RE: Antarvasna तूने मेरे जाना,कभी नही जाना
स्टेशन से घर पहुचने के बाद सब लोगो का मिलना मिलना होता है.....
रोहन की नज़रे अपनी मौसी रेणु पर चिपक जाती हैं...
'गाओं की गोरी' ये शब्द उसके मूह से निकलते निकलते रह जाता है...जवानी केए दहलीज़ पर खड़ी अपनी मौसी को वो देख कर दंग था ..गाओं की लड़कियो मे एक खास बात होती है ..उनमे एक अल्हाड़पन होता है ,,अदाए मासूमियत से भरी होती है और चेहरे पर ताज़गी की चमक होती है..
रोहन रेणु के उभारों और उसकी सख्ती का अनुमान उसके सूट और उसपर पड़े दुपट्टे के उपर से भी लगा लेता है...
" मौसी की जवानी तो जान लेवा है ...चलो अच्छा ही है ..गाओं मे दिन अच्छे बीतने वाले है " वो मन मे सोचता है.
"मम्मी मुझे घूमने जाना है... खेत देखने हैं ..."
"बेटा अब माँ तो जाने से रही और तेरी नानी के घुटनो मे भी दर्द है..नाना जी मार्केट गये है ..अगर कोई जाए तो चली जा "
"रोहन चल ना "
"खेतो मे क्या रखा है , मैं नही जा रहा"
रोहन तो अभी भी मौसी के हुस्न मे ही बिज़ी था . रेणु ने उसे अपने बूब्स को घुरते महसूस किया ..पर अपना भ्रम समझकर इग्नोर कर दिया था.
आरीए तू अपने मामा को लिवा ले ना..बचपन से तो उसकी लाडली रही है...वो थोड़े ना मना करेगा तुंझे " नानी ने कहा.
तभी साहिल कमरे मे आता है ...
"मामा मुझे खेत देखने है ..प्ल्ज़्ज़ चलो ना मेरे साथ"
"मुझे पढ़ना है "
अरे चला जा ना ..वो कौन सा यहाँ पर ज़िंदगी भर रहेगी ..फिर पढ़ते रहना " नानी ने घुड़की लगाई ..जबकि आरती रोने जैसी शकल बना चुकी थी.
"ठीक है चलो "
"रेणु तू भी चली जा ना "
"नही दीदी अभी बहुत काम करने है"
"
"ठीक है जाओ तुम दोनो "
चलो मौसी मैं आपके साथ किचिन का काम करवाता हूँ ...रेणु मुस्कुरा कर रसोई मे चली जाती है और साहिल आरती के साथ खेतो की ओर .
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