RE: Vasna Sex Kahani बदनाम रिश्ते
मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहलीवाली चुंची दबाते हुए, दुसरी को पुरे मनोयोग से चुसने लगा। बहिन सिसकीयां ले रही थी और चुसवा रही थी। कभी-कभी अपना हाथ मेरी कमर के पास ले जा के, मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड के मरोड रही थी। कभी अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी। इस तरह काफि देर तक मैं उसकी चुचियों को चुसता रहा। फिर बहिन ने खुद अपने हाथों से मेर सिर पकड के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी। मेरे होंठ मेरे खुद के थुक से भीगे हुए थे।बहिन की बांयी चुंची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी, जबकि दाहिनी चुंची पर लगा थुक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचियां लाल हो चुकी थी, और निप्पलों का रंग हल्के काले से पुरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चुसने पर खून का दौर भर जाने के कारण हुआ था)।
राखी ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खींच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुम्बन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेंकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली,
"खाली दुध ही पीयेगा या मालपुआ भी खायेगा ? देख तेरा मालपुआ तेरा इन्तजार कर रह है, राजा।"
मैने भी राखी के होंठो का चुम्बन लिया और फिर उसके भरे-भरे गालो को, अपने मुंह में भर कर चुसने लगा और फिर उसके नाक को चुम और फिर धीरे से बोला,
"ओह राखी, तुम सच में बहुत सुंदर हो।"
इस पर राखी ने पुछा,
"क्यों, मजा आया ना, चुसने में ?"
"हां राखी, गजब का मजा आया, मुझे आजतक ऐसा मजा कभी नही आया था।"
तब राखी ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा,
"नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है। आजा , आज तुझे असली मालपुआ खिलाती हुं।" मैं धीरे से खिसक कर राखी के पैरो पास आ गया। राखी ने अपने पैरो को घुटनो के पास से मोडे कर फैला दिया और बोली,
"यहां बीच में। दोनो पैरो के बीच में आ के बैठ। तब ठीक से देख पायेगा, अपनी राखी का खजाना।"
मैं उठ कर राखी के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका। मेरे सामने वो चीज थी, जिसको देखने के लिये मैं मरा जा रहा था। मां ने अपनी दोनो जांघे फैला दी, और अपने हाथों को अपनी चूत के उपर रख कर बोली,
"ले देख ले, अपना मालपुआ। अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा।"
मेरी खुशी का तो ठीकाना नही था। सामने बहिन की खुली जांघो के बीच झांठो का एक त्रिकोण सा बन हुआ था। इस त्रिकोणिय झांठो के जंगल के बीच में से, बहिन की फुली हुए गुलाबी बुर का छेद झांख रहा था, जैसे बादलों के झरमट में से चांद झांखता है। मैने अपने कांपते हाथों को बहिन की चिकनी जांघो पर रख दिया और थोडा सा झुक गया। उसकी चूत के बाल बहुत बडे-बडे नही थे। छोटे-छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकिर से चीरी हुई थी। मैने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा,
"राखी, मैं इसे छु,,,,,लुं,,,,,?"
"छु ले, तेरे छुने के लिये ही तो खोल के बैठी हुं।"
मैने अपने हाथों को राखी की चुत को उपर रख दिया। झांठ के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे। हालांकि आम तौर पर झांठ के बाल थोडे मोटे होते है, और उसके झांठ के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे। हल्के-हल्के मैं उन बालों पर हाथ फिराते हुए, उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रह था। अब चुत की दरार और उसकी मोटी-मोटी फांके स्पष्ट रुप से दिख रही थी। राखी की चूत एक फुली हुई और गद्देदार लगती थी। चुत की मोटी-मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी। मेरे से रहा नही गया और मैं बोल पडा,
" ये तो सच-मुच में मालपुए के जैसी फुली हुई है। "
"हां भाई, यही तो तेरा असली मालपुआ है। आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे, यही खाना।"
"हां बहिन, मैं तो हंमेशा यही मालपुआ खाउन्गा। ओह बहिन, देखोना इस से तो रस भी निकल रहा है।"
(चुत से रिसते हुए पानी को देख कर मैने कहा।)
"भाई, यही तो असली माल है, हम औरतो का। ये रस, मैं तुझे अपनी चूत की थाली में सजा कर खिलाउन्गी। दोनो फांको को खोल के देख कैसी दिखती है ? हाथ से दोनो फांक पकड कर, खींच कर चूत को चिरोड कर देख।" सच बताता हुं दोनो फांको को चीर कर, मैने जब चुत के गुलाबी रस से भीगे छेद को देखा, तो मुझे यही लगा कि मेरा तो जनम सफल हो गया है। चुत के अंदर का भाग एकदम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था जब मैने उस छेद को छुआ तो मेरे हाथों में चिप-चिपा-सा रस लग गया । मैने उस रस को वहीं बिस्तर की चद्दर पर पोंछ दिया और अपने सिर को आगे बढा कर राखी की चूत को चुम लिया। राखी ने इस पर मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाते हुए हल्के-से सिसकाते हुए कहा,
"बिस्तर पर क्यों पोंछ दिया, उल्लु ? यही बहिन का असली प्यार है, जोकि तेरे लंड को देख के चुत के रस्ते छलक कर बाहर आ रहा है। इसको चख के देख, चुस ले इसको।"
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