Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास
07-19-2018, 12:24 PM,
#6
RE: Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास
डॉली जल्दी से टाय्लेट गयी अपनी चूत को पौछा और अपने कपड़े पहेन लिए....

कमरे को ठीक करने के बाद वो बाहर निकली और अपने भाई के कमरे के पास गयी तो अभी दरवाज़ा बंद था...

घबराकर उसने दरवाज़ा खोला तो चेतन बिस्तर पे सोया पड़ा था.. डॉली को कुच्छ राहत मिली...

आज वो पक्का मर जाती अगर उसके भाई ने उसको देख लिया होता... उसने अपने आपको दो-तीन गलिया दी ऐसी हरकते करने के लिए....

जब दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई तो चेतन ने धीरे धीरे अपने चेहरे से चद्दर हटाई और

दरवाज़े की ओर देखा... उसकी बहन चली गयी थी ये देख कर उसके दिल जोकि पिच्छले 45 मिनट से पागलो की तरह

धड़क रहा था थोड़ा शांत होने लगा था... मगर चेतन का लंड अभी भी सख़्त हुआ पड़ा था और

इतना सख़्त वो पहली बार ही हुआ था... उसकी शॉर्ट्स को टेंट बनाके तनतनाया हुआ था उसका लंड...

वो कुच्छ भी करके मूठ मारना चाहता था... वो आराम से बिस्तर से उठा और दबे पाओ टाय्लेट में चले गया..

उसने झट से अपने कपड़े उतारे और टाय्लेट की सीट पे बैठ गया... अपने लंड पे हाथ रखा और आँखें बंद

करके उन 30 मिनट के बारे में सोचने लग गया जो कि उसने अपनी आखों से देखे थे... अपनी बहन को वो

आधे घंटे जो शायद कोई भाई ही देख पाता हो और वो आधे घंटा जिसको शायद ही कोई भाई भुला सकता हो...

उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी प्यारी बड़ी बहन ऐसी हरकते कर सकती है.. जिस तरह डॉली के चेहरे पे

दर्द/खुशी बदन में मदहोशी छाई हुई थी वो याद करके चेतन अपने लंड को हिलाने लगा...

डॉली की चूत जोकि गीली हुई थी उस काले ड्राइयर की वजह से उसको वो चाटना चाहता था... वो चुचियाँ जोकि

बड़ी और सख़्त हुई थी उसको वो ऑरेंज बार की तरह चूसना चाहता था...

"क्या दीदी पहले भी लड़को से चुद्वा चुकी है" ये सवाल चेतन के दिमाग़ में चल रहा था...

वो अपनी दीदी के नंगे बदन को पूरा याद करता और फिर उसके बदन मे टाँगों के बीच अजीब सा दर्द जागा जोकि उपर

उठा और उसके लंड में से सफेद रंग वीर्य निकलने लगा... इससे पहले कभी भी चेतन के वीर्य नहीं निकला था

और उसको लगता था कि सिर्फ़ चुदाई के बाद ही ऐसा हो सकता है मगर उसके दीदी के नंगे बदन को देखते ही उसकी ऐसी हालत हो गयी थी...

फिर उसने बड़ी सावधानी से उसे सॉफ किया और जाके अपने बिस्तर पे लेट गया....

उधर दूसरी ओर स्कूल ख़तम हो चुका था.... नारायण को देखकर एक टीचर ने उसे कहा कि आपको

प्रिनिसिपल साब ने बुलाया है जल्दी जाइए. प्रिन्सिपल ने नारायण को देख कर उसको अंदर बुला लिया.

नारायण ने मुस्कुराते हुआ पूछा क्या हुआ "सर अचानक बुला लिया".

प्रिन्सिपल ने कहा " नारायण मैं तुम्हे जो भी बोलूँगा उसे ध्यान से सुनना और सोच समझ के मुझे बताना".

नारायण थोड़ा घबरा गया मगर उसने मुस्कुराते हुए कहा "जी ज़रूर सर... आप बोलिए.."

प्रिनिसिपल ने कहा "तुम जानते हो हमारा स्कूल सबसे पहले भोपाल में खुला था और फिर आगे जाके दिल्ली में भी खुला.

कुच्छ दिन पहले भोपाल में जो स्कूल के प्रिन्सिपल थे उनकी डेत हो गयी थी तो स्कूल

को चलाने के लिए वाइस प्रिनिसिपल को प्रिनिसिपल बना दिया था. ( नारायण चुपचाप पूरी बात सुन रहा था).

अब ऐसा हुआ है कि जो अब प्रिन्सिपल बना है वो भी वो पोस्ट संभाल नही पा रहा है और वो रिज़ाइन करना चाहता है.

अब स्कूल के पास कोई और ऑप्षन नहीं बचा है उस स्कूल को चलाने के लिए और वो हम से मदद माँग रहे है.

तो नारायण मैं चाहता हूँ कि तुम वहाँ के प्रिन्सिपल बन जाओ क्यूंकी तुममे वो सारी क्वालिटीस है

जो अच्छे प्रिन्सिपल की होती है.

" नारायण ने बोला "सर धन्येवाद आपने मुझे इस काबिल समझा मगर मैं..

प्रिन्सिपल ने टोकते हुए कहा देखो नारायण मना मत करना..

तुम्हारा हमारे स्कूल पे बहुत बड़ा एहसान रहेगा.

नारायण ने कहा "लेकिन सर मेरे बीवी बच्चे है उनका भी स्कूल कॉलेज है यहाँ उनका क्या होगा."

प्रिन्सिपल साहब बोले "देखो नारायण तुम्हारा बेटा भोपाल वाले स्कूल में ही पढ़ लेगा और रही बात

तुम्हारी बेटिओ की तो वो अपना कॉलेज यहाँ ख़तम करके तुम्हारे पास आ सकती है. देखो तुम्हारी सॅलरी

बहुत बढ़ जाएगी प्लस रुतबा रहने के लिए घर मिलेगा गाड़ी ड्राइवर और भी इन्सेंटीव्स."

नारायण कुच्छ देर के शांत होके बोला "सर मैं सुबह बताउन्गा मुझे अपने बीवी बच्चो की भी राई लेनी पड़ेगी."

उधर घर में अभी भी चेतन और डॉली की हिम्मत नहीं हो रही थी एक दूसरे को देखने की...

डॉली को यकीन था कि उसके छोटे भाई ने उसको नंगा अपनी चूत से खेलते हुए नहीं देखा था तब भी

उसे एक अजीब सी बेचैनी हो रही है... खैर चेतन हिम्मत करते हुए अपने कमरे से बाहर निकला और

सीधा अपनी बहन डॉली के कमरे में गया... दरवाज़ा खुला हुआ था दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा

फिर चेतन बोला "दीदी खाना खाएँ??"

डॉली ने भी उसके प्रश्न का जवाब सिर्फ़ हां में दिया और किचन में खाना गरम करने चली गयी...

मगर फिर दोनो साथ में टीवी देखने लगे और सब पहले जैसा ही होने लगा...

नारायण ललिता और डॉली को लेके घर आ गया और सबको बिठा के वो सारी बात बताने लग गया

जो प्रिन्सिपल सर ने उसे कही थी... शन्नो सुनके बोली "अगर तुम्हे इतनी सारी चीज़े मिल रही है तो तुम्हे

मेरे ससुराल जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी (एंपी में शन्नो का परिवार था).

चेतन ने बोला "पापा मुझे भी दिल्ली में नहीं रहना, मैं वहाँ पढ़ लूँगा."

डॉली ने कहा "मेरा भी मन ऊब गया है यहाँ से...... मेरा कॉलेज ख़तम ही होने वाला है अगले

हफ्ते उसके बाद एग्ज़ॅम्स होंगे तो मैं एग्ज़ॅम्स देने यहा आ जाउन्गि." ललिता भी चाहती थी जहाँ

उसके मम्मी पापा को अच्छा लगेगा वहाँ वो रह लेगी. शन्नो ने कहा देखो एक काम करते है हम

"तुम 10 दिन का टाइम माँगो

और उसके बाद तुम और डॉली वहाँ चले जाओ. तुम अपना काम करना और डॉली वहाँ एग्ज़ॅम की तैयारी

शांति से करलेगी. यहाँ मैं और बच्चे रहते है 3 महीनो में ललिता की क्लासस और चेतन का स्कूल ख़तम

हो जाएगा उसके बाद हम भी वहाँ आजाएँगे सब कुच्छ बेचके. चेतन वहीं पढ़ लेगा और ललिता भी वहीं से कहीं

अपनी पढ़ाई आगे कर लेगी" सब लोगो ने इस प्लान को ठीक समझा.

पूरी शाम इन्ही बातो में निकल गयी. रात को नारायण ने शन्नो के करीब आने की कोशिश मगर शन्नो ने

सॉफ इनकार कर दिया. उधर चेतन की हालत फिर से खराब हो रही थी... उसके दिमाग़ में से डॉली की

नंगी तस्वीर हटने का नाम ही नहीं ले रही थी... वो भी डॉली के बारे में सोचता तो उसका लंड खड़ा होजाता...

उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस बीमारी का इलाज वो कैसे करें क्यूंकी वो अपनी बहन के साथ कुच्छ करने

के बारे में सोच भी नहीं सकता था और उसको बैचेनी इस बात की भी हो रही थी कि डॉली कुच्छ ही दिनो में

उससे दूर हो जाएगी और फिर उसकी ज़िंदगी कैसे कटेगी??

जो हालत चेतन की थी वोही हालत ललिता की भी थी.. उसकी सारी सहेलिया किसी ना किसी से चुद चुकी थी और

यह बातें वो हर रोज़ सुनती थी... वो अपनी सहेलिओ में से सबसे ज़्यादा हसीन थी और उसके पीछे भी लड़के

थे मगर वो चाहती कोई बंदा उसका फ़ायदा ना उठाए....

अगली सुबह नारायण ने प्रिन्सिपल को सारी बात बता दी और उन्होने खुशी खुशी रज़ामंदी देदि.

नारायण को खुशी थी कि उसके परिवार ने इस ऑफर को इनकार नहीं किया क्यूंकी इसमें बहुत बड़ी पोज़िशन और पैसा था....

मगर उसे एक बात का गम था कि वो अब दिल्ली की लड़कियों को से दूर हो जाएगा....

उसको दिल्ली की लड़किया बेहद पसंद थी क्यूंकी जितनी भी बनने की कोशिश करती थी कि वो बहादुर है अपना ख़याल

वो खुद रख सकती है उतनी ही नादान हरकते कर बैठती थी..... उसे भोपाल गये काफ़ी समय हो गया था

मगर उसे यकीन था कि भोपाल की लड़किया पहले जैसी निहायती शरीफ होंगी जोकि 24 घंटे कपड़ो में धकि रहती होंगी...

उसे घबराहट तो इस बात की भी थी कि कहीं उसके स्कूल में लड़कियों को स्कर्ट की जगह सलवार कुर्ता ना पहनाया जाता हो...

उधर घर में सब कुच्छ आराम से बीत रहा था... डॉली तो उस बात को भूल भी गयी थी कि ऐसा कुच्छ उसने किया था....

आज वो खुश थी क्यूंकी उसकी सहेली प्रिया का जनमदिन था और उसको उसकी पार्टी में जाना था...

प्रिया ने राज को पार्टी में नहीं बुलाया था ये जानके डॉली को अच्छा लगा....पूरे दिन भर वो सब कुच्छ प्लान

करती रही और सोचती रही कि वो क्या पहनेगी... जहाँ प्रिया उस बात को भूल गयी थी उधर चेतन के

दिमाग़ में यही घूम रहा था... आज उसने एक ऐसी ग़लती कर दी थी जिसको करके वो खुश नहीं था...

उसने स्कूल के टाय्लेट में जाके लिख दिया कि "कल मैने अपनी बहन को अपनी चूत से खेलते हुए देख मूठ मारा"

ये लिखने के बाद डॉली को सोचके उसने कुच्छ 7-8 मिनट के लिए मूठ मारा.....

वो चाहता था कि एक बारी फिरसे वो डॉली को नंगा देख सके...

आज फिर से नारायण ललिता को लिए बगैर घर आ गया और आज सच्ची में ललिता की एक्सट्रा क्लासस थी...

क्लासस ख़तम करने के बाद उसकी सहेली रिचा को अपने मा-बाप के साथ मॉल जाना था तो ललिता को आज

अपने आप ही घर पहुचना था... उसने ऑटो में जाना ठीक समझा मगर हमेशा की तरह उसे ऑटो खाली नहीं मिला...

अंधेरा फिर से छाने लगा था आसमान पर और वो फिर रिक्शा वालो से पुच्छने लगी...

एक दो के मना करने के बाद उसे वोई रिक्शा वाला मिला और उसने तुर्रंत ही ललिता को पहचान लिया था

मगर उसने ये ज़ाहिर नहीं होने दिया... ललिता के बड़े मोटे मम्मो को 2 सेकेंड के घूर्ने के बाद उसने पुछा "कहाँ जाना है"

ललिता ने बोला "आप पिच्छली बार लेके गये थे ना आनंद विहार की तरह तो वहीं जाना है"

रिक्शा वाला अंजान बनके बोला "आनंद विहार में कहाँ"

ललिता को लगा शायद इसको याद नहीं होगा बस उसको पूरा याद था कि इसने पिच्छली बारी भी उसने यहीं गंदे कपड़े पहेन रखे थे...

ललिता बोली "आनंद विहार के आगे में आपको रास्ता बता दूँगी"

ललिता ने रिक्शा का हॅंडल पकड़ा और अपनी एक टाँग रिक्शा पे रखके थोड़ा अंदर घुसी तो उसकी सफेद कॅप्री

थोड़ी नीचे हो गयी और पर्पल टॅंक टॉप उपर उठ गया... ललिता की पीठ के दर्शन को देख कर उस रिक्शा वाले

की आँखें बड़ी हो गयी.... वो अपने लंड को छूता हुआ रिक्शा पे बैठ गया... उस रिक्शा वाले ने एक गंदी

सी हल्के नीले रंग की लूँगी पहेन रखी थी जोकि उसके घुटने तक थी और उपर एक हरी बनियान...

क्रमशः……………………….
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RE: Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास - by sexstories - 07-19-2018, 12:24 PM

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