही नही खोल पायेगा, तो आगे का काम कैसे करेगा ?"
" आगे का भी काम करने दोगी क्या ?"मेरे इस सवाल पर, बहिन ने मेरे गालो को मसलते हुए पुछा,
"क्यों, आगे का काम नही करेगा क्या ? अपनी बहिन को ऐसे ही प्यासा छोड देगा ? तु तो कहता था कि तुझे ठंडा कर दुन्गा, पर तु तो मुझे गरम कर के छोडने की बात कर रह है।"
" मेरा ये मतलब नही था। मुझे तो अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा की, तुम मुझे और आगे बढने दोगी।"
"गधे के जैसा लंड होने के साथ-साथ, तेरा तो दिमाग भी गधे के जैसा ही हो गया है। लगता है, सीधा खोल के ही पुछना पडेगा, 'बोल चोदेगा मुझे, चोदेगा अपनी बहिन को, बहिन की चूत चाटेगा, और फिर उसमे अपना लौडा डालेगा', बोलना।"
" सब करुन्गा, सब करुन्गा। जो तु कहेगी वो सब करुन्गा। हाये, मुझे तो विश्वाश ही नही हो रहा है कि, मेरा सपना सच होने जा रहा है। ओह, मेरे सपनो में आनेवाली परी के साथ सब कुछ करने जा रहा हुं।"
"क्यों, सपनो में तुझे और कोई नही, मैं ही दिखती थी, क्या ?"
"तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी। पुरे गांव में तुमसे सुंदर कोई नही।"
"हाये, मेरे १६ साल के जवान छोकरे को, उसकी बहिन इतनी सुंदर लगती है, क्या ?"
"हां बहिन, सुच में तुम बहुत सुंदर हो, और मैं तुम्हे बहुत दिनो से चोओ,,,,,,,,,"
"हां हां, बोलना क्या करना चाहता था ? अब तो खुल के बात कर बेटे, शरमा मत अपनी बहिन से। अब तो हमने शर्म की हर वो दिवार गीरा दी है, जो जमाने ने हमारे लिये बनाई है।"
" मैं कब से तुम्हे चोदना चाहता था, पर कह नही पता था।"कोई बात नही भाई, अभी भी कुछ नही बिगडा है। वो भला हुआ कि, आज मैने खुद ही पहल कर दी। चल आ, देख अपनी बहिन को नंगा, और आज से बन जा उसका सैयां।",
कह कर बहिन बिस्तर से नीचे उतर गई, और मेरे सामने आ के खडी हो गई। फिर धीरे-धीरे करके अपने ब्लाउस के एक-एक बटन को खोलने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे चांद बादल में से निकल रहा है। धीरे-धीरे उसकी गोरी-गोरी चुचियां दिखने लगी। ओह गजब की चुचियां थी, देखने से लग रहा था जैसे कि, दो बडे नारियल दोनो तरफ लटक रहे हो। एकदम गोल और आगे से नुकिले तीर के जैसे। चुचियों पर नसो की नीली रेखायें स्पष्ट दिख रही थी। निप्पल थोडे मोटे और एकदम खडे थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलाबीपन लिये हुए, गोल-गोल घेरा था। निप्पल भुरे रंगे के थे। बहिन अपने हाथो से अपनी चुचियों को नीचे से पकड कर मुझे दिखाती हुई बोली,
"पसंद आई अपनी बहिन की चुंची, कैसी लगी बेटा बोलना, फिर आगे का दिखाउन्गी।"
"तुम सच में बहुत सुंदर हो। ओह, कितनी सुंदर चु उ उ,,,चियां है। ओह,,,,,"
|