RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
ममता! एक सभ्य, सुसंस्कृत, महत्वाकांक्षी भारतीय नारी. जितनी कुशल ग्रहणी उससे कहीं ज़्यादा सफल व्यावसायिक महिला, अपने पति की अभिन्न प्रेमिका तो अपने इक-लौते पुत्र की आदर्श. विगत 2 महीने पहले ही उसने उमर के चौथे पड़ाव को छुआ था. स्नातक की पढ़ाई के दौरान प्रेम-विवाह और उसके ठीक एक साल बाद मा बनने का सौभाग्य. कुल मिला कर उसका रहेन-सहेन बेहद सरल व सादा था.
.
राजेश उसी विश्विधयालय में प्राध्यापक की हैसियत से कार्य-रत था जो अपनी ही विद्यार्थी ममता से प्रेम कर बैठता है, परिजनो के दर्ज़नो हस्तक्षेप, अनगिनती दबाव के बावजूद उसने उससे विवाह रचाया और जिसके नतीजन ममता के शिक्षण के दौरान ही ऋषभ के रूप उसे में पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गयी थी. बच्चे की अच्छी परवरिश के खातिर ममता के पढ़ाई छोड़ देने के फ़ैसले पर राजेश कतयि राज़ी नही होता और बीकॉम के उपरांत उसने अपनी पत्नी को एमकॉम भी करवाया. उस पुराने दौर में उतनी शिक्षा एक उच्च कोटि की नौकरी प्राप्त करने हेतु काफ़ी मानी जाती थी, शुरूवात प्राथमिक शाला में अधयापिका के पद पर की और तट-पश्चात एमबीए की उपाधि अर्जित करने के उपरांत आज वह एक मशहूर मल्टिनॅशनल कॉर्पोरेशन में मुख्य एचआर की भूमिका का सफलता-पूर्वक निर्वाह कर रही थी. स्वयं राजेश भी अब अपने सह-क्षेत्र का एचओडी बन चुका था.
.
राजेश और ममता का आपसी संबंध चाहे मानसिक हो या शारीरिक, बेहद नपा तुला रहा था. दोनो विश्वास की नज़र ना आने वाली किंतु अत्यंत मजबूत डोर से बँधे हुवे थे. ममता अक्सर टूर'स पर जाती, उसके कयि पुरुष संग-साथी थे, दिन भर दफ़्तर में व्यस्त रहना और घर लौटने के पश्चात भी वह मोबाइल या लॅपटॉप में उलझी रहती मगर राजेश ने कभी उसके काम या व्यस्तता आदि में कोई दखल-अंदाज़ी नही की थी बल्कि कुच्छ वक़्त पिछे तक तो वह खुद अपनी पत्नी के लिए खाने-पीने का इंतज़ाम करता रहा था, उसे कोई आपत्ति नही थी की ममता का पद और उसकी तनख़्वा उससे कहीं ज़्यादा है परंतु वर्तमान में तो जैसे सब कुच्छ बदल चुका था. अस्थमा की चपेट ने राजेश को मंन ही मंन खोखला नही किया अपितु शारीरिक क्षमता से भी अपंग कर दिया था. पुराने दौर में तो वे दोनो लगभग रोज़ाना ही चुदाई किया करते थे परंतु अब तो मानो साप्ताह के साप्ताह बीत जाने पर भी नाम मात्र की अतरंगता संभव नही हो पाती थी.
.
ममता साधारण समय में बहुत संकोची लेकिन चुदाई के दौरान उसकी उत्तेजना कयि गुना ज़्यादा बढ़ जाया करती थी. खुद राजेश भी कभी-कभी उसके कामुक स्वाभाव से घबरा सा जाता था, जैसे-जैसे ममता की उमर ढल रही थी उसकी काम-पिपासा दुगुनी गति से बढ़ रही थी. अब तो हालात इतने बदतर हो चले थे कि वह चाह कर भी अपनी कामोत्तजना पर काबू नही रख पा रही थी. कयि दिनो से निरंतर उसकी चूत से गाढ़े द्रव्य का अनियंत्रित रिसाव ज़ारी था मगर बिना पुरुष सहयोग के उसका खुल कर झाड़ पाना कतयि संभव नही हो पाता. प्रचूर मात्रा में रिसाव होने के प्रभाव से उसके सम्पूर्न जिस्म में हमेशा ही दर्द बना रहता था और सदैव इन्ही विचारों में मगन उसका मश्तिश्क उसकी पीड़ा को समाप्त होने में लगातार बाधा उत्पन्न कर रहा था.
-------------
"मे आइ गेट इन डॉक्टर. ?" ममता ने कॅबिन के दरवाज़े को खोलते हुवे पुछा, हमेशा की तरह उसके चेहरे पर शर्मीली सी मुस्कान व्याप्त थी परंतु अब उसके साथ दिखावट नामक शब्द का जुड़ाव हो चुका था.
"हां मा! अंदर आ जाओ, तुम्हे मेरी इजाज़त लेने कोई ज़रूरत नही" जवाब में ऋषभ को भी मुस्कुराना पड़ा मगर अपने लंड की ऐंठन से भरपूर स्थिति का ख़याल कर वह कुर्सी से उठ कर अपनी मा का स्वागत करने का साहस नही जुटा पाता बस इशारे मात्र से ममता को सामने स्थापित कुर्सी ऑफर करने भर से उसे संतोष करना पड़ता है.
"क्या बात है रेशू! तू कुच्छ परेशान सा दिख रहा है" ममता बोली और तत-पश्चात कुर्सी पर बैठ जाती है, अभी वह बिल्कुल अंजान थी कि उसका कॅबिन के भीतर ताक-झाँक करने वाला रहस्य उसके पुत्र पर उजागर हो चुका है और उसी भेद के प्रभाव से वह इतना चिंतित है.
"नही! नही तो मा" ऋषभ ने अपना थूक निगलते हुवे कहा, उसका मश्तिश्क इस बात को कतयि स्वीकार नही का पा रहा था कि कुच्छ देर पहले उसकी सग़ी मा ने उसे अपने ही समान अधेड़ उमर की औरत की गान्ड में उंगली पेलते देखा था. ममता के चेहरे के भाव सामान्य होने की वजह से वह निश्चित तौर पर तो नही जानता था कि उसकी मा ने उस अश्लील घटना-क्रम से संबंधित क्या-क्या देखा परंतु संदेह काफ़ी था कि उसने कुच्छ ना कुच्छ तो अवश्य ही देखा होगा.
"क्या वाकाई ?" ममता ने प्रश्नवाचक निगाओं से उसे घूरा. "इस ए/सी के ठंडक भरे वातावरण में भी तुझे पसीना क्यों आ रहा है ?" वह पुनः सवाल करती है.
कुच्छ वक़्त पूर्व क्लिनिक में गूंजने वाली रीमा की चीख उसके कानो से भी टकराई थी और ना चाहते हुवे भी उसके कदम विजिटर'स रूम की खिड़की तक घिसटते आए थे. माना दूसरो के काम में टाँग अड़ाना उसे शुरूवात से ही ना-पसंद रहा था परंतु अचानक से बढ़े कौतूहल के चलते विवश वह खिड़की से कॅबिन के भीतर झाँकने से खुद को रोक नही पाई थी और जो भयावह द्रश्य उस वक़्त उसकी आँखों ने देखा, विश्वास से परे कि उसकी खुद की गान्ड के छेद में शिहरन की कपकपि लहर दौड़ने लगी थी.
|