RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"तुम कुच्छ कह रही हो मा ?" आख़िर ऋषभ पुछ ही बैठा.
"म .. मैं कह रही थी रेशू कि पहले तू मेरे स्तनो की जाँच करेगा या मेरी योनि की ?" ममता ने दोबारा उसी धीमे लहजे में पुछा मगर इस बार उसका पुत्र उसकी बात सुनने में सफल हो जाता है.
"पहले तुम नंगी तो हो जाओ मा" ऋषभ ने फिर से अश्लीलतापूर्वक कहा, निश्चित ही उसकी ज़ुबान और मस्तिष्क पर अब उत्तेजना का ज्वर सवार हो चुका था.
अपने जवान पुत्र के अनैतिक कथन को सुन कर ममता उससे कुच्छ और पुच्छने का साहस नही जुटा पाती बस अपने हाथो को अपने ब्लाउस के ऊपरी हिस्से पर रख कर अपनी उंगलियों से उसके हुक खोलना शुरू कर देती है. ऋषभ की आँखें उसकी मा की उंगलियों पर जैसे जम जाती हैं, ज्यों-ज्यों उसके ब्लाउस के हुक खुलते जा रहे थे अत्यंत व्याकुलता से उसका गला सुख़्ता जा रहा था. ममता पूरा वक़्त ले रही थी ताकि कुच्छ समय तक और वह अपनी नग्नता का बचाव कर सके मगर होनी को टालना अब संभव कहाँ था, अंतिम हुक खुलते ही बेहद कसी ब्रा की क़ैद में होने के बावजूद उसके गोल मटोल मम्मे मानो उच्छलने लगते हैं और मजबूरन उसे अपना खुल चुका ब्लाउस अपनी अत्यधिक मांसल दोनो बाहों से बाहर निकाल कर फर्श पर फैंक देना पड़ता है.
"ओह्ह्ह मा! कितनी छोटी साइज़ की ब्रा पेहेन्ति हो तुम ? वो भी पूरी पारदर्शी" कहते हुवे ऋषभ को अपने जिस्म का सारा लहू अपने विशाल लंड की नसो की तरफ दौड़ता महसूस होने लगा और जिसे वह मेज़ की आड़ में अपनी मा की अधेड़ नजरो से छुप-च्छुपाकर अपने दाहिने हाथ से मसलना आरंभ कर देता है. ममता के साधारण स्वाभाव के मद्देनज़र वह यकीन नही कर पाता कि उसकी मा अपने शभ्य कपड़ो के भीतर इतने भद्काउ अंतर-वस्त्र पहेन सकती है. ब्रा वाकाई बहुत छोटी थी और जिसके भीतर जाने कैसे उसकी मा ने अपने बेहद सुडोल मम्मो को समाया होगा, निप्पलो से ऊपर का तो लगभग पूरा ही हिस्सा नंगा था.
"आज! आज ही पहनी है रेशू, मेरे सारे कपड़े गंदे पड़े थे" ममता ने अपने मम्मो के ऊपरी फुलाव पर अपने दोनो हाथो को कसते हुवे कहा मगर उसके ऐसा करने से पारदर्शी ब्रा के भीतर छुपे उसके निपल उजागर हो जाते हैं. ऋषभ की निरंतर बहकती जा रही हालत खुद उसकी हालत को बहकाने लगी थी. वह सोच रही थी कि अभी और इसी वक़्त अपने उतर चुके सभी कपड़ो को पुनः पहेन ले मगर उसकी कामग्नी में भी तीव्रता से व्रद्धि होना शुरू हो गयी थी, पिच्छले एक घंटे से किए सबर का बाँध अब टूटने सा लगा था. वासना में वह बुरी तरह से तप रही थी, उसे भली-भाँति एहसास हो रहा था कि जैसे पूर्ण नग्न होने से पूर्व अपने आप ही उसकी चूत स्खलित हो जाएगी.
"रेशू! पहले तू मेरे स्तनो की जाँच कर ले ना" इस बार ममता विनती के स्वर में बोली. उसने फ़ैसला किया था कि अपने मम्मो का निरीक्षण करवाने के उपरांत वह अपने ऊपरी तंन को वापस ढँक लेगी, तत-पश्चात ही अपने निच्छले धड़ से नंगी होगी. कम से कम ऋषभ उसे पूरी तरह से नंगी तो नही देख सकेगा.
"मा तुम फिकर क्यों करती हो, मैं एक साथ ही तुम्हारे मम्मो और चूत की जाँच कर लूँगा और इससे समय की भी बचत होगी" ऋषभ ने अपनी मा की विनती को अस्वीकार करते हुवे कहा, वह जान-बूझ कर बेशरामी नही दिखा रहा था बल्कि लाख अनुभवी होने के बावजूद उसकी ज़ुबान उसके नियंत्रण से बाहर हो चली थी.
"ट .. ठीक है" जवाब में बस इतना कह कर ममता अपने मम्मो के ऊपर रखे अपने दोनो हाथो को नीचे की ओर फिसलते हुए उसके द्वारा अपने पेटिकोट के नाडे तक का बेहद चिकना रास्ता तय करने लगती है, जिसमें उसका हल्का सा उभरा पेट व बेहद गहरी नाभि शामिल थे. कुच्छ पल बाद होने वाले कामुक कयास को सोचने मात्र से वह अपनी चूत के गीले मुहाने से ले कर उसकी संकीर्ण अन्द्रूनि गहराई में सिहरन की एक अजीब सी लंबी ल़हेर प्रज्वलित होती महसूस कर रही थी, इतनी अधिक कामोत्तजना से उसका सामना पहले कभी नही हुआ था. यक़ीनन ऋषभ से उसका मर्यादित रिश्ता होना ही उसे अत्यंत रोमांच से भरता जा रहा था, जल्द ही नीचे की दिशा में सरक्ति उसकी उंगलिओ ने उसके पेटिकोट का नाडा खोज लिया और नाडे की जिस डोर को खींचते ही उसके पेटिकोट को उसके शरीर से अलग हो जाना था, उस डोर को अपने बाएँ हाथ की प्रतम उंगली के दरमियाँ गोल गोल लपेटने के पश्चात वह अपनी नशीली आखों से अपने पुत्र की वासना-मयि आँखों में झाँकना शुरू कर देती है. ऋषभ की आँखों में उसे अधीरता और गहेन व्याकुलता के अंश भी स्पष्ट रूप से नज़र आते हैं मानो अपनी आँखों से इशारा कर रहा हो कि मा! अब देर करना उचित नही.
"रेशू! हम जो कर रहे हैं क्या वो ठीक है ? तू मेरा बेटा है और मैं तेरे ही सामने ....." ममता ने अपने पुत्र के चेहरे की भाव-भंगिमाओं को पढ़ने के उद्देश्य से पुछा, माना लज्जा के वशीभूत वह अपना कथन पूरा करने में नाकाम रही थी मगर उसका इतना संकेत भी ऋषभ को उसकी अधूरी बात समझने हेतु पर्याप्त था.
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