RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
"हाये मेरा भाई,देखो तो बहिन की लेने के लिये कैसे तडप रहा है? आजा मेरे प्यारे, मैं तुझे सब सिखा दुन्गी। तेरे जैसे लंडवाले भाई को तो, कोई भी बहिन सिखाना चाहेगी। तुझे तो मैं सिखा-पढा के चुदाई का बादशाह बना दुन्गी। आजा, पहले अपनी बहिन की चुचियों से खेल ले, जी भरा के। फिर तुझे चुत से खेलना सिखाती हुं, भाई ।" मैं राखी की कमर के पास बैठ गया।राखी पुरी नंगी तो पहले से ही थी, मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरे हाथ में शायद दुनिया की सबसे खूबसुरत चुचियां थी। ऐसी चुचियां, जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाये। मैं दोनो चुचियों की पुरी गोलाई पर हाथ फेर रह था। चुचियां मेरी हथेली में नही समा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं जन्नत में घुम रहा हुं। राखी की चुचियों का स्पर्श गजब का था। मुलायम, गुदाज, और सख्त गठीलापन, ये सब एहसास शायद अच्छी गोल-मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है। मुझे इन सारी चीजो का एक साथ आनंद मिल रह था। ऐसी चुंची दबाने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है। इस बात का पता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला, जब मैने दुसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया।
राखी के मुंह से हल्की हल्की आवाजे आनी शुरु हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खींच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनुठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया। हम दोनो के होंठ एक दुसरे से मिल गये और मैं राखी कि दोनो चुचियों को पकडे हुए, उसके होंठो का रस ले रह था। कुछ ही सेकन्ड में हमारी जीभ आपस में टकरा रही थी। मेरे जीवन का ये पहला चुम्बन करीब दो-तीन मिनट तक चला होगा। राखी के पतले होंठो को अपने मुंह में भर कर मैने चुस-चुस कर और लाल कर दिया। जब हम दोनो एक दुसरे से अलग हुए तो दोनो हांफ रहे थे। मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचियां पर थे और मैं अब उनको जोर जोर से मसल रह था।
राखी के मुंह से अब और ज्यादा तेज सिसकारियां निकलने लगी थी। राखी ने सिसयाते हुए मुझसे कहा,
"ओह,,,, ओह,,,,, सिस,,सिस,,सि,सि,,,,,,,,,,शाबाश, ऐसे ही प्यार करो मेरी चुचियों से। हल्के-हल्के आराम से मसलो बेटा, ज्यादा जोर से नही, नही तो तेरी बहिन को मजा नही आयेगा। धीरे-धीरे मसलो।" मेरे हाथ अब बहिन कि चुचियों के निप्पल से खेल रहे थे। उसके निप्पल अब एकदम सख्त हो चुके थे। हल्का कालापन लिये हुए गुलाबी रंग के निप्पल खडे होने के बाद ऐसे लग रहे थे, जैसे दो गोरी, गुलाबी पहाडियों पर बादाम की गीरी रख दी गई हो। निप्पल के चारो ओर उसी रंग का घेरा था। ध्यान से देखने पर मैने पाया कि, उस घेरे पर छोटे-छोटे दाने से उगे हुए थे। मैं निप्पलों को अपनी दो उन्गलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था, और प्यार से उनको खींच रहा था। जब भी मैं ऐसा करता तो बहिन की सिसकीयां और तेज हो जाती थी। बहिन की आंखे एकदम नशिली हो चुकी थी और वो सिसकारीयां लेते हुए बडबडाने लगी,
"ओह, भाई ऐसे ही,,,,,, ऐसे ही,,,,, तुझे तो सिखाने की भी जुरुरत नही है, रे। ओह क्या खूब मसल रहा है, मेरे प्यारे। ऐसे ही कितने दिन हो गये, जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या प्यार किया है। कैसे तरसती थी मैं कि, काश कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे, प्यार से सहला दे, पर आखिर में अपना भाई ही काम आया। आजा मेरे लाल।"
कहते हुए उसने मेरे सिर को पकड कर अपनी चुचियों पर झुका लिया। मैं राखी का इशारा समझ गया और मैने अपने होंठ राखी की चुचियों से भर लिये। मेरे एक हाथ में उसकी एक चुंची थी और दुसरी चुंची पर मेरे होंठ चिपके हुए थे। मैने धीरे-धीरे उसकी चुचियों को चुसना शुरु कर दिया था। मैं ज्यादा से ज्यादा चुंची को अपने राखी में भर के चुस रहा था। मेरे अंदर का खून इतना उबाल मारने लगा था कि, एक-दो बार मैने अपने दांत भी चुचियों पर गडा दिये थे। जिस से राखी के मुंह से अचानक से चीख निकल गई थी। पर फिर भी उसने मुझे रोका नही। वो अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे ले जा कर, मुझे बालो से पकड के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और जोर-जोर से दबा रही थी, और दांत से काटने पर एकदम से घुटी-घुटी आवाज में चीखते हुए बोली,
"ओह, धीरे भाई, धीरे-से चुसो चुंची को। ऐसे जोर से नही काटते है।"
फिर उसने अपनी चुंची को अपने हाथ से पकडा और उसको मेरे मुंह में घुसाने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे वो अपनी चुंची को पुरी की पुरी मेरे मुंह में घुसा देना चाहती हो, और सिसयाई,
"ओह राजा मेरे निप्पल को चुसो जरा, पुरे निप्पल को मुंह में भर लो और कस-कस के चुसो राजा।
मैने अब अपना ध्यान निप्पल पे कर दिया और निप्पल को मुंह में भर कर अपनी जीभ, उसकी चारो तरफ गोल-गोल घुमाते हुए चुसने लगा। मैं अपनी जीभ को निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था। निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए, निप्पल को चुसने पर राखी एकदम मस्त हुए जा रही थी और उसके मुंह से निकलनेवाली सिसकीयां इसकी गवाही दे रही थी।मैं उसकी चीखे और सिसकीयां सुन कर पहले-पहल तो डर गया था। पर राखी के द्वारा ये समझाये जाने पर कि, ऐसी चीखे और सिसकीयां, इस बात को बता रही है कि, उसे मजा आ रहा है। तो फिर मैं दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था। जिस चुंची को मैं चुस रहा था, वो अब पुरी तरह से मेरी लार और थुक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी थी। फिर भी मैं उसे चुसे जा रहा था, तब राखी ने मेरे सिर को वहां से हटा के अपनी दुसरी चुंची की तरफ करते हुए कहा,
"हाये, खाली इसी चुंची को चुसता रहेगा, दुसरी को भी चुस, उसमे भी वही स्वाद है।"
फिर अपनी दुसरी चुंची को मेरे मुंह में घुसाते हुए बोली,
"इसको भी चुस चुस के लाल कर दे मेरे लाल, दुध निकल दे मेरे सैंया। एकदम आम के जैसे चुस और सारा रस निकाल दे, अपनी बहिन की चुचियों का। किसी काम की नही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आयेगी।"
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