RE: Antarvasna Chudai विवाह
अच्छा, बात यहीं खतम हो जाए ऐसी भी नही हुआ. ब्रा सेलेक्ट करने के बाद पैंटी की बारी आई. मैं ना नुकुर कर रही थी पर नीलिमा दीदी अड़ गयी. इस बार मैने मना कर दिया, आख़िर शरम की भी कोई हद होती है. मैने मना किया तो मुझे आँख दिखा कर मुझे डाँट कर बोली 'अरे शरमाती क्यों है इतना? मैं क्या गैर हूँ? मेरे लिए तो छोटी बहन जैसी है तू. अरे नाप वाप का चक्कर हो गया तो फिर से आने को अब टाइम नही है' मैने घुटने टेक दिए, चुपचाप अपनी साड़ी, पेटीकोट
और पहनी हुई पैंटी निकाली और नयी वाली पहन कर देखीं. सब की ट्राइयल करने के बाद नीलिमा का समाधान हुआ. इस बार उसने मुझे छुआ नही, बस मेरी कमर के नीचे देखती रही, शायद पैंटी की फिटिंग देख रही हो पर मुझे तो और ही कुछ लगता है. मैं साड़ी फिर से पहन रही थी तब मुझे आँख मार कर बोली कि 'लीना, अनिल बड़ा लकी है. फिर बोली कि
अच्छा हुआ कि मैं शेव वग़ैरहा नही करती आजकल की युवतियों जैसी, उससे औरत की नॅचुरल ब्यूटी खतम हो जाती है.'
मैने मन ही मन कहा कि बड़ी आई मेरी नॅचुरल ब्यूटी की बात करने वाली, इसे क्या करना है? वैसे मुझे गुस्सा नही आया, बल्कि अच्छा लगा कि वह मेरे शरीर की तारीफ़ कर रही है, मेरा एग्ज़ाइट्मेंट भी थोड़ा बढ़ गया. हमने करीब सात आठ सेट लिए और बाहर आए. बिल हुआ सात हज़ार रुपये. मेरा दिल धड़कने लगा, किसी तरह मैं बोली की नीलिमा दीदी, मैं देती हूँ. वैसे मैं कहाँ से देती, मेरे पार्स मे सिर्फ़ दो हज़ार थे! पर नीलिमा मुझे आँख दिखा कर बोली कि खबरदार अब कभी पैसे देने की बात की, तू हमारे घर की बहू है, तेरे रूप को सजाना हमारा फ़र्ज़ है. उसके बाद हमने वहीं बारिस्ता मे काफ़ी ली. काफ़ी पीते समय नीलिमा दीदी बड़ी आत्मीयता से बातें कर रही थी, बार बार मेरा हाथ पकड़ लेती. मुझे ये बहुत अच्छा लगा. उस सुंदर नारी की मैं अब तक पूरी फन बन चुकी थी.
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